मणिपुर हिंसा पर मोदी सरकार की पैंतरेबाजी

Estimated read time 1 min read

मणिपुर जातीय हिंसा की तमाम खबरें अब राष्ट्रीय मुख्यधारा में बहस में उभर कर आ रही हैं। कुछ लोग थे जो निरंतर मणिपुर के जातीय उन्माद पर निगाह बनाये हुए थे। लेकिन वायरल वीडियो के बाद दो और कुकी लड़कियों को कार वॉश वर्कशॉप के भीतर सैकड़ों मैतेई हिंसक भीड़ द्वारा बलात्कार और प्रताड़ित करने के 2 घंटे के भीतर दोनों की मौत भी उतनी ही हैवानियत भरी थी।

एक लड़के, जिसे 4 मई की घटना से पहले ही पुलिस ने हिरासत में लिया था, क्योंकि उसने मुख्यमंत्री बीरेन सिंह के बारे में सोशल मीडिया में टिप्पणी की थी। उसे 4-5 मई को 800 की संख्या में हिंसक भीड़ के हाथों में किसने डाल दिया, कोई नहीं जानता। ऐसी सैकड़ों घटनाएं हुई हैं।

मैतेई समुदाय जो स्वयं एक जनजातीय समुदाय है, लेकिन वैष्णव परंपरा को मानता है, और हिंदू धर्म को स्वीकार करता है का हिन्दुत्ववादी करण अभी भी पूरी तरह से नहीं हो पाया है।

लेकिन आरएसएस पिछले कई दशकों से उत्तर-पूर्व, झारखंड और छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश में असल में क्या कर रहा था, इसकी एक झलक आपको मणिपुर से मिल जाती है।

मध्य भारत के आदिवासियों और उत्तर-पूर्व की जनजातियों में कुछ बुनियादी फर्क भी है, जिसके चलते जहां मध्य भारत के आदिवासी जल-जंगल-जमीन की बात करते हुए भी लगातार हिंदी-बंगाली-मराठी-उड़िया-तेलगू भाषी चतुर भारतीय की तुलना में खुद को अपनी ही भूमि पर प्रभुत्वकारी मानने लगे हैं, वैसा पूर्वोत्तर में संभव नहीं है।

वहां हिंदू-गैर हिंदू की लड़ाई कराओगे तो जवाब भी मिलेगा और उसका परिणाम खूनी होगा, भले ही कितनी ही संख्या में चोट पीड़ित पक्ष को हो।

मैतेई समुदाय के सयाने भी इस पूरी घटना से दुखी हैं। उनका मानना है कि मैतेई समुदाय में कुछ अतिवादी संगठन हैं, जिसके उग्रवादी राज्य सरकार के संरक्षण में इसे अंजाम दे रहे हैं। क्षणिक रूप में दिल्ली की एक घटना की तस्वीर को मैतेई लड़की के रूप में प्रचारित करने पर उसके प्रतिशोध में भारी हिंसा और यौन दुर्व्यहार हुआ, लेकिन कहीं न कहीं उनके भीतर पश्चाताप की भावना पनपी है।

लेकिन अरंबाई टैन्गोल और मैतेई लिपुन जैसे संगठन, ऊपर से हजारों हथियारों की खेप, मैतेई समुदाय के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह का बचाव ही इनका बचाव होगा, कुकी के लिए अलग प्रशासनिक ढांचे की मांग जैसी चीजें अशांति को बरकारर रखने में मददगार साबित हो रही हैं।

अब इसका राष्ट्रीय पहलू और भी घातक है।

भाजपा के लिए इसे स्वीकार करने का मतलब है बीरेन सिंह का इस्तीफ़ा। जबकि बीरेन सिंह तो वही एजेंडा लागू कर रहे थे, जैसा किया जाना था। कुकी को म्यांमार का बताना, ईसाई धर्म, नशे की खेती और हथियारों की तस्करी, अवैध घुसपैठ बताकर विधानसभा की 60 में 40 सीट पर अगले 30 साल तक भाजपा का एकछत्र राज्य का सपना था।

एक बार सफल हो जाता यह फार्मूला तो इसे पूरे पूर्वोत्तर राज्यों पर आजमाना और यहां तक कि यूपी-बिहार में भी हिंदू-मुस्लिम के अलावा पिछड़ा-अति पिछड़ा, दलित-महादलित जैसे तमाम फाल्ट लाइन को ढूंढना एक ऐसे पैन्डोरा बॉक्स में हाथ डालना है, जिसमें एक बार समाज घुस जाये तो अगले 10 साल तक उसे रोजी, रोटी, शिक्षा की कोई सुध न रहे।

जिन दो महिलाओं की नग्न परेड कराई गई थी, उसमें एक के पति सेना में सूबेदार पद से रिटायर हुए थे। उनका कहना था कि उन्होंने श्रीलंका और कारगिल की लड़ाई में हिस्सा लिया। देश की रक्षा में कोई कोताही नहीं की। लेकिन अपने परिवार और अपनी पत्नी की रक्षा न कर सके।

यह पुरस्कार दिया है हमने अपने सैनिक को। इसी सैनिक के नाम पर 2019 में युवाओं से पहला वोट मांगा गया था। पता नहीं कितने करोड़ वोट इसी राष्ट्रभक्ति के लिए मिले थे।

आज भारत में धर्म्नान्धता बढ़ी है, लेकिन आज भी देशभक्ति का जज्बा हिंदुत्व के ऊपर है। मेरा अनुमान है कि पुलवामा की घटना के तुरंत बाद जब 13 दिन तक राहुल-प्रियंका सहित विपक्ष दुबक कर बैठ गया था, मोदी जी राजस्थान की सीमा, गुजरात की सीमा पर लगातार दहाड़ मार रहे थे, और कुछ सप्ताह के भीतर ही बालाकोट में वीडियो गेम की तरह की सर्जिकल स्ट्राइक को दिखा-दिखाकर करोड़ों वोट लूट लिए गये।

ये वोट बेहद कीमती थे। इन वोटों से ही कश्मीर को रौंदा गया। किसानों को रौंदने की मंशा थी, सीएए और एनआरसी को लेकर खूब चीखा-चिल्लाया गया, लेकिन बात नहीं बन पाई। इस बार विपक्षी दल एक हुए हैं, लेकिन आज भी इनके अंदर सच को सच और झूठ को झूठ कहने का साहस बहुत कम है। हां, पहले से थोडा बेहतर हुआ है, क्योंकि इनके अस्तित्व के खात्मे का सवाल है। इस बार अग्नि परीक्षा 2019 से भी कठिन होगी। पलक झपकते ही जादू हो सकता है, आप हिप्नोटाइज हो सकते हैं, 15 दिनों के लिए। क्या आप हिप्नोटाइज होने के लिए तैयार हैं?

(रविंद्र पटवाल जनचौक की संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)

+ There are no comments

Add yours

You May Also Like

More From Author