कश्मीर: बंदूक लेकर शांति की खोज कब तक

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“गर फिरदौस बर-रूये जमी अस्त, हमी अस्तो हमी अस्तो हमी अस्त’” अर्थात धरती पर अगर कहीं स्वर्ग है, तो यहीं है, यहीं है, यहीं है। चैदहवीं सदी के मशहूर शायर, विद्वान और संगीतकार अमीर खुशरो ने कश्मीर की खूबसूरती के बारे में यह फारसी शेर लिखा था जो सैकड़ों साल बाद आज भी उतना ही प्रासंगिक, तरोताजा और लोकप्रिय इसलिये है क्योंकि कश्मीर वास्तव में धरती का स्वर्ग है।

हालांकि अलगाववाद और आतंकवाद के कारण हुये कत्लोगारद ने धरती के इस सबसे खूबसूरत हिस्से को लहूलुहान अवश्य किया लेकिन अब खून के वे धब्बे धीरे-धीरे मिट रहे हैं और कश्मीर का पर्यटन अपनी पटरी पर आने को है। लेकिन देखना यह है कि सीमापार के दहशतगर्दी के प्रायोजकों को कश्मीर की वादियों की रौनक कितना बर्दास्त होती है। फौज या सुरक्षाबल दहशतगर्दी को खामोश तो कर सकते हैं मगर शांति लौटाना बंदूकों का काम नहीं। शांति लोगों को डरा कर नहीं बल्कि दिल जीत कर बहाल होती है।

चिनार के पेड़ों पर लौट रहा जीवन

आमतौर पर कश्मीर में वसंत मार्च में शुरू होता है, लेकिन कभी-कभी मौसम की स्थिति, ऊंचाई और स्थलाकृति जैसे विभिन्न कारकों के कारण इसमें देरी हो सकती है। कश्मीर घाटी अधिक ऊंचाई पर स्थित है और इसके परिणाम स्वरूप, बर्फ पिघलने और जमीन को गर्म होने में अधिक समय लगता है। उस पर भी ठंड का मौसम सामान्य से अधिक समय तक रहता है, तो वसंत की शुरुआत में देरी हो जाती है।

पड़ों पर निकलती नई पत्तियां

बसंत ऋतुओं का राजा है और कश्मीर में तो बसन्त के कहने ही क्या? शीत ऋतु में कंकाल की तरह निर्जीव खड़े चिनार, अखरोट और पौपलर के पेड़ों पर इन दिनों पत्तियां फूट पड़ी हैं। कश्मीर की शान चिनार के पेड़ों पर नयी नाजुक पत्तियों के प्रकट होते जाने से जीवन के संचार के साथ ही रौनक झांकने लगी है। सेब, खुमानी, प्लम के पेड़ मनोहारी फूलों से लद चुके हैं। खास कर लाल फूलों से लदे चेरी के पेड़ कश्मीर की खूबसूरती पर चार चांद लगा रहे हैं। पहाड़़ों के बीच समतल घाटी में दूर-दूर तक फैले सरसों के खेतों पर बसंत पूरी तरह छाया हुआ है।

डल झील पर लौटने लगी रौनक

कश्मीर की ग्रीष्मकालीन राजधानी श्रीनगर प्रदेश के सर्वाधिक आतंकवाद प्रभावित शहरों में गिना जाता रहा है। यह शहर वर्षों से बमबारी, गोलीबारी और ग्रेनेड हमलों सहित कई आतंकवादी हमलों का स्थल रहा है। श्रीनगर के अलावा कश्मीर के अन्य आतंकवाद प्रभावित कस्बों और शहरों में अनंतनाग, पुलवामा, बारामूला और कुपवाड़ा शामिल हैं। कश्मीर का सबसे बड़ा आकर्षण श्रीनगर स्थित डल झील है। यह झील 18 किलोमीटर क्षेत्र में फैली हुई तथा तीन दिशाओं से पहाड़ियों से घिरी हुई है।

यह जम्मू-कश्मीर की दूसरी सबसे बड़ी झील है। कश्मीर घाटी की अनेक झीलें आकर इसमें मिलती हैं। अगर आप इन दिनों श्रीनगर की डल झील के किनारे टहलें तो सब कुछ सामान्य लगता है। झील पर तैरते शिकारे और हाउस बोट, किनारे के ढाबे, लाॅज और होटल सामान्य लगते हैं। ढावों में भीड़ नजर आने लगी है। हालांकि झील के चारों ओर सुरक्षा बलों की कड़ी निगरानी है लेकिन इन दिनों जो थोड़े से पर्यटक नजर आते हैं उनमें खौफ नजर नहीं आता।

डल झील

शंकराचार्य मंदिर भी है पर्यटन का केन्द्र

अब पर्यटन सीजन शुरू हो रहा है इसलिये उम्मीद की जानी चाहिये कि इसी तरह बेखौफ देशी-विदेशी पर्यटकों का रेला डल झील, मुगल गार्डन या शालीमार बाग, हजरतबल दरगाह, शंकराचार्य मंदिर, जामा मस्जिद, परी महल और डाचीगांम नेशनल पार्क में नजर आयेगा। श्रीनगर केवल प्रदेश की राजधानी के कारण नहीं बल्कि इसकी नैसर्गिक सुन्दरता, समृद्ध संस्कृति एवं रौनकदार बाजारों के लिये भी विख्यात है।

श्रीनगर शहर में ही शालीमार बाग स्थित है जो कि अपने चिनार के पेड़ों, फव्वारों और सुंदर फूलों की क्यारियों के लिए प्रसिद्ध है। उद्यान अपनी अनूठी वास्तुकला के लिए भी जाना जाता है, जो मुगल और फारसी शैलियों का मिश्रण है। उद्यान एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल है जो हर साल हजारों पर्यटकों को आकर्षित करता है। इसे यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया है। लगभग 31 एकड़ में फैले इस बाग को 1619 में मुगल सम्राट जहांगीर द्वारा बनाया गया था।

पर्यटकों की बाट जोह रही वुलर झील

इन दिनों उत्तरी कश्मीर के बांदीपोरा जिले में स्थित डल झील से भी कहीं बड़ी वुलर झील भी पर्यटकों के लिये पलक पावड़े बिछाये हुयी है। इसे ऐशिया की ताजे पानी की दूसरी सबसे बड़ी झील माना जाता है। झील की अधिकतम गहराई 14 मीटर और इसका आकार 30-260 वर्ग किलोमीटर से बताया गया है। लेकिन कुछ श्रोतों ने इसका आकार कहीं अधिक बताया है। इसका आकार मौसम के अनुसार बढ़ता घटता रहता है। इसकी श्रोत झेलम नदी के साथ ही पहाड़ियों पर जमीं बर्फ भी है। गर्मियां बढ़ते जाने से पहाड़ियों पर जमीं बर्फ पिघलने की गति बढ़ जाती है और झील का आकर भी बढ़ता जाता है।

वुलर लेक रिसाॅर्ट

जम्मू-कश्मीर पर्यटन विभाग ने यहां एक शानदार रिसाॅर्ट विकसित कर रखा है जिसमें इन दिनों रंग बिरंगे फूल इसके सौदर्य को चार चांद लगा रहे हैं। इस झील में अनेक प्रकार की मछलियां पाई जाती हैं, जैसे कि रोहू, कातल, मास और साहरा आदि। ये मछलियां स्थानीय आबादी की आजीविका का साधन भी हैं। सब्जी के लिये कमल की डंठलें भी इससे निकाली जाती हैं जो कि काफी महंगी बिकती हैं। यह झील बगुला, सारस, चकवा और अन्य पक्षियों का आवास है। यहां पर आप नीलकंठ, शिकरा, रानी शहजादी, सारस, बगुला, गणेश, कलिंग आदि पक्षियों को देख सकते हैं। यह कई प्रवासी पक्षियों का मौसमी ठिकाना भी है।

मुस्लिम बाहुल्य प्रदेश में हिन्दू नदी मधुमती

कश्मीर केवल झीलों, दरगाहों, बागों और लैंडस्केप के लिये ही नहीं बल्कि इसकी झेलम और चेनाब जैसी दरियाओं के लिये भी विख्यात है। ये नदियां पीने और सिंचाई के लिये जल देने के साथ ही बिजली उत्पादन में भी मददगार हैं। इनकी मछलियां काफी स्वादिस्ट होती हैं जो कि स्थानीय आबादी को आजीविका प्रदान करती हैं। प्रमुख नदियों में झेलम चेनाब और सिन्धु हैं जो कश्मीर के हिमालय से निकल कर पाकिस्तान चली जाती हैं। सतलज भी सिन्धु में मिल कर पाकिस्तान चली जाती है।

मधुमती नदी

इन नदियों के किनारे भी कई दर्शनीय स्थल हैं। नदी न हिन्दू होती है और न मुसलमान। उसका जल किसी से भेदभाव नहीं करता। फिर भी झेलम की सहायक नदी मधुमती है, जो कि अपने आप में कोतूहल जगाती है। क्योंकि जहां 99 प्रतिशत लोग मुस्लिम हों वहां एक दरिया का हिन्दू नामकरण कोतूहल तो जगायेगा ही। आजादी के बाद मुस्लिम राजनीतिक शासकों ने भी इस नदी का नाम बदलने की जरूरत नहीं समझी। इसके किनारे भी जम्मू-कश्मीर पर्यटन विभाग ने एक शानदार रिसाॅर्ट बनाया हुआ है। लेकिन इस नदी में नहाना-कपड़े धोना प्रतिबंधित है। क्योंकि इसके बर्फीले पानी के तेज बहाव में लोग बह कर जानें गंवा चुके हैं।

खामोशी को शांति समझना भूल

मैदानी भारत में गर्मियां शुरू हो जाने के साथ ही घाटी में पर्यटक नजर आने लगे हैं। अनुच्छेद 370 की धारा 35-ए हटाये जाने और सूबे को विभाजित कर सीधे केन्द्र सरकार के नियंत्रण में लिये जाने के बाद धीरे-धीरे दहशतगर्दी में काफी कमी साफ नजर आ रही है। पिछले साल भी मुझे कश्मीर जाने का अवसर मिला। इस बार हालात पिछले साल से भी काफी बदले हुये नजर आ रहे थे। इस बार हम बिना सुरक्षा के रास्ते में तथा पर्यटन स्थलों पर फोटो खिंचवाते रहे।

राहुल गांधी के जाने के बाद लाल चैक पर इन दिनों निर्माण कार्य चल रहा है। हमने भी वहां बेखौफ फोटो खिंचवाये। उस चौक के व्यस्त बाजार में आप भी निश्चिन्त घूम सकते हैं। सुदूर क्षेत्र होने के कारण मधुमती रिसाॅर्ट में अवश्य सुरक्षा के घेरे में रहना पड़ा। उस रिसाॅर्ट में स्थानीय युवकों को रोजगार मिला हुआ है।

लाल चौक

लेकिन यह दावा करना सही नहीं है कि धारा 370 के हटने के बाद हालात सामान्य हो गये। पुलिस तथा सुरक्षा बलों की कदम-कदम पर भारी मौजूदगी दहशतगर्दी के अस्तित्व का अहसास फिर भी करा रही है। कश्मीर का अलगाववाद और आतंकवाद पाकिस्तान प्रायोजित जरूर है लेकिन भारत के हालात भी इस स्थति के लिये कम जिम्मेदार नहीं।

जब देश के सबसे बड़े और सत्ताधारी दल द्वारा भारत को केवल हिन्दुओं का देश होने का अहसास दिलाया जायेगा और देश पर हिन्दू पार्टी का शासन होने की धौंस दी जाती रहेगी तथा सरकार का रवैया एक वर्ग को उकसाने का रहेगा तो उसका विपरीत असर देश के उस हिस्से पर होना स्वाभाविक ही है जिसमें दूसरे धर्म के लोगों का बहुमत है। कश्मीर में स्थाई शांति बंदूक की नोक से नहीं बल्कि लोगों का दिल जीत कर ही बहाल की जा सकती है।

(जयसिंह रावत वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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