पुलिसिया सीनाजोरी का वहशी नमूना जयराज-बेनिक्स हत्याकांड

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तमिलनाडु के तूतीकोरिन जिले के सथानकुलम कस्बे में पुलिस द्वारा पिता-पुत्र की बर्बर हत्या को लेकर सारे देश में अमेरिका के रंगभेदी जार्ज फ्लायड हत्याकांड के व्यापक विरोध की तर्ज पर पुलिस सुधार की मांग बलवती हुयी है। ऐसा इसलिए भी क्योंकि पुलिसिया नृशंसता और सीना जोरी में जयराज (59) और बेनिक्स (31) की हत्या किसी भी तरह फ्लायड प्रसंग से उन्नीस नहीं थी।

हालांकि दोनों प्रसंगों में पुलिस के अमानवीय व्यवहार का चरित्र एक ही नहीं है। फ्लायड के लगभग 9 मिनट गर्दन पर घुटना दबाने के मामले में अमेरिकी पुलिस का रंगभेदी भेदभाव हत्यारे श्वेत पुलिसकर्मी के ऊपर साफ़ तौर पर हावी नज़र आ रहा था जबकि सथानकुलम के मलाशय में लाठियाँ डालने के मामले में भारतीय पुलिस की औपनिवेशिक मनोवृत्ति और उसे बल देने वाला उसका सांगठनिक स्वरूप ही हत्यारे पुलिसकर्मियों पर सवार वहशीपन के पीछे रहे। 

19 जून को एक साधारण सी सेल फोन दुकान चलाने वाले बाप-बेटे को, लॉकडाउन में समय पर दुकान बंद न करने को लेकर बीट पुलिस से एक दिन पहले हुई कहा सुनी पर सबक़ सिखाने के लिए, स्थानीय पुलिस थाने में सारी रात अमानवीय टार्चर दिया गया। जिन दो थानेदारों ने इसमें मुख्य भूमिका अदा की उनका इसी तरह का पुराना इतिहास भी रहा है। सारी रात थाने से बाहर पीड़ितों की चीख पुकार सुनी जाती रही।

अगली सुबह खून से लथपथ दोनों को स्थानीय डॉक्टर के पास ले जाया गया, जिसने आँख मूँद कर उन्हें ‘फिट’ करार दे दिया। इसी तरह मजिस्ट्रेट ने बिना कुछ देखे या पूछे उनका जुडिशयल रिमांड दे दिया। पुलिस उन्हें 100 किलोमीटर दूर सब-जेल, जिससे उनकी सेटिंग थी, में ले गयी जबकि पास सथानकुलम में ही जेल मौजूद थी। जेल अधिकारियों ने भी बजाय उन्हें अस्पताल भेजने के जेल में दाखिल कर लिया।

22 जून शाम को मरणासन्न होने पर दोनों को जेल से अस्पताल भेजा गया, जहाँ बेटे फेनिक्स की चंद घंटों में मौत हो गयी। पिता जयराज ने भी अगली सुबह दम तोड़ दिया। मीडिया में और राजनीतिक हलकों में तूल पकड़ने पर मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै बेंच ने 24 जून को स्वयंमेव नोटिस जारी किये, जिस पर 26 जून को न्यायिक जांच के आदेश दिए गए। अब जाकर डीजीपी तमिलनाडु ने लॉकडाउन में पुलिस कार्यवाही को लेकर व्यापक निर्देश जारी किये और मुख्यमंत्री ने दोनों मृतक परिवारों को दस-दस लाख हर्जाना देने की घोषणा की। 

सथानकुलम थाने में तैनात एक महिला पुलिसकर्मी, जो टार्चर की चश्मदीद थीं, की गवाही और जुडिशयल रिपोर्ट के आधार पर हाईकोर्ट ने 30 जून को हत्या का मामला दर्ज करने और मदुरै के स्पेशल ब्रांच डीएसपी को जांच के आदेश दिए। अनुसंधान में अब तक 5 पुलिसकर्मी गिरफ्तार किये गए हैं जिनमें एक इंस्पेक्टर, दो सब-इंस्पेक्टर और दो हेड कांस्टेबल शामिल हैं। इस बीच राज्य सरकार ने केस को सीबीआई को सौंपने की सिफारिश भी की है।

बड़ा सवाल यह है कि क्या इस एक मामले में त्वरित न्याय होने से पुलिस थानों में होने वाले टार्चर बंद हो जायेंगे या उन पर कुछ विराम लगेगा? इसका दो-टूक जवाब होगा- नहीं। अमेरिका में फ्लायड प्रकरण के बाद उमड़े जन-आक्रोश के चलते बहुत से पुलिस सुधारों की घोषणा हुई है और बहुत से पाइप लाइन में हैं। इनमें बेवजह बल प्रयोग करने वाले पुलिसकर्मियों की निगरानी रखना और अपने ऐसे हिंसक सहयोगी को रोकने की जिम्मेदारी हर पुलिसकर्मी पर ही डालना भी शामिल हैं। इनका क्या असर होगा, यह समय बतायेगा। ध्यान रहे कि वर्ष 2019 में अमेरिका में पुलिस की गोली से 1004 नागरिकों की मौत हुयी है।

लेकिन भारत में तो इतना भी नहीं किया जा रहा जहाँ प्रतिवर्ष 100 व्यक्ति तक पुलिस के हाथों जान गँवा रहे हैं। दरअसल देश भर के पुलिस थानों में बल प्रयोग और टार्चर, पुलिस की कार्य-प्रणाली के अभिन्न अंग बने हुए हैं। पुलिस व्यवहार के इस सर्वविदित अमानवीय पहलू के दूरगामी उपाय पर फिलहाल सरकारों, पुलिस नेतृत्व और उच्च-न्यायालयों में चुप्पी है। आम लोगों में सुगबुगाहट तो है लेकिन कोई बड़ा सामाजिक विस्फोट नजर नहीं आता। 

स्थिति में परिवर्तन एक लम्बी और दृढ़-निश्चयी प्रक्रिया से ही सम्भव किया जा सकेगा। पुलिस थानों की संरचना में आमूलचूल बदलाव और पुलिस ट्रेनिंग में संवैधानिक संवेदीकरण को निर्णायक करना ही आगे का रास्ता होना चाहिए।

(वीएन राय रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी हैं और आजकल करनाल में रहते हैं।)

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