जालंधर। नागरिकता संशोधन विधेयक के विरोध में पंजाब के संगरूर जिले का मुस्लिम बहुल शहर मलेरकोटला पूरी तरह से बंद रहा। ऐतिहासिक मलेरकोटला पंजाब का एकमात्र बड़ी मुस्लिम आबादी वाला शहर है और अमन व सद्भाव की मिसाल के तौर पर देशभर में अपनी अलहदा पहचान रखता है। 2011 की मतगणना के मुताबिक मलेरकोटला की मुस्लिम आबादी 68. 5 फ़ीसदी है। स्थानीय विधायक भी मुस्लिम हैं। शुक्रवार सुबह विभिन्न सामाजिक एवं कुछ धार्मिक संगठनों ने हड़ताल का आह्वान किया तो देखते-देखते शहर बंद हो गया। इस खबर को लिखने तक मुस्लिम तबके के लोग बड़े पैमाने पर मुख्य जामा मस्जिद में इकट्ठा होकर बैठक कर रहे थे। इससे पहले शहर की सड़कों पर लंबा जुलूस निकाला गया जिसमें नागरिकता संशोधन विरोधी बिल का पुरजोर विरोध करते नारे लगाए गए।
संगरूर के एक वरिष्ठ आला अधिकारी ने फोन पर इस संवाददाता को बताया कि शहर में शांति है लेकिन हड़ताल और बंद के मद्देनजर भारी पुलिस फोर्स तैनात कर दी गई है। पंजाब सरकार स्थिति पर नजर रखे हुए है। गौरतलब है कि इससे पहले पंजाब के प्रमुख मुस्लिम संगठन नागरिकता संशोधन बिल के विरोध में वक्तव्य दे चुके हैं। यही नहीं, मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और कुछ सिख संगठन भी इस बिल का विरोध कर रहे हैं। मुख्यमंत्री ने तो इस बिल के विरोध में विधानसभा का विशेष अधिवेशन बुलाकर इसके खिलाफ प्रस्ताव पारित करने की बात भी कही है।
मलेरकोटला के मजीद अहमद ने बताया कि यह बिल मुसलमानों को एकदम बेगाना बनाता है और संदिग्ध भी। पंजाब यूनिवर्सिटी पटियाला में शिक्षारत मलेरकोटला के रहने वाले अनवर सुहैल ने इस संवाददाता से कहा कि इस बिल के प्रावधानों में सिर्फ मुसलमानों को बाहर रखना दरअसल भारत को हिंदू राष्ट्र बनाए जाने की साजिश है, अब तो बस घोषणा शेष है। शिरोमणि अकाली दल ने इस मामले में भाजपा का साथ देकर मुस्लिम अल्पसंख्यकों के साथ बड़ा धोखा किया है।
मलेरकोटला के एक अन्य बाशिंदे तारीक जफर ने कहा कि हमें पंजाब के हिंदू सिखों से कतई कोई शिकायत नहीं, वे भाइयों की मानिंद हमारे साथ हैं लेकिन सरकार की बेगानगी असहनीय है और अपनी भावनाओं के प्रकटीकरण के लिए हमने आज शहर बंद रखा है ताकि सबको पता चले कि हमारे दिलों में क्या चल रहा है। गौरतलब है कि शुक्रवार को रोष में बंद होने वाला पंजाब का शहर मलेरकोटला इसलिए भी जाना जाता है कि इसके नवाब ने कभी गुरु गोविंद सिंह जी के साहबजादे पर जुल्म के खिलाफ आवाज उठाई थी। हिंदू सिखों ने 1947 में इस शहर पर हल्की सी भी आंच नहीं आने दी थी। मशहूर गीतकार इरशाद कामिल और उर्दू अफसाना गार रामलाल इसी शहर की मिट्टी की पैदाइश हैं।
(अमरीक सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल जालंधर में रहते हैं।)
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