अनुच्छेद 370 और 35-ए निरस्त करने के बाद कहीं न कहीं सरकारी ज्यादतियों का शिकार बन रहे कश्मीरियों के हक में पंजाब ने एकबारगी फिर आवाज बुलंद की है। गौरतलब है कि पंजाब देश का ऐसा पहला सूबा है, जहां से पांच अगस्त के बाद लगातार केंद्र के फैसले के खिलाफ और कश्मीरियों के पक्ष में लगातार धरना प्रदर्शन, सभाएं और सेमिनार हो रहे हैं।
इनमें बड़ी तादाद में जम्हूरियत पसंद लोग शिरकत कर रहे हैं। भाजपा के शासन वाली केंद्र सरकार के पुरजोर दावों के बीच कि कश्मीर अब सामान्य है, जालंधर के देश भक्त यादगार हाल में, धारा 370 रद्द करने और कश्मीर में मानव अधिकारों के खुले उल्लंघन के खिलाफ राज्यस्तरीय विशाल सम्मेलन 22 नवंबर को हुआ।
राज्य के विभिन्न संगठनों ने एकजुट होकर ‘कश्मीरी आवाम पर फासीवादी हमला विरोधी जम्हूरी फ्रंट पंजाब’ का गठन किया था और यह सम्मेलन उसी के बैनर तले हुआ। यह भी बता दें कि सम्मेलन स्थल देश भक्त यादगार हॉल, गदर लहर की महान क्रांतिकारी विरासत से जुड़ी अंतरराष्ट्रीय स्तर का सम्मानजनक रुतबा रखने वाली संस्था है। यहां से उठी किसी भी आवाज की गूंज पूरी दुनिया तक जाती है!
‘कश्मीरी आवाम पर फासीवादी हमला विरोधी जम्हूरी फ्रंट पंजाब’ के सम्मेलन में शिद्दत से यह विचार उभर कर सामने आया कि केंद्र सरकार की ओर से जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाली धारा 370 और 35-ए को खत्म करने और राज्य की विधानसभा का दर्जा घटाकर इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने का फैसला सरासर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के राजनीतिक इरादों के साथ किया गया है, जोकि हर लिहाज से असंवैधानिक है।
यहां सर्वसम्मति से पास हुए प्रस्ताव में दो टूक कहा गया की यह सब मोदी सरकार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का पुराना फासीवादी एजेंडा लागू करने के लिए किया। प्रस्ताव में मांग की गई कि जम्मू-कश्मीर में गिरफ्तार और नजरबंद किए गए सियासी नेताओं-कार्यकर्ताओं और बेगुनाह आम नागरिकों को तत्काल रिहा किया जाए। संचार सेवाएं बहाल की जाएं। हर किस्म की पाबंदियां खत्म की जाएं। अतिरिक्त भेजी गई सेना और अन्य सुरक्षा बलों को हटाया जाए तथा उन्हें दिए नागरिक-विरोधी अधिकार वापिस लिए जाएं। जम्मू-कश्मीर में पांच अगस्त से पहले वाली स्तिथि बहाल की जाए।
जम्हूरी फ्रंट के इस सम्मेलन में वक्ताओं ने साफ तौर पर कहा कि आज के दिन कश्मीरियों पर बेहिसाब और बेमिसाल जुल्म किए जा रहे हैं। उन्हें दुश्मन माना जा रहा है और जबरन देश द्रोही बनाया जा रहा है। शेष देश और पूरी दुनिया में घाटी की छवि खलनायक सरीखी बना दी गई है, जबकि सरकार काले कानूनों के सहारे वहां हर आवाज को दबा देना चाहती है। मासूम बच्चों, औरतों और बुजुर्गों पर जुल्म किए जा रहे हैं।
विकलांगों तक को नहीं छोड़ा जा रहा। हजारों घर बंदी ग्रहों में तब्दील कर दिए गए हैं। कुल मिलाकर स्थिति बेहद भयावह है। सरकार और आरएसएस की निगाह में घाटी का हर कश्मीरी मुसलमान देशद्रोही है और यही छवि दुनिया के सामने रखने की कवायद की जा रही है। फासीवाद और अंध राष्ट्रवाद के इस पगलाए जुनून के खिलाफ आवामी लड़ाई लड़नी होगी। नहीं तो आज जो कश्मीर में हो रहा है, कल पूरे देश में होगा।
इस सम्मेलन में कई अन्य मुद्दों को लेकर भी केंद्र के खिलाफ प्रस्ताव पास किए गए। इनमें लोकपक्षीय बुद्धिजीवियों का दमन, भारतीय नागरिकों को धार्मिक पहचान के आधार पर संदेहास्पद और विदेशी करार देना, बाबरी मस्जिद राम जन्मभूमि विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर प्रतिकूल टिप्पणियां करने वालों को प्रताड़ित करना, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के मुस्लिम प्रोफेसर को संस्कृत पढ़ाने से रोकने का प्रकरण, भाषा को धार्मिक रंगत देने की साजिश और लोक विरोधी आर्थिक नीतियां प्रमुख हैं। सम्मेलन में प्रमुख वामपंथी संगठनों के साथ-साथ कतिपय मानवाधिकार संगठनों ने भी शिरकत की। बड़ी तादाद में लोग पंजाब के कोने-कोने से आए थे।
(वरिष्ठ पत्रकार अमरीक की प्रस्तुति। अमरीक आजकल जालंधर में रहते हैं।)
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