लखनऊ। डिजिटल हाजिरी के खिलाफ़ और स्थाईकरण की मांग को लेकर राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) के तहत कार्यरत संविदा एएनएम (सहायक नर्स मिडवाइफरी) ने लखनऊ के इको गार्डन में एक-दिवसीय धरना दिया। उत्तर प्रदेश राज्य एनएचएम एएनएम कर्मचारी यूनियन (ऐक्टू से संबद्ध) के बैनर तले संविदा एएनएम ने अपने आंदोलन को गति दी।
सीतापुर, बलरामपुर, बस्ती, लखनऊ, कानपुर, महाराजगंज, सुल्तानपुर, लखीमपुर, प्रतापगढ़, इलाहाबाद, सिद्धार्थनगर आदि जिलों से एएनएम अपनी नौ सूत्री मांगों के साथ पहुंची थीं। धरने के दौरान उन्होंने राज्य के स्वास्थ्य मंत्री के नाम एक ज्ञापन भी सौंपा।
धरने में उपस्थित यूनियन की प्रदेश सचिव पूजा सिंह ने डिजिटल हाजिरी का विरोध करते हुए कहा कि हमें दिनभर फील्ड में रहना पड़ता है। रोज अस्पताल या सेंटर में तय समय पर हाजिरी लगा पाना नामुमकिन जैसा है।
उन्होंने कहा कि अगर सुबह डिजिटल हाजिरी लगा भी दें, तो फील्ड में 16 किलोमीटर दूर जाने के बाद वापस सेंटर में आकर हाजिरी कैसे लगायेंगे। उन्होंने कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों से डेटा जुटाने का भी सारा काम एएनएम के माथे डाल दिया गया है।
कितने कुएं हैं, कितने नल हैं, यह भी एनएम को बताना है। जो अधिकारी डिजिटल पोर्टल के प्रभारी हैं, वे सोचते हैं कि जो भी सूचना मांगी जायेगी हम उसे चुटकियों में उपलब्ध करा देंगे। लेकिन वे यह नहीं समझते कि एएनएम के लिए यह सब इतना आसान नहीं है, हमारा फील्ड वर्क है और डेटा जुटाने व अपडेट करने के लिए समय निकाल पाना मुश्किल होता है।
इसके अलावा दूरदराज के इलाकों में मोबाइल नेटवर्क की भी समस्या रहती है। काम का बोझ बढ़ता जा रहा है, 25 एजेंडों पर काम करना पड़ता है, लेकिन बीते पांच वर्षों से वेतन वही 12 से 14 हजार ही मिलता है। दूरदराज के इलाकों में जाने के लिए स्कूटी करना पड़ता, जिसका खर्च खुद ही वहन करना पड़ता है।
इसमें हर महीने चार-पांच हजार रुपये निकल जाते हैं। सरकार को स्कूटी और उसके लिए पेट्रोल मुहैया करानी चाहिए। जिन एएनएम के पास स्कूटी नहीं है, उन्हें ऑटो या ई-रिक्शा रिजर्व करना पड़ता है, जिसकी उनकी तनख्वाह का बड़ा हिस्सा खर्च हो जाता है।
यूनियन की प्रदेश अध्यक्ष सुमन साहनी कहती हैं कि जो एएनएम आठ-दस साल से संविदा पर कार्यरत हैं, कोविड वारियर रह चुकी हैं, उन्हें भी स्थायी नियुक्ति के लिए पीईटी परीक्षा देने को कहा जा रहा है।
सरकार को लंबे समय से कार्यरत एएनएम को बिना परीक्षा स्थायी करना चाहिए। उन्होंने कहा कि एनएचएम के तहत नियुक्त एएनएम अपने कई मुद्दों के लिए वर्षों से संघर्ष कर रही हैं।
स्थायीकरण का मुद्दा तो है ही, बहुत-सी एएनएम ऐसी हैं जो अपने गृह जनपद से काफी दूर नियुक्त हैं, जिसकी वजह से उन्हें अपने निजी और पारिवारिक जीवन में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। एएनएम की एक प्रमुख मांग अपने गृह जनपद में स्थानांतरण है, जिस पर कोई सुनवाई नहीं हो रही है।
साहनी ने कहा कि एएनएम को एक तो इतना कम वेतन मिलता है, ऊपर से कोई स्वास्थ्य बीमा भी नहीं है। ऐसे में अगर कोई बीमार वगैरह हो जाए, तो बहुत मुश्किल खड़ी हो जाती है।
ऐक्टू के प्रदेश अध्यक्ष विजय विद्रोही कहते हैं कि हालात इतने खराब हैं कि उपकेंद्रों में एएनएम बहनों के बैठने के लिए कुर्सी-मेज तक नहीं है। कामकाज के लिए उन्हें स्टेशनरी तक मुहैया नहीं कराई जाती। उन्होंने कहा, हमारी मांग है कि सभी उपकेंद्रों का सर्वेक्षण करवा कर उनका जीर्णोद्धार कराया जाए।
साथ ही, एएनएम बहनों का यौन उत्पीड़न रोकने तथा त्वरित कार्रवाई के लिए ‘जेंडर सेंसिटाइजेशन कमेटी अगेंस्ट सेक्सुअल हैरसमेंट’ बनायी जाए। उन्होंने कहा कि स्थायीकरण किये जाने तक ‘समान काम के लिए समान वेतन’ सिद्धांत को लागू कर संविदा कार्यरत एएनएम के लिए पे-ग्रेड के मुताबिक वेतन की गारंटी की जाए और नियुक्ति से लेकर अब तक के एरियर का भुगतान किया जाए।
विद्रोही ने भी कहा कि लंबे समय से कार्यरत एएनएम को बिना किसी दक्षता परीक्षा के स्थाई किया जाए। सरकार को उनके अनुभव और स्वास्थ्य के क्षेत्र में योगदान का सम्मान करना चाहिए।
कानपुर से आई एएनएम संगीता ने कहा कि कोविड के समय हम अपने छोटे-छोटे बच्चे साथ लेकर फील्ड में जाते थे। हमने अपनी और बच्चों की जिंदगी दांव पर लगाकर कोविड वारियर का काम किया, लेकिन स्थायी नियुक्ति लायक हमें नहीं समझा जा रहा है।
उन्होंने कहा कि दिनभर विभागीय और उसके बाद घर का काम करने के बाद इतना समय ही नहीं बचता कि पीईटी की तैयारी कर सकें। ऐसे में भला एएनएम यह परीक्षा कैसे पास कर पायेंगी। वहीं बस्ती से आयी सोमवती ने भी धरने को संबोधित करते हुए एएनएम बहनों का दुख-दर्द सामने रखा।
उन्होंने कहा कि अगर सरकार की प्राथमिकता डिजिटल हाजिरी ही तो है, तो हम दिन भर सेंटर में ही रहेंगे। टीकाकरण, संक्रामक बीमारियों की रोकथाम, जच्चा-बच्चा की जांच के लिए हम गांव-गांव नहीं जायेंगे।
उन्होंने कहा कि हमारे काम के बूते ही डॉक्टर, सीएमओ से लेकर पूरा स्वास्थ्य विभाग वाहवाही लूटता है, लेकिन हमारी तकलीफों को समझने वाला कोई नहीं है।
बता दें कि उत्तर प्रदेश की एएनएम लंबे समय अपनी मांगों को लेकर आंदोलनरत हैं। यह इस साल उनका दूसरी बार धरना-प्रदर्शन था। इससे पहले फरवरी में भी एएनएम बहनें बड़ी संख्या में इसी इको गार्डेन में पहुंची थीं और अपनी मांगों को सरकार के सामने रखा था।
लेकिन आठ महीने में सरकार ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया है। 25 अक्टूबर के धरने के बाद एएनएम बहनें आंदोलन जारी रखने के संकल्प के साथ राजधानी से अपने जिलों की ओर रवाना हुईं।
(लखनऊ से सरोजिनी बिष्ट की रिपोर्ट।)
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