कितनी जरूरी है स्कूलों में प्रार्थना?

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“स्कूल और शिक्षा के मुख्य उद्देश्यों के ख़िलाफ़ हैं, प्रार्थना। प्रार्थना से शुरुआत करना ग़लत है, यह बच्चों को ग़लत दिशा में ले जाती है। जीवनभर बच्चा अपेक्षा करेगा कि कोई भगवान अवतार लेगा और आकर हमारा भला करेगा। प्रार्थना एक तरह से शिक्षा में षड्यंत्र है”- यह कहना है बाल कहानीकार कमल जी का। बता दें कि कमल जी यूट्यूब पर ‘गाता जाये नन्हापन’ चैनल चलाते हैं जिस पर बच्चों के लिये तकरीबन 150 कहानियां संकलित हैं।

झारखंड के एक सरकारी स्कूल में प्रार्थना को लेकर उपजे विवाद पर प्रतिक्रिया देते हुये कमल जी भक्त पर संवेदना को वरीयता देने की दलील देते हुए कहते हैं कि सुबह-सुबह संगीत के साथ दिन की शुरुआत करना बहुत अच्छी अनुभूति होती है। ज़्यादातर होना यह चाहिये और हम यही करते भी थे जब हम दिगंतर या बोध के स्कूल में बच्चों के साथ काम करते थे। कुछ अच्छे बाल गीत, अच्छे चेतना गीत हम गाते थे संगीत के साथ, तो पूरे दिन की अच्छी शुरुआत हो जाती थी। इसका उद्देश्य बच्चों का भाषा विकास करना भी होता है। 

बाक़ी कला की अनुभूति तो होती ही है। हम लोग कोई प्रार्थना नहीं करते थे। बातचीत करते थे कि प्रार्थना क्यों की जाये? जबकि जो कुछ करना है हमीं को करना है। हम किसी से क्यों मांगे। ऐसी अपेक्षा क्यों करें कि कोई और आकर हमारा भला करेगा। कमल जी आखिर में कहते हैं कि मेरी व्यक्तिगत राय है कि प्रार्थनाओं पर बातचीत होनी चाहिये। स्वतंत्र छोड़ देना चाहिये जिसको गाना हो गाये। लेकिन स्कूल चूंकि ऐसी जगह है जहां हर गतिविधि इसलिये की जाती है कि बच्चा उससे कुछ न कुछ सीखे। तो हिसाब से सुबह-सुबह बाल गीत, चेतना गीत गाया जाना चाहिये जिनका अर्थ बच्चों को पता होना चाहिये।

कमल

बता दें कि झारखंड के गढ़वा जिले के कोरवाडीह गांव के राजकीय उत्क्रमित मध्या विद्यालय के बारे में 4 जुलाई को तमाम अख़बारों में सांप्रदायिक एजेंडे के तहत ख़बर चलाई गई और दावा किया गया कि गांव के मुसलमानों ने स्कूल पर इस बात के लिये दबाव बनाया कि स्कूल में होने वाली प्रार्थना हाथ जोड़कर नहीं बल्कि हाथ बांधकर हो। साथ ही यह भी दावा किया गया कि स्कूल में ‘दया कर दान विद्या का..’ प्रार्थना को बदलकर  ‘तू ही राम है, तू ही रहीम है, तू करीम कृष्ण खुदा हुआ..’ प्रार्थना करवाया जा रहा है।

गौरतलब है कि ‘तू ही राम है’ एक सर्व धर्म प्रार्थना है। लोक जिंदिस ने जब राजस्थान में काम किया तो उन्होंने कहा कि प्रार्थना को एकदम से खत्म नहीं कर सकते तो उन्होंने एक सर्वधर्म प्रार्थना बनाई थी। तू ही राम है, तू ही रहीम है, तू करीम कृष्ण खुदा। बहुत सारे स्कूलों में ये आज प्रार्थना के रूप में गाया जाता है। 

ख़बर मीडिया में आने के बाद भाजपा विधायक भानु प्रताप शाही ने राज्य के शिक्षा मंत्री जगरनाथ महतो से मुलाकात करके सांप्रदायिक तुष्टीकरण का आरोप लगाया। इसके बाद सरकार की ओर से गढ़वा जिला के शिक्षा पदाधिकारी कुमार मयंक भूषण ने स्कूल का दौरा किया और स्कूल प्रशासन को निर्देश दिया कि हाथ बांधकर नहीं बल्कि हाथ जोड़कर  प्रार्थना करना है। 

स्कूल के प्रिंसिपल और इसी गांव के निवासी युगेश्वर राम मीडिया से बताते हैं कि प्रार्थना में थोड़ा सा अंतर था क्योंकि कई सारे बच्चे हाथ जोड़ कर नहीं करते थे। हम लोग प्रयास किए कि हाथ जोड़कर करें, लेकिन बच्चे नहीं माने। फिर हमें लगा कि बच्चे ऐसे ही करना चाहते हैं, तो फिर हमने कुछ नहीं कहा। चाहे हाथ जोड़ कर करें या हाथ बांध कर, कैसे भी हो, लेकिन नाम तो भगवान का ही लिया जा रहा है।

स्कूली शिक्षा और सरकारी शिक्षकों के लिये काम कर रहे शिक्षक, साहित्यकार, व ‘शैक्षिक दख़ल’ पत्रिका के संपादक महेश चंद्र पुनेठा पूरे प्रकरण पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहते हैं कि प्रार्थना इस रूप में भी नहीं होनी चाहिये स्कूल में क्योंकि एक विद्यालय में अलग-अलग धर्म के लोग पढ़ रहे हैं। और जो प्रार्थना होगी वो किसी न किसी एक धर्म के अनुसार ही होगी। सर्वधर्म वाला भाव तो वैसे भी कम देखने को मिलता है। महेश पुनेठा जी प्रार्थना सभा की जगह मॉर्निग असेंबली (सुबह की सभा) जैसा कुछ होने पर बल देते हुए कहते हैं- प्रार्थना की जगह सांस्कृतिक गतिविधियां हो सकती हैं। गीत संगीत और समूह गान हो सकता है। जनगीत, बालगीत हो सकते हैं।

महेश पुनेठा

महेश पुनेठा जी स्कूली प्रार्थनाओं की राजनीति और मनोविज्ञान को स्पष्ट करते हुये कहते हैं – “प्रार्थना शुरुआत से ही बच्चों को अवैज्ञानिकता और भाग्यवाद की ओर ले जाती है। कुछ मांगने वाले याचक की अवस्था में बच्चे रहते हैं। तो शुरु से ही उनके दिमाग में ये बातें बैठ जाती हैं कि देने वाला तो कोई ऊपरवाला है और उसी की कृपा से मिलेगा। और यदि उसकी कृपा होगी तो बेहतर होगा नहीं तो नहीं होगा। इस तरह से प्रार्थना बच्चों के अंदर अवैज्ञानिकता का बीजारोपण करता है। तो प्रार्थनायें बोनी ही नहीं चाहिये। 

महेश पुनेठा जी प्रार्थना को उबाऊ गतिविधि करार देते हुए कहते हैं- बाल मनोविज्ञान की दृष्टि से देखें तो प्रार्थना जैसी चीजों में बच्चों का मन नहीं लगता है। बहुत उबाऊ क़िस्म की गतिविधि होती है ये। और रोज आये खड़े हुये और एक ही प्रार्थना रोज गा रहे हैं। और उससे जोड़ने का कोई भाव नहीं पैदा होता।बच्चे भागते हैं प्रार्थना सभा से। कई बार बच्चे प्रार्थना सभा से बचने के लिये जानबूझकर देरी से स्कूल जाते हैं। बच्चों की रुचि और बाल मनोविज्ञान को ध्यान में रखते हुए भी बहुत अच्छी गतिविधि नहीं है।

बाबूगंज, फूलपुर, इलाहाबाद स्थित सीता राम सिंह इंटरमीडिएट कॉलेज के पूर्व प्रधानाचार्य व वर्तमान प्रबंधक वंश बहादुर सिंह बताते हैं कि उनके स्कूल में पहले  -‘ हे जगत्राता विश्व विधाता ‘ प्रार्थना होती थी, बाद में स्कूल ने ‘वह शक्ति हमें दो दयानिधे’ प्रार्थना एडॉप्ट कर ली। वंश बहादुर जी कहते हैं हिंदू बच्चे हमेशा हाथ जोड़कर प्रार्थना गाते थे, जबकि मुस्लिम बच्चे हाथ बांधकर प्रार्थना गाते थे। हर धर्म की कुछ अलग मान्यताएं होती हैं उसके लिये बच्चों को थोड़ी सी स्वतंत्रता देना स्कूल का दायित्व है। इस्लाम में बुतपरस्ती हराम है, ये बहुत आम बात है और हमें पता होना चाहिये, और उसका सम्मान करना चाहिये। कोई स्कूल सिर्फ़ अनुशासन के नाम पर मुस्लिम बच्चों को सरस्वती प्रतिमा पूजन के लिये बाध्य नहीं कर सकता। 

शहीद असगर मेमोरियल गर्ल्स कॉलेज कनौजा ख़ुर्द की छात्रा रही शालिनी बताती हैं कि उनका स्कूल मुस्लिम बाहुल्य था और वहां पर ‘वह शक्ति हमें दो दयानिधे’ प्रार्थना होती थी। जिसमें मुस्लिम बच्चे हाथ बांधकर और हिंदू बच्चे हाथ जोड़ कर भाग लिया करते थे। वहां कभी किसी हिंदू बच्चे को हाथ जोड़ने से नहीं रोका गया। बावजूद इसके कि वो गांव मुस्लिम बाहुल्य था। और स्कूल का प्रबंधन व प्रशासन कार्य उन्हीं के हाथों में था। 

बता दें कि 28 अक्तूबर, 2013 को बॉम्बे हाईकोर्ट की जस्टिस अभय श्रीनिवास ओका और जस्टिस रेवती मोहिते डेरे की बेंच ने बौद्ध धर्म मानने वाले एक शिक्षक संजय साल्वे के मामले में यह फ़ैसला देते हुये कहा था कि स्कूल में किसी को भी हाथ जोड़ने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। हालांकि प्रार्थना गाते समय स्कूल का अनुशासन मानना बाध्यकारी है, लेकिन हाथ जोड़ना नहीं।

(जनचौक के विशेष संवाददाता सुशील मानव की रिपोर्ट।)

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