
कुरुक्षेत्र। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में छात्रावास के मेसों में काम करने वाले कर्मचारी अपनी मांगों को लेकर पिछले 58 दिनों से आंदोलनरत हैं। लेकिन उनकी कहीं कोई सुनवाई नहीं हो रही है। खास बात ये है कि लेबर कोर्ट से इनके पक्ष में फैसला हो गया है। 7 महीने बीत जाने के बाद भी विश्वविद्यालय प्रशासन उसे लागू नहीं कर रहा है।
इनमें कुछ कर्मचारी पिछले 30 वर्षों से अपनी सेवाएं दे रहे हैं। और वेतन के नाम पर उन्हें महज 3800 से 6000 रुपये मिलते हैं। अब इतने पैसों में महंगाई के इस दौर में उनका खर्चा कैसे चलता होगा उसका अंदाजा लगाना मुश्किल है। वो परिवार के भोजन की व्यवस्था करें या फिर बच्चों की फीस दें या जरूरत पड़ने पर बीमारी का खर्च उठाएं उसमें क्या-क्या संभव है? लेबर कोर्ट ने पिछली 31 मार्च को 2003 की पालिसी के हिसाब से उन्हें सरकारी ग्रेड मुहैया कराने का आदेश दिया था। लेकिन सात महीने बीत जाने के बाद भी मेस कर्मचारी उसके लागू होने का इंतजार कर रहे हैं। बताया जा रहा है कि कर्मचारियों में कुल 75 महिलाएं और 225 पुरुष हैं।
ऊपर से इतनी कम सैलरी में उन्हें 12-14 घंटे रोजाना काम करना पड़ता है। अगर विश्वविद्यालय के गेस्ट हाउस में कोई वीवीआईपी मेहमान आ जाए तो उसकी आवभगत और देखभाल की जिम्मेदारी भी इन्हीं कर्मचारियों को उठाना पड़ता है। अन्याय किस कदर इनके जीवन का हिस्सा बन गया है उसको एक दूसरे उदाहरण से समझा जा सकता है। यदि ये हर महीने की 5 तारीख तक अपने बिजली का बिल नहीं भरते हैं तो उन्हें 100 रुपये पर 5 रुपये का अतिरिक्त चार्ज देना पड़ता है। जो कर्मचारियों से लेकर प्रोफेसरों तक सब पर बराबर है। अब इनकी सैलरी हर महीने की 10 तारीख को मिलती है लिहाजा ये जुर्माना इन पर स्थाई हो गया है।
एक ऐसे विश्वविद्यालय में जहां इस तरह की अनियमिताएं और शोषण हों उसे कैसे उच्च श्रेणी में रखा जा सकता है। लेकिन शैक्षणिक संस्थाओं की गुणवत्ता की परख करने वाली संस्था नेशनल असेसमेंट एंड एक्रेडेशन कौंसिल (एनएएसी) ने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय को ए प्लस ग्रेड दिया हुआ है। जबकि कौंसिल की टीम अभी एक महीना पहले ही दौरा करके लौटी है। ये दौरा उस समय हुआ था जब कर्मचारियों का धरना जारी था। ऐसे में कौंसिल का पूरा मूल्यांकन ही सवालों के घेरे में खड़ा हो जाता है।
आंदोलन के नेता राम प्रकाश पाल ने बताया कि सारे कर्मचारी रोजाना काम करने के बाद धरने पर आते हैं। लिहाजा उनके काम में आंदोलन के चलते किसी तरह का व्यवधान नहीं आता है। लेकिन बार-बार की कोशिशों के बावजूद विश्वविद्यालय के कुलपति ने कभी उनसे मुलाकात करना जरूरी नहीं समझा।