नई दिल्ली। रिपब्लिक टीवी के संपादक अर्णब गोस्वामी के ख़िलाफ़ महाराष्ट्र सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुँच गयी है। उसने मुंबई के डिप्टी पुलिस कमिश्नर की तरफ़ से सुप्रीम कोर्ट में अर्ज़ी दाखिल कर अर्णब पर पुलिस को धमकाने का आरोप लगाया है।
आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने देश के विभिन्न भागों में दर्ज एफआईआर पर तीन हफ़्ते तक अर्णब के ख़िलाफ़ किसी भी तरह की कड़ी कार्रवाई पर रोक लगा दी थी। विभिन्न थानों में दर्ज इन नामज़द रिपोर्टों में अर्णब पर कांग्रेस की नेता सोनिया गांधी का अपमान करने का आरोप लगाया गया है। इसके साथ ही इसमें उन पर अपने डेली शो के जरिये सांप्रदायिकता भड़काने का आरोप भी शामिल है।
आवेदन में कहा गया है कि अर्णब पूछताछ करने वाले अधिकारियों के साथ ग़लत व्यवहार कर रहे हैं। यहाँ तक कि जवाब देने की जगह उलटे उनसे सवाल पूछने लगते हैं। और इस तरह से जाँच की प्रक्रिया को बेहद नुक़सान पहुँचा रहे हैं। उसका कहना है कि इस तरह से कोर्ट से हासिल अंतरिम प्रोटेक्शन का अर्णब बेजा इस्तेमाल कर रहे हैं।
आवेदन में कहा गया है कि एफ़आईआर के सिलसिले में पूछताछ के बाद अर्णब ने अपने ‘रिपब्लिक भारत’ के शो में पुलिस पर पक्षपाती होने का आरोप लगाते हुए उसको कलंकित करने का काम किया।
इस सिलसिले में अर्णब के संस्थान की ओर से किए गए कई ट्वीट का भी हवाला दिया गया है। पुलिस ने बताया कि संस्थान के एक ट्वीट में कहा गया है कि “पुलिस याचिकाकर्ता के ख़िलाफ़ पक्षपाती थी।” या फिर “पुलिस ग़ैरज़रूरी तरीक़े से याचिकाकर्ता से कई घंटों तक पूछताछ कर रही है। “
इससे आगे आवेदन में कहा गया है कि अपने डिबेट शो “पूछता है भारत” में गोस्वामी मुंबई पुलिस कमिश्नर के ख़िलाफ़ ढेर सारे झूठे बयान देते हैं। जिसमें वह कहते हैं कि मुंबई पुलिस कमिश्नर ने याचिकाकर्ता के एफआईआर को दबा दिया। इसके साथ ही अर्णब ने कहा था कि “वह (मुंबई पुलिस कमिश्नर) इंडिया बुल्स के साथ शामिल थे जो एक घोटाला है और यह कि याचिकाकर्ता इंडिया बुल्स की जाँच कर रहा है।“
आवेदन में कहा गया है कि “रिपब्लिक भारत चैनल की बहस में दिया गया बयान जाँच में शामिल अफ़सरों को धमकाने, आतंकित करने और अर्दब में लेने के मक़सद से किया गया है।”
आवेदन में कहा गया है कि गोस्वामी की ये हरकतें बेहद परेशान करने वाली हैं। इसके साथ ही इसके जरिये पुलिस की संस्था को ख़ारिज करने की कोशिश की गयी है। और यह सब कुछ पत्रकार और रिपब्लिक टीवी के एडिटर की अपनी पोजिशन के बेजा इस्तेमाल करने के ज़रिये किया जा रहा है।
आवेदन के आख़िरी में कहा गया है कि “याचिकाकर्ता अपनी कहानी को बताते हुए ऑन एयर हुआ और इस दौरान पुलिस स्टेशन के भीतर वह अपने रिपोर्टर्स, कैमरामैन समेत पूरे जत्थे को साथ रखा था जहां उसने एक तरह से पुलिस को निर्देशित करने का काम किया और फिर उसके इशारे पर किसी ख़ास तरीक़े से काम करने के लिए कहा गया। इसके पहले भी केस के सामने आने और उसके रजिस्ट्रेशन के दौरान भी याचिकाकर्ता ने हर चरण में पूरे घटनाक्रम को मीडिया की नज़रों से ओझल नहीं होने दिया।”
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