पंजाब में 4 दिनों से सड़कों पर किसानों का डेरा, गन्ना कीमतों में वृद्धि नहीं तो जालंधर बन सकता है सिंघु बॉर्डर?

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नई दिल्ली। पंजाब के विभिन्न क्षेत्रों से संयुक्त किसान मोर्चा (SKM) के बैनर तले भारती किसान यूनियन (दोआबा) के नेतृत्व में सैकड़ों किसान 20 नवंबर से अनिश्चितकालीन विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। लेकिन भगवंत मान सरकार उनकी मांगों को अनसुना कर रही है। जिससे किसानों ने जालंधर में धानोवाली गांव के पास राष्ट्रीय राजमार्ग को अवरुद्ध कर दिया है। वे गन्ने की खरीद मूल्य 380 से बढ़ाकर 450 रुपये प्रति क्विंटल करने की मांग कर रहे हैं।

जालंधर में चार दिन से धरना दे रहे किसान गन्ने की कीमत बढाने की मांग कर रहे हैं, तो लुधियाना और अन्य जिलों में किसान धान की पराली जलाने पर दर्ज हुए केस को वापस लेने की मांग कर रहे हैं। पंजाब पुलिस के अनुसार 8 नवंबर से पराली जलाने पर किसानों के खिलाफ 930 से अधिक एफआईआर दर्ज की गई हैं, इसके अलावा 7,405 मामलों में 1.67 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया गया है और 340 किसानों के राजस्व रिकॉर्ड में लाल प्रविष्टियां की गई हैं।

संयुक्त किसान मोर्चा से संबद्ध 15 यूनियनों और 18 अन्य किसान यूनियनों ने सोमवार को पंजाब में 34 स्थानों पर विरोध-प्रदर्शन किया। किसान संगठनों ने धान की पराली से लदी ट्रॉलियों के साथ उपायुक्तों और उप-विभागीय मजिस्ट्रेटों के कार्यालय पर जाकर खेतों में फसल अवशेष जलाने पर किसानों पर एफआईआर दर्ज करने और लगाए गए जुर्माने को वापस लेने सहित कानूनी कार्रवाई वापस लेने की मांग की है। साथ ही किसानों ने धान की पराली के दीर्घकालिक समाधान की भी मांग की है।

गन्ने की कीमतों में बढ़ोतरी की मांग को लेकर जालंधर में किसानों द्वारा राजमार्ग की नाकाबंदी शुक्रवार को चौथे दिन में प्रवेश कर गई। किसान गन्ने की कीमत 380 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़ाकर 450 रुपये प्रति क्विंटल करने की मांग कर रहे हैं। वे गन्ने की पेराई के लिए चीनी मिलों को फिर से शुरू करने की भी मांग कर रहे हैं।

भारती किसान यूनियन (दोआबा) के नेतृत्व में किसान पिछले चार दिनों से राजमार्ग के जालंधर-फगवाड़ा खंड के बीच में धरना दे रहे हैं, विरोध स्वरूप उन्होंने बीच सड़क पर तंबू लगा लिया है और हाईवे पर रात गुजार रहे हैं। जिससे जालंधर और दिल्ली के बीच यातायात भी प्रभावित हुआ है।

जालंधर में विरोध प्रदर्शन के कारण जम्मू, पठानकोट और अमृतसर से जालंधर होते हुए लुधियाना, चंडीगढ़, नवांशहर और दिल्ली की ओर जाने वाले वाहनों की आवाजाही प्रभावित हुई है। अधिकारियों ने कहा कि प्रदर्शनकारी किसानों ने गुरुवार को जालंधर के धानोवाली गांव के पास रेलवे ट्रैक के एक हिस्से को भी अवरुद्ध कर दिया, जिससे ट्रेनों की आवाजाही भी प्रभावित हुई।

पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने धरने पर तंज किया कि किसान यूनियनें अपने निहित स्वार्थों के लिए सड़कों को अवरुद्ध करके लोगों को परेशान कर रही हैं। उन्होंने किसान संगठनों से अनुरोध किया है कि सड़कों को अवरुद्ध न किया जाए, क्योंकि इससे आम जनता को असुविधा होती है।

किसान नेता बलविंदर सिंह ने पहले कहा था कि उन्हें राज्य सरकार द्वारा सड़कों पर आने के लिए मजबूर किया गया था, जिसने अभी तक गन्ने की कीमतों की घोषणा नहीं की है, न ही गन्ने की पेराई शुरू की है। उन्होंने कहा कि सरकार ने 16 नवंबर को एक बैठक में उनके मुद्दे सुलझाने का वादा किया था लेकिन एक दिन पहले ही इसे रद्द कर दिया।

मुख्यमंत्री भगवंत मान ने एक बयान जारी कर कहा कि किसान यूनियनों को आम आदमी के लिए असुविधा पैदा करने से बचना चाहिए अन्यथा लोग उनके खिलाफ हो जाएंगे।

भगवंत मान की टिप्पणी की राजनीतिक दलों और किसान संगठनों ने तीखी आलोचना की। संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) के समन्वयक दर्शन पाल ने कहा कि आप को यह नहीं भूलना चाहिए कि उनका जन्म भी धरने से ही हुआ है और जब वे सत्ता में नहीं थे तो उनकी पार्टी ने किसानों की मांगों का समर्थन किया था।   

दर्शन पाल ने कहा कि “अब, जब वे (आप) सत्ता में आए हैं तो उनका रवैया पूरी तरह से बदल गया है। किसान अपनी मर्जी से नहीं बल्कि मजबूरी में विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। अगर आप सरकार ने हमारे लंबे समय से लंबित मुद्दों का समाधान कर दिया होता, तो हमें विरोध करने की कोई जरूरत नहीं थी। सत्ता में आने से पहले, AAP ने किसानों के सभी मुद्दों को हल करने का वादा किया था, लेकिन अब वे हमसे मिलने से भी कतराते हैं। अगर सरकार हमारी मांगें मान लेती है तो हम विरोध क्यों करेंगे? स्थिति को हल करने की जिम्मेदारी सरकार पर है।”  

भारती किसान यूनियन (दोआबा) नेता मंजीत राय ने कहा कि उन्होंने गन्ने का सुनिश्चित मूल्य बढ़ाने के लिए सरकार को कई बार अवगत कराया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। जब तक हमारी मांगें पूरी नहीं हो जातीं, हम अपना विरोध जारी रखेंगे। राज्य सरकार ने अन्य राज्यों की तुलना में अपना सुनिश्चित मूल्य बहुत कम रखा है, साथ ही पिछले वर्षों का बकाया भी गन्ना मिलों द्वारा अब तक भुगतान नहीं किया गया है।

शिरोमणि अकाली दल (शिअद) के मुख्य प्रवक्ता अर्शदीप सिंह ने आप सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि राज्य सरकार ने किसान विरोधी और पंजाब विरोधी रुख अपनाया है।  

पराली की ट्रॉलियां लेकर पंजाब में 34 जगहों पर किसानों का प्रदर्शन  

अठारह किसान यूनियनें सोमवार को पंजाब में धान की पराली से लदी ट्रॉलियों के साथ उपायुक्तों और उप-विभागीय मजिस्ट्रेटों के कार्यालयों में पहुंचीं और खेतों में फसल अवशेष जलाने पर किसानों पर एफआईआर दर्ज करने और लगाए गए जुर्माने को वापस लेने सहित कानूनी कार्रवाई वापस लेने की मांग की। पंजाब में 34 स्थानों पर विरोध दर्ज कराते हुए, उन्होंने धान की पराली के दीर्घकालिक समाधान की भी मांग की।

धरने पर बैठे किसान

18 किसान यूनियनों के संयोजक सरवन सिंह पंढेर ने कहा, “हम पराली जलाने के लिए किसानों के खिलाफ दर्ज की गई एफआईआर का विरोध कर रहे है। उन पर भारी पर्यावरणीय मुआवज़ा लगाया गया और पराली जलाने के लिए किसानों के भूमि रिकॉर्ड में की गई लाल प्रविष्टियां (उक्त भूमि के बदले बैंकों से ऋण लेने, उसे गिरवी रखने या बेचने पर किसानों के रास्ते में बाधा आ सकती है)। अन्य कार्रवाइयों में सरकार द्वारा किसानों का नाम लेने और उन्हें शर्मिंदा करने के अलावा, हथियार लाइसेंस और पासपोर्ट रद्द करने की धमकियां शामिल हैं। हम ऐसी कार्रवाइयों को वापस लेने की मांग कर रहे हैं। हम धान की पराली को विरोध स्थलों पर ले गए क्योंकि हम फसल के अवशेष को जिला प्रशासन को देना चाहते थे। यदि वे कर सकते हैं तो उन्हें इसका (धान की पुआल) प्रबंधन करने दें।”

फाजिल्का में, एक किसान नेता हरदीप सिंह ने कहा कि “प्रदूषण फैलाने वाली फैक्टरियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है जो हवा में जहरीला धुआं छोड़ती हैं और औद्योगिक कचरे को जल निकायों में छोड़ती हैं, लेकिन किसानों को अनावश्यक रूप से दोषी ठहराया और बदनाम किया जा रहा है।”

भारतीय किसान यूनियन (सिधुपुर) के अध्यक्ष जगजीत सिंह दल्लेवाल ने कहा कि “सैकड़ों फैक्ट्रियां हवा, पानी और मिट्टी को प्रदूषित करती हैं। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड कुछ के खिलाफ कार्रवाई भी करता है, लेकिन कुछ समय बाद ये इकाइयां फिर से संचालित होने लगती हैं। तो, यह पहले की स्थिति पर वापस आ गया है। क्या उन्होंने उनके खिलाफ भी वैसी सख्त कार्रवाई की है जैसी वे किसानों के खिलाफ कर रहे हैं?”

(प्रदीप सिंह की रिपोर्ट।)

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प्रदीप सिंह https://www.janchowk.com

दो दशक से पत्रकारिता में सक्रिय और जनचौक के राजनीतिक संपादक हैं।

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