नई दिल्ली। नागपुर जेल के अंडा सेल में बंद प्रोफेसर जीएन साईबाबा की 74 वर्षीय मां का निधन हो गया है। वह हैदराबाद में रहती थीं। बताया जा रहा है कि उनको कैंसर था।
जीएन साईबाबा के भाई जी रामदेव ने बताया कि “मैं बहुत दुखी हूं और इस बात की सूचना देते हुए बेहद पीड़ा महसूस कर रहा हूं कि आज दोपहर 1.40 बजे हमारी मां (डॉ. जीएन साईबाबा और जी रामदेव) गोकरकोंडा सूर्यवती का कैंसर के इलाज के दौरान हैदराबाद के एनआईएमएस अस्पताल में निधन हो गया। वह कोविड-19 टेस्ट में निगेटिव पायी गयी थीं।”
जीएन साईबाबा की पत्नी वसंता ने जनचौक को बताया कि इस समय उनकी मां का अंतिम संस्कार हो रहा है। साईबाबा अपनी मां को भी आखिरी बार नहीं देख सके। हालांकि साईबाबा ने अपनी जमानत की अर्जी डाली थी लेकिन कोर्ट ने उसे खारिज कर दिया था।

साईबाबा की पत्नी वसंता ने बताया कि “कोविड महामारी के चलते बेहद विषम स्थिति बनी हुई है। हम लोग दिल्ली में हैं और अंतिम संस्कार में भी हिस्सा नहीं ले सकते। कोविड के चलते वहां जाने पर पहले हमें क्वारंटाइन होना पड़ेगा। मैं मम्मी (साई की मां) को अपने बचपन से जानती हूं। हम एक दूसरे के बिल्कुल दोस्त जैसे थे और सब कुछ आपस में साझा करते थे। मैं अंदर से बहुत दुखी हूं”।
पत्रकार और एक्टिविस्ट पुष्पराज शास्त्री की फेसबुक वाल पर कई लोगों ने श्रद्धांजलि अर्पित की है। इसमें ढाका से मधु काकरिया, धनबाद से अनिल अंशुमन, वाराणसी से रामजी यादव, शमशुल इस्लाम, गंगा मुक्ति आंदोलन के नेता अनिल प्रकाश और कथाकार अभिषेक कश्यप शामिल हैं। इन सभी ने मां को आखिरी वक्त में बेटे को देखने से रोकने के लिए सत्ता और न्याय प्रतिष्ठान की कड़ी आलोचना की।
जीएन साईबाबा ने नागपुर जेल की अंडा सेल में रहते अपनी मां के लिए एक कविता लिखी थी। जिसे यहां नीचे दिया जा रहा है-
माँ, मेरे लिए मत रोना
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माँ, मेरे लिए मत रोना
जब तुम मुझे देखने आयी
तुम्हारा चेहरा मैं नहीं देख सका था
फाइबर कांच की खिड़की से
मेरी अशक्त देह की झलक यदि मिली होगी तुम्हें
यक़ीन हो गया होगा
कि मैं जीवित हूँ अब भी।
माँ, घर में मेरी गैर मौजूदगी पर मत रोना
जब मैं घर और दुनिया में था,
कई दोस्त थे मेरे
जब मैं इस कारागार के अण्डा सेल में बंदी हूँ
पूरी दुनिया से
और अधिक मित्र मिले मुझे।
माँ, मेरे गिरते स्वास्थ्य के लिए उदास मत होना
बचपन में जब तुम
एक गिलास दूध नहीं दे पाती थी मुझे,
साहस और मजबूती शब्द पिलाती थीं तुम
दुख और तकलीफ के इस समय में
तुम्हारे पिलाये गये शब्दों से
मैं अब भी मजबूत हूँ।
माँ, अपनी उम्मीद मत छोड़ना
मैंने अहसास किया है
कि जेल मृत्यु नहीं है
ये मेरा पुनर्जन्म है
और मैं घर में
तुम्हारी उस गोद में लौटूंगा
जिसने उम्मीद और हौसले से मुझे पोषा है।
माँ, मेरी आजादी के लिए मत डरना
दुनिया को बता दो
मेरी आजादी खो गयी है
क्या उन सभी जन के लिए आजादी पायी जा सकती है
जो मेरे साथ खड़े हैं
धरती के दुख का कारण लाओ
जिसमें मेरी आजादी निहित है।
-जी एन साईबाबा
(जेल में माँ से मुलाकात के बाद)
मुझे उम्मीद है कोई इस कविता को पढ़कर बता देगा, माफी चाहूँगा विदेशी जुबान में लिखने के लिए, जिसे तुम समझ नहीं सकती।
मैंने खुद को उस मीठी भाषा में लिखने की अनुमति नहीं है। जो तुमने मुझे शैशवा अवस्था में सिखाई थी।
प्यार के साथ,
तुम्हारा बच्चा
G.N. साईबाबा
अण्डा सेल, केंद्रीय जेल
नागपुर।
1 दिसंबर, 2017
(मूल कविता अंग्रेजी में थी।अनुवाद-भारती)
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