आखिर योगी सरकार और उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग को छात्रों के आगे झुकना पड़ा है। आयोग के सचिव ने आंदोलनरत छात्रों के बीच आकर बताया कि अब परीक्षा एक ही दिन एक ही शिफ्ट में होगी। इसके लिए निश्चय ही इलाहाबाद के आंदोलनकारी छात्र बधाई के पात्र हैं।
दरअसल योगी के लिए बेहद अहम उपचुनावों के ठीक बीच में इस तरह के आंदोलन को चलने देना सरकार के लिए राजनीतिक रूप से बेहद नुकसानदेह साबित हो सकता था। इलाहाबाद में छात्रों को एक बार फिर आंदोलन की राह पर जाना पड़ा। दरअसल यह लंबे समय से आयोग प्रशासन की तुगलकी कार्यशैली और भ्रष्टाचार के खिलाफ छात्रों के संचित आक्रोश का विस्फोट था।
छात्रों की यह जीत ऐतिहासिक है 20 हजार छात्र वहां लोकसेवा आयोग के गेट पर डटे हुए थे। यह अभूतपूर्व है। पिछले कई दशकों में पहली बार इतनी बड़ी तादाद में छात्र सड़क पर उतरे। छात्र कैंडल मोबाइल की लाइट कर रात भर प्रदर्शन करते रहे। प्रशासन छात्रों की जायज मांगें पूरी करने की बजाय उनके दमन पर उतारू था।
पीएसी और RAF लगाई गई।12छात्रों के खिलाफ एफआईआर हुई है। छात्रों के समर्थन में वहां जा रहे पूर्व IPS अमिताभ ठाकुर को पुलिस ने हिरासत में ले लिया। मंगलवार दोपहर छात्रों ने थाली बजाकर आयोग के फैसले का विरोध किया। छात्रों ने आयोग का नामकरण लूट सेवा आयोग कर दिया है।
इस बीच भाजपा के अंदर की कलह फिर सतह पर आ गई है।उपमुख्यमंत्री केशव मौर्य जो इलाहाबाद से ही आते हैं, उन्होंने छात्रों के आंदोलन का समर्थन किया था। छात्रसंघ के तमाम भूतपूर्व अध्यक्षों ने भी छात्रों का समर्थन किया है ।अखिलेश यादव ने कहा कि यह आंदोलन योगी बनाम प्रतियोगी छात्र है। उन्होंने छात्रों पर लाठीचार्ज की निंदा की है।
दरअसल आयोग ने PCS प्री की परीक्षा के लिए 7और 8 दिसंबर दो दिन में कराने का फैसला किया था। इसी तरह समीक्षा अधिकारी RO, ARO की परीक्षा 22और 23 दिसंबर को दो दिनों में करवाने का फैसला किया था। जाहिर है दोनों दिन पेपर अलग अलग आते। फिर उनका कथित नॉर्मलाइजेशन किया जाता। छात्रों का यह आरोप है कि इसी की आड़ में भ्रष्टाचार किया जाता है इसलिए वे इसका विरोध कर रहे हैं।
छात्रों ने नारा दिया है एक दिन एक शिफ्ट नॉर्मलाइजेशन नहीं। योगी के नारे की तर्ज पर छात्रों ने नारा दिया है बंटेंगे नहीं, मांगे पूरी होने तक हटेंगे नहीं। आयोग का तर्क है कि वह 41 जिलों में सरकारी विद्यालयों में ही परीक्षा करवा सकता है वरना पेपर लीक होने का खतरा रहेगा। जाहिर है यह तर्क बोगस है। यह तो शासन प्रशासन का दायित्व है कि वह परीक्षाओं की शुचिता सुनिश्चित करे और fair परीक्षा करवाए। योगी जी की सरकार जो कानून व्यवस्था में अपनी पीठ थपथपाती नहीं थकती है वह एक परीक्षा करवा पाने में अपने को अक्षम पा रही है।
बताया जा रहा है कि नॉर्मलाइजेशन एक शिफ्ट में जो छात्र हैं उनमें से उच्चतम जिसके अंक हैं उसके परसेंटाइल के आधार पर अन्य छात्रों के अंक निकाले जाएंगे। इसी तरह दूसरी शिफ्ट के छात्रों के अंक भी निकाले जाएंगे। और फिर मेरिट लिस्ट तैयार की जाएगी। जाहिर है यह पूरी प्रक्रिया संदेह के घेरे में है।
इसमें पारदर्शिता नहीं है और छात्रों को वाजिब संदेह है कि इसकी आड़ में भ्रष्टाचार होगा। दरअसल छात्रों की आशंका को निर्मूल नहीं खा जा सकता। पिछले कई वर्षों से प्रतियोगी परीक्षाओं के शुचिता के साथ आयोजन और deserving प्रतियोगी छात्रों के चयन को लेकर उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग की साख रसातल छू रही है।
छात्रों के इस आंदोलन में नौकरियों और रोजगार को लेकर उनके संचित आक्रोश का विस्फोट दिखता है। आज देश के हर तीन बेरोजगारों में दो ग्रेजुएट युवा हैं। यह खौफनाक स्थिति है।
बहरहाल सरकार छात्रों की जायज मांगों को मानने की बजाय उनके आंदोलन को तोड़ने के लिए तरह तरह के हथकंडे अपना रही थी। आंदोलन के चौथे दिन से पुलिस प्रशासन द्वारा यह माहौल बनाया जा रहा था कि इसमें अपराधी और असामाजिक तत्व घुस गए हैं, जिनमें से कई जेल जा चुके हैं। छात्रों ने आरोप लगाया कि सच्चाई यह है कि पुलिस सिविल ड्रेस में छात्रों के बीच घुसकर उनके साथ गाली गलौज कर रही है और उन्हें वहां से खदेड़ने की कोशिश कर रही है।
अब यह सर्वविदित है कि भाजपा सरकार का किसी आंदोलन को तोड़ने का यह स्टैंडर्ड फॉर्मूला है। दिल्ली के बॉर्डर पर चले ऐतिहासिक किसान आंदोलन को बदनाम करने के लिए इस सरकार ने क्या कुछ नहीं किया। कहा गया कि इसमें अपराधी घुसे हुए हैं। इसमें खालिस्तानी घुसे हुए हैं। और 26 जनवरी को लाल किले पर निशान प्रकरण के बाद तो इस नाम पर पूरी तरह कुचल देने की कोशिश हुई। लेकिन किसानों की सूझ बूझ और साहस से सरकार की आंदोलन को तोड़ने, बांटने, कुचल देने की साजिश कामयाब नहीं हुई।
इलाहाबाद में छात्रों ने भी अपनी अदम्य ताकत और सतर्कता से प्रशासन की कोई चाल कामयाब नहीं होने दी और अंततः सरकार को उनके आगे झुकना पड़ा।
जाहिर है छात्रों की इस जीत का संदेश दूर तक जाएगा। जरूरत इस बात की है सरकार द्वारा निजीकरण आदि तरीकों से और अपनी नवउदारवादी नीतियों द्वारा बड़े पैमाने पर रोजगार का जो ध्वंस किया जा रहा है उसके खिलाफ भी छात्र युवा इसी तरह जुझारू एकता का निर्माण करते हुए उठ खड़े हों।
यह स्वागत योग्य है कि 18नवंबर को युवा मंच की पहल पर दिल्ली में इसी सवाल पर एक सफल सम्मेलन हुआ, जिससे प्रख्यात अर्थशास्त्रियों ने तर्कों और तथ्यों से यह साबित किया कि अगर सरकार के अंदर इच्छाशक्ति हो तो सुपर रिच तबकों पर संपत्ति और उत्तराधिकार के कर लगाकर देश में सभी बेरोजगारों के लिए रोजगार की गारंटी की जा सकती है। उम्मीद है आने वाले दिनों में यह पहल आगे बढ़ेगी और इलाहाबाद के सफल ऐतिहासिक आंदोलन से प्रेरणा लेते हुए पूरे देश के छात्र युवा संगठन लामबंद होकर इस दिशा में आगे बढ़ेंगे।
(लाल बहादुर सिंह इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ पूर्व अध्यक्ष हैं।)
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