कर्नाटक हाईकोर्ट ने राज्य में ऑपरेशन कमल की जांच को मंजूरी दी

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कर्नाटक के मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा भाजपा के लिए लगातार शर्मिंदगी का कारण बनते जा रहे हैं। लेकिन वे भी क्या करें भाजपा किसी भी कीमत पर सत्ता में रहना चाहती है, भले ही उसे जनादेश न मिला हो। भाजपा ने इसके लिए ऑपरेशन कमल का सहारा लिया है और एक के बाद एक राज्य में विपक्षी सरकारों के विधायकों  को तोड़कर दलबदल कानून की परिभाषा ही बदल दी है। भाजपा के दलबदल में विधायकों से विधानसभा से ही इस्तीफा दिलाकर कृतिम तौर पर बहुमत पा लिया जाता है, जिसमें महामहिम राज्यपाल और न्यायपालिका की भूमिका भी उनके पक्ष में होती है और भाजपा की सरकार बन जाती है। बाद में उपचुनाव में इन दलबदलुओं को भाजपा अपने टिकट पर चुनाव लड़ाती है और जीतने पर मंत्री पद भी देती है।     

बीएस येदियुरप्पा की इतनी दबंगई है कि भाजपा आलाकमान उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटाना चाहता है पर हटा नहीं पा रहा है। दरअसल येदियुरप्पा सरकार को एक के बाद एक करारा झटका लग रहा है। राज्य अभी सेक्स सीडी कांड से उबर भी नहीं पाया है कि अब कर्नाटक हाईकोर्ट ने राज्य में ऑपरेशन कमल  मामले की जांच को मंजूरी दे दी है। इसकी एफआईआर जनता दल सेक्युलर के नेता नागन गौड़ा के पुत्र शरण गौड़ा ने दर्ज कराई थी। कर्नाटक हाईकोर्ट ने एफआईआर को रद्द करने की याचिका को खारिज कर दिया। इसलिए यह साफ हो गया है कि इस मामले की जांच की जाएगी।

येदियुरप्पा पर आरोप है कि प्रदेश की कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन सरकार को गिराने के लिए उन्होंने ही साजिश रची। कर्नाटक के मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा का एक कथित वीडियो वायरल हुआ था। इसमें वह हुबली में भाजपा की कोर कमिटी को संबोधित करते हुए नजर आ रहे थे। कथित तौर पर उन्हें यह कहते हुए सुना गया था कि भाजपा के राष्ट्रीय नेताओं, जिसमें अमित शाह भी शामिल थे, उनके निर्देश पर राज्य में ऑपरेशन कमल चलाया गया था।

बेंगलुरु ही वह जगह है, जहां ऑपरेशन कमल शब्द का इस्तेमाल पहली बार हुआ। 2008 में कर्नाटक की सत्ता संभालने वाली बीएस येदियुरप्पा सरकार ने विधानसभा में पूर्ण बहुमत के लिए पहली बार इस पैटर्न पर चली और सात विपक्षी विधायकों पर डोर डाले। इसमें चार जेडीएस और तीन कांग्रेस से थे। सीधे शब्दों में कहें तो ऑपरेशन कमल भाजपा की ओर से दूसरे दलों के विधायकों को अवैध तरीके से अपनी ओर लाने का एक मिशन भी है।

भाजपा को ऑपरेशन कमल के तहत कई राज्यों में सफलता मिली है। इसकी शुरुआत कर्नाटक से हुई। इसके बाद भाजपा ने गोवा, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश में सरकार बनाई। इसके बाद बड़ा उलटफेर करते हुए भाजपा ने मध्यप्रदेश में सत्ता परिवर्तन किया। यहां पर भाजपा ने ऑपरेशन कमल के तहत कमलनाथ की सत्तासीन सरकार के अल्पमत के डालकर शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठा दिया।

कांग्रेस जेडीएस ने दावा किया था कि भाजपा ने 2019 में कर्नाटक में महागठबंधन सरकार को गिराने की साजिश रची थी। कांग्रेस ने इस मामले की न्यायिक जांच की मांग की थी। 2018 में कर्नाटक विधानसभा चुनाव के बाद, कांग्रेस-जेडीएस ने हाथ मिलाया और त्रिशंकु विधानसभा में सत्ता हासिल की। 2019 में, कर्नाटक में सत्तारूढ़ गठबंधन के कुछ नेता अचानक भाजपा में शामिल हो गए। इससे येदियुरप्पा के नेतृत्व में एक नई सरकार राज्य में अस्तित्व में आई।

दरअसल कांग्रेस-जद(एस) के 15 विधायक जून 2019 में विधानसभा से इस्तीफा देकर मुंबई चले गए थे। विधायकों के इस्तीफे के बाद तत्कालीन कर्नाटक विधानसभा अध्यक्ष ने बागी विधायकों को अयोग्य ठहरा दिया था। इसके बाद 14 महीने पुरानी कांग्रेस-जद(एस) सरकार जुलाई में कर्नाटक में बहुमत साबित करने में विफल रही और गिर गई। इसके बाद बीएस येदियुरप्पा चौथी बार कर्नाटक के मुख्यमंत्री बने थे। कांग्रेस इस मुद्दे पर शुरू से ही भाजपा पर आरोप लगाती रही है कि उसने ऑपरेशन कमल के तहत विधायकों को तोड़कर अपने पाले में कर लिया और प्रदेश की सत्ता अपने हाथ में ले ली।

2018 के विधानसभा चुनाव के बाद भाजपा के पास निर्दलीय के समर्थन से 106 सीटें थीं, जबकि कांग्रेस और जेडीएस गठबंधन के पास 118 विधायक थे। ऐसे में भाजपा की योजना यह थी कि विपक्ष के 14 विधायक इस्तीफा दें, जिसके बाद सदन में सदस्यों की संख्या घटकर 210 हो जाए. ऐसी स्थिति में बहुमत के लिए 106 सीट चाहिए थीं जो कि भाजपा को हासिल सीटों के बराबर थी। हालांकि उसे कामयाबी नहीं मिली। लेकिन आगे चलकर 2019 में भाजपा विपक्ष के 15 विधायकों को अपने खेमे में लाने में कामयाब रही और कांग्रेस-जद(एस) की सरकार जुलाई 2019 में गिर गई।

ऑपरेशन कमल की शुरुआत भाजपा के तत्कालीन मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ने ही की थी। दरअसल 2008 के कर्नाटक विधानसभा चुनाव में भाजपा ने बीएस येदियुरप्‍पा की अगुआई में सबसे अधिक 110 सीटों पर कब्जा जमाया, लेकिन बहुमत से तीन सीट दूर रह गई। ऐसे में येदियुरप्‍पा छः निर्दलीय विधायकों की मदद से मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे। लेकिन इसके बाद सदन में अपनी ताकत बढ़ाने के लिए येदियुरप्‍पा ने ऑपरेशन कमल चलाया जिसके अंतर्गत विपक्षी विधायकों को तोड़ने के लिए धनबल का इस्तेमाल किया गया। फिर सदन में भाजपा के विधायकों की संख्या 124 तक पहुंच गई। ऑपरेशन कमल की बदौलत ही 2008 में मुश्किल से सत्ता में आई भाजपा पांच साल तक कर्नाटक में कायम रह सकी।

कांग्रेस के मुताबिक, ऑपरेशन कमल कथित तौर पर भाजपा के लिए विपक्षी दलों, विशेष रूप से सत्तारूढ़ दलों को छोड़ने के लिए विधायकों को हासिल करने की कोशिश है।

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