बामुश्किल भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों जिनमें मुसलमानों ने भारत देश में सबसे ज्यादा शहादत देकर अंग्रेजों से मुल्क को गुलामी की बेड़ियों से आज़ाद कराया था। जिनकी कुर्बानियों की संख्या इंडिया गेट पर आज भी देखी जा सकती है। अनेकों शहादत के ग़म से परेशान हो बापू ने सत्य, अहिंसा और सत्याग्रह को अपना हथियार बनाया और हिंसा को परास्त करते हुए अंग्रेजों से स्वतंत्र भारत प्राप्त किया। जो दुनिया के गुलाम देशों के लिए एक मिसाल बना।
उन्होंने ही आज़ाद भारत का कुशल नेतृत्व पंडित जवाहरलाल नेहरू को सौंपा था। देश ने इस बीच पूर्ण मान-सम्मान के बीच अपनी अहमियत दुनिया में ज़ाहिर की थी। दुनिया के बड़े लोकतंत्र के साथ भारत को ससम्मान विकासशील राष्ट्रों की सूची में दर्ज कराया।
कांग्रेस की उसी मेहनत पर सन् 2014 में संघ ने झूठ, छल और छद्मावरण से कांग्रेस पर भ्रष्टाचार के आरोप मढ़कर भाजपा को सत्तारूढ़ किया। ये वही लोग थे जिन्हें दलित-पिछड़ों से सख्त नफ़रत, महात्मा गांधी के बराबरी के सिद्धांत से थी। इसी तरह मुसलमान तो इनके लिए अछूत से भी बदतर थे।
इसीलिए सरकार बनाते ही इन पर प्रहार तेज हो गए जबकि इससे पहले 1992 में ये राम मंदिर की आड़ लेकर बाबरी का विध्वंस कर चुके थे तथा उसमें देश की बहुसंख्यक जनता के ध्रुवीकरण की बुनियाद रख चुके थे। उसके बाद 2002 के नरसंहार ने इन्हें कथित हिंदुओं का हीरो बना दिया। फिर राम मंदिर, हिंदू राष्ट्र के बाद इनका कारवां अब सनातन तक आ पहुंचा है।
अपने को सनातन धर्म का चोंगा पहनाकर दो बार इनकी जीत ने अमेरिका जैसे मुल्क को भी प्रभावित कर लिया। इतनी मिठास बढ़ी कि हाऊडी मोदी से लेकर नमस्ते ट्रम्प हुआ।
आज वही ट्रम्प भारत को आंखें दिखा रहा है। उसने सख्त आव्रजन कानून बनाकर वहां रहने वाली सबसे बड़ी भारतीय आबादी को परेशान कर रखा है। अवैध प्रवासी मानकर अमेरिका ने सेना के मालवाहक विमान से जो 104 भारतीय को बेड़ियों में जकड़े भारत के अमृतसर में उतारा है, उनमें एक महिला भी है।
इनमें गुजरात और हरियाणा के सबसे अधिक लोग हैं। बताया जा रहा है कि ये सब बेरोजगार लोग हैं जो नौकरी की तलाश में ठेकेदार को बड़ी राशि देकर वहां पहुंचाए गए। ठेकेदारों से अब तक कोई पूछताछ नहीं हुई। ये किसके एजेंडे के तहत काम कर रहे थे। उसका खुलासा होना चाहिए।
गुजरात माडल राज्य से इस तरह बेरोजगारों का जाना मोदी की पोल खोल रहा है। कहां गया मोदी का दो करोड़ लोगों को प्रतिवर्ष नौकरी देने का वादा। यह तो होना ही था। अभी वापसी हेतु 18000 की लिस्ट पूरी हो गई। जबकि 7.5 लाख की सूची बनाने की ख़बर है।
बहरहाल, भारत देश की मर्यादा का ख़्याल अमेरिका ने नहीं रखा अफसोसनाक तो यह है कि मोदी जी ने अमेरिका से इस गंदी हरकत पर दो टूक बात भी नहीं की। विदेश मंत्री तो अमेरिका की हां में हां मिलाते रहे। इतने बड़े देश के प्रधानमंत्री से बेहतर तो कोलम्बियाई और मैक्सिको के राष्ट्राध्यक्ष हैं जिन्होंने डोनाल्ड ट्रम्प को लानत भेजी तथा साफ़ आईना दिखा दिया।
भारत सरकार के मुखिया तो सिर्फ अमेरिकी राष्ट्रपति से मिलने के लिए बेताब दिख रहे हैं ताकि उनकी सारी मांगें कबूल कर आएं और अपनी नज़दीकी और यारी का झूठा ढिंढोरा पीट सकें। भले देश आर्थिक गुलामी में जकड़ता जाए।
हम सभी जानते हैं कि अमेरिकी मूल-निवासी कई कबीलों, राज्यों, और जाति-समूहों से मिलकर बने हैं। ठीक भारत की तरह यहां भी कोई शुद्ध रक्त नहीं है। हम तो विभिन्न प्रजातियों के समागम वाले लोग हैं। इसलिए इन दो राष्ट्रों में रक्त शुद्धता की बात करना बेमानी है।
विदित हो अमेरिका की खोज के लिए यूरोपीय देशों स्पेन, पुर्तगाल, ब्रिटेन, फ़्रांस, और नीदरलैंड ने अभियान चलाए। खोज के बाद इन यूरोपीय देशों ने अमेरिका पर अपना कब्जा कर लिया। तब वहां के मूल निवासी जिन्हें कोलम्बस ने रेड इंडियन कहा उनके और यूरोपीय लोगों के बीच टकराव और समायोजन हुआ। युद्ध भी हुए।
वास्तव में जिसे हम अमेरिका कहते हैं वह समूचा महाद्वीप है उसमें एक राष्ट्र संयुक्त राज्य अमेरिका है जिसके राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प हैं। आज अमेरिका महाद्वीप के कनाडा, मैक्सिको, पनामा, कोलम्बिया जैसे पड़ोसी राष्ट्र ट्रम्प की आव्रजन नीतियों का जमकर विरोध कर रहे हैं।
भारत में भी कमोवेश यही स्थिति है तिब्बत, पाकिस्तान, नेपाल, म्यांमार और बांग्लादेश के लोग बड़ी संख्या में यहां मौजूद हैं। भारत की सनातन संस्कृति में शरणागत को शरण देने की रीति नीति का अब तक पालन होता रहा है। डोनाल्ड ट्रम्प के इस कठोर रवैए के बाद अब भारत ट्रम्प को भले कुछ ना कह पाए लेकिन वह शरणागत शरणार्थियों को अब शायद ही सुकून से रहने दें।
भारत के लिए निश्चित ही यह निर्णय यदि होता है तो त्रासद होगा। इससे पड़ोसी देशों से भारत के आयात निर्यात प्रभावित होंगे। इतनी विशाल आबादी वाला देश क्या अमेरिका की तरह सब जगह घुटने टेकता रहेगा। क्योंकि आज के दौर में भारत एकला चलो रे नहीं कह सकता।
उसे यदि देश को इन प्रतिबंधों की बेड़ियों से बचना है तो हिम्मत और साहस के साथ मजबूती से खड़े होकर मानवता के हित में फैसले लेने होंगे। यदि जनता की बर्बादी के लिए अंग्रेजों की तरह फिर गद्दारी होती है तो शायद ही मुल्क ज़िंदा रह पाएगा।
देशहित में, मानवता के सम्मान के खिलाफ हमारे देश का इस तरह झुकना गांधी के देश का घोर अपमान ही नहीं समूलनाश का कारक बनेगा। यदि मोदी जी के अमेरिका प्रवास के बाद ये स्थितियां निर्मित होती हैं तो सतत जमकर सत्याग्रह आंदोलन की सबको तैयारी रखनी चाहिए वरना बेड़ियों की जकड़न बढ़ती ही जाएगी।
(सुसंस्कृति परिहार लेखिका और एक्टिविस्ट हैं।)
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