गुजरात में कांग्रेस और भाजपा दो प्रमुख राजनीतिक दल हैं, जिनके बीच सीधा मुकाबला होता है। मुस्लिम समुदाय के लिए कांग्रेस ही वह पार्टी है जहां उन्हें कुछ हद तक प्रतिनिधित्व मिलता है। गुजरात में 1995 से लगातार भाजपा का शासन रहा है। 25-30 वर्ष की आयु के युवाओं ने अपने पूरे जीवन में केवल भाजपा का ही शासन देखा है। इन युवाओं का मानना है कि वे कांग्रेस को वोट देते हैं, फिर भी कांग्रेस भाजपा को हराने में सफल नहीं हो पाती है।
अहमद पटेल एक ऐसे नेता थे जिनके नाम से नरेंद्र मोदी हमेशा ध्रुवीकरण की राजनीति करते थे। अहमद पटेल और नरेंद्र मोदी लंबे समय तक एक-दूसरे के पूरक बने रहे। जब अहमद पटेल गुजरात प्रदेश कांग्रेस कमिटी के अध्यक्ष थे, तब उसी समय बीजेपी ने नरेंद्र मोदी को अहमदाबाद नगर निगम चुनाव का इंचार्ज नियुक्त किया था।
नरेंद्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तब अहमद पटेल सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार और कांग्रेस पार्टी के कद्दावर नेता थे। अहमद पटेल दिल्ली में बैठकर गुजरात की राजनीति पर सबसे अधिक ध्यान केंद्रित करते थे। अहमद पटेल केवल पार्टी के नेताओं को ही नहीं, बल्कि पत्रकारों, वकीलों और धार्मिक नेताओं को भी अपनी पकड़ में रखते थे।
ऐसे में, मुस्लिम युवाओं का एक तबका, जो सामाजिक रूप से सक्रिय था और कांग्रेस से दूर था, मोदी और शाह के उभार के बाद असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम को एक संभावित विकल्प के रूप में देखने लगा। ओवैसी ने इस माहौल का भरपूर फायदा उठाया।
मैं गुजरात में उन कुछ लोगों में से एक था, जिन्होंने एआईएमआईएम को उम्मीद भरी निगाहों से देखा और उस धारणा को खारिज किया, जिसके तहत एआईएमआईएम पार्टी को भाजपा की ‘बी टीम’ कहा जाता था। मैं इस तर्क से सहमत नहीं था।
मेरा मानना था कि ओवैसी मुस्लिम मुद्दों की राजनीति करते हैं। उनकी राजनीति के कारण खुद को सेक्युलर कहने वाली पार्टियों को नुकसान होता है। यही पार्टियां ओवैसी के खिलाफ झूठी बातें फैलाती हैं। एआईएमआईएम पार्टी के गुजरात की राजनीति में क़दम रखने से पहले और बाद घटनाओं ने मेरे विचार बदल दिए।
अक्टूबर 2020 में, मैं और मेरे साथ दो अन्य सामाजिक कार्यकर्ता, मुज़म्मिल मेमन और इम्तियाज़ सैय्यद, कांग्रेस के पूर्व विधायक साबिर काबलीवाला से उनके दफ्तर में मिले थे। मुज़म्मिल मेमन एक सामाजिक कार्यकर्ता, और अहमदाबाद के बहरामपुर वार्ड से एनसीपी के चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़ चुके हैं।
एआईएमआईएम में कुछ समय सक्रिय रह चुके हैं। जबकि इम्तियाज़ सैय्यद 2017 तक आम आदमी पार्टी में सक्रिय थे। सैय्यद एआईएमआईएम समर्थक हैं। हम तीनों काबली वाला से गुजरात में एआईएमआईएम को लाने के लिए ओवैसी से बातचीत करने का अनुरोध कर रहे थे, क्योंकि गुजरात की राजनीति में काबलीवाला एक बड़ा नाम था।
हमारे अनुरोध पर काबलीवाला ने जो जवाब दिया, वह चौंकाने वाला था। उन्होंने कहा, “गुजरात में एआईएमआईएम को लाने के लिए मेरी अमित शाह से बात चल रही है।” काबलीवाला ने अपने मोबाइल में एक टेक्स्ट संदेश दिखाते हुए कहा, “साहब ने अगले सप्ताह इसी सिलसिले में मुझे दिल्ली बुलाया है।”
यह जवाब हमारे लिए अचरज भरा था, क्योंकि अमित शाह देश के गृह मंत्री और सरकार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बाद नंबर दो की हैसियत रखते थे। ऐसा नेता काबलीवाला, जो एक मुस्लिम नेता हैं, से सीधा संवाद कैसे कर सकता है? काबलीवाला कितना सच बोल रहे थे यह तय कर पाना मुश्किल है लेकिन हां, एक समय ज़रूर था जब काबलीवाला विधायक थे और नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री।
उस समय भी गुजरात सरकार में अमित शाह लगभग दो नंबर ही हुआ करते थे। काबलीवाला और मोदी के संबंध इतने करीबी थे कि मोदी स्वयं काबलीवाला के बेटे के विवाह में शामिल हुए थे। इसी घटना के बाद काबलीवाला को कांग्रेस ने राजनीतिक तौर पर ठिकाने लगाने का काम शुरू कर दिया था। काबलीवाला को कांग्रेस ने 2012 और 2017 में विधानसभा का टिकट भी नहीं दिया जिसके बाद वह हमेशा एक असंतुष्ट नेता बने रहे।
हम लोगों ने काबलीवाला से एआईएमआईएम को गुजरात लाने की चर्चा करने के बाद जब उनके दफ्तर से बाहर निकले, तो इम्तियाज़ सैय्यद ने कहा, “अमित शाह ने शायद किसी और काम के लिए दिल्ली बुलाया होगा। साबिर भाई की बात मेरे गले नहीं उतर रही है।”
ये बातें अक्तूबर 2020 की थीं, और दिसंबर में खबर फैली कि सचमुच, इम्तियाज़ जलील और वारिस पठान गुजरात दौरे पर आने वाले हैं, ताकि एआईएमआईएम की गुजरात में राजनीतिक संभावना को तलाशा जा सके। जब इन दोनों नेताओं का गुजरात दौरा हुआ तो उसी समय तय हो गया कि छोटू भाई वसावा की भारतीय ट्राइबल पार्टी और एआईएमआईएम का गुजरात में गठबंधन होगा, जिसकी घोषणा असदुद्दीन ओवैसी के गुजरात दौरे के समय की जाएगी।
आपको बता दें कि छोटूभाई वसावा एक आदिवासी नेता हैं, जो गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों को मिलाकर एक अलग राज्य भीलिस्तान बनाने के मुद्दे पर राजनीति करते हैं। 1990 में जनता दल के टिकट पर पहली बार विधायक बनने वाले छोटूभाई 2022 तक लगातार विधायक रहे।
2017 में, छोटूभाई वसावा ने भारतीय ट्राइबल पार्टी (BTP) नामक एक राजनीतिक संगठन की स्थापना की। 2021 के नगर निगम चुनाव में, इस दल ने एआईएमआईएम (ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल-मुस्लिमीन) के साथ गठबंधन किया था।
आपको बता दें कि साबिर काबलीवाला एक उद्योगपति हैं। वे अहमदाबाद की जमालपुर विधानसभा सीट से दो बार विधायक रह चुके हैं। जमालपुर विधानसभा क्षेत्र छीपा बहुल क्षेत्र है। छीपा समाज की जड़ मूलतः राजस्थान के नागौर से है। वहीं से ये लोग गुजरात आकर बसे थे। यह एक संगठित समाज है, जो सुन्नी मुस्लिम होते हैं। छीपा समुदाय राजस्थान, गुजरात और पाकिस्तान के कराची व सिंध प्रांत तक फैला हुआ है। अहमदाबाद में साबिर काबलीवाला छीपा समाज के प्रमुख नेताओं में से एक हैं।
जनवरी 2021 में इम्तियाज़ जलील और वारिस पठान का गुजरात दौरा हुआ। ठीक एक महीने बाद, फरवरी 2021 में असदुद्दीन ओवैसी गुजरात दौरे पर आए। ओवैसी का पहला सम्मेलन छोटू भाई वसावा के साथ भरूच में हुआ था। भरूच से ओवैसी सड़क मार्ग से अहमदाबाद पहुंचे थे।
जब ओवैसी एक्सप्रेस हाईवे से अहमदाबाद के सीटीएम इलाके में पहुंचे, तो हजारों की संख्या में लोगों ने उनका स्वागत किया। स्वागत के बाद, ओवैसी के साथ हजारों लोग दुपहिया वाहनों पर सवार होकर साबरमती रिवर फ्रंट पहुंचे, जहां उनकी जनसभा होने वाली थी।
यह रैली इतनी बड़ी और असरदार साबित हुई कि इसने शहर के राजनीतिक तापमान को एक नया मोड़ दे दिया। इस रैली की सफलता में सबसे बड़ा योगदान एक मशहूर क्रिमिनल अल्ताफ खान पठान का था, जिसने अकेले ही एक हजार से अधिक दुपहिया वाहन जुटाए थे।
हालांकि, अल्ताफ उस समय न तो ओवैसी का समर्थक था और न ही एआईएमआईएम पार्टी का सदस्य। मैंने एक बार उससे पूछा, “क्या इस रैली के लिए साबिर भाई ने कहा था या कोई और?” तो अल्ताफ ने जवाब दिया था, “मुझे एक आईपीएस अफसर ने 1500 वाहन के साथ रैली में जाने और ओवैसी के दौरे को सफल बनाने के लिए कहा था। अपन तो पुलिस के लिए काम करते हैं, खुलकर करते हैं।”
आपको बताना चाहता हूं कि अल्ताफ अहमदाबाद का एक मशहूर अपराधी होने के साथ-साथ पुलिस इनफॉर्मर के तौर पर भी काम करता है। अल्ताफ ने कभी अपनी इस पहचान को छुपाया नहीं, बल्कि खुले तौर पर यह स्वीकार किया कि वह पुलिस के लिए काम करता है।
यही पहचान उसे अन्य लोगों से अलग करती है। पिछले तीन दशकों से अहमदाबाद में कोई न कोई बड़ा मुखबिर रहा है। कभी सोहराबुद्दीन तो कभी जावेद हीरो। अल्ताफ से पहले जावेद हीरो नामक व्यक्ति एक बड़ा मुखबिर था, जिसकी हत्या हो चुकी है। अल्ताफ ने इस छवि के साथ-साथ खुद को एक समाजसेवी और रॉबिनहुड जैसी छवि भी बनाई है।
ओवैसी की जनसभा के बाद एआईएमआईएम पार्टी का चुनाव चिन्ह आवंटित करने और पार्टी को गुजरात में पंजीकृत कराने का काम शुरू हुआ। इस जिम्मेदारी को अब्दुल हमीद भट्टी और डॉक्टर रफी वोहरा ने निभाया।
जब साबिर काबलीवाला को एआईएमआईएम (गुजरात प्रदेश) का अध्यक्ष बनाया गया, तब मजलिस की केंद्रीय नेतृत्व ने हमीद भट्टी को प्रदेश का महासचिव नियुक्त किया था। भट्टी, पूर्व में भुज के नगरसेवक रह चुके हैं। उन्होंने “तहरीके इंसाफ पार्टी” नामक एक मुस्लिम राजनीतिक दल की स्थापना की थी और इसके संस्थापक अध्यक्ष भी रहे।
भट्टी और काबली वाला के पारिवारिक संबंध भी रहे हैं। डॉक्टर रफी वोहरा अहमदाबाद के एक यूनानी चिकित्सक हैं। भट्टी के बाद डॉक्टर वोहरा भी औपचारिक रूप से एआईएमआईएम में शामिल हो गए थे। हालांकि, दोनों का सफर एआईएमआईएम के साथ बहुत लंबे समय तक नहीं चला।
गुजरात में महानगर पालिका चुनाव 2020 दिसंबर में होना था लेकिन इस बार चुनाव समय से नहीं हुआ। फ़रवरी 2020 तक गुजरात में एआईएमआईएम पार्टी पंजीकृत नहीं हुई थी। ओवैसी के गुजरात दौरे के बाद पार्टी ने अपनी रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया पूरी की जिसके बाद एआईएमआईएम को चुनाव चिन्ह “पतंग” आवंटित हुआ, उसके तुरंत बाद गुजरात नगर निगम चुनाव की घोषणा कर दी गई।
बीजेपी शासित गुजरात में यह भी एक संयोग था। गुजरात नगर निगम चुनाव में एआईएमआईएम ने शानदार प्रदर्शन किया। पार्टी ने अहमदाबाद में 7, गोधरा में 7 और डीसा में 9 सीटें हासिल की, जो कि पार्टी की सफलता और प्रभाव को दर्शाता था।
इस परिणाम ने गुजरात के मुसलमानों को उत्साहित किया। नगरनिगम चुनाव में शानदार जीत हासिल करने के बाद विधानसभा चुनाव आते-आते ओवैसी के नाम की हवा ठंडी हो गई। जिसका मुख्य कारण था एआईएमआईएम और बीजेपी के साथ सांठ गांठ की परत खुलना।
ओवैसी ऐसे नेता हैं जो गुजरात 2002 दंगों के मुद्दे को हमेशा उठाते आए हैं। असदुद्दीन ओवैसी की तुलना में अकबरुद्दीन ओवैसी गुजरात के मुसलमानों की बात अधिक करते हैं। लेकिन गोधरा नगर पालिका में जब उनकी पार्टी के 7 पार्षद जीतते हैं और उन्हें गोधरा में एक मजबूत आवाज बनने का मौका मिलता है, तो ओवैसी की पार्टी उस राजू दर्जी से गठबंधन करती है, जिसकी झूठी गवाही से दर्जनों मुसलमानों को 2002 के साबरमती ट्रेन बर्निंग केस में जेल जाना पड़ा था।
27 फरवरी 2002 को साबरमती ट्रेन को जलाने की घटना हुई थी, जिसमें 59 हिंदू कारसेवकों की मौत हो गई थी। इस घटना के बाद पूरे गुजरात में दंगे भड़क उठे थे। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, इस मुस्लिम विरोधी दंगों में 790 मुसलमान और 254 हिन्दू मारे गए थे, जबकि गैर-सरकारी आंकड़ों के अनुसार यह संख्या 2000 से अधिक थी।
गोधरा ट्रेन बर्निंग केस में पुलिस ने 100 से अधिक गोधरा के मुसलमानों को आरोपी बनाया और गिरफ्तारियां कीं। इन गिरफ्तारियों का एक आधार राजू दर्जी का पुलिस को दिया गया बयान था। दर्जी के बयान और गवाही के आधार पर गोधरा के मुसलमानों की गिरफ्तारी हुई थी।
राजू दर्जी ने पुलिस को बयान दिया था कि:
“मुझे मेरे संगठन (बीजेपी) की तरफ से 27 फरवरी को कारसेवकों के लिए चाय-नाश्ते की व्यवस्था करने को कहा गया था। उस सुबह मैं गोधरा रेलवे स्टेशन पर कारसेवकों के स्वागत के लिए उपस्थित था। मैंने ट्रेन जलाने वालों को अपनी आंखों से देखा था।”
पुलिस चार्जशीट के अनुसार, दर्जी ने ही मोहम्मद हुसैन कलोटा और अन्य मुसलमानों की ट्रेन जलाने में भूमिका और कहानी बताई थी। पुलिस की कार्रवाई में दर्जी के बयान ने गोधरा के मुसलमानों को फंसाने में अहम भूमिका निभाई थी।
आशीष खेतान ने ‘ऑपरेशन कलंक’ नाम से एक स्टिंग ऑपरेशन किया था, जिसमें यह खुलासा हुआ कि जो लोग (गवाह) दावा कर रहे थे कि वे 27 फरवरी 2002 को गोधरा रेलवे स्टेशन पर उपस्थित थे, वे झूठ बोल रहे थे। आशीष खेतान ने अपनी किताब Undercover: My Journey into the Darkness of Hindutva में दर्जी सहित अन्य गवाहों के बारे में विस्तार से लिखा है, कि कैसे झूठी गवाही से गोधरा के मुसलमानों को साबरमती ट्रेन बर्निंग केस में फंसाया गया था।
आशीष खेतान एक खोजी पत्रकार रहे हैं। उन्होंने बाबू बजरंगी सहित कई अन्य हिंदू संगठनों से जुड़े लोगों का स्टिंग ऑपरेशन किया था और 2002 के मुस्लिम विरोधी दंगों में तत्कालीन मुख्यमंत्री की भूमिका को उजागर किया था। खेतान ने ‘ऑपरेशन कलंक ‘ नामक स्टिंग ऑपरेशन के तहत अहमदाबाद और गोधरा के हिंदूवादी नेताओं का पर्दाफाश किया।
इस ऑपरेशन में इन नेताओं ने मुख्यमंत्री, गृह मंत्री, और पुलिस की भूमिका को गुप्त कैमरे में स्वीकार किया था। इन हिंदूवादी नेताओं ने दंगे में अपनी भूमिका को भी गुप्त कैमरे के सामने उजागर किया था। इस ऑपरेशन की रिपोर्ट तहलका मैगजीन में नवंबर 2007 में प्रकाशित हुई थी।
तीस्ता शीतलवाड़ ने अपने जर्नल ‘सबरंग ‘ में भी इस बात का उल्लेख किया है कि दर्जी सहित अन्य लोगों ने सरकार और पुलिस के साथ मिलकर ट्रेन कांड में मुसलमानों को फंसाया था। अदालत में भी यह साबित हुआ कि राजू दर्जी झूठा है, और कोर्ट ने गवाह राजू दर्जी के आगे लिख दिया “Not True Witness।”
तीस्ता सीतलवाड़ एक मशहूर सामाजिक कार्यकर्ता हैं, जो नागरिक अधिकारों के लिए काम करती हैं। तीस्ता सिटिज़न फॉर जस्टिस एंड पीस की सचिव हैं। यह वही संगठन है, जिसे 2002 के गुजरात दंगों के पीड़ितों को कानूनी सहायता देने के उद्देश्य से स्थापित किया गया था।
तीस्ता और उनके पति जावेद आनंद ‘कम्युनलिज़्म कॉम्बैट‘ मैगजीन के सह-संस्थापक हैं। इस मैगजीन का उद्देश्य देश में धार्मिक सौहार्द को बढ़ावा देना है। तीस्ता और जावेद आनंद ‘सबरंग कम्युनिकेशन ‘ भी चलाते हैं, जो मानव अधिकारों के लिए संघर्ष करता है। तीस्ता और उनका संगठन विशेष रूप से मुस्लिम, दलित, और महिलाओं के अधिकारों पर काम करता है।
तीस्ता ‘पाकिस्तान-इंडिया पीपल्स फोरम फॉर पीस एंड डेमोक्रेसी‘ की भी सदस्य हैं। जून 2022 में गुजरात एटीएस ने तीस्ता को गिरफ्तार किया था। उन पर आरोप था कि उन्होंने 2002 दंगा मामले में गुजरात के सरकारी तंत्र को फंसाने का प्रयास किया था। तीस्ता को मानव अधिकारों के लिए काम करने के लिए पद्म श्री सहित कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सम्मान से नवाज़ा जा चुका है।
जब राजू दर्जी के साथ गुजरात में एआईएमआईएम गठबंधन करती है। इस गठबंधन के बारे में साबिर काबलीवाला ने कहा था:
“यह राजकारण (राजनीति) है। राजनीति में ऐसे फैसले लेने पड़ते हैं।”
इस सवाल पर जब मैंने ओवैसी के करीबी नेता माजिद हुसैन से मदनी होटल, अहमदाबाद में उनके साथ चाय पीते हुए उनकी प्रतिक्रिया जाननी चाही थी, तो उन्होंने कहा था:
“हमने भले ही दर्जी के साथ अलायंस किया, लेकिन गोधरा म्युनिसिपलिटी में बीजेपी को रोक दिया है।” माजिद हुसैन एआईएमआईएम से तेलंगाना विधानसभा के सदस्य और हैदराबाद के पूर्व महापौर भी हैं।
दर्जी के मुद्दे पर गोधरा म्युनिसिपल कॉरपोरेशन में एआईएमआईएम के पार्षद हनीफ कलंदर कहते हैं:
“दर्जी के बारे में जितना आप कह रहे हैं, वह उससे भी बड़ा शैतान है। लेकिन गठबंधन का फैसला हमारे बड़ों का था, इसलिए पार्टी के सभी पार्षदों ने इस निर्णय को तस्लीम कर लिया था।”
जब मैंने इस बेजोड़ गठबंधन पर राजू दर्जी की प्रतिक्रिया जाननी चाही, तो उन्होंने कहा:
“मैंने राजनीति से सन्यास ले लिया है, इसलिए मैं इस बारे में कोई बात नहीं करना चाहता हूं। मैं किसी और किताब में नहीं आना चाहता।”
असदुद्दीन ओवैसी ने देश ही नहीं, विदेश में भी एक मजबूत भारतीय मुस्लिम नेता की छवि बनाई है। हालांकि, गोधरा में राजू दर्जी से गठबंधन का निर्णय मुसलमानों को आहत करने वाला था। गुजरात में इस गठबंधन के कारण ओवैसी की छवि आम गुजराती मुसलमानों के बीच धूमिल जरूर हुई।
ओवैसी जब भाषण देते हैं या संसद में बोलते हैं, तो उनसे बेहतर मिल्लत का रहनुमा कोई नहीं लगता। उनकी वाकपटुता, ज्ञान और तर्कशीलता उन्हें मुसलमानों के अधिकारों का प्रखर आवाज़ बनाती है। लेकिन गुजरात नगर निगम चुनाव के पहले और बाद में कुछ ऐसी घटनाएं हुईं, जिनसे एआईएमआईएम का भाजपा की बी टीम होने का आरोप मजबूत हुआ।
असदुद्दीन ओवैसी की छवि भारत के मुसलमानों के बीच 2023 से पहले वाले तुर्की के राष्ट्रपति रजब तय्यब एर्दोआन की छवि जैसी है, एक मजबूत और निडर मुस्लिम नेता की। जो पूरी दुनिया के मुसलमानों की बात करता है। लेकिन गज़ा-इजराइल जंग के दौरान एर्दोआन की वास्तविकता उजागर हो गई कि कैसे तुर्की ने इजराइल की युद्ध के दरमियान मदद की और मौका मिलते ही तुर्की ने सीरिया में बशर अल असद का तख्ता पलट का प्रयास भी किया। पिछले एक साल से हिजबुल्लाह और हमास को जो मदद पहुंच रही थी वह सभी मदद सीरिया के रास्ते ही पहुंच रही थी। जिससे यह साफ हुआ कि हर बोलने वाला मुस्लिम रहनुमा कौम का सच्चा हमदर्द नहीं होता।
ओवैसी की स्थिति भी इसी तरह सवालों के घेरे में है। यह सवाल उठता है कि क्या उनकी पार्टी सच में मुसलमानों के अधिकारों की रक्षा के लिए है, या फिर उनकी राजनीति केवल दिखावे और अवसरवाद पर आधारित है।
गुजरात प्रदेश एआईएमआईएम का दफ्तर अहमदाबाद के आसटोडिया इलाके में है, जो अहमदाबाद म्युनिसिपल कॉरपोरेशन से कुछ ही मीटर की दूरी पर स्थित है। 2022 के विधानसभा चुनावों से पहले, मजलिस के दफ्तर का एक सीसीटीवी वीडियो लीक हुआ, जिसमें साबिर काबलीवाला, शहर के मेयर किरीट भाई परमार, और बीजेपी नेता धर्मेंद्र शाह को एक साथ चर्चा करते हुए देखा गया। जिसके बारे में कहा गया कि यह एक सीक्रेट मीटिंग थी, जो सीसीटीवी फुटेज के कारण सार्वजनिक हो गई।
इस वीडियो के लीक होने पर कांग्रेस ने एआईएमआईएम पर आरोप लगाया कि उसका असली चरित्र उजागर हो गया है। आम आदमी पार्टी के गुजरात प्रदेश अध्यक्ष गोपाल इटालिया और मनीष सिसोदिया ने वीडियो ट्वीट करते हुए बीजेपी और एआईएमआईएम के बीच रिश्तों पर सवाल उठाए।
इस पर काबलीवाला ने सफाई देते हुए कहा:
“मेरी किरीट भाई परमार से मुलाकात सुएज फार्म पर वॉटर ट्रीटमेंट प्लांट के उद्घाटन को लेकर थी। परमार शहर के मेयर हैं, उनसे जनता के हित में मिलना स्वाभाविक है।”
इस मीटिंग में बीजेपी के सह-कोषाध्यक्ष धर्मेंद्र शाह भी मौजूद थे। शाह की उपस्थिति को लेकर बीजेपी और एआईएमआईएम, दोनों के नेताओं ने कोई टिप्पणी नहीं की। इससे एआईएमआईएम पर आरोप लगा कि इस मीटिंग में बीजेपी से चुनावी फंडिंग की डील हो रही थी। यदि जनता के हित में मेयर से मिलना स्वाभाविक है, तो पार्टी के हित में बीजेपी के सह-कोषाध्यक्ष से भी मिलना स्वाभाविक माना जा सकता है।
असदुद्दीन ओवैसी हमेशा यह दावा करते हैं कि उनकी पार्टी भाजपा की ‘बी टीम’ नहीं है और उन पर लगने वाले आरोप गलत हैं। मैं भी मानता था कि ओवैसी बीजेपी के साथ नहीं, बल्कि उसके खिलाफ है। 2020-21 में मेरे अलावा अहमदाबाद के कई बड़े मुस्लिम सामाजिक कार्यकर्ता एआईएमआईएम से जुड़ गए थे। जिससे गुजरात में एआईएमआईएम को बड़ा राजनैतिक लाभ भी हुआ था।
इन सभी लोगों को उम्मीद थी कि गुजरात में एआईएमआईएम मुसलमानों की आवाज बनेगी। लेकिन धीरे-धीरे ये लोग पार्टी से अलग होते गए। अधिकतर ने आरोप लगाया कि एआईएमआईएम की बीजेपी से सांठ-गांठ है। गुजरात प्रदेश अध्यक्ष साबिर काबलीवाला चुनाव के समय पार्टी के बड़े नेताओं से नहीं बल्कि सी.आर. पाटिल से दिशा-निर्देश लेते हैं।
काबलीवाला एआईएमआईएम के आस्टोडिया दफ्तर से बेझिझक बीजेपी नेताओं से न केवल निर्देश लेते हैं, बल्कि उनके साथ मीटिंग भी करते हैं। बापू नगर से 2022 विधानसभा चुनाव में शाहनवाज खान उर्फ शिबू को एआईएमआईएम का उम्मीदवार बनाया गया था। लेकिन उन्होंने अपना नामांकन वापस ले लिया था।
शिबू बताते हैं:
“यह सही है कि साबिर भाई मुझ पर बहुत भरोसा करते थे। मैं चुनाव नहीं लड़ना चाहता था, लेकिन साबिर भाई के बार-बार कहने पर तैयार हुआ। जब मैंने फॉर्म भर दिया, तो मेरे नाम पर सौदेबाजी शुरू हो गई। इससे आहत होकर मैंने बीजेपी के दबाव का सामना किया। बीजेपी को भरोसा नहीं था कि मैं चुनाव में बना रहूंगा और मज़बूती से चुनाव लडूंगा। धर्मेंद्र शाह ने साबिर भाई को बुलाकर मेरी जगह किसी और को उम्मीदवार बनाने को कहा था। लेकिन साबिर भाई को मुझ पर पूरा भरोसा था और उन्होंने धर्मेंद्र शाह को भी संतुष्ट कर दिया। इसके बाद बीजेपी ने मेरे नाम का विरोध नहीं किया। मेरी सीट जीतने वाली सीट नहीं थी कुछ मुस्लिम वोट काटकर बीजेपी को फायदा ज़रूर पहुंचाया जा सकता था। एआईएमआईएम के उम्मीदवारों को तय करने में बीजेपी नेताओं की भूमिका से मैं आहत था इसीलिए मैंने अपना नामांकन वापस ले लिया था|”
यह कैसे संभव है कि कोई पार्टी एक राज्य में बीजेपी की एजेंट हो और दूसरे राज्य में न हो? अहमदाबाद में शाहीन बाग और एंटी-सीएए आंदोलन का लाभ एआईएमआईएम को अहमदाबाद नगर निगम चुनाव में मिला था। राज्य में हुए एंटी सीएए आन्दोलन ने ऐसी राजनितिक ज़मीन तैयार की थी जिसपर ओवैसी ने आसानी से हल चलाया।
एंटी सीएए आन्दोलन के दो बड़े चेहरों ने अहमदाबाद नगर निगम का चुनाव भी पतंग के निशान पर लड़ा था जिसका लाभ ओवैसी की पार्टी को हुआ। गुजरात में एआईएमआईएम के शानदार प्रदर्शन में एंटी सीएए आन्दोलन ने बड़ी भूमिका निभाई थी।
लेकिन जैसे-जैसे भाजपा से सांठ-गांठ की परत खुलती गई जज़बात में बहने वाले मुस्लिम एआईएमआईएम छोड़ते गए। इसीलिए नगर निगम चुनाव के बाद विधानसभा चुनाव में असदुद्दीन ओवैसी की डोर-टू-डोर मेहनत के बावजूद एआईएमआईएम कोई खास प्रदर्शन नहीं कर पाई। यहां तक कि ओवैसी को काले झंडे भी दिखाए गए।
2020-21 में जब एआईएमआईएम (ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल-मुसलमीन) ने गुजरात में अपनी गतिविधियां शुरू कीं, तो उसे नागरिकता कानून विरोधी आंदोलन से जुड़े युवा और महिलाएं ही नहीं, बल्कि प्रदेश के कई पढ़े-लिखे सामाजिक कार्यकर्ता भी मिल गए। इनमें हमीद भट्टी और अधिवक्ता शमशाद पठान जैसे दो प्रमुख नाम शामिल थे।
हमीद भट्टी ने सेंट ज़ेवियर कॉलेज से पढ़ाई पूरी करने के बाद मात्र 22 साल की उम्र में भुज नगर पालिका चुनाव जीतकर पार्षद बन गए थे। भट्टी बहुत कम समय में कांग्रेस पार्टी में अल्पसंख्यक समुदाय के बड़े नेताओं में गिने जाने लगे थे। उन्होंने मुस्लिम मुद्दों को लेकर एक अलग राजनीतिक दल भी बनाया, हालांकि वह सफल नहीं हो पाए। मुस्लिम मुद्दों की राजनीति ही उन्हें एआईएमआईएम की ओर खींच लाई थी।
दूसरी ओर, शमशाद पठान, जो मुकुल सिन्हा जैसे प्रतिष्ठित प्रगतिशील सामाजिक कार्यकर्ता के साथ 2002 के दंगों के पीड़ितों और पोटा कानून के खिलाफ लंबे समय तक संघर्ष कर चुके थे, ने भी एआईएमआईएम का दामन थाम लिया था। लेकिन पार्टी में उनकी क्षमताओं को न पहचानते हुए उन लोगों से केवल दरी बिछाने का काम लिया। जिस कारण बहुत से लोगों ने पार्टी छोड़ने में बिलकुल भी देरी नहीं की।
एआईएमआईएम में यह रवैया आम है जो लोग “दरी बिछाने” का काम नहीं करते, उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है। हमीद भट्टी, जिन्हें कांग्रेस ने 22 साल की उम्र में पार्षद बनाया था, एआईएमआईएम में 22 दिन भी नहीं टिक सके। शमशाद पठान जो लम्बे समय से मुस्लिमों के बीच हमेशा अन्याय के खिलाफ लड़ते दिखते हैं। पठान भी एआईएमआईएम में नहीं टिक पाए।
असदुद्दीन ओवैसी अक्सर अपने भाषणों में दावा करते हैं कि सेक्युलर पार्टियां, खासतौर पर कांग्रेस और समाजवादी पार्टी, मुसलमानों से केवल दरी बिछवाने का काम करवाती हैं। लेकिन एआईएमआईएम में हालात इससे भी बदतर नजर आते हैं। एआईएमआईएम में ओवैसी के दो भाइयों के अलावा बाकी सभी को “दरी बिछाने” तक सीमित रखा जाता है।
ओवैसी के इस रवैये की तुलना यूपीए के दौर में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी से करें तो हमें पता चलेगा कि अहमद पटेल कांग्रेस में दरी नहीं बिछाते थे बल्कि सरकार में “सुपर पीएम” थे, और समाजवादी पार्टी में आज़म खान हमेशा नंबर दो की हैसियत रखते थे।
यह दिखाता है कि इन पार्टियों में मुसलमानों को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया, जबकि एआईएमआईएम में यह स्थान केवल ओवैसी भाइयों तक सीमित है। ओवैसी की पार्टी में जितने विधायक होते हैं उतने मुस्लिम विधायक समाजवादी पार्टी की यूपी में सरकार बनने पर मंत्री बनते हैं। एआईएमआईएम में जितने पदाधिकारी हैं उससे अधिक मुस्लिम समाजवादी पार्टी में विधायक बन जाते हैं।
दिल्ली विधानसभा चुनाव में मुस्लिम बहुल विधानसभा सीट से नागरिकता कानून विरोधी आन्दोलन से जुड़े जामिया मिल्लिया इस्लामिया के एलुमिनी शिफाउर्रहमान और मुस्लिम बहुल मुस्तुफाबाद से ताहिर हुसैन को असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने उम्मीदवार बनाया है।
ताहिर हुसैन को अदालत से प्रचार करने के लिए ज़मानत मिली है जबकि शिफाउर्रहमान जेल में हैं। 2021 में अहमदाबाद नगर निगम चुनाव में भी अहमदाबाद शाहीन बाग़ की नाज़िया अंसारी और सुफियान राजपूत को एआईएमआईएम ने उम्मीदवार बनाकर सीसीए के खिलाफ मुस्लिम सेंटिमेंट को भुनाने का काम किया था। दिल्ली में भी ओवैसी उसी रणनीति के तहत एंटी सीसीए आन्दोलन को भुनाने का प्रयास कर रहे हैं।
इस किताब का अंतिम चैप्टर “एंटी-सीएए आंदोलन से नगर निगम चुनाव तक: AIMIM की राजनीति पर सवाल” है। इस चैप्टर में बताया गया है कि कैसे एआईएमआईएम बीजेपी की एजेंट है और भाजपा के लिए काम करती है। इस पुस्तक के विमोचन के बाद देखना है ओवैसी कोई जवाब देते हैं या नहीं।
(31 जनवरी 2025 को दिल्ली में “अहमदाबाद का शाहीन बाग़” पुस्तक का विमोचन है। यह किताब गुजरात में शाहीन बाग़ आन्दोलन चलाने वाले कलीम सिद्दीकी ने लिखी है। सिद्दीकी जनचौक के संवाददाता भी हैं। यह किताब मोदी शाह के नगर में शाहीन बाग़ आन्दोलन का दस्तावेज़ है।)
(कलीम सिद्दीक़ी लेखक और वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
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