मुजफ्फरनगर दंगा मामला : 11 साल बाद पूर्व केंद्रीय मंत्री बालियान व सांसद मलिक समेत 27 लोगों के खिलाफ आरोप तय  

मुरादाबाद। दिल्ली सीमा से सटे उत्तर प्रदेश के जिले मुजफ्फरनगर में अगस्त, 2013 में हुए भयावह दंगे के एक मुकदमे में आरोप तय होने में 11 साल से अधिक लग गए। सुनवाई की यह स्थिति तब है जबकि उत्तर प्रदेश की मौजूदा भाजपा सरकार ने करीब छह दर्जन मुकदमे शासनादेशों के जरिए वापस ले लिए हैं।

तब की समाजवादी पार्टी की सरकार के दौरान हुए इस दंगे में एक पत्रकार समेत 60 लोगों की मौत हुई थी, 200 से ज्यादा लोग जख्मी हुए थे। करीब चालीस हजार से ज्यादा मुस्लिम आबादी के लोगों को शिविरों में शरण लेनी पड़ी थी।

भारत के इतिहास में यह पहला दंगा था, जो गांवों में हुआ और फैला। इसे काबू करने के लिए सेना बुलानी पड़ी थी।

पीड़ितों के लिए, शायद, राहत की बात हो कि मुजफ्फरनगर की विशेष एमपी-एमएलए कोर्ट के न्यायाधीश देवेंदर सिंह फौजदार ने भाजपा और विहिप के कई नेताओं समेत 27 लोगों पर आरोप तय कर दिए हैं। इसमें से ज्यादातर आरोपी सुनवाई के दौरान अदालत में हाजिर रहे।

इसमें उत्तर प्रदेश के मंत्री कपिलदेव अग्रवाल, पूर्व केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान, उत्तर प्रदेश के पूर्व मंत्री सुरेश राणा और सपा के मौजूदा सांसद हरेंद्र मलिक भी शामिल हैं। अगली सुनवाई 30 जनवरी को होगी। 

अन्य आरोपियों में पूर्व भाजपा सांसद भारतेंदु सिंह, विहिप नेता साध्वी प्राची, विवादास्पद कट्टरपंथी महंत यति नरसिंहानंद, पूर्व मंत्री अशोक कटारिया, पूर्व विधायक अशोक कंसल, पूर्व विधायक उमेश मलिक आदि शामिल हैं। ये सब भाजपा के नेता हैं।

क्या हैं आरोप 

इनमें अधिकतर के खिलाफ भड़काऊ भाषण देने, सरकारी आदेश की अवहेलना करने, सरकारी कर्मचारियों पर हमला करने आदि आरोप शामिल हैं। मुजफ्फरनगर दंगों के मामले में अब तक कुल 74 मुकदमों को वापस लेने की अनुमति उत्तर प्रदेश सरकार दे चुकी है। 

दंगे की पृष्ठभूमि 

आजादी के बाद से एकजुट होकर रहने वाले जाट और मुस्लिम समुदाय को इस दंगे ने अलग कर दिया। इस दंगे में पहली बार फर्जी वीडियो मुसलमानों के खिलाफ वाट्सऐप के जरिए फैलाए गए, जिससे हिंसा भड़की।

जाट और मुस्लिम समुदाय के बीच 27 अगस्त  को यह दंगा कवाल गांव में कथित तौर पर एक छेड़खानी के एक मामले के साथ शुरू हुआ। 

पीड़ित मलिकपुरा गांव की लड़की के द्वारा जानसठ थाना पुलिस में कई बार शिकायत की गई थी, लेकिन मामले में पुलिस द्वारा कोई मदद नहीं की गई। इसके बदले में जाट समाज की लड़की के भाइयों ने आरोपी शाहनवाज की उसी के गांव में जाकर हत्या कर दी गई।

गांव वालों ने घेर कर जाट समुदाय के दोनों हमलावरों की हत्या कर दी। इसके बाद जाटों में बेचैनी बढ़ी। दूसरी तरफ मुस्लिम समुदाय के लोगों ने खालापार में जुम्मे की नमाज के बाद जनसभा में भड़काऊ भाषण जाटों के खिलाफ दिए।

इसके बाद, 31 अगस्त, 2013 को जाट समुदाय ने नगला में महापंचायत बुलाई। इसमें कहा गया कि बेटियों के सम्मान में बुलाई गई पंचायत से लौटते हुए जोली नहर पर पुरबालियान के मुस्लिम समाज द्वारा चार पांच लोगों को जान से मार दिया गया है। 

इस पंचायत में उन्मादी भाषण दिए गए। उसके बाद मुजफ्फगनगर का ग्रामीण इलाका हिंसा की चपेट में आ गया था। पुलिस थानों से भाग गई थी। भारतीय इतिहास का पहला दंगा था जो गांवों में भयानक रूप ले चुका था। इस दंगे में जाट बहुल गांवों में रहने वाली गरीब मुस्लिम जातियों के (लुहार, बढ़ई, धोबी) आदि के लोगों ने भारी दंश झेला।

पूरे जनपद के सैकड़ों गांव हिंसा की चपेट में आ गए। तत्कालीन सपा सरकार को सेना बुलानी पड़ी। इसके बाद लाखों की संख्या में मुस्लिम शरणार्थी शिविरों में रहने को विवश हुए। कुटबा, कुटबी, फुगाना पुरबालियान जौली अनेकों गांवों में जीवन संघर्ष हुआ। मुस्लिम बाहुल्य गांवों से दलित समाज और जाट बहुल इलाकों से मुस्लिम लोगों ने भारी संख्या में पलायन किए थे। 

राजनीतिक असर 

जो जाट समाज चौधरी चरण सिंह और बाद में उनके पुत्र अजित सिंह की पार्टी का समर्थक था, वह रातोंरात भाजपा की तरफ चला गया। इसका नतीजा रहा कि जाट समर्थित राष्ट्रीय लोकदल पार्टी चुनाव हार गई और भाजपा के तमाम प्रत्याशी चुनाव जीतने में सफल रहे।

दंगा भड़काने वाले लोगों में सपा के मौजूदा सांसद हरेंद्र मलिक भी शामिल हैं, क्योंकि तब जाट-पहचान के नाम पर महापंचायत में उन पर भी उन्मादी भाषण देने का आरोप है।

(वरिष्ठ पत्रकार रामजन्म पाठक की रिपोर्ट।)

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