जिस भारत और पाकिस्तान के बंटवारे के लिए लाखों लोगों को मार दिया गया। बचे हुए कुछ लोग उन क़िस्सों को लेकर वहशी बने रहे और नफ़रत बोते रहे। आज उसी भारत पाकिस्तान की सीमा पर एक छोटा सा गलियारा शुरू हुआ है। 4.7 किमी का गलियारा। उस सीमा को काटते हुए एक ऐसा रास्ता बनाता है जो राष्ट्र-राज्य की ज़मीन पर नहीं इंसानियत की ख़ूबसूरत कल्पनाओं से गुज़रता है। उम्मीद का गलियारा है। जहां लाखों लाशें गिरी हैं, वहां गलियारा बना है। वो भी उस दौर में जब दोनों मुल्क एक-दूसरे को देखना पसंद नहीं करते। मोहब्बत को एक बात समझ आ गई। उसने मैदान छोड़ गलियारा बना लिया।
नफ़रत से लैस भीड़ आज उस करतारपुर कॉरिडोर को देखकर हतप्रभ होगी। ये उसकी समझ से बाहर की चीज़ है। हमारे सिख भाई दरबार साहिब के दर्शन के लिए जा रहे हैं, मगर उन सभी की आत्मा को शांति भी मिलेगी जो नफ़रत की आंधी में मार दिए गए। अगर आज कुछ इतिहास में याद रखने लायक़ हुआ है तो करतारपुर कोरिडोर हुआ है। वाहे गुरु की विनम्रता और साहस सबको मिले। आज अगर सचमुच ईश्वरीय शक्ति ने अपना असर दिखाया है तो यहां दिखाया है।
आज इस गलियारे के दोनों छोर पर दो भाइयों को समझ नहीं आ रहा कि एक दूसरे का शुक्रिया कैसे अदा करें। इतिहास ऐसे छोटे क़द के लोगों से महान नहीं बनता। जब वे चूक जाते हैं तो लोग चुपचाप करतारपुर कोरिडोर बनवा लेते हैं। भारत और पाकिस्तान अपने अपने अहं की जहालत से बाहर आएं और दुनिया के इस हिस्से को सबके लिए बेहतर बनाएं।