कोविड-19 से हुई मौतों पर सरकारी आंकड़े सरकार के दावों को झूठा साबित कर रहे हैं

युद्ध के भयावह झूठ और गोदी टीवी पर चीखते एंकरों के शोर के बीच एक और झूठ से पर्दा उठता दिख रहा है। 2020 और 2021 के उन भयावह दिनों को याद कीजिए, जब कोविड-19 महामारी भारत के शहरों, गांवों, सड़कों और गलियों में मौत का तांडव कर रही थी। महामारी की तरह ही लॉकडाउन ने पूरे देश में गरीबों को सड़कों पर चलते-चलते मरने के लिए मजबूर कर दिया। महामारी को धर्म के रंग में रंगकर नफरत का बाजार गर्म किया गया। श्मशानों में लाशों का अंबार लग रहा था। लोगों ने नदियों के किनारे अपने प्रियजनों को दफनाया। नदियों में लाशें तैरती दिखने लगी थीं। ऑक्सीजन और बुखार की दवाइयां खोजते लोग हलकान हो रहे थे, और अस्पतालों में कोई जगह नहीं बची थी। आंसुओं के सैलाब में लोग अपने प्रियजनों को खोते जा रहे थे।

उस समय की राजनीति को याद कीजिए, जहां आरोप-प्रत्यारोप का खेल चल रहा था। कोविड-19 से हुई मौतों को लेकर भाजपा की केंद्र सरकार के मंत्रियों, सांसदों और यहां तक कि पार्टी पदाधिकारियों के बयान हैरान करने वाले थे। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के आंकड़ों को भी गलत ठहराया गया। 2021 के लिए कोविड-19 से हुई मौतों की आधिकारिक संख्या 3.32 लाख बताई गई थी, जबकि 2020 और 2021 के लिए कुल 4.8 लाख बताई गई। बाद में केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने मौतों की आधिकारिक संख्या 5.33 लाख बताई।

उस समय विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2022 में जारी अपनी रिपोर्ट में 2020 और 2021 के लिए भारत में हुई मौतों की संख्या 47 लाख बताई। कुछ अन्य संगठनों और मीडिया समूहों ने भी मौतों की संख्या इससे मिलती-जुलती बताई थी। मौतों की संख्या में यह अंतर दस गुना से अधिक था। ये सिर्फ संख्याएं नहीं थीं; ये बीमारी और महामारी से निपटने में हमारी स्वास्थ्य व्यवस्था, नीतियों और तैयारियों से जुड़ा मसला था। उस समय सरकार जिस तरह के दावे कर रही थी, उससे वह यह साबित करना चाहती थी कि उसने महामारी से बहुत सफलतापूर्वक निपटा। वह मौतों के आंकड़ों में अपनी असफलता का चेहरा देखना नहीं चाहती थी।

महामारी के दौरान देश में कितने लोग मारे गए, इस सवाल पर लोगों को उम्मीद थी कि जनगणना के आंकड़े इसकी सच्चाई सामने लाएंगे। लेकिन हैरानी की बात यह है कि सरकार ने जनगणना ही नहीं कराई, और अब भी इसे किन खांचों में गिना जाए, इस पर बहस चल रही है।

हालांकि, कुछ रिपोर्ट्स देर-सवेर सामने आ ही गई हैं। ये आंकड़े कोविड-19 से हुई मौतों की सीधी गिनती नहीं हैं, लेकिन इनसे उस समय हुई मौतों का अनुमान लगाया जा सकता है। इनमें शामिल हैं: सिविल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (CRS), सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (SRS), और मेडिकल सर्टिफिकेट ऑफ कॉज ऑफ डेथ (MCCD)। ये आंकड़े जीवन, मृत्यु और मृत्यु के कारणों को सामने लाते हैं। यहां प्रस्तुत आंकड़े इंडियन एक्सप्रेस में 10 मई, 2025 को अमिताभ सिन्हा के लेख से लिए गए हैं।

CRS 2021 के अनुसार, देश में कुल पंजीकृत मौतों की संख्या 1.02 करोड़ थी, जो 2020 की तुलना में 21 लाख अधिक थी। SRS के आंकड़ों के अनुसार, 2007-2019 के बीच मृत्यु का औसत 83.5 लाख था। आंकड़ों से पता चलता है कि 2013 से 2016 के बीच मृत्यु पंजीकरण का प्रतिशत 70 से बढ़कर 77 हुआ, जो 2019 में 92 प्रतिशत तक पहुंच गया। यह प्रतिशत अनुमानित मृत्यु संख्या और पंजीकृत मृत्यु संख्या का अनुपात है।

2020 और 2021 की अनुमानित मृत्यु संख्या अभी तक प्रस्तुत नहीं की गई है, लेकिन पंजीकृत मृत्यु संख्या 2020 में 81,15,882 थी, जो 2021 में बढ़कर 1,02,24,506 हो गई। यदि केवल 2021 के आंकड़ों को देखें, तो सामान्य वृद्धि से अधिक 18.75 लाख मौतें हुईं। यह कोविड-19 से हुई मौतों के सरकारी आंकड़ों से कई गुना अधिक है। यदि 2019 के आंकड़ों को जोड़ा जाए, तो यह अनुमानित संख्या लगभग 21 लाख तक पहुंचती है।

2021 के मेडिकल सर्टिफिकेशन ऑफ कॉज ऑफ डेथ के अनुसार, कोविड-19 से हुई मौतों का प्रतिशत 17.3 था, सांस संबंधी समस्याओं का 12.7 प्रतिशत, और परिसंचरण संबंधी कारणों से हुई मौतों का हिस्सा 29.8 प्रतिशत था। यहां मृत्यु के कारण वही दर्ज किए गए, जो पंजीकृत हुए। इन आंकड़ों में कोविड-19 को सांस संबंधी बीमारियों से कैसे अलग किया गया, यह स्पष्ट नहीं है। कोविड काल के दौरान जन्म पंजीकरण की संख्या में भी मामूली गिरावट देखी गई।

उपरोक्त आंकड़े स्पष्ट रूप से दिखाते हैं कि सरकार के कोविड-19 से हुई मौतों के आंकड़े गलत हैं और वास्तविक संख्या लगभग छह गुना अधिक है। जनगणना इन आंकड़ों को और स्पष्ट कर सकती है, लेकिन इसके लिए अभी इंतजार करना होगा। तब तक कई साल बीत चुके होंगे। यदि सही आंकड़े सामने आएं और सरकार इनसे सीखकर आगे बढ़े, तभी इनका कुछ अर्थ होगा।

देश की स्वास्थ्य व्यवस्था, उसकी तैयारियों, और चिकित्सा से जुड़े अध्ययन व शोध को दुरुस्त करने की जरूरत है। झूठे आंकड़ों को पेश करने या उन्हें यूं ही स्वीकार करने से इन जिम्मेदारियों से बचा जा सकता है। झूठ के बल पर सरकारें भले चल जाएं, लेकिन जिंदगी नहीं चल सकती। कोविड-19 के आंकड़े बताते हैं कि देश की स्वास्थ्य व्यवस्था कितनी चरमराई हुई है और नीतिगत स्तर पर यह कितने गहरे गर्त में है।

(अंजनी कुमार पत्रकार हैं)

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