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जेएनयू के दृष्टिहीन छात्र शशिभूषण चिल्लाते रहे, पुलिस वाले सीने पर चढ़कर उन्हें पीटते रहे

नई दिल्ली। कल फीसवृद्धि के खिलाफ जेएनयू के छात्रों के प्रदर्शन के दौरान पुलिस वालों ने बर्बरता की सारी सीमाएं पार कर दीं। वह पुरुष पुलिसकर्मियों द्वारा महिला छात्रों के साथ बदसलूकी हो या फिर सादे लिबास में छात्रों के बीच घुसकर उनकी बर्बर पिटाई का मामला हर जगह पर खाकीधारी बेहद खूंखार दिखे। यहां तक कि उन्होंने दृष्टिहीन और विकलांग छात्रों तक को नहीं बख्शा और उनके साथ शर्मनाक क्रूरतापूर्ण व्यवहार किया। और यह कोई अनजाने में नहीं बल्कि बिल्कुल होशो-हवास में और जान बूझ कर किया गया। आंदोलन में शामिल जेएनयू के दृष्टिहीन छात्र शशिभूषण समद भी उनके इस घृणित रवैये की चपेट में आ गए। और पुलिसकर्मियों ने पीट-पीटकर उनको तकरीबन अधमरा कर दिया।

जबकि बार-बार वह अपने दृष्टिहीन होने की गुहार पुलिस वालों से लगाते रहे बावजूद इसके उन्होंने उनकी एक नहीं सुनी। और यह ताना देते हुए कि ‘अंधे हो तो प्रदर्शन में क्यों आए’ कह कर उनकी पिटाई और तेज कर दी। और उनको इस तरह से पीटा कि कुछ समय बाद उनके लिए सांस लेनी मुश्किल हो गयी थी। बाद में उन्हें एम्स के ट्रौमा सेंटर में भर्ती कराना पड़ा। जहां से उन्होंने वीडियो के जरिये अपने साथ घटी घटना का पूरा ब्योरा दिया है। आपको बता दें कि पिछले दिनों शशिभूषण का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया था जिसमें उन्होंने हबीब जालिब के चर्चित शेरों को पूरी राग के साथ गाया है।

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देश के गृहमंत्री ने कल जेएनयू से दमन के उस गुजराती मॉडल की भी शुरुआत कर दी जिसे किसी भी रूप में संवैधानिक नहीं कहा जा सकता है। दरअसल दिल्ली पुलिस और सीआरपीएफ के तमाम जवानों को सादे लिबास में छात्रों के बीच छोड़ दिया गया था। और जब छात्रों पर लाठीचार्ज और दमन की शुरुआत हुई तो इन्हीं पुलिसकर्मियों ने उन्हें हाथों और लातों से पीटना शुरू कर दिया।

यह पिटाई और दमन का गुजरात मॉडल है। जहां पुलिस विभाग ने तमाम युवाओं को खुफियागिरी और जासूसी के नाम पर 5 से लेकर 10 हजार रुपये महीने पर रखा हुआ है। ये सभी कांट्रैक्ट पर होते हैं। और बिल्कुल सादे लिबास में होते हैं। आम तौर पर संवैधानिक नियमों के मुताबिक वर्दीधारी पुलिसकर्मी और खुफिया एजेंसियों के कर्मचारी होते हैं। और दोनों की अलग-अलग भूमिकाएं होती हैं। इनमें सीबीआई, आईबी, एलआईयू यानी लोकल इंटेलिजेंस ब्यूरो समेत तमाम तरह की एजेंसियां होती हैं। जो खुफियागिरी का काम करती हैं। और मूल रूप से उनका काम खुफिया सूचनाओं को सरकार औऱ प्रशासन तक पहुंचाना होता है। और हमेशा ये पर्दे के पीछे से काम कर रही होती हैं। यानी इनकी कोई सार्वजनिक भूमिका नहीं होती है।

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लेकिन गुजरात के भीतर कांट्रैक्ट पर रखे गए इन युवाओं को न केवल खुफिया सूचनाएं हासिल करने के लिए रखा गया है बल्कि जरूरत पड़ने पर वे सार्वजनकि विरोध-प्रदर्शनों के दौरान लोगों को पीटने से लेकर उन्हें गिरफ्तार करने तक हर काम में पुलिस को सक्रिय सहयोग करते हैं। आम तौर पर इन्हें स्थानीय पुलिस के एक विंग की तरह रखा जाता है। जो हर थाने में मौजूद है। कल जेएनयू में भी यह प्रयोग दोहराया गया है। हालांकि इसमें कितने खुफिया के लोग थे और कितने पुलिसकर्मी अभी यह बता पाना मुश्किल है। लेकिन यह एक खतरनाक शुरुआत है। आगे बढ़ने से पहले ही जिस पर रोक लगाए जाने की जरूरत है। नीचे शशिभूषण द्वारा बतायी गयी अपनी दास्तान और उनके गाये हबीब जालिब के गीत को दिया जा रहा है:

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