मिर्जापुर। उत्तर प्रदेश के पिछड़े इलाके वाले मिर्ज़ापुर जिले में वर्ष 2019 में ‘नमक रोटी’ परोसे जाने का एक बहुचर्चित मामला सामने आया था। जिसमें ग्राम प्रधान प्रतिनिधि सहित एक स्थानीय पत्रकार को दोषी करार देते हुए मुकदमा दर्ज कराया गया था। दरअसल नमक रोटी परोसे जाने का यह मामला मिर्ज़ापुर जिले के जमालपुर ब्लाक के प्राथमिक विद्यालय शिऊर से जुड़ा हुआ था, जिसका वीडियो खूब वायरल हुआ था।
नमक-रोटी कांड में तत्कालीन खंड शिक्षा अधिकारी की तहरीर पर अहरौरा थाने में पत्रकार व ग्राम प्रधान प्रतिनिधि पर धारा 120-बी, 186, 193 और 420 के तहत सरकारी कार्य में बाधा पहुंचाने और साजिश व फर्जीवाड़ा करने का आरोप लगाते हुए मामला दर्ज किया गया था।
हालांकि मामला सुर्खियों में आने के बाद राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय मीडिया में छा गया था, तो सरकार की भी किरकिरी इस बात को लेकर होने लगी थी कि आखिरकार यह कहां का न्याय है कि जिस पत्रकार ने इस सच्चाई को सामने लाया उसे ही निशाने पर लेते हुए उसके खिलाफ मुकदमा कायम कर दिया गया?
ख़ैर इस मुद्दे पर प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया ने सख्त रुख अख्तियार करते हुए न केवल इस पर तल्ख टिप्पणी की बल्कि नमक रोटी परोसे जाने के मामले को उजागर करने वाले पत्रकार पवन जायसवाल को भी न्याय दिलाने का काम किया।
बदहाल सरकारी प्राथमिक विद्यालयों और उसकी शिक्षा व्यवस्था की स्थिति किसी से छुपी नहीं है। मिड-डे-मील योजना भी इससे अछूती नहीं है। नमक रोटी कांड के बाद इनमें सुधार की उम्मीद जगी थी। शासन-प्रशासन सख़्त मूड़ में होने के साथ-साथ समय-समय पर इसकी रिपोर्ट भी लेते हुए देखा जाने लगा था। लेकिन यह ज्यादा समय तक नहीं चल पाया। समय बदलने के साथ ही व्यवस्था भी फिर से पुराने ढर्रे पर चल पड़ी है।

क्या है मिड-डे-मील योजना?
दरअसल, मध्यान्ह भोजन योजना (मिड-डे-मील) भारत सरकार तथा राज्य सरकार के समवेत प्रयासों से संचालित होने वाली योजना है। जिसे भारत सरकार द्वारा 15 अगस्त 1995 को लागू किया गया था। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 28 नवंबर 2001 को दिए गए निर्देशों के क्रम में 1 सितंबर 2004 से पका पकाया भोजन उपलब्ध कराए जाने की योजना प्रारंभ की गई।
इस योजना की सफलता को दृष्टिगत रखते हुए अक्टूबर 2007 से इसे शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े विकास खण्डों में स्थित उच्च प्राथमिक विद्यालयों में, तथा अप्रैल 2008 से शेष विकास खण्डों एवं नगर क्षेत्र में स्थित उच्च प्राथमिक विद्यालयों तक विस्तारित कर दिया गया।
मिड-डे-मील योजना के अन्तर्गत सरकारी विद्यालयों में मध्यावकाश में छात्र-छात्राओं को स्वादिष्ट एवं रूचिकर पौष्टिक भोजन प्रदान करने का उद्देश्य रहा है। योजना के तहत सप्ताह में 3 दिन चावल के बने भोज्य पदार्थ, दो दिन गेहूं से बने तथा शुक्रवार को मिलेट (बाजरा से बने भोज्य पदार्थ) बने भोजन दिए जाने की व्यवस्था की गई।
भारत सरकार द्वारा इस योजना के अन्तर्गत प्राथमिक विद्यालय स्तर पर 100 ग्राम प्रति छात्र प्रति दिवस एवं उच्च प्राथमिक विद्यालय स्तर पर 150 ग्राम प्रति दिवस की दर से खाद्यान्न गेहूं-चावल उपलब्ध कराया जाता है। खाद्यान्न से भोजन पकाने के लिए परिवर्तन लागत की व्यवस्था की गई है। परिवर्तन लागत से सब्जी, तेल, मसाला एवं अन्य सामाग्रियों की व्यवस्था सुनिश्चित की जाती है।
मिड-डे-मील भोजन को तैयार करने एवं अन्य सामाग्रियों की व्यवस्था के लिए वर्तमान में प्राथमिक विद्यालय स्तर पर 5.45 रुपये प्रति छात्र प्रति दिवस तथा उच्च प्राथमिक विद्यालय स्तर पर 8.17 रुपये प्रति छात्र प्रति दिवस परिवर्तन लागत के रूप में उपलब्ध कराया जाता है।

प्राथमिक विद्यालयों में उपलब्ध कराए जा रहे मध्यान्ह भोजन में कम से कम 450 कैलोरी ऊर्जा व 12 ग्राम प्रोटीन एवं उच्च प्राथमिक विद्यालय में कम से कम 700 कैलोरी ऊर्जा व 20 ग्राम प्रोटीन उपलब्ध होना चाहिए। इसके लिए मध्यान्ह भोजन निधि खातों में धनराशि पी.एफ.एम.एस. प्रणाली के माध्यम से प्रेषित की जाती है।
मिड-डे-मील योजना का क्या है मकसद?
- सरकारी विद्यालयों में छात्र संख्या को बढ़ाना।
- पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराकर बच्चों में शिक्षा ग्रहण करने की क्षमता को विकसित करना।
- प्राथमिक विद्यालयों के कक्षाओं में छात्रों के रुकने की प्रवृत्ति को विकसित करना तथा ड्राप आउट रेट कम करना।
- छात्रों में भाई-चारे की भावना विकसित करना तथा विभिन्न जातियों एवं धर्मो के मध्य अंतर को दूर करने हेतु उन्हें एक साथ बैठाकर भोजन कराना ताकि उनमें अच्छी समझ पैदा हो।
जाति देख कर हो रही दोषियों पर कार्रवाई
‘मिड-डे-मील’ के ‘योजना’ और इसके ‘मकसद’ से इतर हटकर देखें तो यह योजना अपने उद्देश्य से भटककर रह गई है। मनमानी, बदहाली और इसमें लगे भ्रष्टाचार के दीमक इसे खोखला करते आ रहे हैं। कार्रवाई के नाम पर कहीं जांच पड़ताल के नाम पर खानापूर्ति की रस्म अदायगी हो रही है तो कहीं जाति-धर्म और रसूख देखकर कार्रवाई को गति दी जा रही है।
यह योजना पूरी तरह से लूट-खसोट से भी जुड़ गई है। अब इसे सिस्टम की लापरवाही मान लिया जाए या स्थानीय स्तर पर होने वाली मनमानी का हिस्सा, निर्धारित मेन्यू के हिसाब से बच्चों को न तो भोजन मिल पाता है और ना ही पौष्टिकता का ख्याल रखा जाता है। हां इतना ज़रूर होता है कि किसी अधिकारी इत्यादि के निरीक्षण की आहट होने पर जरूर व्यवस्था चौकस कर दी जाती है।

मिड-डे-मील गबन मामले में प्रधानाध्यापक को जेल
मिर्ज़ापुर जिले के पटेहरा विकास खण्ड क्षेत्र के अमोई स्थित कम्पोजिट विद्यालय से 2 जनवरी 2024 की रात में खाद्यान्न और बर्तन चोरी के मामले का पर्दाफाश करते हुए पुलिस ने उसे हज़म करने वाले प्रधानाध्यापक को गिरफ्तार किया था। बताते हैं कि कंपोजिट विद्यालय में दो जनवरी की रात्रि में विद्यालय कक्ष से ताला तोड़कर 21 बोरी गेहूं, 23 बोरी चावल, 30 थाली, 20 ग्लास रहस्यमय ढंग से चोरी हो गए थे।
चोरी की रिपोर्ट विद्यालय में कार्यरत सहायक अध्यापक सूर्यकांत तिवारी ने दर्ज करायी थी। इस मामले में मिर्ज़ापुर के पुलिस अधीक्षक अभिनन्दन ने पुलिस की टीम गठित कर मामले का पर्दाफाश करने का निर्देश दिया तो पुलिस टीम ने चोरी की घटना के दो दिन बाद 4 जनवरी 2024 को विद्यालय से महज 200 मीटर दूर गल्ला व्यापारी रमेश सेठ के यहां से चोरी के सामान को बरामद कर लिया।
पुलिस की माने तो जांच पड़ताल के दौरान ऐसे साक्ष्य हाथ लगे जिससे पता चला कि यह मामला चोरी का नहीं है बल्कि विद्यालय के अध्यापकों की मिली भगत से पूरे खाधान्न को एक राशन की दुकान पर बेच दिया गया था। सो यह मामला पूरी तरह से गबन से जुड़ गया।
पुलिस ने विद्यालय के खाद्यान्न को हज़म करने वाले इस पूरे प्रकरण में प्राध्यापक श्याम बहादुर यादव और सहायक अध्यापक सूर्यकांत तिवारी का नाम उजागर होने पर दोनों को गिरफ्तार कर जहां जेल भेज दिया है, वहीं इस पूरे प्रकरण पर मिर्ज़ापुर के जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी अनिल कुमार वर्मा ने बताया कि आरोपी अध्यापकों के विरूद्ध निलंबन की कार्यवाही की जा रही है।

यहां तो गुरु जी निलंबन के बाद भी काट रहे मौज
मिर्ज़ापुर जिले के नारायनपुर विकास खंड क्षेत्र के शिव शंकरीधाम स्थित श्यामा भवन से 8 अगस्त 2023 को बरामद एमडीएम खाद्यान्न मामले में बीएसए अनिल कुमार वर्मा ने जांच के बाद कंपोजिट विद्यालय शिवशंकरी धाम के सहायक प्रधानाध्यापक प्रभु नारायण सिंह को दोषी मानते हुए निलंबित कर दिया था। लेकिन निलंबित सहायक प्रधानाध्यापक प्रभु नारायण सिंह को जेल न भेज कर उसी विद्यालय से अटैच कर दिया जाना चर्चा का विषय बना हुआ है।
बताते चलें कि एमडीएम खाद्यान्न निजी भवन में रखे जाने की सूचना पर मौके से 7 बोरी गेहूं और 18 बोरी चावल बरामद किया गया था। बीते वर्ष 8 अगस्त 2023 को उपजिलाधिकारी चुनार ने शिकायत मिलने पर शिवशंकरी धाम स्थित श्यामा भवन से तकरीबन 27 बोरा खाद्यान्न बरामद कर उसे पचेवरा गांव के कोटेदार को सुपुर्द किया था तथा इसकी जांच के निर्देश दिए थे।
दूसरी ओर श्यामा भवन में रखे खाद्यान्न की जांच क्षेत्रीय खाद्य अधिकारी चुनार के साथ पूर्ति निरीक्षक जमालपुर, पूर्ति निरीक्षक सीखड, आपूर्ति सहायक जमालपुर एवं आपूर्ति सहायक नरायनपुर ने 8 अगस्त को ही स्थलीय जांच के बाद 9 अगस्त को यह अवगत कराया था कि श्यामा भवन के बरामदे के दक्षिण दिशा में स्थित सीढ़ी के किनारे 7 बोरी गेहूं 18 बोरी चावल व 25 किग्रा खुला चावल एक बोरी में रखा सरकारी खाद्यान्न पाया गया।
जांच टीम ने कहा कि उक्त विद्यालय में एमडीएम खाद्यान्न रखने के लिए पर्याप्त जगह उपलब्ध थी, किंतु प्रभुनारायण सिंह (सहायक अध्यापक) कम्पोजिट विद्यालय शिवशंकरी धाम ने एमडीएम का खाद्यान्न विद्यालय के वर्तमान प्रधानाध्यापक को हस्तान्तरित न करके उसे अपने घर श्यामा भवन में रखा था। जिसकी जानकारी विभागीय अधिकारी को नहीं दी गयी थी।

प्रधानाध्यापिका पर नहीं हुई कोई कार्रवाई
आश्चर्य की बात है कि प्राथमिक विद्यालय खजुरौल, नारायणपुर की प्रधानाध्यापिका संजुला सिंह पर कोई कार्रवाई का ना होना भी जांच पर सवाल खड़े कर रहा है। बरामद खाद्यान्न प्राथमिक विद्यालय खजुरौल का था। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या प्रधानाध्यापिका को इसकी भनक तक नहीं रही होगी? दूसरे निलंबित किए गए सहायक अध्यापक प्रभु नारायण सिंह को उन्हीं के विद्यालय से अटैच किया जाना भी कई सवालों को जन्म दे रहा है।
लोग सवाल कर रहे हैं कि कहीं यह जांच की कार्रवाई को प्रभावित करने की सोची समझी साजिश तो नहीं है? संबंधित अधिकारी भी इस सवाल पर कुछ बोलने के बजाए यह कहकर कि तत्कालीन उप जिलाधिकारी चुनार की देख रेख में कराई गई जांच आख्या के आधार पर सहायक अध्यापक प्रभुनारायण सिंह को तत्काल प्रभाव से निलम्बित करते हुए उसी विद्यालय से सम्बद्ध किया गया है।
विद्यालय के अन्य लोग प्रधानाचार्य संजना सिंह से लेकर इस मामले में कुछ भी बोलने से साफ कन्नी काट रहे हैं। दूसरी ओर स्थानीय लोगों की बातों पर भरोसा किया जाए तो यदि इस मामले की कड़ाई से जांच हुई होती तो जरूर बड़ा खुलासा होता। दूसरे विद्यालय के खाद्यान्न रजिस्टर को भी यदि जांचा परखा जाए तो सच्चाई खुद-ब-खुद सामने होगी कि कहीं यह पहले का बचा हुआ खाद्यान्न तो नहीं था जिसे कालाबाजारी करने के लिए रखा गया था।
जांच में लीपापोती की आशंका
अब चर्चा है कि बंद लिफाफे के बल पर निलंबित अध्यापक प्रभु नारायण सिंह को बहाल करने की योजना है। बताते चलें कि इस मामले में निलंबन के बाद तीन एबीएसए से जांच कराई गई थी जिसमें मामला उजागर हुआ। जानकार सूत्रों की माने तो जांच कर रहे एबीएसए को निलंबित अध्यापक अपने प्रभाव में लेकर मामले को सुलटाने में जुट गये हैं जो चर्चा का विषय बना हुआ है।

कार्रवाई में भेदभाव क्यों?
नरायनपुर विकास खण्ड क्षेत्र के खजुरौल स्थित विद्यालय का खाद्यान्न अपने निजी भवन में रखने के मामले में सहायक अध्यापक प्रभु नारायण सिंह को निलंबित कर उसी विद्यालय से अटैच कर दिया गया जबकि दूसरी ओर पटेहरा विकास खण्ड क्षेत्र के अमोई स्थित कम्पोजिट विद्यालय से खाद्यान्न चोरी के मामले में प्राध्यापक श्याम बहादुर यादव और सहायक अध्यापक सूर्यकांत तिवारी को निलंबित करने साथ गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया।
ऐसी स्थिति में सवाल उठ रहे हैं कि आखिरकार प्रभु नारायण सिंह को जेल क्यों नहीं भेजा गया? जिले के ही एक प्राथमिक विद्यालय पर तैनात अध्यापक “जनचौक” को बताते हैं कि जिले में जाति आधारित कार्रवाइयां हो रही हैं। वह नज़ीर के तौर पर अमोई और खजुरौल गांव स्थित विद्यालय के खाद्यान्न प्रकरण में हुई कार्रवाई की ओर इशारा करते हुए कहते हैं कि “कार्रवाई में यह भेदभाव क्यों?”
बच्चों की सेहत से हो रहा खिलवाड़
सरकार बच्चों की सेहत को लेकर हर वर्ष करोड़ों रुपये खर्च कर रही है, इसके बाद भी विद्यालय के शिक्षक और कर्मचारी बच्चों की सेहत के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। ऊपर से विद्यालय के जिम्मेदारोंं का यह बेतुका बयान कि “इसमें हम क्या करें” गंभीर सवाल खड़ा कर रहा है।
जिले के सरकारी स्कूलों में कभी ‘नमक रोटी’ परोसी जाती है तो कभी बच्चों से काम लिया जाता है। ‘घुन-कीड़े वाले आटे की रोटी’ के साथ ‘पानी वाली दाल’ मिड-डे-मील में परोसी जा चुकी है।
बीते वर्ष जुलाई 2023 में मिर्जापुर जनपद के विकास खंड नगर क्षेत्र के प्राथमिक विद्यालय भवानीपुर में बच्चों की सेहत के साथ खिलवाड़ किए जाने का मामला सामने आया था। जहां घुन व कीड़े वाले आटे की रोटी के साथ पानी वाली दाल मिड-डे-मील में परोसी गयी थी। जिसका वीडियो वायरल होने के बाद प्रधानाचार्य प्रीति यादव का बेतुका बयान सामने आया था कि “एक किलो 100 ग्राम दाल पड़ा है, दाल पानी वाला हैं तो हम क्या करें, दाल में छौका नहीं लगा तो हम क्या करें?”
लेकिन इस मामले का वीडियो वायरल होते ही मानो भूचाल आ गया था। घुन व कीड़े वाले आटे की रोटी और पानी वाली दाल के वीडियो को संज्ञान में लेकर बीएसए अनिल वर्मा ने एबीएसए रविंदर शुक्ला को मौके पर भेजकर जांच करने का निर्देश दिया था। तब मौके पर पहुंच एबीएसए ने रटा रटाया जवाब दिया था कि “इसकी जांच की जाएगी। प्रधानाध्यापक की कोई लापरवाही होगी तो उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।”

तालमेल का ना होना भी बड़ा कारण
प्राथमिक विद्यालयों में मिड-डे-मील योजना के कुशल संचालन के लिए बाकायदा एक ‘मिड-डे-मील समिति’ होती है। समिति में संबंधित ग्राम प्रधान अध्यक्ष तथा प्रधानाध्यापक सचिव तथा शेष सदस्य- लेखपाल, एएनएम सहित गांव के लोग होते हैं। इनका काम होता है मिड-डे-मील के भोजन की गुणवत्ता को परखना। लेकिन देखा जाए तो शायद ही कहीं समिति के सदस्य इसे परखते हों।
कुल मिलाकर देखा जाए तो समिति केवल नाम मात्र की नज़र आती है। मिड-डे-मील योजना के भोजन को कहीं हेड मास्टर तो कहीं प्रधान बनवाते हैं। जहां तालमेल है वहां हेड मास्टर ही बनवाते हैं अन्यथा प्रधान और हेड मास्टर के बीच यह योजना राजनीति की भेंट चढ़ जाती है।
मिड-डे-मील योजना के संचालक के लिए प्रधान और हेड मास्टर के नाम से सह खाता होता है, कुछ स्थानों पर एकल खाता भी होता है। छात्र संख्या के हिसाब से तीन माह का राशन एक बार ही आता है। विद्यालय में जगह न होने की दशा में कोटेदार के पास भी राशन रखा जाता है। ऐसे में कोटेदार भी बहती गंगा में हाथ धोने से पीछे नहीं रहते। यूं कहें कि तीनों की तिकड़ी मिड-डे-मील योजना को खिचड़ी में तब्दील करने में कोई कोर कसर बाकी नहीं रखती।
मिर्ज़ापुर जनपद के वरिष्ठ लेखक पत्रकार अंजान मित्र कहते हैं कि “सरकारी योजनाओं में व्याप्त दुर्व्यवस्था और भ्रष्टाचार रूपी दीमक बच्चों के मध्यान्ह भोजन को भी अपने चंगुल में दबोचे हुए है।”
वह मिर्ज़ापुर के जमालपुर ब्लाक स्थित प्राथमिक विद्यालय में “नमक रोटी” परोसे जाने और इसे दिखाने वाले दिवंगत हो चुके पत्रकार पवन जायसवाल के संघर्षों की बात छेड़ते हुए कहते हैं कि “जब तक सच्चाई को स्वीकार करने के बजाए इस पर पर्दा डालने की प्रथा को समाप्त नहीं किया जाएगा तब तक ऐसी योजनाएं सही तरीके से क्रियान्वित होने से दूर ही रहेंगी।”
(मिर्ज़ापुर से संतोष देव गिरी की ग्राउंड रिपोर्ट)
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