खट्टर ने किया अपने मंत्रियों को मालामाल, आवास भत्ता हुआ 50 हजार से बढ़कर एक लाख

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हरियाणा के गरीब असहाय मंत्रियों के लिए वहां की सरकार नयी योजना लाई है। भाजपा-जेजेपी की सरकार ने मंत्रियों का आवास भत्ता 50 हजार रुपये से बढ़ा कर एक लाख रुपया कर दिया है। जिन बेचारे मंत्रियों के सिर पर छत नहीं थी, उनके सिर पर भी छत हो, वे खुले आसमान के नीचे रात गुजारने को मजबूर न हों, इसके लिए यह मंत्री आवास कल्याण योजना नितांत आवश्यक थी। और समय भी एकदम सही चुना, खट्टर-चौटाला एंड कंपनी ने। सर्दियों की शुरुआत हो चुकी है। आवास के अभाव में किसी बेचारे मंत्री को ठंड लग गयी, नजला-जुकाम बिगड़ गया, निमोनिया हो गया तो पूरा हरियाणा ठप्प हो जाएगा, चल ही नहीं सकेगा। सबसे ज्यादा तो इस आवास भत्ते की जरूरत उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला को है।

गरीबी का आलम ये है, बेचारे चौटाला जी का कि परदादा और दादा मुख्यमंत्री थे। तो कमाई कहां से होती! युवा अवस्था में घड़ियों की स्मगलिंग और बुढ़ापे में शिक्षकों की नियुक्ति के घोटाले में जो भी कमाया-धमाया था बेचारे दुष्यंत जी के दादा ओमप्रकाश चौटाला जी ने, वो सारा तो मुकदमेबाजी में लग गया और अब बेचारे जेल में बुढ़ापा काट रहे हैं। वो तो बेटा दुष्यंत भाजपा के साथ सरकार में शरीक हो गया वरना बेचारे के पिता अजय चौटाला भी जेल में दिन गुजार रहे होते।

इधर भाजपा से दोस्ती हुई और इधर पिता बाहर। अपने शाह जी का तो नारा ही है- हर अपराधी के दो ही ठिकाने, भाजपा में आए या जाये जेलखाने। दुष्यंत अपने पिता की खातिर भाजपा के साथ चले गए। हर भ्रष्टाचारी बाप को चाहिए कि वो बेटा पैदा करे तो दुष्यंत जैसा, जो मौका आने पर भाजपा के साथ मिल कर बाप को जेल से बाहर निकाल सके।

मंत्रियों का आवास भत्ता बढ़ ही चुका है। दुष्यंत जी को चाहिए कि वो दादा जी के प्रति गुस्सा थूक दें। खट्टर साहब से कह कर दादा जी के लिए जेल में भी कुछ एक-आध लाख रुपये का भत्ते का इंतजाम करवा दें। जब अपने कार्यकर्ता की गर्दन काटने की बात खट्टर साहब सरेआम कर सकते हैं तो थोड़ा बहुत जनता का पैसा काट कर दुष्यंत के दादा को भी दे ही सकते हैं। जनता के हिस्से का पैसा काटना तो बनता है। आखिर जनता ने खट्टर साहब को पूर्ण बहुमत जो नहीं दिया! और दुष्यंत चौटाला को देना भी बनता है क्योंकि खट्टर साहब को जनता की ओर से कम पड़ी सीटों की कमी तो दुष्यंत चौटाला ने ही पूरी की। इस तरह खट्टर साहब के लिए तो जनता जनार्दन नहीं दुष्यंत जनार्दन हैं।

तो भाई खट्टर साहब और चौटाला साहब आवास भत्ता क्या तनख्वाह से लेकर खाने-पीने, सोने सब का भत्ता दुगुना-चौगुना-आठ गुना-दस गुना जो मन में आए कर दो। आखिर सत्ता खाने-कमाने के लिए ही तो होती है। सत्ता में रह कर भी नंगे-भूखे रहे तो लानत है ऐसी सत्ता पर। आप चाहें तो मुंह खोलने, बोलने, मुस्कुराने, हाथ मिलाने के काम के लिए भी खुद को भत्ता अनुमोदित कर सकते हैं। चौटाला और खट्टर में खटर-पटर न हो तो पांच साल तक किस माई के लाल में दम है कि आपको रोक लेगा।

और हां, सुई से लेकर माचिस की तीली तक पर टैक्स देने वाला गरीब खुशी-खुशी आपके खर्चे और नाज-ओ-नखरे वहन करेगा, खुशी-खुशी नहीं भी करे तो झेलना तो उसे ही पड़ेगा। आखिर मंत्री-संतरी से लेकर बड़े धन्नासेठों का चरखा तो गरीब के गले पर पांव रख कर ही चलेगा।

(इन्द्रेश मैखुरी उत्तराखंड के लोकप्रिय वामपंथी नेता हैं।)

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