नई दिल्ली। एनसीपी (एसपी) चीफ शरद पवार ने शनिवार को यह दावा किया है कि महाराष्ट्र में पूरे चुनावी तंत्र को नियंत्रित करने के लिए सत्ता और पैसे का बेजा इस्तेमाल किया गया है। जबकि यह बात विधानसभा या फिर राष्ट्रीय चुनावों में कभी नहीं देखी गयी।
पवार ने यह बात उस समय कही जब वह वरिष्ठ एक्टिविस्ट डॉ. बाबा आढव को देखने गए थे जो इस समय हालिया विधानसभा चुनाव में ईवीएम के बेजा इस्तेमाल के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं।
आढव जो अब 90 साल को गए गए हैं, ने सामाजिक सुधारक ज्योतिबा फुले के निवास स्थान ‘फुले वाडा’ में गुरुवार को तीन दिन का अनशन शुरू किया।
विपक्षी महाविकास अघाड़ी (एमवीए) के घटक दल कांग्रेस, शिवसेना (यूटीबी), एनसीपी (एसपी) हाल के संपन्न हुए महाराष्ट्र विधानसभा के चुनावों में ईवीएम से छेड़छाड़ का आरोप लगा रहे हैं। गौरतलब है कि इस चुनाव में माहयुति की बड़ी जीत हुई है।
महायुति ने शिवसेना, बीजेपी और एनसीपी मिलाकर 288 विधानसभा सीटों में से 230 सीटों पर जीत दर्ज की है। जबकि एमवीए महज 46 सीटों पर सिमट गया। रिपोर्टरों से बात करते हुए पवार ने कहा कि हाल में देश में चुनाव संपादित हुए हैं और इसको लेकर लोगों में बेचैनी बनी हुई है। उन्होंने कहा कि बाबा आढव का आंदोलन उस बेचैनी का प्रतिनिधित्व करता है।
उन्होंने कहा कि लोगों के बीच इस बात को लेकर दबी जुबान से चर्चा चल रही है कि हाल के महाराष्ट्र के चुनावों ने सत्ता का बेजा इस्तेमाल और बेहिसाब पैसे का बहाया जाना देखा, जो पहले कभी नहीं था। इस तरह की बातें स्थानीय चुनावों में सुनी जाती थीं लेकिन पूरे चुनावी तंत्र को पैसे और सत्ता की ताकत से अपने हाथ में ले लेना ऐसी बात पहले कभी नहीं देखी गयी। हालांकि हमने महाराष्ट्र में यह देखा और लोग इसको लेकर बेचैन हैं। उन्होंने आगे कहा कि लोग समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायण को याद कर रहे हैं और यह सोच रहे हैं कि कोई इसको आगे बढ़ाए।
पवार ने कहा कि मैंने सुना कि बाबा आढव ने इस मुद्दे पर अगुवाई ली है और वह फुले वाडा में धरना दे रहे हैं। उनका विरोध लोगों को उम्मीद बंधाता है। लेकिन यह काफी नहीं है। आम लोगों का एक विद्रोह जरूरी है जैसा कि संसदीय लोकतंत्र का बर्बाद होना बिल्कुल साफ-साफ दिख रहा है।
पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा कि जिन लोगों के हाथ में यह देश है उनकी इसकी थोड़ी भी फिक्र नहीं है।
देश में इस पर विस्तार से चर्चा होने के बावजूद जब भी विपक्ष संसद के भीतर इस मुद्दे को उठाने की कोशिश करता है तो उसे बोलने की इजाजत नहीं दी जाती है। पिछले छह दिनों से विपक्ष के नेता इस मुद्दे पर बोलने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन उनकी मांग को यहां तक कि एक दिन भी स्वीकार नहीं किया गया। यह दिखाता है कि वो संसदीय लोकतंत्र पर हमला करना चाहते हैं।
उन्होंने कहा कि डॉ. आढव का विरोध-प्रदर्शन इस बात का बेहतरीन उदाहरण है कि कोई इस मुद्दे के खिलाफ विद्रोह कर रहा है और इस बात का भरोसा जताया कि उनका विरोध एक लहर पैदा करेगा।