यमुना के जल में झाग बनकर तैर रहा जहर

नई दिल्ली। दिल्ली में नवंबर सिर्फ आसमान के जहरीला हो जाने का ही महीना नहीं होता। इसी समय यमुना में सफेद झाग तैरने लगते हैं। यह सिलसिला कई सालों से चलता आ रहा है। जिस तरह आसमान में जहर भर जाने को लेकर तरह तरह की बातें होती हैं और उसके स्रोतों से निपटने के दावे किये जाते हैं, वही हाल यमुना को लेकर भी है।

जब सर्वोच्च न्यायालय दिल्ली के आसमान को साफ रखने के लिए पंजाब की खेती की व्यवस्था को ही बदल देने की राय जाहिर कर रहा था, उस समय उनकी नजर में यमुना के पानी में घुल रहा वह जहर नजरअंदाज हो गया, जिसका एक बड़ा स्रोत यह दिल्ली ही है। वह पंजाब की पराली का जलना तो देख रहे थे, लेकिन दिल्ली और उसके एनसीआर के औद्योगिक उत्सर्जन को नहीं देख रहे थे जो सिर्फ हवा ही नहीं यमुना को भी मौत के मुंह में पहुंचा रहा है।

पिछले साल के छठ पर्व पर इस साल के लिए अरविंद केजरीवाल ने यमुना में डुबकी लगाने का वादा किया था। छठ पर्व तो करीब आ गया, यमुना के घाट पर सजावट और अन्य तैयारियां शुरू हो चुकी हैं, लेकिन मुख्यमंत्री फिलहाल नदारद हैं। ऐसा नहीं है, कि ऐसे दावे में भाजपा नेता पीछे थे। वे नमामि गंगे परियोजना के आधार पर दावा कर रहे थे कि यमुना को लंदन की टेम्स की तरह बना दिया जायेगा। ‘आई लव यमुना’ जैसा नारा दिया गया और यमुना के प्रति लोगों में आस्था बनाने के लिए मानव श्रृंखलाएं बनाई गईं। इनका कुल परिणाम क्या है, यह हम एक बार फिर यमुना में तैरती जहरील सफेद झाग में देख सकते हैं।

इस झाग के बनने के पीछे दो रासायनिक तत्वों की बड़ी भूमिका होती है- अमोनिया और फॉस्फेट। इसके अलावा कार्बनिक पदार्थों का विघटन भी एक बड़ी भूमिका अदा करता है। इसमें सीवेज एक बड़ा कारण है। दिल्ली सरकार यह दावा तो कर रही है कि उसने नजफगढ़ ड्रेनेज सिस्टम पर काफी काम कर लिया है लेकिन यही दावा हरियाणा सरकार की ओर से पानीपत और सोनीपत के औद्योगिक अवशिष्ट के संदर्भ में नहीं आ रहा है। सीवेज से बढ़ते प्रदूषण का सीधा अर्थ है कि ट्रीटमेंट प्लांट का काम अब भी बहुत पीछे रह गया है।

दिल्ली में मई के महीने में यह दावा किया गया था कि यमुना का पानी साफ हो रहा है। इसके पीछे एक बड़ी सफलता सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट के हिस्से गया था। लेकिन चंद दिनों बाद ही इस दावे की असफलता तब सामने आई जब पानी की गुणवत्ता एक बार फिर बदतर हो गई थी। जून से सितम्बर तक बारिश के पानी से यमुना की जल गुणवत्ता अन्य महीनों की अपेक्षा बेहतर होती है। लेकिन, जैसे ही इसका असर कम होता जाता है, सीवेज, औद्योगिक कचरा और रसायन यमुना को नाले में बदल देते हैं।

यमुना में अमोनिया बढ़ने के पीछे सबसे बड़ा स्रोत हरियाणा का पानीपत औद्योगिक क्षेत्र है। यहां कपड़े की रंगाई का काम बड़े पैमाने पर होता है। इस मामले में दिल्ली भी इसका एक स्रोत है। ओखला बैराज पर गिरने वाले पानी में भी इसकी बड़ी मात्रा दिखती है। लेकिन, हरियाणा से आने वाला अमोनिया कई बार इतनी मात्रा हो जाता है कि वजीराबाद बैराज पर पानी उपचार संयत्र को बंद करने की भी स्थिति पैदा हो जाती है।

दिल्ली और एनसीआर एक औद्योगिक शहर की तरह विकसित हुए हैं। औद्योगिक विकास अपने साथ जिस तरह की व्यवस्था लाता है उसमें हर अस्तित्व का अर्थ बदल जाता है। इस बदलते अर्थ में यमुना का अर्थ भी बदल गया। जिस नदी के अस्तित्व से दिल्ली का अस्तित्व आया, वही शहर आज उस नदी के अस्तित्व पर ही सवाल खड़ा कर दिया है।

दिल्ली में आकर बसने वाले लोगों ने अपने गांव से चलकर शहर आ गये और अपने साथ संस्कृति को भी साथ ले आये। वे अब भी उस संस्कृति की यादों में डूबे हुए नदी के घाट की ओर जाते हैं। कभी छठ नहाने और कभी अमावस स्नान करने। वे आस्था में डूबे हुए जिस नदी की तरफ जा रहे होते हैं, उन्हें यह अनुमान तो ज़रूर रहता है कि यमुना में डुबकी नहीं लगा सकते। वह जहर बन चुकी है। उसमें डुबकी का अर्थ आंख की रोशनी तक खो देना होगा, संभव है जीवन भर के लिए चर्म रोग मिल जाये।

लेकिन, वह आस्था भरी आंखों के साथ यमुना के पास जरूर पहुंचता है। यह विडम्बना ही है, वह आस्था भी यमुना को जीवन देने में सक्षम नहीं रही। इस छठ पर लोगों को यमुना का किनारा जरूर मिलेगा, लेकिन यमुना का पानी कतई नहीं। यमुना अपना अस्तित्व खो रही है।

(अंजनी कुमार पत्रकार हैं।)

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