मोदी सरकार की मंशा पर सवाल , निजी मेडिकल कालेजों की सीटों को भरने के लिए नीट परीक्षा में बदलाव

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उच्चतम न्यायालय ने एक बार फिर मोदी सरकार की मंशा पर गंभीर सवाल उठाया है और कहा है कि निजी मेडिकल कालेजों की सीटों को भरने के लिए राष्ट्रीय पात्रता-सह-प्रवेश परीक्षा- सुपर स्पेशियलिटी (नीट -एसएस ) 2021 पैटर्न में बदलाव किया गया है। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने मंगलवार को केंद्र सरकार और राष्ट्रीय परीक्षा बोर्ड को कड़ी फटकार लगाई। पीठ ने कहा कि मालूम होता है कि राष्ट्रीय पात्रता-सह-प्रवेश परीक्षा- सुपर स्पेशियलिटी पैटर्न में बदलाव यह सुनिश्चित करने के लिए किया गया था कि निजी मेडिकल कॉलेज में सीटें खाली नहीं पड़े।पीठ ने अपनी पुरानी टिप्पणियों को दोहराया कि बदलाव ने उन छात्रों के साथ, जो वर्षों से तैयारी कर रहे हैं, पूर्वाग्रह किया है।

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने केंद्र सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी से कहा कि आप नवंबर में परीक्षा के लिए अगस्त में बदलाव की घोषणा करते हैं और जब छात्र अदालत में आते हैं, तो आप परीक्षा को जनवरी में कर देते हैं। यह देश में चिकित्सा शिक्षा के लिए अच्छा नहीं है। पीठ ने कहा कि संशोधित पैटर्न के अनुसार सुपर स्पेशियलिटी प्रवेश के लिए शत-प्रतिशत प्रश्न सामान्य चिकित्सा की फीडर श्रेणी से आएंगे। हालांकि, 201-2020 से प्रचलित पैटर्न के अनुसार, 60% प्रश्न सुपर स्पेशियलिटी कोर्स से थे, जिसे छात्र ने चुना था और 40फीसद प्रश्न फीडर श्रेणियों से थे।

ज‌स्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि उन्हें यह आभास हो रहा था कि ऐसा केवल रिक्तियों को भरने के इरादे से किया गया है। सरकारी कॉलेजों में कभी भी सीटें खाली नहीं होती हैं। यह हमेशा निजी कॉलेजों में होती है। हमारा एक अनुमान है कि सरकारी कॉलेजों में सीटें खाली नहीं हैं। यह एक उचित अनुमान है। ऐसा प्रतीत होता है कि पूरी जल्दबाजी खाली सीटों को भरने के लिए है।छात्रों की रुचि संस्थानों की तुलना में कहीं अधिक है। बेशक, निजी संस्थानों ने निवेश किया है। लेकिन हमें संतुलन बनाना होगा। छात्र भविष्य के पथ प्रदर्शक बनने जा रहे हैं। एक समय तो जस्टिस चंद्रचूड़ यहां तक कह गए कि पीठ को यह आभास हो रहा है कि मेडिकल एजुकेशन और मेडिकल रेगुलेशन एक बिजनेस बन गया है। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि हमें लगता है कि चिकित्सा शिक्षा एक व्यवसाय बन गई है, चिकित्सा विनियमन भी एक व्यवसाय बन गया है। यह इस देश में चिकित्सा शिक्षा की त्रासदी है।

जब एनबीई के वकील ने जवाब दिया कि यह विशेषज्ञों की सलाह के आधार पर किया गया है तो जस्टिस चंद्रचूड़ ने टिप्पणी की, “विशेषज्ञ भी अनुच्छेद 14 के अधीन हैं। जस्टिस चंद्रचूड़ ने पूछा कि यह तथ्य कि सीटें खाली रहती हैं- किसकी चिंता है? यह प्रबंधन और निजी कॉलेजों की चिंता है। क्या यह छात्रों की कीमत पर होना चाहिए? जल्दबाजी क्या थी। आपके पास एक परीक्षा पैटर्न है जो 2018 से 2020 तक चल रहा था। हां, आप एक विशेषज्ञ निकाय हैं, हम सहमत हैं..लेकिन छात्रों के लिए कुछ चिंता है।

पीठ ने केंद्र और राष्ट्रीय परीक्षा बोर्ड से पर्याप्त व्यवस्था करने के बाद ही अगले साल से जबरन बदलाव करने पर विचार करने का आग्रह किया। जस्टिस चंद्रचूड़ ने एएसजी भाटी और एनबीई की ओर पेश सीनियर एडवोकेट मनिंदर सिंह से कहा कि हम अभी भी आपको अपना घर सही करने का समय देंगे। हम कल सुनवाई करेंगे। हालांकि अगर आप कठोरता दिखाएंगे तो कानून की बाहें मजबूत हैं।

जैसे ही सुनवाई समाप्त होने वाली थी सीनियर एडवोकेट मनिंदर सिंह ने कहा कि एनबीई यह धारणा नहीं देना चाहता कि सीटों को भरने के लिए ऐसा किया गया है।अगर अदालत को लगता है कि यह सब खाली सीटों को भरने के लिए किया गया है, तो मैं सरकार से इस धारणा को दूर करने और इसे इस साल से लागू करने का अनुरोध करता हूं। एएसजी ने कहा कि बदलाव केवल सीटों को भरने के लिए नहीं बल्कि व्यापक जनहित को ध्यान में रखते हुए किए गए हैं।

उन्होंने कहा कि परिवर्तन छात्रों के लिए तुलनात्मक सहजता लाए, और उनके लिए कोई पूर्वाग्रह नहीं हुआ, क्योंकि उनका परीक्षण उन सुपर स्पेशियलिटी विषयों पर नहीं किया जाएगा, जिनका वे अध्ययन करने जा रहे हैं। सुनवाई कल भी जारी रहेगी।
(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल इलाहाबाद में रहते हैं।)

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