मध्यस्थ टीम की सदस्य सुखमती हपका से सुनिए कोबरा जवान की रिहाई की पूरी कहानी

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बीजापुर। 3 अप्रैल को माओवादी-पुलिस मुठभेड़ में लापता कोबरा के जवान राकेश्वर सिंह मनहास को माओवादियों के चंगुल से कल छुड़ा लिया गया। उन्हें रिहा कराने में मध्यस्थ टीम की मुख्य भूमिका थी। इस टीम में बस्तर के चार सामाजिक संगठनों के कार्यकर्ता और जनप्रतिनिधियों के साथ सात स्थानीय पत्रकार भी शामिल थे। इस तरह से इस काम में कुल 11 लोग सक्रिय थे।

इसी टीम में बीजापुर क्षेत्र के आदिवासी समाज की अध्यक्ष तेलम बोरय्या के साथ आवापली की मृतुण्डा की महिला सरपंच और बीजापुर आदिवासी समाज की उपाध्यक्ष सुखमती हपका के साथ पद्मश्री धरमलाल सैनी और बीजापुर के सात स्थानीय पत्रकार शामिल थे।

मध्यस्थता टीम में गई महिला सरपंच सुखमती हपका ने जनचौक से बातचीत में बताया कि पुलिस और सरकार की तरफ से जवान की रिहाई को लेकर हमसे गोंडवाना समाज की तरफ़ से संपर्क किया गया था। उनका कहना था कि चूंकि वह गोंडवाना समाज की जनप्रतिनिधि हैं और गोंडी भाषा जानने के साथ ही अंदरूनी इलाकों में अच्छी पकड़ रखती हैं। लिहाजा मेरी भूमिका बेहद अहम हो गयी थी। ऊपर से गोंडवाना समाज द्वारा नाम दिए जाने से यह भूमिका और भी ज्यादा जिम्मेदारीपूर्ण हो गयी थी।

उनका कहना था कि इस अपील के बाद हम आदिवासी समाज की तरफ़ से वार्ता करने के लिए तैयार हो गए और मध्यस्थता के लिए बनी 11 सदस्यीय टीम के साथ घटना स्थल की तरफ़ 3 अप्रैल को सुबह 5 बजे उठकर सुरक्षा बलों द्वारा पकड़े गए ग्रामीण को लेकर निकल पड़े और तररेम थाना से लगभग 22 किलोमीटर अंदर गए। हमें उसी स्थान पर बुलाया गया जहां हमला हुआ था।

यहां आस-पास के सभी गांवों के ग्रामीण मौजूद थे। उन्होंने बताया कि उनके साथ 30 से 40 की संख्या में नक्सली भी मौजूद थे।

उन्होंने बताया कि टीम जैसे ही उस जगह पर पहुंची तो तेलम बोरय्या और मुझे अलग से घटना वाली जगह से दूर ले जाया गया। वहां डीवीसी मेम्बर और महिला माओवादी मौजूद थी, उसने हम लोगों से पूछा कि किस कारण और क्यों आए हैं आप लोग? तब तेलम बोरय्या और मैंने उससे जवान की रिहाई के बारे में बताया। इस पर महिला डीवीसी मेंबर ने कहा कि हम आपकी जिम्मेदारी पर इस जवान को रिहा कर रहे हैं लेकिन आपको सुरक्षा बलों के जवानों के सामने यह बात रखनी होगी कि जब भी बल के जवान सुकमा सर्चिंग में आते हैं तो निर्दोष ग्रामीणों को ना पीटें और आपको आदिवासी समुदाय की तरफ़ से सरकार को यह अपील करना है कि जेलों में बंद निर्दोष आदिवासियों को वो रिहा करे।

आदिवासियों पर होने वाले अत्याचारों को वह कम करे। उनका कहना था कि उसके बाद हम दोनों को जनअदालत वाले स्थान पर वापस भेज दिया गया। जनअदालत में बैठे ग्रामीणों ने हमें बताया कि सुरक्षा बल के जवान जब भी सर्चिंग में गांवों में आते हैं तो गांवों से ग़रीब आदिवासियों के घरों में पाले गए मुर्गों और बकरों को उठा ले जाते हैं। साथ ही निर्दोष आदिवासियों को पीटा जाता है। इसके साथ ही सुरक्षा बल के जवान हमें जबरन उठा ले जाते हैं और जेलों में बंद कर देते हैं।

सुखमती हपका ने जनचौक को फोन के माध्यम से बताया कि हमें जवान की रिहाई के लिए घंटों इंतजार करना पड़ा और फिर माओवादी महिला कमांडर की तरफ से एक पत्र भेज कर हमें अलग बुलाया गया और फिर पूछताछ कर वापस भेजने के कई घंटों तक इतंजार करने के बाद शाम को 4 से 5 बजे के बीच जवान को ग्रामीणों की जनअदालत के सामने पेश किया गया और जनअदालत में ग्रामीणों ने कहा कि सुरक्षा बल के जवान ग्रामीण इलाकों में सर्चिंग करने आए लेकिन ग्रामीणों को कोई नुकसान न पहुँचाएं और हम भी उनके जवान को सुरक्षित रिहा कर रहे हैं ऐसा सुखमती हपका द्वारा बताया गया।

फिर इसी के साथ जवान को लेकर मध्यस्थ टीम वापस बीजापुर आ गई।

(बीजापुर से जनचौक संवाददाता रिकेश्वर राणा की रिपोर्ट।)

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