रांची। झारखंड के विभिन्न जन मुद्दों को लेकर 10 सितंबर को झारखंड जनाधिकार महासभा के आह्वान पर राज्य के विभिन्न जिलों से आए 2,000 से अधिक लोगों ने राजधानी रांची पहुंचकर राज भवन के समक्ष आयोजित धरना में शिरकत की और हेमंत सोरेन सरकार को पूर्व में उनके द्वारा किए गए वायदों की याद दिलाई और साथ ही झारखंड से फासिस्ट भाजपा से मुक्ति कैसे हो, की ज़रूरत पर बल दिया।
धरने में आये लोगों ने “भाजपा हटाओ, झारखंड बचाओ” और “हेमंत सोरेन सरकार, जन मुद्दों पर वादा निभाओ” जैसे नारों से अपनी बात जनमानस और सरकार तक पहुंचाई।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए योगेन्द्र यादव ने कहा कि “राज्य में लगातार साम्प्रदायिकता फ़ैलाने की कोशिश हो रही है। ताकि जनता केंद्र की मोदी सरकार की विफलताओं से दिग्भ्रमित रहे, जबकि जनता डबल बुलडोज़र का भाजपा राज नहीं चाहती है। ऐसे में हेमंत सोरेन सरकार को जन मुद्दों पर सच्चाई और प्रतिबद्धता के साथ कार्यवाही करके जनता के संघर्ष का साथ देना होगा।”
धरना में प्रसिद्ध अर्थशास्त्री ज़्याँ द्रेज़ ने कहा कि “आदिवासी-दलितों के लिए फर्जी मामले और सालों तक जेल में विचाराधीन होकर के बंद रहना राज्य में एक बड़ी समस्या है। गठबंधन दलों ने घोषणा पत्र में वादा किया था कि लम्बे समय से जेल में बंद विचारधीन कैदियों को रिहा किया जायेगा। लेकिन इस पर आजतक किसी प्रकार की कोई कार्यवाही नहीं हुई।” उन्होंने आदिवासी-दलित बच्चों में व्यापक कुपोषण के मुद्दे को भी उठाया।
नरेगा वाच के जेम्स हेरेंज ने कहा कि “भूमि अधिग्रहण कानून (झारखंड) संशोधन, 2017 के तहत निजी व सरकारी परियोजनाओं के लिए बिना ग्राम सभा की सहमति व सामाजिक प्रभाव आकलन के बहुफसलीय भूमि समेत निजी व सामुदायिक भूमि का जबरन अधिग्रहण हो रहा है।”
वन अधिकारों पर संघर्ष करने वाले जॉर्ज मनिपल्ली ने कहा कि “राज्य सरकार वन पट्टों के आवंटन के बड़े-बड़े दावे कर रही है लेकिन राज्य के हजारों निजी व सामुदायिक दावे लंबित हैं। सरकार ने घोषणा की थी कि 9 अगस्त 2024 को हर ज़िले में 100-100 सामुदायिक वन पट्टों का वितरण किया जायेगा। लेकिन आज तक एक भी काम नहीं हुआ है।”
बिरसा हेमब्रम ने कहा कि “पूर्व की भाजपा सरकार द्वारा राज्य की 22 लाख एकड़ गैर-मजरुआ व सामुदायिक ज़मीन को लैंड बैंक में डाल दिया गया था। बिना ग्राम सभा से पूछे, लैंड बैंक से ज़मीन का आवंटन विभिन्न सरकारी और निजी परियोजनाओं के लिए किया जा रहा है। झामुमो ने इसे रद्द करने का वादा किया था लेकिन इस पर सरकार चुप्पी साधी हुई है।”
धरने की शुरुआत में मंथन ने कहा कि “2019 के विधान सभा चुनाव में झामुमो-कांग्रेस-राजद गठबंधन दल अपने घोषणा पत्र में अनेक जन मुद्दों पर कार्यवाही का वादा किये थे। पिछले 5 सालों में राज्य सरकार ने जन अपेक्षा के अनुरूप कई काम किये हैं लेकिन अनेक महत्त्वपूर्ण वादे अभी भी अपूर्ण है।”
पश्चिमी सिंहभूम से आये हेलेन सुंडी ने पूछा कि “क्या अपनी चुनी हुई सरकार आदिवासियों का अस्तित्व खत्म होने का इंतजार कर रही है?”
अजय एक्का ने कहा कि “यह दुःख की बात है कि इस सरकार में भी संसाधनों और स्थानीय व्यवस्था पर पारंपरिक ग्राम सभा के अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए पेसा की नियमावली नहीं बन पाई।”
लातेहार से आए प्रणेश राणा ने कहा कि “वन विभाग सदियों से खेती कर रहे ग्रामीणों पर फर्जी मामले दर्ज कर रही है।”
बता दें कि आदिवासी समुदाय की मूल समस्याओं के साथ-साथ राज्य में दलित समुदाय भी अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है।
सफ़ाई कर्मचारी आंदोलन के धरम वाल्मीकि ने बताया कि “महज़ जाति प्रमाण पत्र और सीवर सेफ्टी टैंक में हो रही मौत, ये मुख्य संघर्ष है। अनेक दलित युवा प्रमाण पत्र न बनने के कारण पढ़ाई व रोज़गार से वंचित हो रहे हैं। हालाँकि राज्य सरकार ने भूमिहीन परिवारों के जाति प्रमाण पत्र के लिए एक प्रक्रिया बनाकर रखी है, लेकिन वो इतनी जटिल है कि प्रमाण पत्र मिलना ही बहुत मुश्किल है।”
आंगनबाड़ी की सोमवती देवी ने कहा कि “हेमंत सोरेन सरकार ने पांच सालों में कई बार घोषणा की कि मध्याह्न भोजन और आंगनबाड़ी में बच्चों को रोज़ अंडे दिए जायेंगे। लेकिन पांच साल गुज़र जाने के बाद भी सरकार बच्चों की थाली में अंडा नहीं दे पाई है।”
धरना कार्यक्रम में शामिल लोगों ने कहा कि रघुवर दास सरकार की जन विरोधी नीतियों के विरुद्ध 2019 में झामुमो गठबंधन को जनता का व्यापक जनसमर्थन मिला था। इसके बाद पिछले पांच साल में भाजपा व केंद्र सरकार लगातार राज्य सरकार को गिराने की कोशिश में लगी है, बावजूद राज्य सरकार झारखंडी जनता से किये गए वायदों को पूरा नहीं कर पाई है।
धरना कार्यक्रम के अंत में झारखंड जनाधिकार महासभा ने मुख्यमंत्री के नाम एक मांग पत्र दिया जिसमें कहा गया है कि विधान सभा चुनाव से पहले सरकार निम्न कार्यवाई सुनिश्चित करे:
1. लैंड बैंक रद्द करे।
2. भूमि अधिग्रहण कानून (झारखंड) संशोधन, 2017 रद्द करे।
3. लंबित व्यक्तिगत और सामुदायिक वन पट्टों का वितरण करे।
4. ईचा-खरकाई डैम, लुगु बुरु पॉवर प्लांट समेत सभी जन विरोधी परियोजनाओं को रद्द करे।
5. पेसा नियमावली को अधिसूचित कर कड़ाई से लागू करे।
6. दलितों को जाति प्रमाण पत्र व भूमि पट्टा का आवंटन करे।
7. आंगनबाड़ी व मध्याह्न भोजन में रोज़ अंडे दे और 8) लम्बे समय से जेल में बन्द विचाराधीन कैदियों को रिहा करे।
वहीं भोजन के अधिकार अभियान के अनेक साथियों ने अल्बर्ट एक्का चौक पर एक धरना कार्यक्रम के माध्यम से आंगनबाड़ी केन्द्रों में अंडे देने की मांग उठाई। झारखण्ड सरकार ने राज्य के सभी आंगनबाड़ी केन्द्रों में रोज़ाना अंडे देने का वादा किया था। इस वादे को पूरा करने के लिए सरकार की तरफ से निर्देश दिए जा चुके हैं, लेकिन अभियान की फील्ड रिपोर्ट के हिसाब से अभी तक आंगनबाड़ी केन्द्रों में अंडे नहीं मिल रहे हैं। कुछ आंगनबाड़ी सेविकाओं को जानकारी भी नहीं है कि तीन से छः साल के बच्चों को रोज़ एक अंडा देना है।
रंग बिरंगी तख्तियों और उबले अण्डों को हाथों में पकड़े भोजन के अधिकार अभियान के प्रतिभागियों ने जनता के बीच भी मैसेज दे दिया और साथ ही में उन्होंने आंगनबाड़ी केन्द्रों में अंडे देने की ज़रूरत पर एक पर्चा भी बांटा।
योगेन्द्र यादव जो रांची में थे, उन्होंने अपना पूरा समर्थन धरना कार्यक्रम को दिया जबकि वह शाकाहारी हैं और उन्हें अण्डों से एलर्जी (allergy) भी है। उनका कहना था की “आंगनबाड़ी केन्द्रों में अंडे मिलना बेहद ज़रूरी है।”
प्रतिभागियों में योगेन्द्र यादव, ज्यां द्रेज़, एलिना होरो, अशर्फी नन्द प्रसाद, गुरजीत सिंह, मंथन, अम्बिका यादव, टॉम कावला के साथ राज्य के विभिन्न जिलों लातेहार, बोकारो, पलामू, सरायकेला-खरसावां के लोगों ने प्रदर्शन किया। रांची के भी कई सम्बंधित नागरिकों ने भी इस धरना अपनी सहभागिता निभाई।
धरना कार्यक्रम में बताया गया कि यह पहली बार नहीं है जब भोजन के अधिकार अभियान के साथी आंगनबाड़ी केन्द्रों में अंडे की मांग को लेकर सड़क पर उतरे हैं। पिछले कई सालों में जन-आन्दोलनों के जरिए, प्रेस वार्ताओं के जरिए, ज्ञापनों के जरिए तथा संबंधित मंत्रियों से मिलकर भोजन के अधिकार अभियान ने यह मांग बार बार मुख्मंत्री तक पहुंचाई है। लेकिन सरकार अभी तक वास्तविकता में आंगनबाड़ी केन्द्रों में अंडे नहीं दे पाई है। अभियान के साथियों ने एक आवाज़ में कहा कि “यह अभियान तब तक जारी रहेगा जब तक हर आंगनबाड़ी के बच्चों को रोज़ाना अंडे नहीं मिल जाते हैं।”
(झारखंड से विशद कुमार की रिपोर्ट)