लखनऊ में किसानों की जमीन की लूट के लिए नगर निगम और विकास प्राधिकरण के अधीन लाए जा रहे दूर-दराज के गांव

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उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा लखनऊ विकास प्राधिकरण को बदलकर लखनऊ महानगर विकास प्राधिकरण करने का फैसला लिया गया है। इसमें 1100 से अधिक राजस्व ग्रामों को शामिल किया जायेगा।

लखनऊ के सरोजिनी नगर, मलिहाबाद, काकोरी, बक्शी का तालाब, गोसाईगंज, मोहनलालगंज खंड विकास क्षेत्रों के सभी गांव और बाराबंकी के तीन ब्लॉक निदुरा, देवा और बांकी एवं एक नगर पालिका क्षेत्र नवाबगंज को इसमें शामिल किया जाएगा।

इस विस्तार के बाद 1051 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल वाले लखनऊ विकास प्राधिकरण के क्षेत्रफल में करीब तीन गुना वृद्धि होगी और यह 3091 वर्ग किलोमीटर तक विस्तारित कर दिया जाएगा।

इससे पहले सरकार ने अधिसूचना जारी करके लखनऊ से सटे 6 जिलों को मिलाकर उत्तर प्रदेश राज्य राजधानी क्षेत्र बनाने की घोषणा की थी। लखनऊ, हरदोई, सीतापुर, उन्नाव, रायबरेली और बाराबंकी के 27826 वर्ग किलोमीटर एरिया को समेटकर इसे बनाया जायेगा।

इसका संचालन उत्तर प्रदेश राज्य राजधानी क्षेत्र विकास प्राधिकरण करेगा। जिसके अध्यक्ष मुख्यमंत्री, उपाध्यक्ष मुख्य सचिव ओर लखनऊ कमिश्नर पदेन सचिव होंगे। इस प्राधिकरण में 6 जिलों के डीएम, विकास प्राधिकरण के प्रतिनिधि, राज्य व केन्द्र के कई विभाग प्रतिनिधि आदि इसके सदस्य होंगे।

सरकार के इन फैसलों के बाद पूरे लखनऊ के ग्रामीण क्षेत्र में बड़े पैमाने पर किसानों की जमीन की लूट शुरू हो गई है। एलडीए ने लैंड़ बैंक बनाने की घोषणा की है और इसके लिए लैंड पूलिंग हो रही है। यही नहीं इससे भूमि उपयोग में बदलाव होगा, हर बनने वाले मकान का नक्शा एलडीए से पास करना अनिवार्य होगा और बाह्य व आंतरिक डेवलपमेंट चार्जेस मकान के मालिक को देना होगा।

किसानों से जमीन छीनने के लिए उन पर चौतरफा हमला हो रहा है। किसानों को कम से कम जमीन का मुआवजा दिया जाए इसके लिए पिछले दस सालों से लखनऊ में जमीनों के सर्किल रेट में परिवर्तन नहीं किया गया है।

पिछली बार 15 दिसंबर 2014 को लखनऊ का सर्किल रेट परिवर्तित किया गया था। सर्किल रेट को चर्चित शब्दावली में कलेक्ट्रेट रेट या गाइडेंस वैल्यू भी कहते हैं।

उत्तर प्रदेश के स्टांप ड्यूटी एवं रजिस्ट्रेशन चार्ज के डायरेक्टर द्वारा सर्किट रेट तय किया जाता है, जो जमीन की न्यूनतम कीमत होती है। इसके जरिए जमीन पर सरचार्ज का कैलकुलेशन किया जाता है। इससे कम दर पर जमीन की खरीद फरोख्त नहीं की जा सकती है।

2014 में किए गए सर्किल रेट परिवर्तन के अनुसार चिनहट क्षेत्र में 14000 रूपए प्रति स्क्वायर मीटर, सुल्तानपुर रोड और शहीद पथ पर 25000 रूपए स्क्वायर मीटर, गोमती नगर क्षेत्र में 35000 रुपए स्क्वायर मीटर और गोमती नगर के ही विशाल खंड, विजय खंड, विनीत खंड आदि में 33500 स्क्वायर मीटर जमीन की कीमत तय की गई थी।

भूमि अधिग्रहण पुनर्वास और पुनर्स्थापना में उचित मुआवजा और पारदर्शिता अधिकार अधिनियम 2013 जो 26 सितंबर 2013 को पूरे देश में लागू किया गया।

उसमें साफ तौर पर कहा गया है कि ग्रामीण क्षेत्र में सर्किल रेट का चार गुना और शहरी क्षेत्र में सर्किल रेट का 2 गुना मुआवजा दिया जाएगा। सर्किल रेट परिवर्तन न होने के कारण गांव में किसानों को जमीन का उचित मुआवजा प्राप्त नहीं हो रहा है।

गणितीय आंकडों के अनुसार 1 बिस्वा जमीन में 126.81 वर्ग मीटर जमीन होती है। सुल्तानपुर रोड पर सर्किल रेट 25000 रूपए प्रति वर्ग मीटर है, जिसके अनुसार एक बिस्वा जमीन की कीमत 3170250 रूपए बनती है।

भारतीय किसान श्रमिक जनशक्ति यूनियन के अध्यक्ष मान सिंह यादव के अनुसार गोसाईगंज क्षेत्र में जमीन की कीमत 2 करोड़ रूपया बिस्वा है लेकिन सर्किल रेट कम होने के कारण 35 लाख से लेकर 40 लाख रुपए कीमत पर एलडीए इन जमीनों का अधिग्रहण करने में लगा है।

गोसाईगंज के युवा अधिवक्ता क्षितिज सिंह के अनुसार सर्किल रेट कम होने के कारण सरकार को बड़े पैमाने पर स्टांप शुल्क और रजिस्ट्री शुल्क में अरबों रुपए का नुकसान हो रहा है।

उनके अनुसार सर्किल रेट कम होने से जो भी रजिस्ट्री रियल स्टेट वाले या एलडीए वाले कराते हैं, उसमें जमीन की कीमत इससे कम दिखाते हैं। यदि सर्किल रेट बढ़ता तो किसानों को उचित मुआवजा भी मिलता और सरकार के भी राजस्व में वृद्धि होती।

लखनऊ के किसानों का कहना है कि 2013 के कानून का भी प्रशासन द्वारा पालन नहीं किया जा रहा है। इसकी धारा 10 के अनुसार बहु-फसली जमीनों के अधिग्रहण पर रोक लगाई गई है। बावजूद इसके ग्रामीण इलाकों में ऐसी उपजाऊ जमीनों का जबरन अधिग्रहण हो रहा है।

अधिग्रहण के पहले जनसुनवाई करने और 80 प्रतिशत भूमि मालिकों की सहमति अनिवार्य रूप से लेने के नियमों का भी खुले आम उल्लंघन किया जा रहा है।

सुल्तानपुर रोड पर बसाई गई अंसल, गोल्फ सीटी जैसी टाउनशिप और तमाम ऐसी ही अन्य टाउनशिप में औने-पौने दाम पर किसानों से जमीन ली जा रही है और प्रशासन जमीन लेने वाले रियल स्टेट खिलाड़ियों के पक्ष में मजबूती से खड़ा है।

अमौसी हवाई अड्डे को अडानी को दिए जाने के बाद अडानी द्वारा आसपास के गांव की जमीन हवाई अड्डे विस्तार के नाम पर छीनने की कोशिश हो रही है। यहां के किसानों को बिना नोटिस दिए अडानी के लोग उनकी जमीनों पर बाड़ाबंदी लगाने और कब्जा करने में लगे हुए हैं जिसका प्रबल विरोध किसान कर रहे हैं।

सभी लोग जानते हैं कि मोदी सरकार ने 2014 में सत्ता में आते ही 2013 के भूमि अधिग्रहण कानून को कारपोरेट घरानों के लिए बदलने का प्रयास किया था। जिसको किसानों के राष्ट्रव्यापी प्रबल विरोध के बाद वापस लेना पड़ा था। सरकार ने ऊपर से तो इसे वापस ले लिया लेकिन जहां भी उसकी राज्य सरकार है वह इन संशोधनों को लागू करने में लगी हुई है।

जमीन की हो रही इस लूट के खिलाफ लखनऊ में किसानों की गोलबंदी लगातार बढ़ रही है। जगह-जगह किसान मजदूर पंचायतें और सम्मेलन, संवाद आयोजित कर रहे हैं।

किसानों का कहना है कि सरकार तत्काल लखनऊ में सर्किट रेट को बढ़ाने की कार्रवाई करें, बहुफसली जमीनों का अधिग्रहण बंद करें, हर अधिग्रहण के पूर्व गांव में जन-सुनवाई आयोजित करे और जिन गांवों में किसान जमीन देने के लिए तैयार न हों, वहां अधिग्रहण न करे।

जमीन को बचाने के इस आंदोलन में किसानों की बढ़ती संख्या आने वाले समय में लखनऊ में बड़े किसान आंदोलन का संकेत दे रही है।

(दिनकर कपूर ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट के प्रदेश महासचिव हैं।)

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