न्याय की आस : “मुझे इस बात का बेहद अफसोस है कि जो जुर्म मैंने नहीं किया, उस मुकदमे की पैरवी आज भी मैं कर रहा हूं”-ग्राउंड रिपोर्ट

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सोनभद्र। उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले के आदिवासी गांवों में जीना किसी त्रासदी से कम नहीं है। यहां के आदिवासी बाशिंदे हर दिन अपने हक, सम्मान और अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं।

इस इलाके में दबंगई, गरीबी और पुलिसिया अत्याचार ने मिलकर इनकी ज़िंदगी को एक ऐसी अनिश्चितता में धकेल दिया है, जहां हर नया दिन उनके लिए एक चुनौती लेकर आता है। अपनी आवाज़ उठाने की कोशिश में भी इन्हें केवल निराशा और पुलिस की बेरुखी ही मिलती है।

सोनभद्र के आदिवासियों के साथ पुलिस का जो बर्ताव है, वह उनकी असलियत को बखूबी बयां करता है। गरीब आदिवासी, जिनके पास न तो जमीन का पक्का मालिकाना हक है और न ही आर्थिक ताकत, उन्हें दबंगों और पुलिस दोनों के उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है।

ये हैं मैनेजर, जिनके दो बेटे पुलिस के खौफ कर गए हैं पलायन

जब ये लोग पुलिस के पास न्याय की उम्मीद लेकर जाते हैं, तो उल्टा उन्हें ही अपराधी समझा जाता है। उनकी शिकायतें दरकिनार कर दी जाती हैं, और कई बार तो उन पर झूठे आरोप लगाकर थानों में बंद कर दिया जाता है।

जगवंती देवी, 45 साल की एक साधारण महिला, सोनभद्र जिले के एक छोटे से गांव की निवासी हैं। उनका परिवार एक कठिन दौर से गुजर रहा है, जो उन्हें सपने में भी नहीं सोचा था। जगवंती के पास एक बेटी और दो बेटे हैं, और वे आंगनवाड़ी में दाई का काम करके अपने बच्चों की जरूरतें पूरी करती हैं।

उनकी ये नौकरी ही उनके परिवार का सहारा है, लेकिन आज वह खुद अपनी ज़िन्दगी के सबसे बड़े दुख में डूबी हुई हैं।

10 जनवरी 2024 की दोपहर थी। बनारस के अस्पताल में अपने एक्सीडेंट का इलाज करवा रही जगवंती को एक फोन आया। उनकी बेटी सुनिता घबराहट में थी, उसने बताया कि पुलिस उनके घर आ धमकी है, घर के लोगों से पूछताछ कर रही है और उनके पति और बेटे महेंद्र को ढूंढ रही है।

जगवंती यह सुनकर बेचैन हो उठीं। ऑपरेशन का दर्द और बेटों का ख्याल उन्हें बेचैन कर रहा था।

जगवंती और मुरली

ऑपरेशन के दस दिन बाद जब जगवंती घर लौटीं तो उन्हें एक और बड़ा झटका लगा। उनका बेटा महेंद्र जेल में था। पुलिस ने उस पर गांजा रखने का इल्जाम लगाकर गाड़ी सीज कर दी और उसे जेल भेज दिया।

जगवंती के शब्दों में, “मुझे समझ नहीं आया कि यह सब कैसे हुआ? जब मैं अस्पताल में थी, मेरे घर इतनी बड़ी आफत आ गई। पुलिस ने मेरे बेटे की पूरी ज़िन्दगी बर्बाद कर दी।”

कुछ समय बाद उन्हें इलाहाबाद हाईकोर्ट से जमानत मिली, पर पुलिस ने गैंगस्टर एक्ट लगाकर उसे फिर से जेल में डाल दिया। हर बार जब जगवंती जेल में अपने बेटे से मिलने जाती हैं, तो उसकी हालत देखकर उनका दिल दहल उठता है।

महेंद्र बार-बार रोते हुए कहता है, “मम्मी, जल्दी जेल से निकालो, यहां मुझसे झाड़ू-पोछा और नाली साफ करवा रहे हैं। अगर मैं मना करता हूं, तो मारते हैं। मैं यहां मर जाऊंगा मम्मी!”

एक मां के लिए इससे बड़ी पीड़ा और क्या हो सकती है कि उसका बेटा उसकी आंखों के सामने तिल-तिल कर टूट रहा हो। जगवंती कहती हैं, “उसका चेहरा हर वक्त मेरी आंखों के सामने घूमता रहता है। जिस बेटे को मैंने प्यार से पाला, वही आज इतनी तकलीफें झेल रहा है।”

अब जगवंती न्याय की उम्मीद लगाए बैठी हैं। वो चाहती हैं कि उनके बेटे पर लगे झूठे इल्जाम की जांच हो और दोषियों को सजा मिले। अपने बेटे को जेल से निकालने की आस में, उन्होंने अपने दर्द को दबाकर समाज से मदद की गुहार लगाई है।

उनके अनुसार, “हम गरीब लोग हैं, हमारी कोई नहीं सुनता, लेकिन उम्मीद है कि एक दिन न्याय मिलेगा और मेरा बेटा फिर से आज़ाद सांस ले सकेगा।”

पुलिस और दबंगों की मिलीभगत

सोनभद्र में दबंगों और पुलिस की सांठगांठ आदिवासियों के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। स्थानीय दबंग पुलिस के संरक्षण में आदिवासियों की जमीन पर कब्जा करते हैं, और जब ये परिवार विरोध करते हैं, तो पुलिस का सहारा लेकर उन्हें डराया-धमकाया जाता है।

उनके पास यह सोचने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचता कि कानून और व्यवस्था शायद उनके लिए नहीं बने हैं। उनके हक की जमीन पर कब्जा हो जाए या उनके घर में घुसकर मारपीट हो, पुलिस हमेशा दबंगों का ही साथ देती दिखती है।

जब किसी परिवार का कोई सदस्य थाने पहुंचता है, तो उसकी सुनवाई के बजाय उससे अपमानित व्यवहार किया जाता है। थानों में आदिवासियों को नजरअंदाज किया जाना आम बात है। एफआईआर दर्ज करवाने में टालमटोल करना और बार-बार बहाने बनाना पुलिस की कार्यशैली बन चुकी है।

थानों में अक्सर आदिवासी महिलाओं को गालियां दी जाती हैं, और पुरुषों को झूठे मामलों में फंसाने की धमकी दी जाती है। पुलिस के इस रवैये ने इन समुदायों के दिलों में एक गहरी चोट और असहायता का भाव भर दिया है।

बच्चों के मन में भी है पुलिस का खौफ

सोनभद्र जिले के छोटे से गांव के वॉर्ड नंबर 10 में रहने वाले अमरजीत के जीवन में 10 फरवरी 2024 का दिन मानो तबाही लेकर आया। उस सुबह, जैसे ही उनके घर के पास अमृत लाल यादव और नीरज यादव सहित करीब दस लोगों का एक दबंग गिरोह इकट्ठा हुआ, तो वह अपनी ज़मीन पर कब्जा करने की कोशिश में लग गए।

उस वक्त अमरजीत की पत्नी लवासी देवी, बेटा विजय शंकर और बहू सुमित्रा देवी उन्हें समझाने गए। उनका कहना था, “भैया, हम गरीब लोग हैं, हमारे लिए यही रास्ता है, आप हम पर रहम करो,” लेकिन उनकी आवाज को अनसुना कर उन दबंगों ने गाली-गलौज शुरू कर दी और लवासी देवी को धक्का देकर गिरा दिया।

आगे बढ़कर उन्होंने अमरजीत के परिवार को मारपीट करना शुरू कर दिया। अमरजीत बताते हैं, “उन लोगों ने मेरी पत्नी की इज्जत पर हाथ डालने की कोशिश की, उसकी साड़ी तक खींच ली, और मेरी बहू और बेटे को बहुत बुरी तरह पीटा। वो इतने उग्र थे कि उन्हें अपनी करतूतों का कोई एहसास तक नहीं था। उस वक्त लग रहा था कि हमारा परिवार आज खत्म हो जाएगा।”

गांव के एक युवक ने इस पूरी घटना का वीडियो बना लिया। मारपीट के बाद, दबंग तुरंत अपनी गाड़ी में बैठकर थाने पहुंच गए। डर और पीड़ा से भरे हुए अमरजीत का परिवार भी किसी तरह थाने पहुंचा, लेकिन वहां उन्हें और भी ज्यादा दर्दनाक अनुभव का सामना करना पड़ा।

अमरजीत कहते हैं, “पुलिसवालों ने हमारी बात सुनने के बजाय हमें ही डांट दिया। हमने हाथ जोड़कर उनसे इंसाफ की गुहार की, पर उन्होंने हमें वापस भेज दिया। पूरी रात आंसू बहाते हुए किसी तरह बिताई।”

अगली सुबह फिर से थाने गए तो एसओ ने वीडियो देखकर कहा, “दो पुलिसकर्मी भेज रहे हैं।” इसके बाद एसओ ने अमरजीत के परिवार से वीडियो बनाने वाले का नाम पूछा, और अमरजीत बताते हैं, “हमने कहा साहब, हम नहीं जानते कि वीडियो किसने बनाया, पर पुलिस ने हमें ही डांटना शुरू कर दिया।”

बाद में पुलिस ने उन्हें अस्पताल भिजवाया, जहां उनका इलाज शुरू हुआ। इसके बाद पुलिस ने गांव में पूछताछ तो की, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई।

आज भी, शैलेन्द्र यादव और उसके साथी खुलेआम घूम रहे हैं और बार-बार धमकी दे रहे हैं। अमरजीत कहते हैं, “शैलेन्द्र यादव कहता है कि तुम्हारा कुछ नहीं बिगड़ा, अबकी बार मार कर गायब कर देंगे। यह सुनकर मन में हर वक्त डर बना रहता है। हमें हर जगह जाने में डर लगता है, रात को नींद नहीं आती।”

टूटना और बिखरना नियती बन गई है

अमरजीत की आखिरी उम्मीद अब न्याय की है। वह कहते हैं, “हम गरीब लोग हैं, लेकिन हमें भी इंसाफ चाहिए। जिस तरह की संगठित हिंसा और यातना हमारे साथ हुई है, उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए। हमें कानून का राज चाहिए, ताकि ये लोग सजा पाएं और हमें भी न्याय मिले।”

यह अमरजीत की आवाज़ उन तमाम परिवारों का प्रतिनिधित्व करती है जो गरीबी और दबंगों के अत्याचार का सामना कर रहे हैं, और जिन्हें पुलिस की अनदेखी के कारण डर और बेबसी में जीना पड़ रहा है।

जिंदगी बन गई है डर व दर्द का पर्याय

सोनभद्र में आदिवासी परिवारों के लिए पुलिसिया दमन और डर ने जिंदगी को एक ऐसा सिलसिला बना दिया है, जहां हर दिन वे सोचते हैं कि आज कौन सी मुसीबत सिर पर आने वाली है। इन्हें न्याय पाने की उम्मीद होती है, लेकिन पुलिस का रवैया उनके मन में हमेशा डर ही पैदा करता है।

कुछ लोग तो अपनी जमीनें छोड़कर दूसरी जगह जाने के लिए मजबूर हो चुके हैं, क्योंकि यहां उनकी हिफाजत के लिए कोई खड़ा नहीं होता। इनकी आवाज को दबा देने का काम प्रशासन खुद कर रहा है, जिससे इन्हें अब किसी पर भी विश्वास नहीं रहा।

सोनभद्र के एक छोटे से गांव पावी की रहने वाली लाली देवी की कहानी में एक मां का दर्द और गरीब परिवार की बेबसी झलकती है। 64 वर्षीय लाली देवी अपने परिवार की देखभाल के लिए मेहनत मजदूरी करती हैं। उनके पति का देहांत हो चुका है, और चार बेटों और एक बेटी के बीच उनका परिवार सीमित साधनों के साथ अपना गुजर-बसर करता है।

21 जनवरी 2020 की वह काली रात थी। रविवार का दिन था, जब रात के लगभग 8 बजे अचानक उनके घर के बाहर तीन पुलिस की गाड़ियां आकर रुकीं। लगभग 16-17 पुलिसकर्मियों को देखकर लाली देवी घबरा गईं। इससे पहले कि वह कुछ समझ पातीं, पुलिस ने उनके घर को चारों ओर से घेर लिया और अंदर घुसकर तलाशी लेने लगी।

घर के सामान को अस्त-व्यस्त कर दिया, और बिना कुछ पाए भी घर का सारा सामान बिखेर दिया। “साहब, आप क्या ढूंढ़ रहे हैं?” लाली देवी ने सवाल किया, लेकिन किसी ने कोई जवाब नहीं दिया। आंसुओं से उनकी आंखें भर आईं, और आसपास के लोग उन्हें इस हालत में देखकर हैरान थे।

तभी पुलिसवालों ने उनसे पूछा, “कन्हैया कहां है?” लाली देवी ने हिचकते हुए बताया कि उनका बेटा मजदूरी करने रॉबर्ट्सगंज गया है। पुलिस ने उन्हें और उनके परिवार को गालियां देते हुए आरोप लगाया कि उनका बेटा चोरी में शामिल है।

उनके छोटे बेटे को धक्के मारते हुए गाड़ी में बैठा लिया और कहा कि जब कन्हैया घर लौटे तो उसे थाने भेज देना। लाली देवी का दिल धक-धक करने लगा, लेकिन वह कुछ नहीं कर सकीं।

कुछ देर बाद जब कन्हैया काम से घर लौटा और अपनी मां से पूरी बात सुनी, तो उसने कहा, “मां, मैंने कोई चोरी नहीं की है। मैं थाने जा रहा हूं।” लाली देवी उसे रोकने का प्रयास करने लगीं, लेकिन बेटा बोला, “घबराओ मत, मां। पुलिस हमें कुछ नहीं करेगी।”

रात में दो पुलिसकर्मी मोटरसाइकिल पर आए और कन्हैया से पूछा, “तुमने गांव के भजन के घर चोरी की है?” बेटा बोला, “साहब, हमने कोई चोरी नहीं की है।” पुलिस ने उसे थाने चलने के लिए कहा। लाली देवी ने भी साथ चलने का निवेदन किया, लेकिन पुलिसवालों ने उन्हें रोक दिया।

टूटे आसियानें

कन्हैया को लेकर वे थाने चले गए, और लाली देवी का दिल टूट गया जब उसने अपने बेटे की आंखों में आंसू देखे। उस रात घर में खाना नहीं बना, पूरी रात परिवार ने बेचैनी में बिताई।

सुबह होते ही लाली देवी और उनकी बहू माया थाने पहुंचीं, लेकिन पुलिस ने उनसे मिलने नहीं दिया। उन्होंने थाने में बैठकर इंतजार किया, पर पुलिसवालों ने कोई जवाब नहीं दिया। अंततः एसओ ने किसी पुलिसकर्मी को भेजकर बेटे से मुलाकात करवाई।

बेटा टूटे मन से रोता हुआ बोला, “मां, मैंने कोई चोरी नहीं की है,” और यह सुनकर लाली देवी की आंखों से आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे। लेकिन तभी पुलिस ने उनका हाथ पकड़कर थाने से बाहर निकाल दिया।

एसओ ने कहा, “आधार कार्ड लाओ, तभी छोड़ा जाएगा।” लाली देवी जल्दी से घर जाकर बेटे का आधार कार्ड लेकर लौटीं, लेकिन पुलिसवालों ने चार बजे तक का समय दे दिया। इंतजार करते-करते पुलिस ने कहा कि बेटे पर हेरोइन का केस लग गया है और उसे कोर्ट में पेश किया जाएगा।

यह सुनते ही लाली देवी के पांव तले ज़मीन खिसक गई। वे रोती-बिलखती घर लौटीं, और पुलिस ने उनके बेटे को कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया।

अब उनकी स्थिति यह है कि चार महीने गुजर चुके हैं, परिवार ने बेटे की जमानत के लिए अपने गहने बेच दिए, उधार लिया, लेकिन अभी तक उनकी रिहाई नहीं हो सकी है। लाली देवी के अनुसार, “हर रात हम यही सोचते हैं कि हमारे बच्चे का क्या होगा। उसके बच्चे भी हर दिन पूछते हैं, ‘पापा कब आएंगे?’ सोचते-सोचते नींद नहीं आती।”

लाली देवी न्याय की गुहार लगा रही हैं। उनका कहना है, “जिन पुलिसवालों ने मेरे बेटे पर झूठा हेरोइन का केस लगाकर उसे जेल भेज दिया है, उन पर कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए ताकि हमें न्याय मिल सके। हमारे परिवार को फिर से खुशियां मिलें।”

यह कहानी उस असहाय मां की पुकार है, जो अपने बेटे को निर्दोष साबित करने और उसके लिए न्याय पाने के लिए संघर्ष कर रही है।

उस वक्त लगा, जैसे हम बड़े अपराधी हों

उत्तर प्रदेश पुलिस का चरित्र, विशेष रूप से सोनभद्र के आदिवासी क्षेत्रों में, एक कठोर और दमनकारी तंत्र के रूप में उभरकर सामने आता है। गरीब, वंचित आदिवासी परिवारों पर पुलिस का अत्याचार यहां आम बात हो गई है, जहां न केवल उन्हें न्याय से वंचित रखा जाता है, बल्कि उनके साथ अमानवीय व्यवहार किया जाता है।

भूख और खाकी वर्दी की चिंता

पुलिस की यह कार्यप्रणाली न केवल उनके अधिकारों का हनन करती है, बल्कि समाज के कमजोर वर्ग के प्रति उनकी बेरुखी और संवेदनहीनता को भी रेखांकित करती है।

पुलिस आदिवासियों पर छोटे-छोटे अपराधों का झूठा आरोप लगाकर उन्हें फर्जी मुकदमों में फंसाने का काम करती है। उदाहरण के लिए, पुलिस कई बार आदिवासी युवाओं को नशे के मामलों में फंसा देती है, जिनमें उनके पास से कथित तौर पर गांजा या अन्य नशीले पदार्थ मिलने का दावा किया जाता है।

इस प्रकार के आरोप न केवल उनकी आजादी को छीनते हैं, बल्कि उनके सामाजिक और आर्थिक जीवन को भी तहस-नहस कर देते हैं।

सोनभद्र जिले के छोटे से गांव पापी की माया देवी (30) की आंखों से आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे हैं। पति कन्हैया लाल और तीन छोटे बच्चों के साथ मजदूरी करके जैसे-तैसे गुजर-बसर करने वाली माया देवी की जिंदगी एक झटके में बदल गई।

अपने घर के सामने उदास बैठी माया

21 जनवरी 2024 की रात थी, समय करीब 8 बजे का। अचानक, उनके घर के सामने पुलिस की तीन गाड़ियां आकर रुकीं। 16-17 पुलिसकर्मियों को देखकर माया देवी का दिल घबराने लगा, और घर के बाहर लोगों की भीड़ जुटने लगी।

माया देवी कहती हैं, “उस वक्त ऐसा लग रहा था जैसे हम कोई बड़े अपराधी हों। पुलिसवालों ने हमारे घर को चारों ओर से घेर लिया और बिना कुछ बताए हमारे घर में घुसकर तलाशी लेने लगे।

उन्होंने घर का सारा सामान इधर-उधर फेंक दिया, चावल, दाल सब बिखेर दिया, कपड़े भी उठा-उठाकर बाहर फेंक दिए। हमारे बच्चे रो-रोकर बेहाल हो रहे थे, और हमें समझ नहीं आ रहा था कि आखिर हो क्या रहा है।”

पुलिसवाले बार-बार कन्हैया का नाम लेकर गालियां दे रहे थे। माया देवी ने डरते-डरते पूछा, “साहब, क्या बात है?” इस पर पुलिसवाले भद्दी गालियां देते हुए बोले, “तुम्हारा पति चोर है, उसने चोरी की है।” 

माया देवी ने सफाई देने की कोशिश करते हुए कहा, “साहब, हम लोग मेहनत-मजदूरी करके अपना पेट पालते हैं, हमारे पति वैसे नहीं हैं,” लेकिन पुलिस ने उनकी एक भी बात सुनने से इनकार कर दिया और बार-बार कन्हैया के बारे में पूछते रहे।

माया देवी ने बताया कि उनके पति काम के सिलसिले में रॉबर्ट्सगंज गए थे। यह सुनकर पुलिस ने उनके देवर अरुण को पकड़ लिया और धक्के मारते हुए गाड़ी में बैठा लिया। जाते-जाते पुलिसवालों ने कहा कि जब कन्हैया घर लौटे, तो उसे थाने भेज देना। “हमारे हाथ-पांव कांप रहे थे, कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें,” माया देवी ने कहा।

थाने में अपमान और बेबसी

गिरफ्तार किए गए आदिवासी युवाओं और महिलाओं के साथ थानों में जिस तरह का बर्बर व्यवहार किया जाता है, वह पुलिस के असंवेदनशील रवैये को दर्शाता है। गिरफ्तार किए गए आदिवासियों से जबरन झाड़ू-पोछा करवाना, मारपीट करना, भूखा-प्यासा रखना, और अमानवीय अत्याचार करना पुलिस की आम कार्यशैली बन गई है।

यह क्रूरता आदिवासी समाज के प्रति उनकी नफरत और उनके प्रति हिकारत भरी सोच को उजागर करती है।

शाम को जब कन्हैया काम से लौटे और उन्हें सारी बात पता चली, तो वे घबरा गए। तभी दोबारा पुलिस वाले घर पर आ पहुंचे और बोले, “चलो, साहब ने बुलाया है, तुम पर चोरी का आरोप है।” कन्हैया ने डरते-डरते कहा, “साहब, हमने कोई चोरी नहीं की है,” लेकिन पुलिसवालों ने उन्हें अपने साथ ले जाने का आदेश दे दिया।

माया देवी पीछे-पीछे थाने तक गईं, लेकिन पुलिस ने उन्हें साथ नहीं जाने दिया, कहकर कि “पूछताछ के बाद उन्हें छोड़ देंगे।”

पीड़ित कन्हैया की पत्नी, पुलिस उत्पीड़न का दंश

पूरी रात माया देवी और उनका परिवार बेचैनी में जागता रहा। सुबह 7 बजे माया देवी अपनी सास के साथ थाने पहुंचीं, लेकिन पुलिस ने उन्हें पति से मिलने नहीं दिया। थाने में बैठकर उन्होंने अपने पति से मिलने की गुहार लगाई, तब कहीं जाकर उन्हें मिलने की अनुमति मिली।

जैसे ही माया देवी ने अपने पति को देखा, वह रो रहे थे। यह देखकर माया देवी और उनकी सास की भी आंखें भर आईं। “हमारा कलेजा फटने लगा। हमारे पति बोले, ‘हमने कोई चोरी नहीं की है, हमें फंसाया जा रहा है।’ इतना कहकर वह फिर से रोने लगे,” माया देवी ने बताया।

इसके बाद, पुलिस ने माया देवी और उनकी सास को थाने से बाहर निकाल दिया। जब माया देवी ने एसएचओ साहब से विनती की कि उनके पति निर्दोष हैं, उन्हें छोड़ दिया जाए, तो उन्होंने आधार कार्ड लाने को कहा। यह सुनकर माया देवी को लगा कि शायद उनके पति को रिहाई मिल जाएगी। जल्दी से आधार कार्ड लेकर लौटीं, लेकिन पुलिस ने दोपहर 4 बजे आने को कहा।

चार बजे का इंतजार करते-करते जब थाने में पहुंचीं, तो एक पुलिसकर्मी ने गाली देकर उन्हें गेट से बाहर जाने को कहा और धमकी दी कि अगर दोबारा आईं तो उन्हें भी बंद कर दिया जाएगा।

रोते-बिलखते थाने से बाहर निकलीं, और तभी पता चला कि उनके पति पर हेरोइन रखने का आरोप लगाकर उन्हें कोर्ट में पेश किया जा रहा है। माया देवी के शब्दों में, “ऐसा लगा जैसे हमारे पैरों तले से जमीन खिसक गई हो।”

पुलिस ने उनके पति को कचहरी ले जाकर रॉबर्ट्सगंज जेल भेज दिया। माया देवी और उनके परिवार ने पति को छुड़ाने के लिए जेवर तक बेच दिए, ब्याज पर पैसा लिया, लेकिन तीन महीने गुजर गए, और अब तक जमानत नहीं मिली है। 

“हर रात यही सोचते हैं कि हमारे बच्चों का क्या होगा। बच्चे पूछते हैं कि पापा कब आएंगे, और मेरे पास कोई जवाब नहीं होता,” माया देवी ने बताया।

कैसे संवरेगा इन बच्चों का भविष्य

माया देवी न्याय की गुहार लगा रही हैं। “हमें लगता है कि हमारे पति को झूठे आरोपों में फंसाया गया है। हम चाहते हैं कि पुलिस की इस कार्रवाई की निष्पक्ष जांच हो, ताकि हमें न्याय मिले और हमारे पति को रिहाई मिले।” माया देवी का कहना है कि उनका परिवार आज भी इस डर में जी रहा है कि कहीं फिर से पुलिस उनके घर न आ धमके।” 

यह कहानी उन तमाम परिवारों की है जो पुलिस की अनदेखी और दबाव का शिकार हो रहे हैं। माया देवी की यह गुहार एक ऐसे समाज की तस्वीर है, जहां गरीब और कमजोर लोगों की आवाज़ अक्सर दबा दी जाती है।

लॉकअप में भूखे-प्यासे बंद रखा

स्थानीय दबंगों और पुलिस के बीच आपसी सांठगांठ आदिवासियों के लिए एक बड़ा अभिशाप बन गई है। दबंग पुलिस के संरक्षण में आदिवासियों की जमीनों पर कब्जा कर लेते हैं और विरोध करने पर उन्हें पुलिसिया उत्पीड़न का शिकार बनाया जाता है।

कई बार, जब आदिवासी परिवार पुलिस में शिकायत करने जाते हैं, तो पुलिस न केवल उनकी बातें अनसुनी कर देती है, बल्कि दबंगों के साथ मिलकर उन्हें धमकियां देती है या फिर झूठे केस में फंसाने की धमकी देती है।

सोनभद्र जिले के गांव के कराही के मुरली राम के जीवन में 10 जनवरी 2024 की वह शाम एक ऐसा दर्द लेकर आई, जिसकी टीस आज भी उनके दिलों में ताजा है। 48 वर्षीय मुरली राम का जीवन मजदूरी करते हुए अपने परिवार का पालन-पोषण करने में बीत रहा था। उनके दो बेटे और एक बेटी हैं, और जैसे-तैसे काम-धंधे से घर का खर्च चलाते थे।

उस दिन दोपहर तीन बजे अचानक पुलिस की दो गाड़ियां उनके घर आ पहुंचीं। मुरली राम उस वक्त काम पर थे, जब उनकी बेटी सुनिता ने घबराते हुए फोन पर बताया कि पुलिस घर पर आ गई है और उन्हें बुला रही है। मुरली राम काम छोड़कर घर पहुंचे, जहां पुलिसवालों ने उनसे छोटे बेटे महेंद्र के बारे में पूछताछ शुरू कर दी।

उन्होंने बताया कि महेंद्र अपनी मां के एक्सीडेंट के बाद बनारस के अस्पताल में उसकी देखभाल के लिए गया है। लेकिन पुलिसवालों ने उनकी बात को अनसुना कर दिया और कहा, “अपनी गाड़ी लेकर बनारस चलो, कुछ पूछताछ करनी है।”

मुरली राम पुलिस के साथ गाड़ी लेकर चल दिए, लेकिन अस्पताल पहुंचते ही पुलिस ने उनसे कहा कि वह अपने बेटे को बुलाएं। महेंद्र का फोन बंद था, और मुरली राम उसे नहीं बुला पाए। पुलिस ने फिर कहा कि उन्हें नौगढ़ थाने ले जाकर छोड़ दिया जाएगा।

थाने पहुंचते ही पुलिस ने उनसे गाड़ी बाहर खड़ी करवाकर गाड़ी की चाबी, कागजात और मोबाइल ले लिए। इसके बाद उन्हें थाने के अंदर ले जाकर लॉकअप में बंद कर दिया। मुरली राम का मन डर और बेचैनी से भरा हुआ था, उन्होंने घबराकर पूछा, “साहब, मुझे क्यों बंद कर रहे हैं?” लेकिन किसी ने उनकी बात का जवाब नहीं दिया।

रातभर मुरली राम भूखे-प्यासे लॉकअप में बैठे रहे। ठंड से कांपते हुए उन्होंने पूरी रात अपनी पत्नी के ऑपरेशन के लिए अस्पताल जाने की चिंता में बिताई, जो सत्तर हजार रुपए की जरूरत थी।

पूरी रात उनके मन में यही ख्याल आता रहा कि आखिर पुलिस उन्हें क्यों परेशान कर रही है। सुबह होते-होते करीब 11 बजे उन्होंने ठंड से बचने के लिए पुलिसवालों से धूप में बैठने की अनुमति मांगी।

थोड़ी देर धूप में बैठते ही मुरली राम ने देखा कि थाने के पीछे से एक बड़ी प्लास्टिक की बोरी में कुछ लाकर पुलिस की जीप में रखा गया। फिर एक लड़के को भी जीप में बैठाया गया और साथ में मुरली राम की गाड़ी भी ले गए। करीब एक घंटे बाद पुलिस की जीप वापस आई, और मुरली राम ने देखा कि उनकी गाड़ी में वही बोरी रखी हुई थी। बाद में पता चला कि उसी बोरी में गांजा रखा गया था।

पुलिस ने उन्हें सुपुर्दगी के कागज पर हस्ताक्षर करवा कर छोड़ दिया, लेकिन उनकी गाड़ी और मोबाइल जब्त कर लिए गए। मुरली राम का मन बेचैन था, उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि आखिर पुलिस उनके साथ इतना बड़ा अन्याय क्यों कर रही है।

जब घर पहुंचे, तो उन्हें पता चला कि उनकी गाड़ी में 21 किलो गांजा रख कर गाड़ी को सीज कर दिया गया है। यह सुनकर मुरली राम का होश उड़ गया। उनकी पत्नी अस्पताल में जिंदगी और मौत से जूझ रही थी, और यहां पुलिस ने उन पर झूठा आरोप लगाकर उनकी जिंदगी बर्बाद कर दी।

लगातार मिल रही धमकियां

कुछ दिनों बाद पुलिस ने फिर से उनके घर पर छापा मारा और धमकी दी कि अगर उनके बेटे महेंद्र को थाने पर पेश नहीं किया गया, तो उन्हें और उनके बड़े बेटे को भी गिरफ्तार कर लिया जाएगा। मजबूर होकर मुरली राम ने 23 जनवरी 2024 को अपने बेटे महेंद्र को कोर्ट में आत्मसमर्पण करवाया।

पुलिस ने उस पर चोरी के आरोप में केस दर्ज कर उसे जेल भेज दिया। तीन महीने बाद हाई कोर्ट से उसे जमानत मिली, लेकिन 20 दिन बाद ही पुलिस ने गैंगस्टर एक्ट लगाकर फिर से उसे जेल भेज दिया।

मुरली राम बताते हैं, “पुलिस ने मेरे बेटे की पूरी जिंदगी बर्बाद कर दी है। उसकी शादी का डेट 20 अप्रैल को पड़ा था, लेकिन पुलिस ने उसके सपने और भविष्य दोनों को खत्म कर दिया। जब बेटे से मिलने जाते हैं तो वह रोते हुए कहता है, ‘पापा, जल्दी निकालो नहीं तो मेरी जान चली जाएगी।

यहां बहुत काम करवाते हैं, मार-मार कर झाड़ू और नाली साफ करवाते हैं। जब फुर्सत मिलती है तो ईंट मसाला का काम करवाते हैं।’ यह सुनकर दिल बैठ जाता है।”

यहां भूख सबसे बड़ा मुद्दा है, और दूसरा पुलिसिया जुल्म

मुरली राम के मन में अब सिर्फ एक ही उम्मीद है, न्याय की। वे कहते हैं, “हम गरीब मजदूर हैं, हमारी सिर्फ यही मांग है कि इस मामले की निष्पक्ष जांच हो और दोषी पुलिसवालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई हो। हमें न्याय और सुरक्षा मिले, ताकि हमारा परिवार फिर से सुकून से रह सके।”

दरोगा ने कहा, ‘समझौता कर लो

सोनभद्र जिले के नगर पंचायत रेनूकोट के विजय शंकर के लिए 9 फरवरी 2024 का दिन ऐसा था, जिसे वह शायद कभी भुला नहीं पाएंगे। 32 वर्षीय विजय शंकर का जीवन मजदूरी करते हुए अपने परिवार का भरण-पोषण करने में बीतता है। उनका परिवार मेहनत से अपनी रोजमर्रा की जरूरतें पूरी करता है। लेकिन उस दिन जो उनके परिवार के साथ हुआ, उसने उनकी ज़िंदगी में खौफ और असहायता का एक नया अध्याय जोड़ दिया।

शुक्रवार का दिन था। अमृत लाल यादव, नीरज यादव और शैलेन्द्र सिंह जैसे दबंग लोग अपने साथ कुछ मजदूर और मिस्त्री लेकर विजय शंकर के घर के सामने आ गए और सड़क पर अवैध बाउंड्री बनाने लगे। विजय शंकर की मां विलासी देवी ने पुलिस को 112 नंबर पर फोन करके सूचित किया। थोड़ी देर बाद पुलिस की चार सदस्यीय टीम वहां पहुंची और काम रुकवा दिया।

दूसरे दिन 10 फरवरी को सुबह 10 बजे वही लोग फिर से मजदूरों के साथ आए और काम शुरू कर दिया। विजय शंकर और उनके परिवार ने विरोध किया और कहा, “लेखपाल और पटवारी को बुलाकर बाउंड्री का नाप करवा लीजिए, लेकिन हमारा रास्ता क्यों बंद कर रहे हैं?” 

दबंगों को यह सुनकर गुस्सा आ गया, वे गाली-गलौज करने लगे। उन्होंने विजय शंकर की मां को धक्का देकर जमीन पर गिरा दिया और मारपीट करने लगे। उनकी मां की साड़ी खींच दी और उनकी पिटाई की, साथ ही विजय शंकर को भी लाठी-डंडों और घूंसों से मारा।

विजय शंकर की आवाज सुनकर उनकी बहन, बेटी, और पत्नी भी बाहर आ गए, लेकिन दबंगों ने उन्हें भी नहीं छोड़ा और सबको बुरी तरह पीट डाला। विजय बताते हैं, “उस वक्त ऐसा लग रहा था कि हमारी जान बच नहीं पाएगी। हम चीख-चीख कर रो रहे थे, लेकिन उन लोगों को कोई रहम नहीं आया।”

आदिवासियों के ऐसे हैं मकान

कुछ देर बाद पड़ोसी राना जी और संजय श्रीवास्तव पुलिस चौकी पर जाकर मदद की गुहार लगाने लगे, लेकिन पुलिस ने टालमटोल करते हुए देर कर दी। जब दबंग चले गए, तब पुलिस आई।

विजय और उनके परिवार ने हाथ जोड़कर पुलिस से विनती की, लेकिन पुलिस ने सिर्फ वीडियो की बात पूछी कि वीडियो किसने बनाया। विजय ने बताया कि पड़ोसियों ने वीडियो बनाया था।

पुलिस ने विजय शंकर और उनके परिवार को चौकी पर बुलाया। विजय की मां, जिनकी हालत गंभीर थी, चौकी पर हाथ जोड़कर खड़ी हो गईं। लेकिन पुलिस ने उनकी एक न सुनी और उन्हें घर वापस भेज दिया।

बाद में, किसी ने घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया, जिसके बाद शाम को विजय और उनके परिवार को फिर से थाने जाना पड़ा। वहां एसएचओ और सीओ ने उनसे पूरी बात सुनी, लेकिन कार्रवाई के नाम पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया।

बाद में जब मुख्यमंत्री को टैग कर वीडियो पोस्ट किया गया, तब जाकर एफआईआर दर्ज की गई। इसके बाद अगले दिन पुलिस विजय की मां को मेडिकल के लिए म्योरपुर अस्पताल ले गई और एक्स-रे करवाया। सीओ साहब भी आए, घटना स्थल का निरीक्षण किया और कहा, “चौकी पर जाकर मामले को देख लो।”

चौकी पर पहुंचने पर दरोगा ने कहा, “समझौता कर लो।” विजय और उनकी मां ने समझौता करने से मना कर दिया। विजय बताते हैं, “हमारी मां की बुरी हालत थी, और हमें समझौते की बात कही जा रही थी। हम गरीब आदिवासी लोग हैं, पर हमारे साथ न्याय होना चाहिए।”

विजय का परिवार अब भी खौफ में जी रहा है। दबंग खुलेआम घूम रहे हैं और परिवार को जान से मारने की धमकियां दे रहे हैं। विजय कहते हैं, “पुलिस हीलाहवाली कर रही है, और दबंगों की गिरफ्तारी तक नहीं हुई है। हम लोग डरे हुए हैं, काम-धंधे पर भी जाने से डर लगता है।”

विजय की बूढ़ी मां, जिन्होंने खुद को बचाने की हर कोशिश की, वे भी इस अन्याय से टूट चुकी हैं। विजय कहते हैं, “हम गरीब आदिवासी हैं, हमने किसी का कुछ नहीं बिगाड़ा, फिर भी हमारे साथ ऐसा अन्याय हो रहा है। हम सिर्फ न्याय चाहते हैं, ताकि हमारा परिवार फिर से सुरक्षित महसूस कर सके।”

पेट की चिंता

दबंगों का हौसला और बढ़ा

सोनभद्र जिले के रेनुकूट नगर पंचायत के पीछे, एक छोटे से गांव मुर्दवा की रहने वाली विलासी देवी आज भी उस खौफनाक दिन को भूल नहीं पा रही हैं। 54 वर्षीय विलासी देवी और उनके परिवार ने उस दिन जो भय, पीड़ा और अपमान सहा, उसकी टीस आज भी उनकी आंखों में बसी है।

मजदूरी से अपने परिवार का पेट पालने वाली इस महिला का परिवार 10 फरवरी 2024 को दबंगों के जुल्म का शिकार बना, और दुर्भाग्य से पुलिस की बेरुखी ने उनकी उम्मीदों को और भी तोड़ दिया।

शनिवार का दिन था, सुबह के करीब 11 बजे। अमृत लाल यादव, नीरज यादव और शैलेन्द्र सिंह जैसे दबंग अपने साथ 10-12 लोगों का गिरोह बनाकर आए और उनके घर के सामने की सड़क पर कब्जा करने लगे। ये वही सड़क है, जिससे गुजर कर विलासी देवी का परिवार और आसपास के लोग अपने कामकाज के लिए आना-जाना करते हैं।

विलासी देवी और उनका बेटा विजय शंकर उन्हें समझाने के लिए आगे बढ़े और कहा, “भैया, ये हमारे आने-जाने का रास्ता है, इसे बंद मत कीजिए।” लेकिन उनकी इस बात पर दबंगों ने न केवल गालियां देना शुरू किया, बल्कि उन्हें धक्के मार कर जमीन पर गिरा दिया।

विलासी देवी की साड़ी खींची गई, और उनके बेटे और बहू पर भी बुरी तरह से हमला किया गया। विलासी देवी की आवाज कांपती हुई बताती है, “उस वक्त ऐसा लगा कि आज हम बच नहीं पाएंगे। उनके हाथों में लाठी-डंडे और सब्बल थे। हमारी जान की कोई कीमत नहीं थी उनके लिए।”

उनकी चीख-पुकार सुनकर गांव के एक लड़के ने पूरी घटना का वीडियो बना लिया। दबंगों ने मारपीट के बाद अपनी गाड़ी में बैठकर थाने का रुख किया। किसी तरह, डर और घबराहट के बीच, विलासी देवी, उनका बेटा विजय और बहू थाने पहुंचे। वहां पहुंचकर जब उन्होंने दरोगा साहब से इंसाफ की गुहार लगाई तो उन्हें उम्मीद थी कि पुलिस उनकी मदद करेगी।

लेकिन जिस बात का डर था, वही हुआ। पुलिस ने उनकी बात सुनने के बजाय उन्हें डांट-फटकार कर घर लौट जाने को कहा। विलासी देवी और उनके परिवार ने हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाते हुए कहा, “साहब, हमारी बात तो सुनिए, हम गरीब लोग हैं, हमारे पास न पैसा है, न कोई ताकत।” लेकिन पुलिस ने उनकी ओर ध्यान नहीं दिया।

विलासी देवी कहती हैं, “रातभर दर्द से बिलखते रहे, आंखों से आंसू रुक ही नहीं रहे थे। हमारी लाचारी पर किसी को तरस नहीं आया। जैसे-तैसे रात बिताई और सुबह फिर से लपपरी थाने पहुंचे।” वीडियो पहले ही वायरल हो चुका था, पर एसओ साहब ने कोई कार्रवाई करने के बजाय केवल यह पूछने लगे कि वीडियो किसने बनाया?

चौकी पर पहुंचने के बाद भी उन्हें बस सवालों का सामना करना पड़ा, लेकिन कार्रवाई के नाम पर कुछ नहीं हुआ। उस दिन सीओ और एसओ गांव में पूछताछ के लिए आए, पर इसके बाद फिर कोई कदम नहीं उठाया गया। इसका असर यह हुआ कि दबंगों का हौसला और भी बढ़ गया।

शैलेन्द्र यादव, जो सबसे ज्यादा उग्र था, अब खुलेआम धमकियां देता फिर रहा है। उसने कहा, “तुम्हारा कुछ नहीं बिगड़ा, इस बार मार कर गायब कर देंगे।”

विलासी देवी कहती हैं, “उनकी धमकियों से हम हर वक्त डर के साए में जी रहे हैं। रात को नींद नहीं आती, दिन में काम पर जाने का मन नहीं करता। हर वक्त यही डर लगा रहता है कि ये लोग कब क्या कर बैठें। पुलिस का सहारा लेकर ये लोग अब और भी बेखौफ हो गए हैं।”

विलासी देवी और उनका परिवार अब न्याय के लिए दर-दर भटक रहा है। उनका कहना है, “हम गरीब आदिवासी लोग हैं। हमने किसी का क्या बिगाड़ा था कि हमारे साथ ऐसा अन्याय हुआ? हमारी बूढ़ी मां, बेटियां और बेटे, किसी को नहीं बख्शा इन लोगों ने। हम बस यही चाहते हैं कि हमारे साथ जो संगठित हिंसा हुई, उसकी निष्पक्ष जांच होनी चाहिए।

(विजय विनीत बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं। सोनभद्र से उनकी ग्राउंड रिपोर्ट)

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