बख्तियारपुर। नेपाल में हुई भारी बारिश के बाद बिहार में आने वाले बाढ़ में सबसे अधिक प्रभावित कोसी पर बनाए गए पूर्वी व पश्चिमी तटबंधों के अंदर नदी की धारा के बीच रहने वाले लोगों पर हुआ है। दो नदियों के बीच होने की वजह से अमूमन इस इलाके को बाढ़ की विभीषिका को झेलना पड़ता है।
हालांकि इस बार स्थिति कुछ ज्यादा खराब है। 2011 जनगणना के आधार पर कोसी तटबंध के बीच बिहार के चार जिले सुपौल, सहरसा, दरभंगा और मधुबनी के इलाके में करीब 10 लाख लोग रह रहे थे।
दोनों तटबंधों के बीच रहने वाले हजारों परिवारों की फसल, पशु चारा, और खाने जैसी जरूरी सामान बाढ़ में बर्बाद हो चुका है। जिस वजह से वो मानसिक,आर्थिक और शारीरिक रूप से टुट चुके हैं। ग्रामीणों के अनुसार बाढ़ राहत के तहत उन्हें अभी तक सूखा आहार जैसे चूड़ा और प्लास्टिक की एक चटाई दी गई है।

नदी का पानी गांव से जाने के बाद गड्ढों व निचले हिस्सों में बाढ़ का गंदा पानी भरा है। अधिकांश लोगों के घर-आंगन में जमा पानी और कीचड़ के सूखने का इंतजार करते नजर आए ताकि फिर से उनकी जिंदगी सामान्य हो सके। अनाज में पानी चले जाने की वजह से चावल के बड़े–बड़े धेले हो गए हैं, जो अब खाने लायक नहीं रहा।
पशुओं का चारा बह जाने की वजह से लोगों को पशुओं को खिलाने में भी दिक्कत हो रही है। महिलाएं पत्थर की पटिया और ऊपरी जगह चूल्हा रखकर भोजन पका रही हैं। कई ग्रामीण घरों में ईंट रखकर कमरों में पहुंच रहे हैं।
सिमरी बख्तियारपुर विधानसभा क्षेत्र अंतर्गत महिषी प्रखंड के गंडौल के रहने वाले राजकुमार अपने दोनों बेटों को रिश्तेदार के यहां रख कर अपनी पत्नी के साथ बाढ़ से बर्बाद हुए घर को ठीक कर रहे है। राजकुमार बताते हैं कि,”इतना पानी आया कि पूरा घर ही बर्बाद हो गया..सब कुछ खत्म हो गया है। खाने से लेकर पीने की व्यवस्था सब कुछ करना पड़ेगा।”
खाने के साथ पीने की मुश्किल बढ़ रही है। दुर्गंध युक्त पानी पीने को मजबूर ग्रामीणों को पानी निकालना भी मुश्किल हो गया है। चापानल पानी में डूब गए हैं और पानी निकलने पर भी उसमें कीचड़ वाला पानी आता है जो पीने लायक नहीं है।
जीवन के साथ जीवन यापन पर भी संकट आ गया है। गांव में अधिकतर लोगों का घर खेती और मछली पालन पर टिकी हुई है। लेकिन बाढ़ ने खेत और तालाब दोनों ही बर्बाद कर दिए है।
गांव के कई लोगों को इस बात की भी चिंता है कि जब बाढ़ का पानी निकल जाएगा, उसके बाद कीचड़ और दुर्गंध से होने वाली बीमारी से निपटना होगा और जब तक हालात पूरी तरह सामान्य होंगे, इलाके में दोबारा बाढ़ आने का समय आ जाएगा।
बाढ़ की खबर सुनकर दिल्ली और पंजाब में मजदूरी कर रहें अधिकांश लोग फिर से घर ठीक करके वापस मजदूरी करने जाएंगे। अरविंद मोहन अपनी किताब में लिखते हैं कि कोसी से होने वाला पलायन को प्रवासन के मौजूदा सिद्धांतों के आधार पर नहीं समझाया जा सकता है।
ये लोग अच्छे जीवन की तलाश में पलायन नहीं करते। वे अपने जैविक अस्तित्व को सुनिश्चित करने के लिए ही प्रवास करते हैं।
कोसी नवनिर्माण मंच ने उठाई आवाज
कोसी क्षेत्र के बाढ़ पीड़ितों के लिए काम कर रही संस्था कोसी नवनिर्माण मंच ने सुपौल के डीएम को 17 सूत्रीय मांग पत्र भेजते हुए तटबंध के भीतर कोसी की भयावह बाढ़ के पीड़ितों के लिए मानक संचालन प्रक्रिया एसओपी व तय मानदंड के तहत राहत कार्य तेज करने की मांग रखी है।
बाढ़ पीड़ितों को क्षतिपूर्ति दिलाने की मांग के साथ ही अपनी दीर्घ कालिक मांगों को दुहराते हुए पुनर्वास, प्राधिकार, लगान मुक्ति सहित कोसी के समाधान की बात उठाई है।

मंच के सदस्य के द्वारा कहा गया है कि संगठन ने अपने मांग पत्र में कोसी की भीषण बाढ़ आपदा के समय रेस्क्यू कार्य की कमियों, नावों के अभाव में भूखे प्यासे लोगों के छप्पर पर कई दिनों तक रहने एवं आपदा से बिलख रहे लोगों की पीड़ा का जिक्र किया है एवं बीमारियों व संक्रमण से बचाव के लिए तटबंध के भीतर के सभी गांवों में ब्लीचिंग पाउडर के छिड़काव की बात कही है।
बाढ़ के बाद कटाव
बाढ़ के खत्म के बाद अब कटाव का संकट शुरू हो गया है। सुपौल जिला के घूरन पंचायत के वार्ड नंबर 6 में कटाव की वजह से कई लोगों को घर छोड़ना पड़ गया है।
घूरन गांव के हरि यादव बताते हैं कि बाढ़ के पानी से खेतों का इतना कटाव हो गया है कि धीरे-धीरे घर तक पहुंच जायेगा। सारे खेत सब बह जाएंगे। हमें भी कहीं और अच्छी जगह घर मिल जाता तो हम ऐसी जगह क्यों रहते?

सरकार के द्वारा इस पूरे क्षेत्र में कटान रोकने के नाम पर कई सालों से अब तक लगभग करोड़ों रुपए खर्च हो गए, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ है। पानी ज्यादा और कम होने पर हर साल काफी घरों का कटान होता है।
जलवायु परिवर्तन के कारण कोसी इलाके में बाढ़ की गंभीरता में वृद्धि हो रही है। थोड़ा भी पानी होने पर बाढ़ आ जाता है। पर्यावरणविदों के अनुसार, कोसी नदी के द्वारा लाया गया गाद पीड़ितों के लिए सबसे अधिक जानलेवा साबित हो रही है।दीर्घकालिक समाधान की ओर ध्यान देने की आवश्यकता है।
नदी के प्रवाह को नियंत्रित करने और कटाव की समस्या से निपटने के लिए वैज्ञानिक उपायों की आवश्यकता है।
(बिहार के बख्तियार से राहुल की ग्राउंड रिपोर्ट।)
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