वाराणसी/ नई दिल्ली। मोदी सरकार के कार्यकाल में गांधी संस्थाओं में आरएसएस के स्वयंसेवकों को बैठाने, गांधीवादियों को बाहर निकालने का काम तो केंद्र में भाजपा की सरकार बनने के बाद से ही शुरू हो गया था। लेकिन अब गांधीवादी संस्थाओं पर पुलिस बल का इस्तेमाल करके कब्जा किया जा रहा है। मोदी राज में सरकारी संस्थाएं ही भू-माफिया का रोल निभा रही हैं। ताजा मामला वाराणसी के सर्व सेवा संघ का है, जिसकी जमीन और भवन पर इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र ने कब्जा कर लिया है।
गांधी विद्या संस्थान पर अब इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र का कब्जा
15 मई, 2023 को अपराह्न 3.45 बजे राजघाट, सर्व सेवा संघ परिसर स्थिति गांधी विद्या संस्थान की लाइब्रेरी का चार्ज इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र को दे दिया गया। वाराणसी के कमिश्नर कौशलराज शर्मा के आदेश पर मजिस्ट्रेट, पुलिस अधिकारी और काफी संख्या में पुलिस बल की मौजूदगी में सर्वसेवा संघ के पदाधिकारियों को धमका कर भवन का ताला तोड़ दिया गया। इस दौरान इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र, वाराणसी सेंटर के रीजनल डायरेक्टर भी मौजूद थे। गांधीवादी कार्यकर्ताओं ने प्रशासन की इस हरकत का विरोध किया तो उन्हें धमकाकर चुप करा दिया गया।

गांधीवादी कार्यकर्ता और लोकतंत्र सेनानी रामधीरज कहते हैं कि “कमिश्नर द्वारा अचानक इस संस्थान को कब्जा कर एक सरकारी संस्थान को देना अनुचित, अन्यायपूर्ण और अवैधानिक है। गांधी विद्या संस्थान का मामला माननीय उच्च न्यायालय, इलाहाबाद में लंबित है। इसलिए कमिश्नर का गांधी विद्या संस्थान को किसी दूसरी संस्था को सौंपना विधि विरुद्ध है।”
वह कहते हैं कि संस्थान को लेकर 2007 में अपर जिला जज दशम, वाराणसी के निर्देश के अनुसार कमिश्नर वाराणसी की अध्यक्षता में एक संचालन कमेटी बनायी गयी थी। इस कमेटी को संस्थान का संचालन करना था, लेकिन कमेटी द्वारा आज तक न तो कोई बैठक बुलाई गयी और न ही इस संदर्भ में सर्व सेवा संघ को कोई सूचना दी गयी। 15 मई को अचानक ही कमिश्नर ने इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र को पुस्तकालय सौंपने के लिए आदेश निर्गत कर दिया।

रामधीरज कहते हैं कि वाराणसी के कमिश्नर ने फरवरी में एक बैठक बुलाई थी। जिसमें जिला प्रशासन, सर्व सेवा संघ और भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएसएसआर) के डायरेक्टर शामिल थे। कमिश्नर ने कहा कि गांधी विद्या संस्थान काम नहीं कर रहा है इसलिए इसे इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र को दे दिया जाए। मैंने कमिश्नर के इस प्रस्ताव का विरोध किया। उसके बाद फिर कोई बैठक और सूचना सर्व सेवा संघ को नहीं है।
सर्वोदय मंडल से जुड़े सौरभ सिंह कहते हैं कि संस्थान की लगभग ढाई एकड़ जमीन और भवन पर लंबे समय से प्रशासन की गिद्ध दृष्टि लगी हुई हैं। सिर्फ लाइब्रेरी ही नहीं अभी प्रशासन गांधी विद्या भवन के डायरेक्टर आवास और कर्मचारियों के आवास पर कब्जा कर इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के रीजनल डायरेक्टर के लिए कार्यालय और आवास बनाना चाहती है।
क्या है गांधी विद्या संस्थान?
गांधी विद्या संस्थान की स्थापना 1962 में लोकनायक जयप्रकाश नारायण द्वारा किया गया था। इस संस्थान का उद्देश्य गांधी विचार के आधार पर चल रहे कार्यक्रमों का अध्ययन करना और समाज विज्ञान से जोड़ना था। सर्व सेवा संघ ने 30 वर्षों के लिए भवन और जमीन गांधी विद्या संस्थान को लीज पर दिया था। सर्व सेवा संघ से जुड़े गांधीवादी इसके निदेशक होते थे, और यहां रिसर्च, अध्ययन और अध्यापन का कार्य होता था। उच्च शिक्षा विभाग से संस्थान को अनुदान भी मिलता था।

विवाद कब शुरू हुआ?
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ लंबे समय से गांधी संस्थानों में घुसने की कोशिश करता रहा है। 2014 में केंद्र में मोदी के सत्तारूढ़ होने के बाद गांधी संस्थानों में आरएसएस पृष्ठभूमि के लोगों को पदाशीन करने का सिलसिला चल निकला है। लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी के सरकार में भी यह संस्थान आरएसएस और केंद्र सरकार के निशाने पर था। सर्व सेवा संघ से जुड़े सूत्रों का कहना है कि अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में मानव संसाधन विकास मंत्री रहे प्रो. मुरली मनोहर जोशी ने संघ पृष्ठभूमि की कुसुम लता केडिया को यहां प्रोफेसर बनाकर भेजा, वह अपने मूल संस्थान में लेक्चरर थीं। गांधी विद्या भवन के तत्कालीन निदेशक प्रो. रामजी सिंह ( प्रसिद्ध गांधीवादी एवं पूर्व कुलपति) ने इस नियुक्ति का विरोध किया। सन् 2003 में प्रो. रामजी सिंह और कुसुम लता केडिया के बीच आपसी विवाद बहुत तीखा हो गया। चूंकि वह तत्कालीन सरकार की नजदीकी और आरएसएस से जुड़ी थीं, इसलिए उन्होंने संस्था के अस्तित्व से ही खिलवाड़ करना शुरू कर दिया। चूंकि गांधी विद्या संस्थान सर्व सेवा संघ की जमीन पर था, और हर 30 साल बाद उसका नवीनीकरण होना था, कतिपय कारणों से संस्थान का नवीनीकरण नहीं हो सका था, इस बात की भनक लगते ही केडिया ने अपने संपर्कों का लाभ उठाते हुए संस्थान का रजिस्ट्रेशन ही रद्द करा दिया। विवाद बढ़ता गया और 2007 से संस्थान पर ताला लग गया।

रामधीरज कहते हैं कि संस्था के नवीनीकरण के पीछे कोई गंभीर कारण नहीं था। चूंकि यह संस्था सर्व सेवा संघ से लीज पर लिए गए जमीन पर चल रही थी और दोनों के संचालकों में गांधीवादी लोग ही शामिल थे, इसलिए इसकी बहुत जरूरत नहीं समझी गई होगी। दूसरा, यदि संस्थान का रजिस्ट्रेशन रद्द कर दिया गया तो वह जमीन सरकार के पास नहीं सर्व सेवा संघ के पास जायेगी, जो असली मालिक है।
वह कहते हैं कि “गांधी विद्या संस्थान की यह भूमि, भवन व पुस्तकें सर्व सेवा संघ की हैं। संस्थान के बाइलाज के अनुसार सभी चल-अचल संपत्तियां सर्व सेवा संघ को पुन: वापस होनी है। इस संबंध में सर्व सेवा संघ उच्च न्यायालय, इलाहाबाद में वाद दायर किया है, जो विचाराधीन है।”
सर्वोदय मंडल के सौरभ सिंह ने गांधी विद्या संस्थान को गैरकानूनी तरीके से कब्जा करने पर ट्वीट किया तो इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के रीजनल डायरेक्टर अभिजीत सिन्हा ने जवाब दिया कि हम काम न कर रहे संस्थानों का टेकओवर करके उसे सही ढंग से संचालित करते हैं।

पूर्व अध्यक्ष महादेव विद्रोही, व्यापारी और सरकार की मिलीभगत
रामधीरज कहते हैं कि “गांधी विद्या संस्थान की इस दुर्दशा की पीछे सर्व सेवा संघ के पूर्व अध्यक्ष महादेव विद्रोही की भूमिका कम संदिग्ध नहीं है। कोरोना काल में वर्धा में आयोजित एक बैठक में महादेव विद्रोही की जगह पश्चिम बंगाल के चंदन पॉल को अध्यक्ष चुन लिया गया। 6 वर्षों तक सर्व सेवा संघ के अध्यक्ष रहने के बावजूद वह अपने पद से हटना नहीं चाहते थे। उन्होंने उस समय चुनाव का विरोध किया, और कोरोना काल में इतने लोगों के एक साथ इकट्ठा होने के खिलाफ कोर्ट चले गए। उनका मकसद चुनाव रुकवाना था। लेकिन कोर्ट ने कोरोना गाइड लाइन्स का पालन करते हुए चुनाव कराने का आदेश दे दिया। अपने अध्यक्ष काल में महादेव विद्रोही ने वाराणसी के एक व्यवसायी और समाजवादी पार्टी के नेता प्रदीप बजाज को सर्व सेवा संघ में शामिल कर दिया। चुनाव के बाद महादेव विद्रोही ने एक अलग समिति बनाया और आज भी अपने को ट्रस्टी बताते हैं। जबकि सच्चाई यह है कि वह ट्रस्टी पद से इस्तीफा देकर ही अध्यक्ष बने थे और लगातार दो कार्यकाल अध्यक्ष रहे। अब वह फर्जी समिति बनाकर आरएसएस और केंद्र सरकार के इशारे पर सर्व सेवा संघ को कमजोर करने में लगे हैं।”
सर्व सेवा संघ क्या है?
महात्मा गांधी के बलिदान के बाद आचार्य विनोबा भावे के मार्गदर्शन में अप्रैल 1948 में सर्व सेवा संघ का गठन किया गया था। जल्द ही यह देशभर में फैले हुए “लोकसेवकों का एक संयोजक संघ”भी बन गया। इसे अखिल भारत सर्वोदय मण्डल के नाम से भी जाना जाता है। सर्व सेवा संघ का प्रधान कार्यालय महादेव भाई भवन, सेवाग्राम, वर्धा (महाराष्ट्र) में तथा प्रकाशन कार्यालय राजघाट, वाराणसी (उत्तर प्रदेश) में है। वर्ष 1954 में आचार्य धीरेन्द्र मजूमदार संघ के प्रथम अध्यक्ष बने।
वाराणसी में गंगा नदी के तट पर सर्व सेवा संघ का परिसर 8.70 एकड़ में है। यह क्षेत्र राजघाट के नाम से प्रसिद्ध है। उक्त जमीन का मालिक सर्व सेवा संघ है। 15 मई, 1960 को यह जमीन उत्तर रेलवे से खरीदी गई थी। जमीन की बिक्री का दस्तावेज सर्व सेवा संघ के कार्यालय में सुरक्षित है। बहरहाल, दिसंबर 2020 में, सरकार ने जमीन के एक हिस्से को अपने कब्जे में ले लिया है।
सर्व सेवा संघ महात्मा गांधी द्वारा या उनकी प्रेरणा से स्थापित रचनात्मक संस्थाओं तथा संघों का मिलाजुला संगठन है। जिसका उद्देश्य ऐसे समाज की स्थापना करना है, जिसका आधार सत्य और अहिंसा हो, जहां कोई किसी का शोषण न करे और जो शासन की अपेक्षा न रखता हो। यह शान्ति, प्रेम, मैत्री और करुणा की भावनाओं को जाग्रत करते हुए साम्ययोगी अहिंसक क्रांति के लिए स्वतंत्र जनशक्ति का निर्माण तथा आध्यात्मिक और वैज्ञानिक साधनों का उपयोग करना चाहता है।
सर्व सेवा संघ सर्वानुमति से तीन साल के लिए अपना एक अध्यक्ष चुनता है और वह अध्यक्ष संघ का काम चलाने के लिए कम से कम 11 और अधिक से अधिक 25 लोगों की एक प्रबंध समिति गठित करता है, जिसमें से मंत्री, सभामंत्री आदि की नियुक्ति भी अध्यक्ष ही करता है।
(प्रदीप सिंह की रिपोर्ट।)
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