सोनभद्र। प्रदेश को सर्वाधिक राजस्व देने वाले सोनभद्र जिले की यह विडंबना ही कही जाएगी कि जिनके बलबूते खदानों में काम होता आया है, जहां से सरकार को सर्वाधिक राजस्व मिलता आया है उन्हीं के जीवन की सुरक्षा के इंतजाम आज तक नहीं किए जा सके हैं कागजों को छोड़कर हकीकत तो धरातल पर दिखलाई ही दे जाते हैं।
दशकों बीतने के बाद भी सोनभद्र की गहरी पत्थर खदानों में दम तोड़ते मजदूरों की असमय मौत का खेल थमने का नाम नहीं ले रहा है।
पूर्व में गहरी खदानों में दम तोड़ चुके परिवारों का दर्द अभी कम हुआ भी नहीं था कि गुरुवार को देर शाम सोनभद्र के ओबरा तहसील क्षेत्र में स्थित एक खदान में कार्यरत एक टीपर चालक की वाहन समेत गिरने से दर्दनाक मौत हो गई है। इस मौत के बाद सवाल फिर से खड़े होने लगे हैं कि आखिरकार खदानों में कब तक मौत का यह सिलसिला बदस्तूर जारी रहेगा?

जानकारी के मुताबिक सोनभद्र जिले के ओबरा के गजराज नगर में गुरुवार को खनन क्षेत्र में एक टीपर पलटने से चालक की मौत हो गई, जानकारी होते ही इलाके में जहां हड़कंप मच गया था वहीं खदान संचालक द्वारा मामले को दबाने का अंत क्षण तक प्रयास किया जाता रहा है।
हालांकि भारी जनदबाव और मौके पर लोगों के जमा हो जाने से मामला दबाया नहीं जा सका। दुर्घटना के बाद परिजनों ने सड़क जाम कर दिया था, जिसे समाप्त कराने के लिए पुलिस से तीखी झड़प भी हुई है। बताया जाता है कि ओबरा तहसील क्षेत्र के बिल्ली मारकुंडी के बाड़ी खनन क्षेत्र में गुरुवार को एक टीपर अनियंत्रित होकर पलट गया था।
हादसे में टीपर चालक हरिलाल (55) पुत्र रामदुलारे की मौके पर ही दर्दनाक मौत हो गई थी। घटना की सूचना मिलते ही परिजन आक्रोशित हो कर भारी संख्या में अन्य लोगों के साथ ओबरा के गजराजनगर में ओबरा-चोपन मार्ग को जाम कर दिया था।
इस संबंध में एडिशन एसपी ने मीडिया को घटना की जानकारी दी
इस बीच हादसे से आक्रोशित लोगों व परिजनों ने शव को गायब करने का भी आरोप लगाते हुए मुआवजे की मांग कर रहे थे। आरोप लगाया कि खदान में हरिलाल की मौत होने के बाद उनके शव को वहां से गायब करने का कुचक्र रचा जा रहा था ताकि दुर्घटना पर पर्दा पड़ा रह जाए, लेकिन लोगों को पता चल जाने पर ऐसा हो नहीं पाया है।
मौके पर पहुंची क्षेत्र की सीओ ने भी मीडिया से बात की और घटना के बारे में जानकारी दी:
लोगों का आरोप रहा है कि सुरक्षा नियमों को धता बताते हैं खदानों में वाहनों का आना-जाना लगा हुआ है जिससे आए दिन हादसे हो रहे हैं, लेकिन खदानों में संलिप्त लोगों के रसूख और रुपयों के आगे गरीब मजदूरों की आवाज को दबा दिया जाता है। गहरी खदान में टीपर पलटने से चालक की मौत के बाद आक्रोशित लोगों द्वारा सड़क जाम करने की सूचना होने पर पुलिस प्रशासन के हाथ पांव फूल गए थे।

मौके पर पहुंची पुलिस ने परिजनों को समझाने का प्रयास किया, लेकिन वह पीछे हटने को तैयार नहीं रहे हैं। बाद में सीओ ओबरा हर्ष पांडेय और नायब तहसीलदार रजनीश यादव ने मौके पर पहुंचकर परिजनों को आश्वासन दिया कि शासन के नियमों के अनुसार परिजनों को आर्थिक सहायता दी जाएगी और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी तब जाकर रात्रि में जाम हटाया जा सका है।
दूसरी ओर खदान में टीपर पलटने से असमय जान गंवाने वाले चालक के परिजनों को मीडिया के लोगों से दूर रहने तथा उनकी आवाज को दबाने के लिए हादसे के तत्काल बाद खदान मालिक के गुर्गों की दौड़ तेज़ हो गई थी।
मृतक चालक के परिजनों के आगे पीछे लगे होने के साथ पुलिस की लिखा पढ़ी तक इनकी सक्रियता देखते बन रही थी। दूसरे दिन शुक्रवार को सुबह भी पीड़ित परिवार वालों को संवेदना जताने से कहीं ज्यादा मामले में खामोश बने रहने और ले-देकर मामले को रफा-दफा कर लेने ही मुनासिब होगा की तासीर पिलाई जा रही थी।

मौत की खाई साबित होती आईं हैं, सोनभद्र की गहरी खदानें
सोनभद्र के खदानों में होने वाले हादसा-दर हादसा के बाद एक सवाल उठता रहा है कि आखिरकार खनन उद्योग को बढ़ावा देने के लिए पहाड़ों को काटने और गहरे गड्ढे खोदने के लिए अनुमति दी तो जाती है, लेकिन उन्हें पाटने की जो नियमावली है आखिरकार उसे नजर-अंदाज करते आए लोगों पर कार्रवाई क्यों नहीं होती है?
जबकि यह काम पर्यावरण और सुरक्षा मानकों का पालन करते हुए प्राथमिकता के आधार पर किया जाना चाहिए। क्योंकि इससे आम इंसानों से लेकर जंगली जीव-जंतुओं के जीवन को भी खतरा बना रहता है। लेकिन नहीं, ऐसा न कर खनन कंपनियां अनुचित तरीके से खनन कर बड़ी-बड़ी गहरी खाइयों को बढ़ावा देती आई हैं।
इस संदर्भ में जिले के पर्यावरण प्रेमियों का कहना है कि
खनन क्षेत्रों में सुरक्षा मानकों का पालन न होना बहुत गंभीर समस्या है। एक ही रास्ते से आना-जाना, खासकर खनन क्षेत्र में, बेहद खतरनाक हो सकता है। यह स्थिति आपातकालीन स्थिति में लोगों को निकलने का रास्ता नहीं छोड़ती, जिससे हादसे की स्थिति में जान-माल का नुकसान होने की संभावना बढ़ जाती है।

गहरी खदानों में एक ही रास्ते के कारण हादसे की स्थिति में बचाव कार्य भी मुश्किल हो जाता है, जिससे जान-माल का नुकसान बढ़ जाता है। देखा जाए तो खनन क्षेत्रों का नियमित निरीक्षण किया जाना चाहिए, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि सुरक्षा मानकों का पालन हो रहा है या नहीं, लेकिन यह सबकुछ भी कागजों में हो रहा है।
बड़े हादसों के बाद जगने वाले मुलाजिम मामला ढंठा होने पर नोटों भरी चादर तान कर इधर से आंखें भी मूंद लेते हैं। ताजा मामला भी इसी अनदेखी का परिणाम बताया जा रहा है। बहरहाल अब देखना यह है कि इस मामले में ठोस कार्रवाई सुनिश्चित हो पाती है या इसे भी अन्य हादसों की भांति दबा दिया जाता है।
लखनऊ से आईं जांच टीम के लौटते ही हो गया हादसा
सोनभद्र जिले में अवैध खनन के खेल की शिकायतों पर पिछले दो दिनों से सोनभद्र में लखनऊ से एक जांच टीम आई हुई थी। टीम ओबरा के डाला, चोपन इत्यादि इलाकों का निरीक्षण करने पहुंची हुई थी। टीम के आने की खबर मात्र से ही खदानों में सियापा छा गया था।
लखनऊ से आई हुई टीम खनन क्षेत्रों में भ्रमण कर जांच पड़ताल कर जैसे ही वापस हुई है वैसे ही खनन क्षेत्रों में सन्नाटे को चीरते हुए टीपर वाहनों से लेकर खदानों में आवा-जाही शुरू हो गई थी।
जानकार बताते हैं कि लखनऊ से आई हुई टीम खनन क्षेत्र में अवैध खनन को लेकर जांच कर जैसे ही आगे के लिए रवाना हुई है, वैसे ही खदानों में खनन कारोबारियों का खेल चल पड़ा था। बताते चलें कि जिस खदान में यह हादसा हुआ है उस खदान में सुरक्षा नियमों की अनदेखा करते हुए श्रमिकों से काम कराए जाने की बात सामने आई है।
लोगों का आरोप रहा है कि अधिकारी मौके पर आते हैं और जेबें गर्म कर चलते बनते हैं, जिसका खामियाजा गरीब मेहनतकश मजदूरों को जान गंवा कर भुगतान पड़ रहा है।
खदानों में सुरक्षा और सहूलियत दोनों हैं नदारद
सोनभद्र के ओबरा तहसील क्षेत्र में स्थित खदानों में कुछ खदानें ऐसी भी हैं जहां खनन नियमों का पालन होना तो दूर खदान में काम करने वाले लोगों की सुरक्षा तक को नजरंदाज कर काम कराया जा रहा है। जानकार बताते हैं कि खदानों में खनन नियमों को ताकपर रख खनन किया जा रहा है।

सर्वाधिक खतरा खदानों में आने-जाने के लिए एक मार्ग होने से बना रहता है, जबकि होना यह चाहिए कि आने और जाने के लिए अलग-अलग रास्ते होने चाहिए, लेकिन ऐसा न कर मजदूरों के जीवन के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। सिर्फ और सिर्फ खानपूर्ति करते हुए बेख़ौफ़ खनन का खेल जारी है।
इस संदर्भ में जब शैलेंद्र सिंह वरिष्ठ खान अधिकारी से सम्पर्क साधकर जानकारी चाही गई तो उन्होंने व्यस्तता का हवाला देते हुए बाद में बात करने की बात कही है। जबकि ओबरा तहसील प्रशासन का कहना रहा है कि जो न्योचित होगा वह मदद मृतक आश्रितों को मुहैया कराई जाएगी साथ ही मामले की जांच की जा रही है।
बहरहाल, सबसे बड़ा सवाल अब यह है कि क्या सोनभद्र की खूनी खदानों की कहानी में फिर से कोई अध्याय जुड़ेगा या इस पर रोक लगाने के ठोस उपाय किए जाएंगे।
(संतोष देव गिरी वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
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