पूर्व नौकरशाहों ने लिखा योगी को खुला खत, कहा- अंतर-धार्मिक विवाह संबंधी अध्यादेश वापस ले सरकार

Estimated read time 1 min read

(देश के 104 सेवानिवृत्त नौकरशाहों ने यूपी के मुख्यमंत्रत्री योगी आदित्यनाथ को एक खुला खत लिखा है। यह पत्र सरकार द्वारा सूबे में जारी किए गए नये अंतर धार्मिक विवाह अध्यादेश को लेकर है। इन सभी ने इसे न केवल नागरिकों के बुनियादी मूल अधिकारों का उल्लंघन बताया है बल्कि कहा है कि यह संविधान की मूल भावना के भी खिलाफ है। उनका कहना है कि जिस बर्बरता के साथ युवक-युवतियों के साथ पुलिस और प्रशासन पेश आ रहा है वह पूरे देश और उसके लोकतंत्र के लिए कलंक से कम नहीं है। पेश है उनका पूरा पत्र-संपादक)  

29 दिसम्बर, 2020

माननीय मुख्यमन्त्री जी,

भूतपूर्व सिविल सेवकों का हमारा यह समूह आपको अत्यंत चिंता व दुख के साथ देश की एकता, जिस पर हमें गर्व रहा है, को आगे भी बनाए रखने के लिए अति महत्वपूर्ण विषय पर संबोधित कर रहा है। हम प्रारंभ में ही यह स्पष्ट करना चाहते हैं कि हमारा समूह संविधान में परिकल्पित भारत की धारणा में पूर्ण आस्था रखता है,  परंतु राजनीति में तटस्थ व निष्पक्ष है।

आज हम मुरादाबाद की कुख्यात, और उसके लगभग साथ हुईं वैसी ही कई अनेक, घटनाओं पर अपनी पीड़ा से आपको अवगत कराना चाहते हैं। मुरादाबाद में 22 वर्षीय राशिद, और उसके 25 वर्षीय भाई सलीम, को दो सप्ताह तक जेल में रखने के बाद ही रिहा किया गया, जब कि उसकी पत्नी ने बार-बार पुलिस, मीडिया और अदालत को बताया कि उसने अपनी मर्ज़ी से शादी की है, और वह अपने पति के घर वालों के साथ ही रहना चाहती है।

राशिद और पिंकी ने जुलाई, 2020 में शादी की थी, यानी नए अंतर-धार्मिक विवाह से संबंधित अध्यादेश लागू होने से काफ़ी पहले। 5 दिसम्बर को जब वह अपनी शादी रजिस्टर कराने जा रहे थे, बजरंग दल के कुछ सदस्यों ने उन्हें घेरा और राशिद पर ‘लव जिहाद’ का आरोप लगा कर उन्हें पुलिस थाने ले गए। यद्यपि पिंकी ने अनेक बार बताया कि उसने अपनी स्वेच्छा से शादी की है, राशिद और सलीम को जेल भेज दिया गया, और पिंकी को संरक्षण केंद्र में। बजरंग दल के लोग पिंकी के घर वालों को भी बुला लाए।  यह अक्षम्य है कि पुलिस की मौजूदगी में एक गुट निर्दोष दंपति को डराता धमकाता  रहा, और पुलिस मूक दर्शक बनी देखती रही।

राशिद ने यह कहा कि “मैंने बजरंग दल के लोगों को बताया था कि मेरी पत्नी गर्भवती है, लेकिन उन्होंने हमें गालियां दीं। वे हमें घसीटते हुए पुलिस स्टेशन ले गए और मेरे ससुराल वालों को बुलाया। फिर हमें बंद कर दिया गया और एक संगरोध केंद्र में भेज दिया गया। मैं अपनी पत्नी से मिल भी नहीं सका।” (रहमान और सिन्हा, द इंडियन एक्सप्रेस, 2020)। अंततः पिंकी का गर्भपात हो गया, संभवतः इस प्रताड़ना के कारण। माननीय मुख्यमंत्री जी, क्या इसे अजन्मे शिशु को घात पहुंचाने का मामला नहीं मानना चाहिए, और क्या आपके राज्य की पुलिस इस अपराध के दुष्प्रेरण में भागीदार नहीं है ?

अफ़सोस है कि यह घटनाएं उत्तर प्रदेश में उन युवाओं के खिलाफ अत्याचारों की श्रृंखला की नई कड़ी हैं, जिनका अपराध केवल यह है कि वह एक स्वतंत्र देश के स्वतंत्र नागरिक के रूप में जीना चाहते हैं। विधि-नियम व्यवस्था (rule of law) में विश्वास रखने वाले सभी भारतीयों के आक्रोश के बावजूद यह सिलसिला बेरोकटोक जारी है। धर्मांतरण विरोधी अध्यादेश,  अपनी इच्छा से अपना चुनाव करने की हिम्मत रखने वाले भारत के मुस्लिमों और महिलाओं के विरुद्ध,  हथियार के रूप में प्रयोग किया जा रहा है।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय सहित विभिन्न उच्च न्यायालयों के अनेक स्पष्ट निर्णय हैं कि अपना जीवनसाथी अपनी मर्ज़ी से चुनना संविधान के तहत प्रत्येक व्यक्ति का मौलिक अधिकार है,  परंतु उत्तर प्रदेश को यह संविधान मान्य नहीं प्रतीत होता है। स्वघोषित रक्षा दल स्वच्छन्दता से निर्दोष नागरिकों को आतंकित कर रहे हैं। यह दुखद सत्य सर्व विदित है कि उत्तर प्रदेश जो कभी मिली-जुली गंगा-जमुनी तहज़ीब का देश के लिए उदाहरण था, विगत कुछ वर्षों में घृणा, विभाजन और कट्टरपन की राजनीति का केंद्र बिन्दु बन गया है और प्रदेश के शासन तंत्र में भी सांप्रदायिक ज़हर घुल चुका है। यही नहीं, प्रदेश की कानून-प्रवर्तन मशीनरी की भूमिका तानाशाही शासनतंत्र की खुफ़िया पुलिस की याद दिलाती है। नागरिकों में आपसी वैमनस्य बढ़ाने से बड़ा खतरा देश के लिए आप खड़ा नहीं कर सकते, जिससे देश के दुश्मनों को ही सहायता मिलेगी। जहां चाणक्य ने हमें अपने प्रतिद्वंदियों के अंदर फूट डालने की शिक्षा दी है, वहाँ आप अपने ही लोगों के बीच नफ़रत के बीज बो रहे हैं।          

इसलिए हम आपसे आग्रह करते हैं कि इस असंवैधानिक अध्यादेश को वापस लिया जाए और जो नागरिक इसके अवैध प्रवर्तन से प्रताड़ित हुए हैं, उनकी समुचित क्षतिपूर्ति की जाए। जिन पुलिसकर्मियों ने अपने सामने यह होने दिया, उन पर विधिवत उत्तरदायित्व निर्धारित होना चाहिए। मामले की जांच वरिष्ठ मजिस्ट्रेट से कराके, यदि किसी की अजन्मे शिशु की मृत्यु में सहभागिता पाई जाए, तो उसके विरुद्ध भारतीय दण्ड संहिता के अंतर्गत मुकदमा चलाया जाए।

प्रदेश के सम्पूर्ण पुलिस फ़ोर्स को नागरिकों के अधिकारों को सम्मान देने की ट्रेनिंग की तत्काल आवश्यकता है, तथा प्रदेश के सभी राजनीतिज्ञों को भारत के संविधान की व्यवस्था से अपने को पुनः शिक्षित करना चाहिए, जिस संविधान के पालन व रक्षा करने की वह शपथ लेते रहें हैं। यद्यपि पूर्व के पत्राचार से यह उम्मीद तो नहीं जगती है कि आपकी सरकार कानून की शासन व्यवस्था लागू करने के लिए कोई ठोस क़दम उठाएगी, परंतु हम यह आशा ज़रूर करते हैं कि सामान्य नागरिक इन परिस्थितियों पर सही नजरिए से चिंतन कर सकेंगे और जागरूक जनमत व न्यायालय इस अवनति को रोकने के लिए हस्तक्षेप करेंगे।

सत्यमेव जयते

104 हस्ताक्षरी निम्नवत

+ There are no comments

Add yours

You May Also Like

More From Author