“मैं चार माह की गर्भवती हूं। लगभग प्रतिदिन कोई न कोई समस्या आती है। जिसके जांच के लिए मुझे अस्पताल की ज़रूरत होती है। लेकिन यहां स्वास्थ्य केंद्र में न तो जांच की कोई सुविधा है और न ही दवा उपलब्ध है। जब भी यहां आती हूं मुझे लूणकरणसर जाने के लिए बोल दिया जाता है। जो यहां से 18 किमी दूर है। ऐसी हालत में बार-बार मेरा वहां जाना मुमकिन नहीं है। यदि यहीं स्वास्थ्य केंद पर सुविधाएं मिल जाए तो अच्छा रहता।” यह कहना है राजस्थान के बीकानेर स्थित लूणकरणसर ब्लॉक के राजपुरा हुडान गांव की 24 वर्षीय प्रियंका का, जो गांव में संचालित उप स्वास्थ्य केंद्र में अपने गर्भावस्था की जांच कराने आई थी, मगर केंद्र पर सुविधाओं की कमी के कारण उसे परेशानियों का सामना करना पड़ रहा था।
हालांकि राजस्थान देश का पहला ऐसा राज्य है जिसने अपने नागरिकों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराने के उद्देश्य से 2022 में स्वास्थ्य का अधिकार अधिनियम लागू किया था। मगर इसके बावजूद राज्य के कई ऐसे ग्रामीण क्षेत्र हैं जहां संचालित प्राथमिक अथवा उप स्वास्थ्य केंद्रों पर सुविधाओं की कमी है। इन्हीं में एक राजपुरा हुडान गांव में संचालित उप स्वास्थ्य केंद्र भी शामिल है।
इस संबंध में गांव की 20 वर्षीय संतोष कहती है कि इस उप स्वास्थ्य केंद्र में न तो समय पर आयरन की गोलियां मिलती हैं और न ही सेनेटरी पैड की उपलब्धता होती है। इसलिए अक्सर हमें बाजार से इन्हें खरीदना पड़ता है। जबकि प्रत्येक माह स्वास्थ्य केंद्र पर यह सुविधाएं उपलब्ध होनी चाहिए थी। वह बताती है कि कभी-कभी आयरन की गोलियां मिलने में 6 से 7 माह का समय लग जाता है। वहीं सेनेटरी पैड प्रत्येक माह की जगह दो या तीन महीने में एक बार ही उपलब्ध होते हैं। संतोष के अनुसार गांव की अधिकतर किशोरियां आर्थिक रूप से बेहद कमज़ोर परिवार से हैं, जिनके लिए हर माह बाजार से पैड खरीदना मुमकिन नहीं है। इसलिए जब उप स्वास्थ्य केंद्र पर पैड उपलब्ध नहीं होता है तो वह माहवारी के दौरान कपड़ों का इस्तेमाल करने पर मजबूर होती हैं।
राजपुरा हुडान जिला बीकानेर से 90 किमी और ब्लॉक लूणकरणसर से 18 किमी दूर है। 2011 की जनगणना के अनुसार इस गांव की आबादी करीब 1863 है। अनुसूचित जाति बहुल इस गांव के अधिकतर पुरुष कृषि और दैनिक मज़दूर के रूप में काम करते हैं। ग्रामीणों के अनुसार यहां स्थित उप स्वास्थ्य केंद्र काफी छोटा है, जिसमें सुविधाओं का भी काफी अभाव है। इस संबंध में केंद्र की एएनएम निर्मला बताती हैं कि वह पिछले पांच वर्षों से इस उप स्वास्थ्य केंद्र में तैनात हैं और अपने स्तर पर लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा मुहैया कराने का प्रयास करती हैं। केंद्र पर प्रत्येक माह बच्चों और गर्भवती महिलाओं के टीकाकरण की सुविधा उपलब्ध कराई जाती है। इसके अतिरिक्त सरकार की ओर से स्वास्थ्य से जुड़े विशेष अभियान को भी पूरा करने का प्रयास किया जाता है। लेकिन स्वास्थ्य केंद्र छोटा होने के कारण यहां सुविधाओं की कमी है।
वह कहती हैं कि “इस उप स्वास्थ्य केंद्र पर न तो सुरक्षित प्रसव कराने के लिए उपयुक्त सुविधा है और न ही सभी प्रकार की बीमारियों के लिए दवाइयां मौजूद हैं। जिसकी वजह से गांव के लोगों को लूणकरणसर जाना पड़ता है। अस्पताल में एंबुलेंस की सुविधा भी नहीं है। अक्सर गंभीर स्थिति में लूणकरणसर के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र से एंबुलेंस बुलानी पड़ती है।” वह कहती हैं कि “इस केंद्र पर मैं अकेले हूं जिसकी वजह से नॉर्मल डिलीवरी भी नहीं करा पाती हूं। यदि यहां एक और एएनएम अथवा नर्स की नियुक्ति हो जाती तो मुझे नॉर्मल डिलीवरी कराने में सहायता मिल जाती। मैंने कई बार केंद्र पर दवाओं की कमी और अन्य सुविधा उपलब्ध कराने के लिए जिला मुख्यालय को पत्र भी लिखा है। लेकिन अब तक इस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है।”
गांव के 65 वर्षीय एक बुज़ुर्ग रामनिवास कहते हैं कि “उन्हें घुटने से जुड़ी बीमारी है। जिससे उन्हें चलने में कठिनाई होती है। इसके लिए उन्हें कई प्रकार की दवाइयों की ज़रूरत होती है। इस उप स्वास्थ्य केंद्र पर सर्दी और ज़ुखाम जैसी छोटी बीमारी के लिए दवा उपलब्ध है। लेकिन हम बुज़ुर्गों से जुड़ी बीमारी के लिए दवाइयां नहीं हैं। जब भी इमर्जेन्सी में दिखाने भी आते हैं तो हमें लूणकरणसर या बीकानेर जाने के लिए कहा जाता है। इतना ही नहीं, यहां शौचालय जैसी सुविधाओं का भी अभाव है।”
28 वर्षीय निशा कहती हैं कि गांव के लोग आर्थिक रूप से सशक्त नहीं हैं। लोगों के पास इतना पैसा नहीं है कि वह प्राइवेट गाड़ी करके मरीज़ को शहर ले जाएं। अक्सर प्रसव के समय एम्बुलेंस की ज़रूरत पड़ जाती है। लेकिन जब किसी कारणवश लूणकरणसर से भी एम्बुलेंस नहीं आ पाती है तो लोगों को निजी गाड़ी बुक करनी पड़ती है, जो काफी महंगी होती है। यदि इस स्वास्थ्य केंद्र पर भी एम्बुलेंस की सुविधा उपलब्ध हो जाए तो गांव वालों के लिए काफी आसान हो जायेगा। वह कहती है कि अक्सर सरकार की ओर से लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराये जाने की बात की जाती रहती है। लेकिन ज़मीनी सतह पर ऐसा मुमकिन नहीं होता है। कई बार स्वास्थ्य केंद्र तक सरकार की सभी सुविधाएं पहुंच नहीं पाती हैं। राजपुरा हुडान का उप स्वास्थ्य केंद्र भी इनमें से एक है। जहां कई प्रकार की सुविधाओं का अभाव है, जिसके कारण यहां के लोगों को स्वास्थ्य संबंधी कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता रहता है।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की वेबसाइट पर दिये गए ग्रामीण स्वास्थ्य सांख्यिकी 2020 के आंकड़ों के अनुसार, देश में कुल 157921 उप-स्वास्थ्य केंद्र, 30813 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, 5649 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, 1193 अनुमंडलीय अस्पताल और 810 जिला अस्पताल हैं। आरएसएम के अनुसार, देशभर में क्रमशः 24 प्रतिशत उप स्वास्थ्य केंद्र, 29 प्रतिशत प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और 38 प्रतिशत सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र की कमी बताई गई है। ऐसे में राजपुरा हुडान जैसे उप स्वास्थ्य केंद्र को और भी अधिक अपडेट और सुविधाओं से लैस करने की जरूरत है, ताकि आर्थिक रूप से कमजोर इस गांव के लोगों पर और अधिक बोझ न पड़े।
(राजस्थान के लूणकरणसर से सुशीला सिद्ध की ग्राउंड रिपोर्ट)
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