Saturday, April 27, 2024

जलवायु परिवर्तन से वर्षा का क्षेत्र बदला

बिहार और उत्तर प्रदेश में सूखा पड़ा है जबकि गुजरात और महाराष्ट्र, राजस्थान में जोरदार वर्षा से बाढ़ आ गई है। जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का यह प्रत्यक्ष उदाहरण है।

गुजरात में जोरदार वर्षा से बड़े पैमाने पर जन-धन की हानि हुई है। इस वर्ष वर्षा से जुड़ी घटनाओं से मरने वालों की संख्या 83 पहुंच गई है। वर्षा समूचे गुजरात में हुई है, लेकिन पांच जिलों-जूनागढ़, गीर सोमनाथ, डांग, नवसारी और वलसाड़ जिलों में बहुत भारी वर्षा हुई है। इन इलाकों में अभी बहुत भारी वर्षा होने की भविष्यवाणी है। इन पांच जिलों में रेड एलर्ट जारी किया गया है।

भारतीय मौसम विभाग के अनुसार, इन पांच जिलों के अलावा नर्मदा, सूरत, ततापी, अमरेली, भावनगर और दिऊ में भी छिटफुट स्थानों पर भारी वर्षा हो सकती है। मौसम विभाग के आंकड़ों के अनुसार गुजरात में 13 जुलाई तक 376 मिलीमीटर वर्षा रिकार्ड की गई जो 1 जून से 13 जुलाई के बीच आम तौर पर होने वाली वर्षा से 80 प्रतिशत अधिक है। सरकार ने बड़े पैमाने पर राहत और बचाव अभियान चलाया है और मृतकों को मुआवजा देने की घोषणा की है।

राजस्थान में एक समय लोग बाढ़ शब्द से भी अनजान थे, अब हर साल बाढ़ आने लगी है। राज्य की आपदा प्रबंधन योजना सूखे को ध्यान में रखकर बनाया जाता है, इसलिए बाढ़ के समय हालत अधिक खराब हो जाती है। पिछले दो दशक में राज्य में वर्षा होने के महीनों में भी बदलाव आया है। पहले जून में वर्षा होती थी, अब जुलाई और अगस्त में होती है। इस दौरान भारी वर्षा होने के दिनों में भी तेजी से इजाफा हुआ है। राजस्थान की वर्षा को लेकर मौसम विभाग ने जिलेवार विश्लेषण किया है। इससे पता चला है कि दक्षिणी जिलों में ज्यादा वर्षा होने लगी है।

वर्षा वाले दिनों में कमी आई है लेकिन भारी वर्षा वाले दिनों में बढ़ोत्तरी हुई है। एक अन्य विश्लेषण में कहा गया है कि पश्चिमी राजस्थान जो मोटे तौर पर रेगिस्तानी है, में आवधिक बरसात अधिक दर्ज की गई है। पश्चिमी राजस्थान में औसत बारिश का सामान्य स्तर 32 प्रतिशत बढ़ा है तो पूर्वी राजस्थान में यह बढ़ोत्तरी 14 प्रतिशत रही है। बाढ़ के लिहाज से राजस्थान में वर्ष 2006 सबसे महत्वपूर्ण है जब बाड़मेर नामक मरुस्थलीय जिले में 750 मिमी वर्षा हुई और इस भयंकर बाढ़ से राज्य में 300 से अधिक मौतें हुईं।

महाराष्ट्र में जोरदार वर्षा हुई है, हालांकि वहां की हालत गुजरात से बेहतर है। गढ़चिरौली, नंदुर्बार, नासिक, सिंधुदुर्ग, रत्नागिरी, रायगढ़ और पालघर जिलों में अधिक वर्षा हुई है। लोगों को सुरक्षित इलाकों में शरण लेना पड़ा है। राज्य में वर्षा से जुड़ी घटनाओं की वजह से छह लोगों की मौत हो गई है।

उधर, बिहार के 36 जिलों में सामान्य से कम वर्षा हुई है। यह कमी औसतन 47 प्रतिशत है। इसकी वजह से राज्य में धान की रोपनी सामान्य से केवल 23 प्रतिशत हो सकी है। कई जिलों में तो पांच प्रतिशत से भी कम रोपनी हुई है। मुंगेर में तो अभी रोपनी शुरू भी नहीं हुई। जितनी भी रोपनी हुई है, वह डीजल पंप सेटों की मदद से नलकूप या नदी-नालों से पानी निकाल कर हुई है। लेकिन वर्षा नहीं होने से फसल सूख जाने की आशंका है। वैसे धान की रोपनी का वक्त 15 जुलाई तक होता है, अब अगर वर्षा होती भी है तो फसल पिछड़ जाएगी।

उत्तर प्रदेश में भी यही हालत है। राज्य के 75 जिलों में से 72 में कम वर्षा हुई है। 59 जिलों में सामान्य से अत्यधिक कम अर्थात 60 प्रतिशत से अधिक कमी दर्ज की गई है। चार जिलों में न के बराबर वर्षा हुई है। राज्य में पुलिस नलकूप से पानी निकालने से मना करती है, इसलिए धान की खेती करने वाले किसान पूरी तरह से वर्षा पर निर्भर हैं। नहर में भी पानी नहीं आया है। धान की रोपनी 40-45 प्रतिशत से भी कम हुई है।

जलवायु परिवर्तन के इस रुख को देखते हुए खेती के तौर तरीकों में बदलाव लाने की जरूरत रेखांकित हुई है।

(अमरनाथ वरिष्ठ पत्रकार हैं और पर्यावरण मामलों के विशेषज्ञ हैं।)

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