बनारसः बिहार की बेटी स्नेहा सिंह की संदिग्ध मौत के मामले में भेलूपुर पुलिस ने उलझाई गुत्थी, न्याय की लड़ाई में झारखंड के ‘लाल गैंग’ का जोरदार प्रदर्शन!

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वाराणसी। वाराणसी के भेलूपुर स्थित रामेश्वरम गर्ल्स हॉस्टल में रहकर मेडिकल प्रवेश परीक्षा (NEET) की तैयारी कर रही बिहार के सासाराम जिले की 17 वर्षीय छात्रा स्नेहा सिंह कुशवाहा की संदिग्ध परिस्थितियों में हुई मौत ने उत्तर प्रदेश और बिहार में व्यापक आक्रोश को जन्म दिया है।

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर बनारस के कचहरी स्थित शास्त्री घाट पर बड़ी संख्या में महिलाओं ने जबर्दस्त प्रदर्शन किया। उन्होंने पुलिस प्रशासन पर स्नेहा के परिजनों को न्याय से वंचित करने और मामले को दबाने का आरोप लगाया। इस प्रदर्शन में स्नेहा के परिजनों के साथ बिहार, झारखंड और वाराणसी के नागरिक भी शामिल थे।

झारखंड की लालगैंग की प्रदर्शनकारी महिलाएं

स्नेहा की मौत एक फरवरी को हुई थी, लेकिन परिजनों का दावा है कि यह आत्महत्या नहीं बल्कि सुनियोजित हत्या है, जिसे आत्महत्या का रूप देने की कोशिश की जा रही है। घटना के तुरंत बाद से ही इस मामले को लेकर लगातार विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। छात्र संगठनों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और राजनीतिक दलों ने इसमें सक्रिय भूमिका निभाई है। परिजनों का आरोप है कि पुलिस जांच में लापरवाही बरत रही है और दोषियों को बचाने की कोशिश की जा रही है।

झारखंड के हजारीबाग से “लाल गैंग” से जुड़ी महिलाओं का एक बड़ा समूह आठ मार्च को बनारस के शास्त्री घाट पहुंचा और भेलूपुर थाना पुलिस के खिलाफ जमकर नारेबाजी की। आंदोलनकारी महिलाओं का कहना था कि पुलिस शुरू से ही इस मामले में लीपापोती कर रही है। भेलूपुर थाना प्रभारी विजय नारायण मिश्र को भले ही लाइन हाजिर कर दिया गया हो, लेकिन यह मामले को शांत कराने की एक चाल मात्र है। महिलाओं ने आरोप लगाया कि वाराणसी कमिश्नरेट पुलिस अभियुक्तों को बचाने के लिए गंभीर साजिशें कर रही है।

झारखंड की लालगैंग की प्रदर्शनकारी महिलाएं

अभियुक्तों के सिर पर किसका हाथ?

प्रदर्शन का नेतृत्व कर रही अमिषा प्रसाद ने “जनचौक” से बातचीत में कहा, “स्नेहा के परिजन और झारखंड-बिहार के तमाम राजनीतिक दल उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और डीजीपी प्रशांत कुमार से मिलकर निष्पक्ष जांच की मांग कर चुके हैं। इसके बावजूद पुलिस की निष्क्रियता सवाल खड़े करती है। बनारस पुलिस कमिश्नर द्वारा गठित एसआईटी ने न तो पीड़ित परिवार से कोई ठोस बातचीत की और न ही मौके से साक्ष्य जुटाने की कोई गंभीर कोशिश की। इससे स्पष्ट है कि आरोपियों के सिर पर किसी बड़े सियासी दल या प्रभावशाली नेता का हाथ है।”

अमिषा ने आगे कहा, “जब मुख्यमंत्री ने निष्पक्ष जांच का आश्वासन दिया है और यूपी डीजीपी ने वाराणसी पुलिस को तत्काल कार्रवाई के निर्देश दिए थे, तो फिर पुलिस अभी तक चुप क्यों है? औरंगाबाद के राजद सांसद अभय कुशवाहा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह को पत्र लिखकर उच्चस्तरीय जांच की मांग की है। वाराणसी प्रधानमंत्री का संसदीय क्षेत्र है, इसलिए हमें उम्मीद थी कि स्थानीय प्रशासन इस मामले को गंभीरता से लेगा, लेकिन अब तक का रवैया निराशाजनक है।”

लालगैंग की प्रमुख अमिषा प्रसाद

“लाल गैंग” से जुड़ी महिलाओं ने कहा कि पुलिस पर उनका भरोसा अब समाप्त हो चुका है। उन्होंने इस मामले की सीबीआई जांच की मांग की। प्रदर्शनकारियों का दावा है कि स्नेहा की मौत की रात एक महत्वपूर्ण सुराग मिला था। मृतका के व्हाट्सऐप कॉल और मैसेज में रात 12 बजकर 27 मिनट पर लिखा गया था, “अब *** आपको नहीं मिलेगी बउआ और कभी भूलिएगा मत।” यह मैसेज एक विशेष ऐप के जरिए बनाया गया था और उसी नंबर से भेजा गया था, जिससे स्नेहा की मां को उसकी मौत की सूचना मिली थी। यह एक अहम सबूत है, जिससे स्पष्ट होता है कि स्नेहा की मौत अचानक नहीं हुई, बल्कि यह एक सुनियोजित घटना थी।

आंदोलन में शामिल स्नेहा सिंह कुशवाहा की मां जूही देवी ने “जनचौक” से कहा, “भेलूपुर थाना पुलिस ने हमारी अनुमति के बिना ही स्नेहा का पोस्टमार्टम करा दिया। जब हम वाराणसी पहुंचे, तब तक हमारी बेटी का शव पोस्टमार्टम हाउस भेजा जा चुका था। हमें उसकी अंतिम झलक तक देखने नहीं दी गई। पोस्टमार्टम के बाद उसका शव प्लास्टिक में लपेटकर हमें सौंप दिया गया। हम चाहते थे कि स्नेहा का अंतिम संस्कार अपने घर ले जाकर करें, लेकिन पुलिस ने हमें वाराणसी में ही अंतिम संस्कार के लिए मजबूर किया और मणिकर्णिका घाट पर दबाव बनाकर अंतिम संस्कार करवाया गया।”

मृतका स्नेहा की मां जूही देवी

स्नेहा की मां जूही देवी ने वाराणसी पुलिस पर गंभीर आरोप लगाए और कहा कि पुलिस ने उनकी बेटी की मौत को आत्महत्या करार देकर मामला रफा-दफा करने की कोशिश की। जब वे अपनी बेटी के लिए न्याय की मांग कर रहे थे, तो उन्हें धमकियां मिलीं और दबाव बनाया गया कि वे विरोध प्रदर्शन न करें। जूही ने यह भी आरोप लगाया कि न सिर्फ पोस्टमार्टम रिपोर्ट में हेराफेरी की गई, बल्कि स्नेहा के कीमती आभूषण भी पोस्टमार्टम हाउस में ही बदल दिए गए। ऐसे में बनारस पुलिस से हमारा भरोसा उठ चुका है। सीबीआई से जांच ही स्नेहा की मौत की गुत्थी सुलझ सकती है। ऐसे में योगी सरकार से हमारी मांग है कि वह सीबीआई जांच के लिए संस्तुति प्रदान करे, ताकि निष्पक्ष जांच हो सके

दरअसल, स्नेहा की मौत को लेकर कई महत्वपूर्ण सवाल उठ रहे हैं। पहला सवाल यह है कि मृतका ने कोई सुसाइड नोट नहीं छोड़ा? दूसरा, वायरल तस्वीरों में उसके पैर जमीन से लगे हुए दिख रहे हैं, जिससे आत्महत्या की थ्योरी कमजोर पड़ती है। तीसरा, मृतका के गले और हाथों पर निशान पाए गए, जिससे यह संदेह होता है कि उसके साथ मारपीट की गई थी। चौथा, पुलिस ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट के बावजूद शव परिजनों को नहीं सौंपा और जबरन अंतिम संस्कार करने का दबाव बनाया। पांचवां, घटना के दस दिन बाद जाकर पुलिस ने मामला दर्ज किया, जबकि शुरुआत में इसे आत्महत्या करार दिया जा रहा था।

पीएमओ दफ्तर के पास प्रदर्शन करतीं ऐपवा की महिलाएं

घटना के 10 दिन बाद, 11 फरवरी को वाराणसी पुलिस ने सोशल मीडिया पर सफाई पेश करते हुए कहा कि पोस्टमार्टम में गला घुटने से मौत की पुष्टि हुई है और शरीर पर चोट के निशान नहीं थे। लेकिन मृतका के माता-पिता इस रिपोर्ट को फर्जी करार दे रहे हैं। इस मामले को लेकर बिहार और उत्तर प्रदेश की राजनीति भी गरमा गई है। बिहार के कई नेताओं ने इसे बिहार की बेटी के साथ अन्याय बताते हुए यूपी की योगी सरकार पर तमाम गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने डीजीपी प्रशांत कुमार को निर्देश दिया है कि वे इस मामले की निष्पक्ष जांच कराएं और दोषियों को कड़ी सजा दिलाई जाए।

छात्रा की मां जूही देवी ने सीएम और डीजीपी के समक्ष भेलूपुर चौकी इंचार्ज, एसएचओ और सर्किल पुलिस उपायुक्त की भूमिका पर सवाल उठाते हुए उनके निलंबन की मांग उठाई है। उन्होंने कहा कि पुलिस की लापरवाही और हीलाहवाली के कारण उन्हें न्याय मिलने में देरी हो रही है। वहीं, डीजीपी प्रशांत कुमार ने वाराणसी पुलिस कमिश्नर मोहित अग्रवाल को फोन कर घटना की निष्पक्ष जांच करने और जल्द से जल्द पर्दाफाश करने के निर्देश दिए हैं।

प्रदर्शन में शामिल अधिवक्ता

एसआईटी ने क्या किया?

उल्लेखनीय है कि भेलूपुर के जवाहर नगर एक्सटेंशन स्थित रामेश्वरम हॉस्टल में नीट की तैयारी कर रही छात्रा की संदिग्ध मौत के मामले में पुलिस आयुक्त मोहित अग्रवाल ने एसआईटी (विशेष जांच टीम) का गठन किया है। इस तीन सदस्यीय कमेटी की अध्यक्षता एडीसीपी काशी जोन सरवणन टी. कर रहे हैं, जिसमें एसीपी भेलूपुर और क्राइम ब्रांच के प्रभारी भी शामिल हैं। इस मामले में एडीसीपी भी कुछ भी बोलने से कतरा रहे हैं। उनकी ओर से इस मामले में अभी तक कोई बयान नहीं आया है कि एसआईटी की जांच कब तक पूरी हो पाएगी?

स्नेहा सिंह कुशवाहा की मौत के मामले में सबसे पहले सपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता  मनोज सिंह काका  ने भेलूपुर थाना की नीयत पर सवाल खड़ा किया और सोशल मीडिया एक्स पर इस मामले को उठाया तो भेलूपुर के इंस्पेक्टर विजय नारायण मिश्रा ने सपा नेता मनोज सिंह काका समेत तीन लोगों के खिलाफ आईटी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कर दिया।

भेलूपुर प्रभारी निरीक्षक विजय नारायण मिश्रा की ओर से दर्ज नई एफआईआर में आरोप लगाया गया है कि एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर पुनीत यादव समाजवादी (@punityadav-sp), मनोज काका (@manojsinghkaka) और अमित यादव (@amityadav-65) ने मामले को लेकर गलत और भ्रामक जानकारी पोस्ट की। पुलिस का कहना था कि इन सोशल मीडिया पोस्ट्स में दावा किया गया कि मृतका का पोस्टमार्टम नहीं हुआ और शव परिजनों को सौंपा ही नहीं गया, जबकि ये तथ्य भ्रामक हैं। पुलिस का आरोप है कि इससे उनकी छवि को नुकसान पहुंचाने की कोशिश की गई। इस संबंध में भेलूपुर थाने में बीएनएस की धारा 353(2) और 356(2) के तहत मामला दर्ज किया गया है।

बाद में इस कार्रवाई पर प्रतिक्रिया देते हुए सपा प्रवक्ता मनोज सिंह काका ने प्रदेश सरकार पर तीखा हमला बोला और कहा, भाजपा सरकार में किसी बेटी के लिए न्याय की मांग करना भी गुनाह बन गया है। लेकिन अगर यह गुनाह हैतो मैं यह गुनाह हजार बार करूंगा।  हमें न्यायपालिका पर पूरा भरोसा है और इस मामले में कानून के दायरे में रहते हुए संघर्ष जारी रखेंगे। अचरज की बात यह रही कि काका के खिलाफ मामला उस समय दर्ज किया गया जब भेलूपुर थाना पुलिस ने स्नेहा की मौत के मामले में रिपोर्ट तक दर्ज नहीं की थी।

यही नहीं, नीट की तैयारी कर रही छात्रा स्नेहा सिंह की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत के मामले में सोशल मीडिया पर  जानकारी पोस्ट करने के आरोप में भेलूपुर थाना पुलिस ने कंदवा बरईपुर निवासी विनोद यादव उर्फ नेता को गिरफ्तार कर लिया था। इस मामले में तत्कालीन भेलूपुर थाना प्रभारी निरीक्षक विजय नारायण मिश्रा का कहना था कि आरोपी ने फेसबुक पर छात्रा की मौत को लेकर भ्रामक और भड़काऊ पोस्ट की थी।

उसने लिखा था कि “लॉज संचालक ने शर्मनाक कृत्य कर उसकी हत्या कर दी। लॉज मालिक ने आपराधिक साथियों के साथ मिलकर शव जला दिया। बिहार के सासाराम निवासी परिजनों को शव तक नहीं मिला। पुलिस पैसा लेकर अपराधियों को बचा रही है।”

झारखंड की लालगैंग की प्रदर्शनकारी महिलाएं

स्नेहा की मौत के सवा महीने गुजर जाने के बाद बनारस के पुलिस कमिश्नर मोहित अग्रवाल ने 07 मार्च 2025 भेलूपुर इंस्पेक्टर विजय नारायण मिश्रा को महिला अपराध मामलों में लापरवाही बरतने के कारण लाइन हाजिर कर दिया। अग्रवाल ने क्राइम मीटिंग के दौरान उन्हें फटकार लगाते हुए यह फैसला सुनाया।

पुलिस की लचर कार्यप्रणाली को लेकर पहले ही आलोचना हो रही थी और अब भेलूपुर इंस्पेक्टर को हटाए जाने से पुलिस महकमे में खलबली मच गई है। भेलूपुर इंस्पेक्टर के खिलाफ यह कार्रवाई केवल स्नेहा सिंह मामले तक सीमित नहीं रही, बल्कि अन्य मामलों में भी उनकी लापरवाही उजागर हुई। एक एनआरआई महिला के पर्स चोरी के मामले में गंभीरता न दिखाते हुए गुमशुदगी दर्ज करना भी उनके खिलाफ कार्रवाई की एक प्रमुख वजह बनी।

स्नेहा की मौत की निष्पक्ष जांच के लिए चितईपुर एसएचओ गोपाल जी कुशवाहा को भेलूपुर का नया प्रभारी निरीक्षक बनाया गया है। इस कार्रवाई से स्पष्ट संकेत मिलता है कि वाराणसी पुलिस अब महिला अपराधों और कानून व्यवस्था को लेकर लापरवाही बर्दाश्त नहीं करेगी। स्नेहा सिंह केस में न्याय की मांग के बीच यह कदम अहम माना जा रहा है।

ऐपवा के आंदोलन का दृश्य

कानून व्यवस्था की हकीकत

पूर्व मंत्री राकेश कुशवाहा ने बनारस कमिश्नरेट पुलिस पर सवाल खड़ा करते हुए कहा है कि, “जिस तरह से यूपी में लड़कियों और महिलाओं की मौत हो रही है उससे यह साबित होता है कि योगी सरकार का ‘मजबूत कानून व्यवस्था’ का दावा खोखला है। स्नेहा की तरह ही पूरे राज्य में घटनाएं हो रही हैं, लेकिन पुलिस केवल कुछ मामलों में रिपोर्ट दर्ज करती है और बाकी मामलों में पीड़ित परिवारों को धमकाकर चुप करा देती है।

जिन मामलों की रिपोर्ट दर्ज होती भी है, उनमें से भी बहुत कम मामलों में पुलिस कोई ठोस कार्रवाई करती है। ऐसे में यह कहना कि यूपी में महिलाएं सुरक्षित हैं, बेशर्मी की पराकाष्ठा है। सबसे बड़ा सवाल यह है कि सरकार और पुलिस प्रशासन की नाक के नीचे इतनी बड़ी संख्या में लड़कियां कैसे गायब हो रही हैं और कइयों की संदिग्ध मौतें हो रही हैं?”

राकेश यह भी कहा है,  “केंद्र व राज्य सरकारें लगातार ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ अभियान के तहत लड़कियों की सुरक्षा और सशक्तिकरण के वादे करती रही हैं। बावजूद इसके, हर साल सैकड़ों लड़कियां बेमौत मारी जा रही हैं। पुलिस की अक्षमता इस गंभीर समस्या को और गहरा बना रही है।” 

एक आरटीआई के माध्यम से प्राप्त जानकारी के अनुसार, उत्तर प्रदेश के 50 जिलों में पुलिस 38 प्रतिशत गायब हुई लड़कियों को खोजने में नाकाम रही है। इसमें बनारस की खुशी पाल भी शामिल है। इन आंकड़ों से यह स्पष्ट होता है कि राज्य में कानून व्यवस्था की स्थिति बेहद चिंताजनक है।

झारखंड की लालगैंग की प्रदर्शनकारी महिलाएं

यूपी पुलिस विभाग से प्राप्त जानकारी के अनुसार, गायब होने वाली अधिकांश लड़कियां 20 से 25 वर्ष की उम्र की हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, उत्तर प्रदेश के 50 जिलों में हर दिन औसतन तीन लड़कियां गायब हो रही हैं, जबकि लड़कों के मामले में यह आंकड़ा हर दो दिन में तीन का है। विशेष रूप से 12 से 18 वर्ष की लड़कियां सबसे अधिक लापता हो रही हैं, जिससे इस बात की आशंका बढ़ जाती है कि वे मानव तस्करी का शिकार हो रही हैं।

2012 के निर्भया कांड के बाद महिलाओं की सुरक्षा को लेकर कई कड़े कानून बनाए गए। इसके तहत 16 से 18 वर्ष की आयु के अपराधियों पर भी कठोर दंड के प्रावधान किए गए। 2016 में महिलाओं के पीछा करने को भी कानूनी अपराध माना गया।

31 जुलाई 2023 को संसद में प्रस्तुत आंकड़ों के अनुसार, 2019 से 2021 के बीच भारत में 13.13 लाख महिलाएं और लड़कियां लापता हो गईं। इनमें 18 साल से अधिक उम्र की 10,61,648 महिलाएं और 18 साल से कम उम्र दिल्ली इस मामले में सबसे ऊपर है, जहां इस अवधि में 61,054 महिलाएं, 2,51,430 लड़कियां शामिल हैं। और 22,919 नाबालिग लड़कियां लापता हुईं।

क्या कर रही है सरकार?

वाराणसी के वरिष्ठ पत्रकार राजीव सिंह ने स्नेहा सिंह कुशवाहा की मौत पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए कहा है, “जब कोई महिला संदिग्ध स्थित में मरती है तो उसके माता-पिता इसे गंभीरता से लेते हैं और पुलिस तत्काल शिकायत दर्ज करती है। स्नेहा की परिजनों की शिकायत दर्ज करने में भेलूपुर थाना पुलिस ने आखिर दस दिन क्यों और किसके कहने पर लगा दिए, जबकि इस बीच मौत पर सवाल उठाने वालों के खिलाफ पुलिस ने संगीन धाराओं में अभियोग दर्ज करने में तनिक भी देरी नहीं लगाई।

“स्नेहा की मौत के मामले को लेकर लगातार सवाल उठ रहे हैं कि क्या यह मात्र एक आत्महत्या है या इसके पीछे किसी गहरी साजिश के संकेत छिपे हैं? स्नेहा सिंह कुशवाहा की संदिग्ध परिस्थितियों में हुई मौत और पुलिस प्रशासन की कथित अनदेखी ने कई गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। अब देखना यह होगा कि न्याय की मांग कर रहे परिजनों और आंदोलनकारियों की आवाज सत्ता के गलियारों तक पहुंचती है या फिर यह मामला भी अन्य मामलों की तरह ठंडे बस्ते में डाल दिया जाएगा।”

पुलिस को ज्ञापन देते हुए

वरिष्ठ पत्रकार राजीव यह भी कहते हैं, “केंद्र और राज्य सरकार के तमाम दावों के बावजूद, महिलाओं के खिलाफ अपराधों में कोई उल्लेखनीय कमी नहीं आई है। राष्ट्रीय महिला आयोग भी महिलाओं की सुरक्षा को लेकर कई कदम उठा रहा है, लेकिन ज़मीनी हकीकत यही है कि उनकी सुरक्षा अब भी एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। देश भर में महिलाओं की सुरक्षा की स्थिति चिंताजनक बनी हुई है। यूपी में हर दिन लड़कियां गायब हो रही हैं, लेकिन पुलिस प्रशासन और सरकार के पास इसका कोई ठोस समाधान नहीं है।”

“भारत सरकार महिलाओं की सुरक्षा के लिए कई दावे करती है। गृह मंत्री अमित शाह के अनुसार, 2013 में यौन अपराध निवारण अधिनियम लाया गया और 2018 में इसमें संशोधन किया गया। सरकार का दावा है कि 12 साल से कम उम्र की लड़की से बलात्कार करने वाले अपराधियों को अब मौत की सजा हो सकती है। साथ ही, महिलाओं की सुरक्षा के लिए 112 आपातकालीन सेवा को भी लागू किया गया है।”

राजीव यह भी कहते हैं, “स्नेहा की मौत और खुशी पाल के गायब होने जैसी घटनाएं हमें यह सोचने पर मजबूर करती हैं कि क्या वास्तव में हमारी बेटियां सुरक्षित हैं? क्या सरकार और पुलिस प्रशासन इन घटनाओं को गंभीरता से ले रहे हैं? जब तक पुलिस की कार्यशैली में सुधार नहीं किया जाएगा और सरकार सख्त कदम नहीं उठाएगी, तब तक महिलाओं की सुरक्षा महज़ एक नारा बनकर ही रह जाएगी।”

ऐपवा ने भी किया प्रदर्शन

दूसरी ओर, अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला एसोसिएशन (ऐपवा) ने स्नेहा सिंह कुशवाहा की मौत और खुशी पाल के गायब होने का मुद्दा उठाते हुए प्रदर्शन किया। प्रदर्शनकारी महिलाओं ने औरतों के प्रति बढ़ती हिंसा और अपराधियों को मिल रहे संरक्षण के खिलाफ आवाज़ बुलंद की। ऐपवा की ओर से मुख्यमंत्री को संबोधित एक ज्ञापन भी सौंपा गया, जिसमें महिलाओं की सुरक्षा, न्याय और अधिकारों से जुड़ी 16 सूत्रीय मांगों को प्रमुखता से उठाया गया।

ऐपवा के जुलूस प्रदर्शन में शामिल महिलाएं

प्रदेश अध्यक्ष कृष्णा अधिकारी ने मीडिया बातचीत में प्रदेश की योगी सरकार पर तीखा हमला बोला और कहा कि “मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ संविधान के नियमों से नहीं, बल्कि बुलडोजर से प्रदेश चला रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बावजूद न्यायालय की अवहेलना जारी है और महिलाओं के अधिकारों पर हमले किए जा रहे हैं। यह सरकार की तानाशाही मानसिकता को दर्शाता है, जो लोकतांत्रिक मूल्यों में विश्वास नहीं रखती।”

प्रदेश सचिव कुसुम वर्मा ने कहा कि “आज पूरे उत्तर प्रदेश में महिलाएं आठ मार्च की ऐतिहासिक विरासत को याद कर रही हैं और अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कर रही हैं।” उन्होंने राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि “महिला अपराधों में उत्तर प्रदेश देशभर में पहले स्थान पर है।

प्रदर्शनकारियों का नेतृत्व करतीं कुसुम वर्मा

बलात्कार, हत्या, अपहरण जैसी घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं, लेकिन पीड़िताओं को न्याय नहीं मिल रहा। स्नेहा सिंह कुशवाहा के मामलों की तरह ही वह पुलिस खुद अपराधियों को संरक्षण देती नज़र आ रही है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ महिला सशक्तिकरण के दावे भले करें, लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि उत्तर प्रदेश में महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं।”

इस प्रदर्शन में पीलीभीत, लखीमपुरखीरी, सीतापुर, लखनऊ, अयोध्या, रायबरेली, कानपुर, प्रयागराज, गोरखपुर, महाराजगंज, देवरिया, वाराणसी, चंदौली, भदोही, मिर्जापुर, से कई संगठन शामिल रहे।

(विजय विनीत बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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