We Were Here

….रात के ढाई बजे हैं और लोधी कॉलोनी की सड़कों पर दसवीं में पढ़ने वाली श्रद्धा ऐसा ही कुछ उकेर रही है, जो इस इलाके की दीवारों पर उकेरे गए आर्ट से मेल खा रहा था। अब से दो तीन घंटे बाद जब इस सरकारी कॉलोनी में रह रहे लोग-बाग उठकर मॉर्निंग वॉक करेंगे या फिर बच्चों को छोड़ने स्कूल जाएंगे तो सोचेंगे ज़रूर कि ये कौन था जो रात के आधे पहर में अपने आने के निशान छोड़ गया है…
दरअसल ये दिल्ली की ही लड़कियां हैं, जो 14 अगस्त की रात दिल्ली की बेरहम कही जाने वाली सड़कों पर आजादी की नाइट वॉक पर निकली हैं। मकसद 14 अगस्त की रात भर चलना था, 15 अगस्त की सुबह तक यानि कुल 12 घंटे की रात की सैर

इस वॉक में 15 साल से लेकर 35 साल तक की महिलाएं शामिल थीं, हर महीने इस तरह की वॉक ये ग्रुप्स आयोजित करते रहते हैं, इस बार वसंत कुंज से शुरु होने वाली ये वॉक इंडिया गेट तक थी। जिसके चार मीटिंग प्वाइंट्स तय हुए थे, IIT मेट्रो इनमें से एक था । कॉलेज की एक लड़की जैसे ही वॉक से जुड़ी उसने कहा, मैं जैसे ही घर से बाहर निकल रही थी तो पड़ोस वाली आंटी ने कहा, बेटा कहां जा रही हो अब तो 10.30 बज गए हैं। सही नहीं है अब निकलना।

उस पर सुन रही एक दूसरी लड़की ने कहा, तुम्हें कहना चाहिए था, आंटी आप भी साथ आइये। इस तरह डिफेंस कॉलोनी की ओर बढ़ते कदमों की ताल के साथ हंसी भी ताल मिलाने लगी ।
ऐसी बहुत सारी वॉक्स की अगुवा रही मल्लिका तनेजा कहती हैं, इस वॉक का एक बड़ा मकसद है, वो ये कि लोग रात में लड़कियों को देखने की आदी हो जाएं। कई बार दिक्कतें आती भी हैं लेकिन लड़कियों के झुंड को देखकर लोग पीछे हट जाते हैं। कई बार तीन-चार लड़कों ने कार से पीछा भी किया है हूटिंग तो आम बात है, होती रहती है, लेकिन इससे ज्यादा कोई कुछ करने की हिम्मत नहीं जुटा पाता।

मल्लिका ये बता ही रही थीं कि सामने से बाइक पर एक चौबीस-पच्चीस साल का लड़का गुज़रा, पहले पहल उसे समझ ही नहीं आया कि ये हो क्या रहा है, क्यों लड़कियां रात में चल रही हैं। वो आगे निकल गया, फिर बाइक मोड कर दोबारा आकर देखने लगा कि ये माजरा क्या है। वॉक कोआर्डिनेटर मेघना कहती हैं—देखिए यही बदलना है। दिल्ली और दिल्ली के लोगों के साथ लड़कियों का रिश्ता। दोनों को समझना पड़ेगा कि पब्लिक स्पेस सब के लिए है।

ये सड़कें और फुटपाथ उतनी ही लड़कियों की भी हैं। जितनी किसी भी दिल्ली वाले की। इन वॉक्स का मकसद दिल्ली शहर की आलोचना करना या हंगामा खड़ा करना नहीं है। हम तो बहुत आराम से टहलते हुए, रात की खबूसूरती का आनंद लेते हुए चलते हैं, बस मकसद ये है कि लड़कियां रात आठ बजे के बाद कारों या घरों तक सिमट कर ना बैठ जाएं।

बीच-बीच में संगीत बजाती, गाना गाती और कविता सुनाती इन लड़कियों में से कोई एक किसी बेंच, पेड़ या सड़क पर एक नन्हा सा स्टिकर लगा देती है, जिस पर लिखा है, आधी रात की औरतें
अब रात गहरा गई है। 15 में से अब महज 8 ही लड़कियां रह गई हैं चार नई लड़कियां लाजपत नगर से जुड़ेंगी और अब सब उसी की तरफ चलने लगे । लाजपत नगर फ्लाईओवर के नीचे एक दर्जन रिक्शे वाले अपने रिक्शों पर ही सो रहे थे। बगल में बड़े-बड़े शोरूम की आंखें चुंधिया देने वाली रोशनी उनकी थकी मांदी आंखों को उठाने के लिए जैसे काफी नहीं थीं। इन शोरूम्स के बाहर चौकीदार कुर्सी लगाकर लड़कियों को देख रहा था। ये नजारा अब उसके लिए नया नहीं था। पिछले हफ्ते भी कुछ लड़कियां इसी तरह रात में यहां से गुज़री थीं। वो मुस्कुराया और कहा अच्छा है।
वैसे दिल्ली में रात में निकलने वाले जानते हैं कि यहां बेघरों की तादाद कितनी बड़ी है। फ्लाईओवर के अलावा सड़क के चौराहों पर भी लोग खुले आसमान के तले पूरे परिवार समेत रहने को मजबूर हैं।
लड़कियों ने 10-15 मिनट लाजपत नगर के एक पार्क में सुस्ता कर बिताए। पास में एक लड़की का घर था तो वो वहां से सबके लिए चाय लेकर आई। फिर आगे के लिए निकलना हुआ। इस बीच एक दो पीसीआर भी पास से गुजरीं। अंदर बैठे पुलिसवाले ने पूछा आप लोग कहां जा रहे हो…हम नाइटवॉक पर हैं…ऐसा कहने के बाद उसने कहा…देखिए सब लोग साथ-साथ चलिए…अलग मत होइए….

इसी वॉक में शामिल एक लड़की तमन्ना है, वो पढ़ रही है और बताती है कि जब-जब उसके इलाके में इस तरह की सैर होती है..वो जरूर जाती है..फिर उसने एक वाकया शेयर किया, उसने बताया कि जब वो दसवीं में थी और साइकिल से ट्यूशन जाया करती थी, तब कुछ लड़के उसे तंग किया करते थे डर के मारे उसने ट्यूशन जाना छोड़ दिया। मां के वजह पूछने पर उसने बताया कि डर लगता है, तब मां ने उससे कहा कि कोई तंग करे तो डरो मत, शोर मचाओ, हिम्मत दिखाओ। उस दिन के बाद से हिम्मत आ गई…और उसने सड़कों से डरना छोड़ दिया।

ऐसी कई कहानियां हैं…सबकी अपनी-अपनी वजहें हैं….कुछ रात की फुरसतिया खामोशी को महसूस करना चाहती हैं…कुछ उसे अपना डीएसएलआर निकालकर कैमरे में कैद करना चाहतीं हैं
कुछ के लिए एडवेंचर है…कुछ के लिए सैर करना थेरेपी है। लेकिन इन सबको एक बात है जो जोड़ती है…और वो ये कि बिना डरे इन सड़कों पर अपना हिस्सा चाहती हैं, बिना तंग हुए, बिना किसी को तंग किए । वॉक इंडिया गेट तक नहीं हो पाई क्योंकि इंडिया हैबिटेट सेंटर पहुंचते-पहुंचते इतनी बारिश हो गई थी कि आगे चलना नामुमकिन सा लग रहा था…आठ बजे तक चलने वाली वॉक छह बजे ही खत्म हो गई। ये 15 अगस्त की सुबह थी। एकाएक पड़ी बारिश की बूंदों ने रात भर की थकान मिटा दी थी। आधी रात की औरतें सुबह तक चलती रहीं थीं। वो फिर चलेंगी तब तक जब तक वाकई सुबह ना हो जाए।
(अल्पयु सिंह पत्रकार और डाक्यूमेंट्री निर्माता हैं। इस समय एक राष्ट्रीय न्यूज़ चैनल में प्रतिष्ठित पद पर कार्यरत हैं।)