केरल सरकार बनाएगी घरेलू कामगारों के लिए कानून

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नई दिल्ली। शुक्रवार को एक स्विस कोर्ट ने ब्रिटेन के दौलतमंद हिंदूजा परिवार के चार सदस्यों को घरेलू नौकरों का शोषण करने के अपराध में सजा सुनाई है। हालांकि उन्हें मानव तस्करी के गंभीर आरोप से मुक्त कर दिया गया है। वैसे हिंदूजा परिवार इस फैसले को ऊपरी कोर्ट में चुनौती देगा। दिलचस्प बात यह है कि ट्रायल शुरू होने के 11 दिनों के भीतर यह फैसला आ गया। 

अभी यह मामला भारत में खबरों की सुर्खियां बन रहा था कि उसी बीच इस स्थल से 7845 किमी दूर केरल के तिरुअनंतपुरम में राज्य के शिक्षा और श्रम मंत्री वी सिवनकुट्टी ने राज्य में घरों में काम करने वाले श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए नया कानून बनाने के केरल सरकार के फैसले की घोषणा की। इसमें न केवल घरेलू नौकरों का कल्याण शामिल है बल्कि उनके अधिकारों की कैसे गारंटी की जाए इसका पूरा प्रावधान किया गया है। केरल की सरकार पहली राज्य सरकार है जिसने सूबे में मौजूद तकरीबन 40 लाख इस बेजुबान श्रमिक आबादी को एक बड़ा तोहफा दिया है। आपको बता दें कि कामगारों में दो तिहाई संख्या महिलाओं की है।

आईएलओ का कहना है कि यह आंकड़ा कुछ और ज्यादा हो सकता है। अभी भारत में घरेलू कामगारों के अधिकारों की रक्षा के लिए कोई कानून नहीं है। आमतौर पर घरों में काम करने वाले-वालियों की ओर से शारीरिक उत्पीड़न और यौन उत्पीड़न की शिकायतें मिलती रहती हैं।

भारत सरकार ने आईएलओ के घरेलू नौकर कन्वेंशन नंबर 189 पर हस्ताक्षर नहीं किया है। इसमें घरेलू कामगारों को एक कामगार के तौर पर उनके अधिकारों को मान्यता दी गयी है। आईएलओ किसी भी सदस्य देश पर लेबर प्रोटोकाल के लिए दबाव डालता है। जिसके तहत किसी भी देश को इसे जरूरी बनाना होता है और कामगारों के हितों की सुरक्षा, जबरन श्रम पर रोक, पीड़ितों की रक्षा और न्याय को सुनिश्चित करने के लिए सरकारों को पर्याप्त उपाय करने होते हैं।

नेशनल पोलिसी ऑन डोमेस्टिक वर्कर्स के नाम से एक ड्राफ्ट फरवरी 2019 से पेंडिंग में है। जिसमें डोमेस्टिक वर्करों की पहचान कर उन्हें गैर संगठित क्षेत्र के कामगार के तौर पर मान्यता देने, अपना यूनियन बनाने, न्यूनतम मजदूरी की गारंटी करने और सामाजिक सुरक्षा तक पहुंच इसके साथ ही कई दूसरी चीजें शामिल की गयी हैं।

37 बिलियन पाउंड्स की संपत्ति के मालिक हिंदूजा ढेर सारी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के मालिक हैं। जिसमें आटोमोबाइल, बैंकिंग, तेल और गैस, रीयल इस्टेट और हेल्थ सेक्टर से जुड़ी कंपनियां हैं। इन पर अपने घरेलू नौकरों का पासपोर्ट जब्त करने और उन्हें 18-18 घंटे काम करने के लिए मजबूर करने का आरोप है। और इसके साथ ही उन्हें पैसे फ्रैंक की जगह भारतीय करेंसी रूपये के रूप में देने का आरोप है। यह ट्रायल 10 जून को शुरू हुआ था। 

मुंबई आधारित नेशनल डोमेस्टिक वर्कर्स मूवमेंट की राष्ट्रीय कोआर्डिनेटर क्रिस्टीन मैरी का कहना था कि भारत में इस तरह के मामले सालों-साल लटके रहते हैं। उन्होंने कहा कि किसी भी केस में जब इस तरह की हाई प्रोफाइल शख्सियत शामिल रहती है तो वह सालों चलता है। हम लोगों के लिए एक घरेलू नौकर के साथ होने वाली किसी शारीरिक या फिर यौन हिंसा के मामले में एफआईआर भी दर्ज करा पाना बहुत मुश्किल है। वो शिकायत लेने से भी परहेज करते हैं।

मैरी की दिल्ली में रहने वाली सहयोगी चिन्मयी समल जो एडीडब्ल्यूएम में कंसल्टेंट हैं, ने उड़ीसा के मयूरभंज जिले से आने वाली एक युवा महिला की संदिग्ध परिस्थितियों में हुई मौत के मामले में एक एफआईआर दर्ज कराने के लिए दिल्ली हाईकोर्ट से संपर्क किया था। उन्होंने बताया कि यह उसका नौकरी का तीसरा साल था। वह अपनी बहन के पति के साथ आयी थी। 2 अप्रैल को वह ग्रेटर कैलाश के एक परिवार का हिस्सा बनी और नौ दिन बाद वह रस्सी से लटकी पायी गयी। पुलिस ने एफआईआर दर्ज करने से मना कर दिया। हम दिल्ली हाईकोर्ट चले गए। उसकी अगली सुनवाई अगस्त में है।

पांच राज्य जो बड़ी तादाद में घरेलू नौकर मुहैया कराते हैं जिनमें ज्यादातर महिलाएं और युवतियां हैं, उनमें पश्चिम बंगाल, असम, उड़ीसा, झारखंड और छत्तीसगढ़ शामिल हैं। घरेलू नौकरों के उत्पीड़न की घटनाएं, मजदूरी न दिया जाना, गलत व्यवहार की घटनाएं बहुत ज्यादा होती हैं।

मैरी ने बताया कि हम लोग अभी हाल में झारखंड के एक युवती का केस लिए हैं जो मुंबई में एक परिवार के यहां काम करती थी लेकिन उसे 11 महीनों से कोई भी सैलरी नहीं दी गयी।

समल ने कहा कि ज्यादातर घरेलू नौकर दिल्ली या फिर उससे जुड़े गुरुग्राम और नोएडा के इलाकों में प्लेसमेंट एजेंसियों के जरिये नौकरी पाते हैं जहां ज्यादातर मामलों में वो कानूनी फ्रेमवर्क के बाहर काम करते हैं।

समल ने बताया कि लड़कियों को शहर में उनके नजदीकी रिश्तेदारों के जरिये लाया जाता है और जब वह प्लेसमेंट एजेंसी के पास पहुंचती हैं तो इस बीच वह दो-तीन हाथों से गुजर चुकी होती हैं। किस तरह का काम करना है इसको लेकर वो बिल्कुल अंधेरे में रहती हैं। मालिक कौन है और उनको कितना भुगतान किया जाएगा इन सब चीजों की कोई जानकारी नहीं होती है। बहुत सारे मामलों में मालिक वर्कर को भुगतान करने की जगह एजेंसी को पैसा देते हैं। लड़की के परिवार को इस बात की कोई जानकारी नहीं होती है कि उनकी लड़की कहां गयी। केवल प्लेसमेंट एजेंसी को पता होता है कि वह कहां काम कर रही है।

भारत में घरेलू नौकरों के लिए काम करने की अवधि 16-18 घंटों तक विस्तारित हो सकती है। इसके साथ ही उन्हें कोई सुविधा या फिर छुट्टी नहीं मिलती है।

बंगाल में घरेलू नौकरों के बीच काम करने वाले सीटू स्टेट कमेटी की सदस्य प्रिथा तह ने बताया कि किसी घरेलू नौकर से यह आशा की जाती है कि वह ट्वायलेट को साफ करे लेकिन उसे इस्तेमाल करने का उसके पास कोई अधिकार नहीं है। मुंबई में मैंने कुछ अपार्टमेंट में देखा कि मेड को सिक्योरिटी गार्ड के लिए बने ट्वायलेट के इस्तेमाल करने की अनुमति थी। उन्होंने बताया कि इसका सबसे बड़ा नुकसान यह है कि उनकी वर्कर के तौर पर मान्यता ही नहीं है। गांवों में डोमेस्टिक वर्कर इतना छोटा है कि उसकी प्रति माह की सैलरी महज 600 रुपये होती है। इस परिस्थिति में बदलाव आना चाहिए।

पश्चिमबंगा गृसहायिका यूनियन 2017 में बनी थी लेकिन अभी भी बंगाल सरकार की ओर से उसे आधिकारिक तौर पर मान्यता मिलनी बाकी है।

एक केंद्रीय मंत्री ने कहा कि अगर यूनियन को समर्थन देती है तो सत्तारूढ़ पार्टी को मध्य वर्ग के अपने वोट को खिसक जाने का खतरा है। यहां तक कि लेफ्ट पार्टी के भीतर भी घरेलू वर्करों के यूनियन बनाने को लेकर रिजर्वेशन है जिसके तहत 75 रुपये प्रति घंटे की न्यूनतम मजदूरी की मांग रखी जानी है।

इस पृष्ठभूमि में केरल सरकार सामने आयी है जो अपने आप में बड़ा फैसला है।

केरल के मंत्री सिवनकुट्टी ने कहा कि इस तरह के वर्करों के रोजगार की रक्षा करना किसी लोकतांत्रिक समाज में एक सरकार की सबसे महत्वपूर्ण जिम्मेदारी होती है। इसलिए सरकार घरेलू वर्करों के कानूनी अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए कानून बनाना मौजूदा समय में एक जरूरत के तौर पर देखती है। उन्होंने कहा कि ड्रॉफ्ट विधेयक में वर्करों के अधिकारों के दमन, उत्पीड़न, हमला और आर्थिक शोषण के खिलाफ उनके अधिकारों की रक्षा का प्रावधान है इसके साथ ही मजदूरी के नियमितीकरण को सुनिश्चित करने की बात भी उसमें शामिल है। 

ड्राफ्ट विधेयक में घरेलू वर्करों के कल्याण, अपने मालिकों और प्लेसमेंट एजेंसियों के साथ कांट्रैक्ट, उनके अधिकार, मालिकों के कर्तव्य, मजदूरी भुगतान की जिम्मेदारी, काम के घंटे, छुट्टियों का लाभ समेत अपराध और उसके लिए दंड का प्रावधान आदि चीजें शामिल की गयी हैं। 

(ज्यादातर इनपुट टेलिग्राफ से लिए गए हैं।)

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