प्रयागराज। महाकुंभ हादसे के 17 घंटे बाद बुधवार शाम करीब साढ़े 6 बजे उत्तर प्रदेश सरकार ने 30 मौतों और 60 लोगों के घायल होने की पुष्टि की। इसके कुछ मिनट बाद सीएम योगी ने भी प्रतिक्रिया दी। वह काफी भावुक दिखे। उन्होंने कहा- 30 के आस-पास मौतें हुई हैं।
मैं इस घटना से बहुत दुखी हूं। मेरी संवेदना सभी मृतकों के परिजन के साथ है। उन्होंने मृतकों के परिजनों को 25-25 लाख की आर्थिक मदद की घोषणा की। न्यायिक जांच के आदेश भी दिए। लेकिन इस पूरी प्रक्रिया में योगी आदित्यनाथ और नरेंद्र मोदी ने जो आपराधिक कृत्य किया है, उसे छुपाने की कोशिश में लगे रहे।
दरअसल, प्रयागराज महाकुंभ में मची भगदड़ और आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक 30 लोगों की मौत और बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं के हताहत होने का यह मामला पहला नहीं है। कुंभ में किसी के आने और न आने का निर्णय उसका स्वयं का होता है।
भीड़ को नियंत्रित करना कानून व्यवस्था का काम है। लेकिन इस बार के महाकुंभ को यादगार बनाकर उसका राजनीतिक लाभ लेने का ताना-बाना बुना गया। सीएम योगी और उनके कैबिनेट मंत्री जगह-जगह जाकर लोगों को महाकुंभ में आने का निमंत्रण दे रहे थे।
आमंत्रितों में अंबानी, अडानी, बिड़ला से लेकर बड़े-बड़े उद्यमी घरानों से लेकर राजनेता, अभिनेता और नौकरशाह तक शामिल रहे। आम जनता को आकर्षित करने के लिए यूपी सरकार रोज प्रिंट और इलेक्ट्रानिक चैनलों को करोड़ों का विज्ञापन दे रहा था। हादसे के बाद गुरुवार पहला दिन था जब योगी सरकार का विज्ञापन अखबारों में नहीं दिखा।
अब आपने आमंत्रण और विज्ञापन से हजारों साल से लगने वाले कुंभ के बारे में ऐसा प्रचार किया कि पहले की अपेक्षा भीड़ बढ़ गई। आम लोगों के मन में भी जिज्ञासा पैदा हुई कि इस डिजिटल कुंभ का आनंद लिया जाए।
लेकिन 10 हजार करोड़ खर्च करने के बावजूद योगी सरकार न तो पहले की तरह व्यवस्था कर पाई और न ही सुरक्षा व्यवस्था। जो व्यवस्था और सुरक्षा की वह सिर्फ वीवीआईपी लोगों के लिए थी।
महाकुंभ के परंपरागत रूप में वीआईपी जैसी कोई व्यवस्था नहीं होती थी लेकिन सरकारी नियंत्रण में इस व्यवस्था को प्रमुखता दिए जाने से अराजकता के हालात बन गए।
महाकुंभ के इतिहास में जाएं तो ब्रिटिश काल और आजादी के बाद लंबे समय तक भीड़ को नियंत्रित करने के पर्याप्त साधन नहीं थे लेकिन आज के दौर में आवागमन एवं संचार की व्यवस्था काफी बेहतर होने के बावजूद जब धर्म के नाम पर राजनीति करने वाली सरकारें खुद भीड़ को बढ़ावा दे रही हों तो भगदड़ को रोकने का भी पुख्ता इंतजाम करना चाहिए था।
पूर्व डीजीपी ने कुंभ और उसकी व्यवस्था के बारे में बताया
भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी और पूर्व डीजीपी राम नारायण सिंह ने कुंभ और उसकी व्यवस्था के बारे में विस्तार से लिखा है। राम नारायण सिंह के अनुसार सरकार और मेला अधिकारियों के बदलने के बावजूद कुंभ मेले की व्यवस्था और सुरक्षा व्यवस्था में बहुत बदलाव नहीं होता था। लेकिन मोदी-योगी और उनके चाटुकार अधिकारियों ने कुंभ की व्यवस्था को छिन्न-भिन्न किया। जिसका परिणाम सामने हैं।
पूर्व डीजीपी राम नारायण सिंह फेसबुक पोस्ट में लिखते हैं “कल के हादसे के बाद से मन व्यथित है। अपने बैचमेट ओपी सिंह का अच्छा पोस्ट देखा। 1989 कुम्भ एसएसपी वीएन राय साहब की बात वीआईपी लोगों के सामान्य स्नानार्थियों की तरह ही स्नान करने के बारे में पढ़ा।
मैं राय साहब के साथ एडिशनल एसपी था। 1977 कुंभ के एसएसपी त्रिनाथ मिश्रा डीआईजी थे। 1954 कुंभ के हादसे का डर हम लोगों के मन में इतने समय बाद भी था। 1954 कुंभ के एसएसपी जमुना प्रसाद त्रिपाठी थे। उनके बारे में बात करने पर बात लम्बी हो जाएगी। परन्तु जानना चाहिए वे दरोगा से एसपी तक पहुंचे थे। नेहरू जी के सुरक्षा अधिकारी रह चुके थे। बहुत ही काबिल माने जाते थे। हादसे के बाद उन्होंने कहा था कि उनकी काबलियत का घमण्ड चूर हो गया।
उसके बाद 1960 के अर्ध कुंभ के एसएसपी केपी श्रीवास्तव थे उनके बेटे रमन श्रीवास्तव और विक्रम श्रीवास्तव दोनों आईपीएस अधिकारी रहे। केपी श्रीवास्तव ने 1960 में जो कुंभ मेले की यातायात व्यवस्था निर्धारित की वही आज भी सिद्धांततः मानी जाती है।
मेला क्षेत्र में ही नहीं, उसके बाहर प्रयाग नगर क्षेत्र में भी कहीं आने और जाने वाली भीड़ एक रास्ते पर न जाय तथा उनकी कहीं क्रासिंग न होने पाये। उनके द्वारा काली और लाल सड़क पर ओवरब्रिज बनवाये गए जिससे कि आने-जाने वाले लोगों का टकराव टाला जा सके।
2013 कुंभ के समय प्रयाग रेलवे जंक्शन पर हुए हादसे के बाद एक तरफा आने-जाने की व्यवस्था वहां भी लागू कर दी गई है।1989 कुम्भ में केपी श्रीवास्तव प्रयाग में ही रहते थे। उनके घर जाकर बहुत कुछ हम लोगों ने समझा। उन्हें मेले के सभी अधिकारियों को सीख देने के लिए भी बुलाया गया था।
उस समय कुंभ मेले की व्यवस्था के सबसे अनुभवी पुलिस अधिकारी अवध नारायण सिंह माने जाते थे। इलाहाबाद से लेकर हरिद्वार तक कई कुंभ कराने का उनका तजुर्बा था। उनको हम लोगों ने मेला प्रबंधन की बारीकियों को समझने के लिए सानुरोध बुलाया था। अधिकारियों को उन्होंने बहुत ही महत्वपूर्ण सूत्र दिए थे। वास्तव में आज उन्हीं की सबसे ज़्यादा याद आ रही है।
केपी श्रीवास्तव की यातायात व्यवस्था के बाद कुछ नया और मौलिक परेड साइड के संगम क्षेत्र में करने के लिए नहीं था। 1989 के कुंभ में पहली बार अरेल की ओर छोटे वाहनों से नगर और बाहर से आने वाले स्नानार्थियों को संगम के सबसे नज़दीक सटे हुए पार्किंग में गाड़ी खड़ी कर नाव से संगम में स्नान कर वापस जाने की व्यवस्था की गई थी। बहुत सारे वीआईपी उसी रास्ते से बिना किसी प्रोटोकॉल के स्नान कर वापस हो गए।
अवध नारायण सिंह का सबसे ज़्यादा जोर संगम नोज और उसके पास के सर्कुलेटिंग एरिया पर था। कल के हादसे की वही जगह है। वे कहते थे कि प्रत्येक दशा में इस क्षेत्र को मुख्य स्नान के पूर्व खाली करा लिया जाय। भीड़ को तितर-वितर करते रहा जाय। स्थिर न होने दिया जाय।
इसी काम के लिए बड़े रस्सों के साथ पर्याप्त पुलिस टीमें नियुक्त की जाएं, जो कि एरोफार्मेशन में रस्से लेकर भीड़ को तितर वितर करता रहे। और उन्हें जल्दी स्नान कर वापस भेजता रहे। वे मेला क्षेत्र में आ गई गाड़ियों को भी मुख्य पर्व के पहले मेला क्षेत्र के बाहर की पार्किंग में भेजने पर भी जोर देते थे।
काश इनको लागू किया गया होता। पुराने लोगों के अनुभव का लाभ लिया गया होता।
(प्रदीप सिंह जनचौक की संपादकीय टीम के सदस्य हैं)
+ There are no comments
Add yours