किसान आन्दोलन: न्यायपालिका से लेकर सिख संतों तक से फरियाद

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अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को भरोसा था चुनाव हारने की स्थिति में सुप्रीम कोर्ट और राज्यों के कोर्ट से उनके पक्ष में फैसला होगा और वे चुनाव परिणाम पलट देंगे पर सुप्रीम कोर्ट और राज्यों के कोर्ट ने न्याय धर्म यानि संविधान का अनुपालन किया और ट्रम्प की याचिकाएं ख़ारिज कर दीं। यहां भारत सरकार को भरोसा है कि अगर किसान आन्दोलन के विरुद्ध उच्चतम न्यायालय में याचिकाएं लम्बित हैं, उनमें उसी तरह फैसला आएगा जैसा कोरोना काल में प्रवासियों के सड़क मार्ग, शाहीन बाग, कश्मीर मामले, राफेल डील, सेन्ट्रल विस्टा और अयोध्या मामले में राष्ट्रवादी मोड़ सरीखा फैसला आया था। अब उच्चतम न्यायालय पर पूरे देश की नज़र है कि क्या  किसान कानूनों पर न्याय धर्म का पालन होगा और संविधान सम्मत फैसला आएगा है अथवा राष्ट्रवादी मोड़ का फैसला आयेगा।   

सरकार और सत्तारूढ़ दल ने किसान आन्दोलन खत्म करने के लिए अपने सारे घोड़े खोल रखे हैं। इसके तहत एक ओर बातचीत, दूसरी ओर न्यायालय, तीसरी ओर सिख धर्मगुरुओं के माध्यम से किसानों को मनाने और चौथी गोदी मीडिया के साथ संगठन के हेट ब्रिगेड के जरिये किसान आन्दोलन को कभी नक्सली बताने तो कभी खालिस्तानी बताने का अभियान चलाया जा रहा है। आरोप है कि उनके इशारे पर उच्चतम न्यायालय में किसानों के अनिश्चितकालीन आन्दोलन को लेकर नागरिक सुविधाओं के सन्दर्भ में सुगम यातायात में बाधा से लेकर कोरोना के बढ़ने के खौफ तक के मुद्दे उठाये गये हैं, पर अभी तक उच्चतम न्यायालय का रुख तटस्थता का रहा है।

इस बीच, दिल्ली बॉर्डर पर किसानों को धरने के संबंध में याचिकाकर्ता ऋषभ शर्मा ने उच्चतम न्यायालय  ने नया एफिडेविट दाखिल किया है। इसमें कहा गया है कि किसानों के विरोध-प्रदर्शन व सड़क जाम होने की वजह से रोजाना 3500 करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है। साथ ही, कच्चे माल की कीमत 30 फीसदी तक बढ़ चुकी है।

याचिकाकर्ता का कहना है कि रास्ता जाम कर प्रदर्शन करना शाहीन बाग मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी किए गए दिशा-निर्देश के खिलाफ है। याचिकाकर्ता ने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने अपने अंतरिम आदेश में कहा था कि प्रदर्शन शांतिपूर्ण होना चाहिए। जबकि पंजाब में प्रदर्शनकारियों की तरफ से मोबाइल टॉवरों को नुकसान पहुंचाने की खबरें सामने आई थीं 11 जनवरी को किसानों के आंदोलन को लेकर सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई होनी है। सरकार और किसान संगठनों के बीच नवें दौर की बातचीत की अगली तारीख 15 जनवरी तय की गई।

केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि हम लोकतांत्रिक देश हैं। जब कोई कानून बनता है तो उच्चतम न्यायालय को इसकी समीक्षा करने का अधिकार है। हर कोई शीर्ष अदालत के प्रति प्रतिबद्ध है। सरकार सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन करने के लिए प्रतिबद्ध है।

आंदोलन को खत्म करने के लिए केंद्र सरकार द्वारा नानक सर गुरुद्वारे के बाबा लक्खा सिंह की सहायता लेने की रणनीति भी अपनाई थी, जिनका पंजाब के सिख समुदाय पर काफी अच्छा असर बताया जाता है। नानकसर गुरुद्वारा के प्रमुख बाबा लक्खा सिंह ने कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से मुलाकात की। मुलाकात के बाद उन्होंने कहा कि लोग जान गंवा रहे हैं; बच्चे, किसान, बुजुर्ग और महिलाएं सड़क पर बैठे हैं। ये दुख असहनीय है। मुझे लगा कि इसे किसी तरह हल किया जाना चाहिए। इसलिए मैंने आज (कृषि मंत्री) उनसे मुलाकात की। वार्ता अच्छी थी, हमने समाधान खोजने की कोशिश की। उन्होंने कहा कि हमारे पास एक नया प्रस्ताव आएगा और इस मामले का हल खोजा जाएगा। हम इसे जल्द से जल्द हल करने की कोशिश करेंगे। मंत्री ने मुझे आश्वासन दिया कि वह समाधान खोजने में हमारे साथ हैं।

केंद्र की इस रणनीति पर किसान नेताओं ने यह कहकर पानी फेर दिया है कि किसानों के मुद्दे पर कोई भी निर्णय केवल किसान संगठन ही लेंगे। किसी दूसरे व्यक्ति को इसमें दखल देने की कोशिश नहीं करनी चाहिए।

इसके पहले दिसंबर के दूसरे हफ्ते में ही श्री अकाल तख्‍त साहिब के कार्यवाहक जत्‍थेदार ज्ञानी हरदीप सिंह ने कहा था कि कृषि सुधार कानूनों को रद्द करवाने के लिए किया जा रहा संघर्ष केवल किसान आंदोलन है। इसको खालिस्तान, पंजाब और सिर्फ पंजाबियों का आंदोलन बना कर पेश करने की साजिश रची जा रही है। इस तरह की कोशिश पूरी तरह से गलत है। किसान आंदोलन का किसी भी तरह खालिस्तान आंदोलन से कोई संबंध नहीं है। य‍ह कृषि सुधार कानूनों के खिलाफ बस किसानों का आंदोलन है।

ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने कहा था कि एसजीपीसी समेत सभी वर्ग अपने-अपने स्तर पर इस संघर्ष में योगदान दे रहे हैं। तख्त दमदमा साहिब का सारा स्टाफ आंदोलन में किसानों के साथ है। वह बोले, मैं भी मन से किसानों के आंदोलन में उनके साथ हूं। अगर जरूरत हुई तो आंदोलन में किसानों के साथ शामिल भी हो जाऊंगा। ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने कहा कि कलाकारों को किसान आंदोलन की आड़ में ऐसे बयान नहीं देने चाहिए जो समाज में विवाद पैदा करें और आंदोलन को नुकसान पहुंचे।

ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने कहा है कि किसान आंदोलन किसी धर्म, जाति व वर्ग का आंदोलन नहीं है। यह देशवासियों का आंदोलन है। इसे देश भर के लोग समर्थन दे रहे हैं। यह आंदोलन इस समय संवेदनशील स्थिति पर पहुंच गया है। केंद्र सरकार को इसे हल करने के लिए पहलकदमी करनी चाहिए। आंदोलन के दौरान सिख संस्थाओं की ओर से लंगर व अन्य सेवाएं प्रदान की जा रही हैं।

दमदमी टकसाल के मुखी बाबा हरनाम सिंह धुम्मा की ओर से दिल्ली बार्डर पर कृषि कानूनों को रद्द करवाने के लिए आंदोलन कर रहे किसानों को पांच लाख की आर्थिक मदद की गई। बाबा धुम्मा की तरफ से यह राशि बाबा जीवा सिंह की ओर से सिंघु बॉर्डर पर आंदोलनकारी किसानों के मंच पर जा कर दिया गया।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह का लेख।)

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