लोकसभा चुनाव 2024: बंगाल में हवा में उड़ गई भाजपा

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और तत्कालीन गृहमंत्री अमित शाह ने बंगाल की आधा दर्जन से अधिक जनसभाओं के संबोधित किया। उन्होंने 42 सीटों में से भाजपा को 35 सीट देने की अपील की पर बंगाल में भाजपा हवा में उड़ गई, क्योंकि उसके बारह उम्मीदवार ही चुनाव जीत पाए। इस हार की वजह तलाश करने के बजाए भाजपा नेता एक दूसरे की गिरेबान पकड़ने की कोशिश कर रहे हैं। सच तो यह है कि भाजपा के नेता 10 साल में भी बंगाल की राजनीतिक संस्कृति को नहीं समझ पाए हैं।

बंगाल में भाजपा नेताओं का एक त्रिकोण बन गया है। इसमें पूर्व प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष, मौजूदा अध्यक्ष सुकांत मजूमदार और विधानसभा में विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी शामिल हैं। मिदनापुर लोकसभा सीट से सांसद रहे दिलीप घोष इस बार चुनाव हार गए हैं। उन्हें इस बार उनके मर्जी के खिलाफ बर्दवान दुर्गापुर लोकसभा केंद्र से उम्मीदवार बनाया गया था। उन्होंने इसके लिए नाम लिए बगैर शुभेंदु अधिकारी को जिम्मेदार ठहराया है। यहां यह भी बता दें कि उन्होंने उन्हें हटाकर सुकांत मजूमदार को प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने को सहजता से नहीं लिया था। दिलीप घोष ने बड़ी बेबाकी से कहा है कि उन्हें हराने के लिए ही उनका लोकसभा केंद्र बदला गया था।

दिलीप घोष के लगातार हमले के बाद शुभेंदु अधिकारी ने पलट कर जवाब दिया है। उन्होंने कहा है कि सोशल मीडिया पर जो लोग हमें ज्ञान दे रहे हैं वे स्थानीय राजनीति से वाकिफ ही नहीं हैं। इस हार के बावजूद भाजपा का वोट एक प्रतिशत बढ़ा है। यहां गौरतलब है कि भाजपा में पुराने और अन्य दलों से आने वाले नेताओं के बीच विवाद काफी पहले से है अब यह और गहरा हो गया है। दिलीप घोष ने कहा है कि ओल्ड इज गोल्ड। प्रदेश भाजपा सचिव राजू बनर्जी ने दिलीप घोष के आरोपों का समर्थन किया है। उन्होंने कहा है कि उन्होंने तो काफी पहले यह स्पष्ट कर दिया था कि अगर पुराने नेताओं को सक्रिय नहीं किया जाएगा तो चुनाव परिणाम अच्छा नहीं आएगा।

पिछली सरकार में मंत्री रहीं देवाश्री चौधरी ने भी यही सवाल उठाया है। वह पिछले लोकसभा में रायगंज से विजयी रही थीं पर इस बार उन्हें कोलकाता दक्षिण से टिकट दे दिया गया और वह चुनाव हार गईं। यहां उल्लेखनीय है कि 1980 से इस लोकसभा क्षेत्र से विपक्ष का कोई उम्मीदवार विजयी नहीं रहा है। उनका सवाल है कि क्या उन्हें हराने के लिए ही इस सीट से उम्मीदवार बनाया गया था। मिदनापुर से भाजपा की उम्मीदवार रहीं अग्निमित्र पाल ने शुभेंदु अधिकारी के पक्ष में बयान दिया है। भाजपा के एक और नेता व चुनाव में विजयी रहे सौमित्र खान ने कोर कमेटी को नाकाबिलों की एक फौज करार दिया है।

पिछली सरकार में मंत्री रहे नीसिथ प्रामाणिक और सुभाष सरकार भी चुनाव हार गए हैं। यह भी आरोप लगाया जा रहा है कि कुछ नेताओं का अंदरखाने तृणमूल कांग्रेस से समझौता हो गया था। इस चुनाव का एक सच यह भी है कि अगर माकपा और कांग्रेस के उम्मीदवारों ने वोट नहीं काटा होता तो भाजपा के 6 और उम्मीदवार पराजित हो जाते, फिर तो 12 की यह संख्या सिमट कर 6 पर आ जाती। इसके अलावा एक और आशंका भी है। तृणमूल कांग्रेस के नेताओं का दावा है कि इन बारह में से कम से कम तीन लोकसभा के शपथ ग्रहण समारोह से पहले तृणमूल में शामिल हो सकते हैं।

2019 के बाद से भाजपा का लगातार ग्राफ गिरने के दो कारण हैं। पहली वजह यह है कि तृणमूल कांग्रेस के जुल्म से बचने के लिए तृणमूल विरोधी मतदाता और वाममोर्चा व कांग्रेस के समर्थक भाजपा में चले गए थे। अब उनकी वापसी शुरू हो गई है। ऊपर जिन 6 लोकसभा सीटों का जिक्र किया है उनकी कहानी भी कुछ ऐसी ही है। इन छह लोकसभा सीटों पर इस वापसी के कारण ही भाजपा के उम्मीदवार हार गए। वाममोर्चा और कांग्रेस की अपनी राजनीतिक जमीन वापस पाने की कोशिश भाजपा को और कमजोर करेगी।

दूसरी बात यह है कि बीजेपी बंगाल की सामाजिक व्यवस्था को अभी तक नहीं समझ पाई है। बंगाल का समाज बेहद उदार है और इसमें खुलापन भी है। यहां गौ माता के नाम पर मॉब लिंचिंग नहीं होती है। इतने सारे मुद्दे हैं, टीचर नियुक्ति घोटाला, राशन घोटाला, मनरेगा घोटाला। माकपा और कांग्रेस के नेताओं ने इन मुद्दों को उठाया था पर भाजपा जय श्री राम और भारत माता की जय में ही उलझकर रह गई। अब जब फैजाबाद मंडल में ही जय श्री राम नारे की हवा निकल गई तो भला बंगाल में यह क्या असर डालेगा।

यह एक सच है कि बंगाल में कभी भी किसी राजनीतिक सभा में देवी देवताओं के नाम पर जयकारा नहीं लगाया जाता रहा है। भाजपा नेताओं ने इसकी शुरुआत की थी। भाजपा नेताओं ने तो अब जय जगन्नाथ का हाथ थाम लिया है। अब बंगाल में भाजपा नेता क्या इसी राह पर चलेंगे या फिर जमीनी हकीकत को मुद्दा बनाते हुए अगले विधानसभा चुनाव से पहले राजनीतिक जमीन तैयार करेंगे। यह फैसला उन्हें करना है।

(पश्चिम बंगाल से जेके सिंह की रिपोर्ट)

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