“हेमंत अब कभी स्कूल नहीं जाएगा…” बनारस के ज्ञानदीप इंग्लिश स्कूल में मासूम की हत्या और न्याय के लिए बिलखते माता-पिता—ग्राउंड रिपोर्ट

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वाराणसी। दोपहर की धूप धीरे-धीरे तप रही थी। स्कूल की घंटी बज चुकी थी। लेकिन उसी समय एक फोन कॉल ने एक मासूम जिंदगी की आखिरी घंटी बजा दी। यह कहानी सिर्फ एक छात्र की नहीं है। यह उस पूरे तंत्र की कहानी है, जहां जाति, सत्ता और रसूख की चट्टान पर मासूम सपनों को बेरहमी से कुचल दिया जाता है।

नाम साधारण था—हेमंत पटेल। पर इस नाम के पीछे था एक जिद्दी सपना, एक संघर्षशील जीवन और मां-बाप के झुर्रियों भरे सपनों का उजाला। बनारस के खुशहाल नगर, चांदमारी स्थित ज्ञानदीप इंग्लिश स्कूल का बारहवीं कक्षा का छात्र हेमंत पटेल इंजीनियर बनना चाहता था। पिता कैलाश चंद्र वर्मा, वाराणसी जिला न्यायालय में वकालत करते हैं। एक साधारण पिता, जिसकी आंखों में असाधारण सपने थे, बेटे को ऊंचाइयों तक पहुंचाने के, लेकिन किसे मालूम था कि एक दिन उसी पिता को अपने बेटे की नन्ही लाश को काँपते कंधों पर उठाना पड़ेगा?

22 अप्रैल, दोपहर 1:30 बजे; स्कूल के सहायक प्रबंधक ठाकुर राज विजेंद्र सिंह का फोन आया, “हेमंत, स्कूल आओ, बात करनी है।” हेमंत केवल बस्ता लेकर नहीं, सपने लेकर स्कूल गया था। लेकिन वापस लौटा, एक खामोश शव बनकर। सूत्रों के अनुसार, स्कूल की एक छात्रा के साथ हेमंत के कथित प्रेम-संबंध को लेकर स्कूल प्रबंधन आग-बबूला था। न कोई शिकायत, न कोई प्रत्यक्ष आरोप—फिर भी प्रिंसिपल अभय राय, सहायक प्रबंधक ठाकुर राज विजेंद्र सिंह और उनके पिता, बीजेपी नेता ठाकुर राम बहादुर सिंह ने उसे बुलाया। पर बुलाया क्यों? सवाल करने के लिए या सबक सिखाने के लिए?

ज्ञानदीप इंग्लिश स्कूल, जहां कागज पर सपनों को आकार मिलना चाहिए था, वहीं एक दीवार के पीछे एक मासूम की हत्या की पटकथा लिखी गई। परिजनों का आरोप है कि हेमंत का आत्मसम्मान रौंदा गया, उसे अपमानित किया गया, और मानसिक रूप से तोड़ने की कोशिश की गई। अंततः, स्कूल प्रबंधक के बेटे यजुवेंद्र सिंह उर्फ रवि ने उसे गोली मार दी।

छात्र की लाश स्कूल डायरेक्टर के घर के पार्किंग एरिया में बने एक छोटे से कमरे से बरामद हुई। हत्या के वक्त हेमंत के दो दोस्त—शशांक और किशन भी वहीं मौजूद थे। उन्हीं की मदद से लहूलुहान हालत में हेमंत को अस्पताल पहुंचाया गया, पर डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया। गोली उसकी कनपटी पर लगी थी। सीधी, निर्मम, आर-पार। घटना के महज दो घंटे बाद शिवपुर थाने पर वकीलों की भीड़ उमड़ पड़ी। माहौल गरमा गया। पुलिस पर दबाव बढ़ता गया। रात करीब नौ बजे एफआईआर दर्ज हुई—तब कहीं जाकर भीड़ थोड़ी शांत हुई।

रक्षामंत्री राजनाथ सिंह के साथ मुख्य अभियुक्त राम बहादुर सिंह।

23 अप्रैल की सुबह; चौराहे पर नटिनियादाई मंदिर के सामने बेटे की लाश रखकर बिलखते पिता और मां। चौराहे पर इंसाफ की मांग करता हुआ एक जुलूस। परिजनों की मांग थी—दोषियों को फौरन गिरफ्तार किया जाए। पुलिस ने समझाया-बुझाया। आंसू थमे नहीं, पर शव को मरुई गांव ले जाकर अंतिम संस्कार करना पड़ा। एफआईआर में स्कूल प्रबंधक के बेटे यजुवेंद्र सिंह उर्फ रवि, शशांक और किशन के नाम दर्ज किए गए हैं। उस वक्त वही तीनों कमरे में मौजूद थे।

पिता कैलाश चंद्र वर्मा की आवाज आज भी भराई हुई है। वे कहते हैं, “मेरे बेटे की परीक्षा खत्म हो चुकी थी। बस रिजल्ट आना बाकी था। फिर भी प्रिंसिपल के बुलावे पर वह गया। स्कूल में उसे गालियां दी गईं, मारा गया। ठाकुर राम बहादुर सिंह ने अपने बेटे से कहा, ‘गोली मार दे इसको!’ और अगले ही पल ठाकुर राज विजेंद्र सिंह ने पिस्टल निकालकर मेरे बेटे के दाहिने कान पर गोली चला दी। हम उसे भागते हुए बीएचयू ट्रॉमा सेंटर ले गए, पर… रास्ते में ही उसकी सांसें टूट चुकी थीं। हेमंत का स्कूल का बस्ता वहीं का वहीं पड़ा है, एक मूक गवाह की तरह। अब हर दिन हम इसी सवाल के साथ जागते हैं, ‘क्या हमारा बेटा इंसाफ पाएगा?'”

मां की कोख से लहूलुहान भविष्य

हेमंत पटेल के पिता कैलाश चंद्र वर्मा बनारस के सिंधोरा थाना क्षेत्र के मरुई गांव के निवासी हैं। उनके तीन बेटे थे—विशाल (20 वर्ष), जो बीए प्रथम वर्ष का छात्र है; दूसरा बेटा हेमंत, जिसने ज्ञानदीप इंग्लिश स्कूल से 12वीं की परीक्षा दी थी; और सबसे छोटा बेटा दुर्गेश, जो कक्षा पांच में पढ़ता है। कैलाश की दो बेटियां भी हैं—डाली और परी, जो क्रमशः इंटरमीडिएट और कक्षा चार की छात्राएं हैं। मां आशा पटेल, एक गृहिणी हैं, जिनका पूरा जीवन बच्चों के इर्द-गिर्द घूमता था।

बीजेपी अध्यक्ष नड्डा के साथ अभियुक्त।

मरुई गांव में कैलाश के घर अब सन्नाटा पसरा हुआ है। जहां कभी हेमंत की हंसी गूंजती थी, वहां अब केवल सिसकियां सुनाई देती हैं। मां आशा पटेल, जिनके जीवन का केंद्र उनके बच्चे थे, अब बिलखती रहती हैं—चुपचाप, अवाक। न किसी से बोलती हैं, न किसी की सुनती हैं। कमरे के एक कोने में सफेद कुर्ता पहने, मुस्कुराते हेमंत की तस्वीर रखी है। मां हर रोज उसे घंटों निहारती रहती हैं। पूछने पर बस इतना कहती हैं, “मेरा बेटा अब कभी स्कूल नहीं जाएगा। अगर पढ़ाई का यही अंजाम होता है, तो मैं अपने बाकी बच्चों को स्कूल नहीं भेजूंगी। लेकिन हेमंत को इंसाफ दिलवाकर रहूंगी।”

हेमंत की छोटी बहन परी, जो कक्षा चार में पढ़ती है, अब स्कूल जाने से डरती है। कहती है, “दीदी कहती हैं कि स्कूल अब डराने लगा है।” बड़ी बहन डाली, जो इंटरमीडिएट की छात्रा है, हर सुबह रोते हुए स्कूल के लिए तैयार होती है और लौटने पर किताबें बंद कर देती है। छोटा भाई दुर्गेश रात में नींद में बड़बड़ाता है, “भैया कब आएंगे?” सबसे बड़े भाई विशाल के चेहरे से जीवन का रंग उड़ चुका है। वह बार-बार हेमंत का फोन निहारता है, जिसमें अब कोई नोटिफिकेशन नहीं आता।

पिछड़ी जाति के छात्र हेमंत पटेल की हत्या के मामले में जातिगत भेदभाव की परतें एक-एक कर उघड़ रही हैं। एक ओर रसूखdar ठाकुर पिता-पुत्र हैं, तो दूसरी ओर एक पिछड़ी जाति का होनहार छात्र, जिसके पास न सत्ता थी, न संरक्षण। जिस विद्यालय में एक छात्र ने अपने भविष्य का सपना बुना था, उसी विद्यालय की दीवारों ने उसकी हत्या के षड्यंत्र को भी चुपचाप सह लिया।

हेमंत पटेल की नृशंस हत्या की एफआईआर में दर्ज तथ्य और पीड़ित परिवार की तहरीर के बीच अब गहरी खाई बन चुकी है। हेमंत की बहन डाली अब आंसू भी नहीं बहाती—शायद आंसू सूख चुके हैं। वह अपनी कॉपी में हेमंत के हाथों लिखा एक वाक्य दिखाती है, “इंजीनियर बनूंगा, मां के लिए स्कूटर लाऊंगा।”

योगी के साथ मुख्य अभियुक्त।

कैलाश चंद्र वर्मा, हेमंत के पिता, अब केवल एक अधिवक्ता नहीं, एक शोकाकुल पिता हैं। वे अपने बेटे के लिए न्याय मांग रहे हैं। उन्होंने शिवपुर थाने में तीनों आरोपियों के खिलाफ नामजद तहरीर दी, किंतु पुलिस ने तहरीर में फेरबदल कर दिया। सत्ता और रसूख के सामने झुककर पुलिस ने एक ‘संशोधित तहरीर’ दर्ज की, जिसमें सच्चाई को धुंधला कर दिया गया। कैलाश वर्मा कहते हैं, “जिसने मेरा बेटा छीना, वह खुलेआम घूम रहा है। क्या मेरे बेटे की जान इतनी सस्ती थी?” उनकी आवाज थरथराती है, पर उनका संकल्प अडिग है।

हेमंत के पिता कैलाश चंद्र वर्मा ने अपने बेटे की हत्या के तीन आरोपियों के नाम—राज विजेंद्र सिंह, अनुपम राय और ठाकुर राम बहादुर सिंह स्पष्ट रूप से तहरीर में लिखे थे। उन्होंने बताया था कि इन तीनों ने मिलकर हेमंत की हत्या की साजिश रची और उसे गोली मारी। किंतु पुलिस द्वारा दर्ज एफआईआर में इन नामों का उल्लेख तक नहीं किया गया। इतना ही नहीं, गोली मारने वाले का नाम भी गायब कर दिया गया, जिससे पूरा मामला संदिग्ध हो गया है।

कैलाश कहते हैं, “मैं स्वयं अधिवक्ता हूं। हेमंत की हत्या एक पूर्वनियोजित साजिश थी। उसे बुलाकर मानसिक प्रताड़ना दी गई, अपमानित किया गया और अंततः गोली मार दी गई। लेकिन जो एफआईआर दर्ज हुई, उसमें न आरोपियों का स्पष्ट उल्लेख है, न ही गोली चलाने वाले का नाम। शायद स्कूल प्रबंधन को यह मंजूर नहीं था कि एक ‘नीची जाति’ का लड़का उनकी ऊंची जाति की छात्रा से संवाद करे। न कोई शिकायत, न कोई प्रमाण, केवल जातीय घृणा के आधार पर हेमंत को मानसिक रूप से प्रताड़ित किया गया और फिर गोली मार दी गई।”

मरुई गांव की गलियों में अब भी लोग फुसफुसाकर कहते हैं, “हेमंत अच्छा लड़का था… पढ़ने में तेज था… किसी का बुरा नहीं चाहता था…” लेकिन यही अच्छाई उसकी सबसे बड़ी कमजोरी बन गई। जाति, अहंकार और सत्ता के त्रिकोण ने उसे कुचल डाला। मां आशा पटेल हर सुबह हेमंत की तस्वीर के सामने दीपक जलाती हैं। दीपक की लौ कांपती है, जैसे कोई अनसुनी सिसकी हवा में तैर रही हो। वो बस एक ही बात दोहराती हैं, “हेमंत को इंसाफ मिलना चाहिए… नहीं तो इस देश में और भी मांओं की कोख लहूलुहान होती रहेगी…।”

अब हेमंत कोई एक चेहरा नहीं रहा। वह बनारस की मिट्टी से उठता हुआ एक सवाल बन गया है, क्या एक पिछड़ी जाति के बच्चे को सपने देखने का हक नहीं है? क्या स्कूलों की दीवारें सबके लिए बराबर नहीं होतीं? क्या न्याय सिर्फ रसूखdarों के लिए है? और जब तक इन सवालों का जवाब नहीं मिलता, तब तक मरुई गांव में हर दिन एक नयी मौत होती रहेगी, कभी सपनों की, कभी भरोसे की, कभी इंसाफ की।

सिर्फ हत्या नहीं, एक जाति पर हमला है

इस वीभत्स हत्या के विरोध में सरदार सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. आर.एस. पटेल के नेतृत्व में 25 अप्रैल को परमानंदपुर स्थित रायल ग्रीन गार्डन में कुर्मी समाज की एक महाजुटान बुलाई गई। इस आयोजन को विशुद्ध रूप से कुर्मी अस्मिता और न्याय के प्रश्न से जोड़ा गया। समाज के जागरूक और चिंतनशील लोगों से आह्वान किया गया कि वे इस जुटान में शामिल होकर अधिवक्ता के पुत्र हेमंत पटेल को न्याय दिलाने की लड़ाई को सशक्त करें। यह घटना न केवल क्रूर है, बल्कि अंतर्मन तक झकझोरने वाली भी है। प्रशासन का रवैया ढील भरा प्रतीत होता है। यदि आज आवाज नहीं उठाई गई, तो कल किसी और की बारी आ सकती है।

परिजनों के बीच पल्लवी पटेल।

डॉ. आर.एस. पटेल ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से स्कूल को तत्काल सील करने और दोषियों के खिलाफ बुलडोजर कार्रवाई की मांग की। उनकी मांगें स्पष्ट थीं—हेमंत के परिवार को एक करोड़ रुपये की आर्थिक सहायता, एक सदस्य को सरकारी नौकरी, तथा परिवार की सुरक्षा के लिए शस्त्र लाइसेंस दिया जाए। उन्होंने दो टूक कहा—”यदि प्रशासन ने न्याय नहीं दिया, तो सरदार सेना सड़क पर उतरकर निर्णायक लड़ाई लड़ेगी। इस बार हम पीछे नहीं हटेंगे।”

डॉ. पटेल ने स्पष्ट शब्दों में चेतावनी दी कि यदि न्याय नहीं मिला, तो बनारस की सड़कों पर भारी जनसैलाब उतरेगा। उन्होंने कहा—”यह मात्र एक हत्या नहीं है, यह लोकतंत्र की हत्या है। यह सामाजिक न्याय की हत्या है। और यह उस हर सपने की हत्या है, जिसे एक गरीब बच्चा आंखों में लेकर स्कूल जाता है। बड़ा सवाल यह है—क्या अब सत्ता और जाति की बंदूकें बच्चों पर चलाई जाएंगी? क्या हेमंत को न्याय मिलेगा? या वह भी एक नाम बनकर किसी पुराने अखबार की कतरन में दफ्न हो जाएगा?”

ज्ञानदीप इंग्लिश स्कूल में 12वीं कक्षा के छात्र हेमंत पटेल की हत्या के मामले में स्कूल के प्रबंधक रामबहादुर सिंह के बेटे रवि सिंह समेत दो लोगों को हिरासत में लिया गया है, किंतु इस हत्याकांड की दर्ज एफआईआर सवालों के घेरे में है। पीड़ित परिवार का आरोप है कि पुलिस ने मामला दर्ज करते समय कई महत्वपूर्ण बिंदुओं की अनदेखी की है।

पीड़ित परिवार शोकाकुल और टूट चुका है, किंतु अब उनका टूटा हुआ विश्वास पुलिस की भूमिका पर भी गंभीर प्रश्नचिन्ह खड़ा कर रहा है। बताया जा रहा है कि रवि सिंह भाजपा से जुड़ा हुआ है और अपने पिता के साथ सक्रिय राजनीति में था। हेमंत की हत्या के बाद वह हिरासत में है, जबकि उसके पिता, वरिष्ठ भाजपा नेता रामबहादुर सिंह, फरार बताए जा रहे हैं। इस गड़बड़ी से पीड़ित परिवार में गहरा असंतोष है और उन्हें आशंका है कि पुलिस जानबूझकर आरोपितों को बचाने की साजिश कर रही है। कैलाश चंद्र वर्मा ने भी इस मामले में गड़बड़ी को लेकर चिंता व्यक्त करते हुए न्याय की मांग की है। रवि सिंह का राजनीति में सक्रिय रहना और भाजपा से संबंध होना बार-बार सामने आ रहा है। घटना के बाद से वह हिरासत में है और पुलिस जांच जारी है, जबकि उसके पिता की फरारी कई सवाल खड़े कर रही है।

एक और अभियुक्त के साथ बीजेपी नेता महेंद्र नाथ पांडेय।

बीजेपी के क्षेत्रीय अध्यक्ष दिलीप पटेल ने हाल ही में एक बयान में अपराधियों के खिलाफ कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि अभियुक्तों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है, जो कानून के तहत आवश्यक कार्रवाई है। उन्होंने यह स्पष्ट संदेश दिया कि अपराध किसी भी परिस्थिति में क्षम्य नहीं है और अपराधियों को कानून के शिकंजे से बचने नहीं दिया जाएगा। गिरफ्तारी हो चुकी है और कानून के दायरे में रहते हुए दोषियों को सजा दिलाई जाएगी। कानून अपना कार्य करेगा और समय के साथ न्याय अवश्य होगा।

दिलीप ने इस बात पर भी बल दिया कि अपराधियों की न कोई जाति होती है, न कोई धर्म। अपराध केवल अपराध है, उसका कोई राजनीतिक या सामाजिक रंग नहीं होता। हर नागरिक को कानून का पालन करना चाहिए और उसका उल्लंघन करने वालों को सजा मिलनी चाहिए। उन्होंने आश्वासन दिया कि दोषियों को किसी भी स्थिति या पहचान के आधार पर बख्शा नहीं जाएगा। उनके बयान से यह स्पष्ट संकेत मिलता है कि भाजपा कानून के साथ खड़ी है और हर हाल में न्याय सुनिश्चित करेगी।

गरमाई बनारस की सियासत

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में एक छात्र की दिनदहाड़े हत्या के बाद सियासत गरमा गई है। समाज के वंचित तबकों की राजनीति करने वाले नेता अब इसे केवल हत्या नहीं, बल्कि जातीय आतंकवाद का संगठित रूप मान रहे हैं। सिराथू से विधायक और अपना दल (कमेरावादी) की नेता डॉ. पल्लवी पटेल ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि यदि इस मामले में पीड़ित परिवार को न्याय नहीं मिला, तो वे प्रधानमंत्री के संसदीय कार्यालय का घेराव करेंगी।

हेमंत की मां के आंसू पोंछते हुए डॉ. पल्लवी पटेल बोलीं, “यह केवल हत्या नहीं, जातीय आतंकवाद है।” शुक्रवार, 25 अप्रैल को डॉ. पल्लवी पटेल बनारस के उस गांव पहुंचीं, जहां 12वीं का छात्र हेमंत पटेल सत्ताधारी सामंती ताकतों की गोलियों का शिकार हुआ। उन्होंने पीड़ित परिवार से मुलाकात की और मृतक छात्र की मां आशा पटेल के आंसू पोंछते हुए परिवार को भरोसा दिलाया कि वे इस संघर्ष में अकेले नहीं हैं। हेमंत के पिता, एडवोकेट कैलाश चंद्र पटेल से पूरी घटना की जानकारी लेने के बाद उन्होंने आश्वस्त किया कि अब यह लड़ाई बनारस से दिल्ली तक लड़ी जाएगी।

घटना के बाद प्रदर्शन करते लोग।

इसके बाद सर्किट हाउस में मीडिया से बात करते हुए डॉ. पटेल ने कहा, “जब देश में नागरिक ही सुरक्षित नहीं हैं, तो सरकार की जिम्मेदारी क्या रह जाती है? पहलगाम में आतंकवादियों का हमला राष्ट्रीय मुद्दा बनता है, लेकिन बनारस में हुए जातीय आतंकवाद पर कोई चर्चा तक नहीं। हेमंत पटेल की हत्या केवल एक छात्र की मौत नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय पर हमला है।”

हेमंत पटेल की हत्या को लेकर सामाजिक संगठनों के साथ राजनीतिक गोलबंदी भी तेज हो गई है। पल्लवी पटेल के साथ अपना दल (कमेरावादी) के कई प्रदेश स्तरीय पदाधिकारी, किसान मंच के प्रतिनिधि और अन्य सामाजिक कार्यकर्ता इस अभियान से जुड़ गए हैं। 24 अप्रैल को अपना दल (कमेरावादी) ने वाराणसी कलेक्ट्रेट पर जोरदार प्रदर्शन किया, जिसमें राज्यपाल को संबोधित ज्ञापन जिलाधिकारी को सौंपा गया।

ज्ञापन में मांग की गई कि स्कूल प्रबंधक आरबी सिंह समेत सभी आरोपितों को तत्काल गिरफ्तार किया जाए, ज्ञानदीप स्कूल को सील कर उसकी मान्यता रद्द की जाए तथा हत्याकांड की निष्पक्ष जांच किसी वरिष्ठ राजपत्रित अधिकारी की निगरानी में कराई जाए। साथ ही मृतक छात्र के परिवार को एक करोड़ रुपये की आर्थिक सहायता देने और मुख्य आरोपितों को भाजपा से तत्काल निष्कासित करने की मांग भी रखी गई।

प्रदर्शन से पूर्व “हेमंत को न्याय दो”, “गुनहगारों को गिरफ्तार करो” जैसे नारों के साथ एक शांतिपूर्ण मार्च भी निकाला गया। वक्ताओं ने कहा, “जब हनुमान को अपना बल याद आता है, तो लंका जलती है। जब शांत तालाब में कंकड़ गिरता है, तो लहरें उठती हैं। और जब समंदर की चुप्पी टूटती है, तो ज्वार-भाटा आता है। ठीक वैसे ही, जब शांतिप्रिय कुर्मी समाज की अस्मिता पर चोट होती है, तो सत्ता की नींव हिल जाती है।”

इस मार्च और प्रदर्शन में प्रदेश उपाध्यक्ष सुरजीत सिंह, महासचिव गगन प्रकाश यादव, शिवशंकर पटेल, राजेश पटेल, राजकुमार पटेल सहित दर्जनों कार्यकर्ता शामिल हुए। सभी की एक ही मांग थी कि हेमंत को न्याय मिले और दोषियों को संरक्षण नहीं, सजा मिले।

पीएमओ के घेराव की कोशिश में नोकझोंक

26 अप्रैल को विधायक पल्लवी पटेल और पुलिस के बीच भेलूपुर इलाके में तीखी नोकझोंक हो गई। पल्लवी पटेल कार्यकर्ताओं के साथ प्रधानमंत्री जनसंपर्क कार्यालय का घेराव करने जा रही थीं, लेकिन आईपी मॉल के पास पुलिस ने बैरिकेडिंग कर उन्हें रोक दिया। इस पर पल्लवी पटेल बैरिकेडिंग पर चढ़ते हुए बोलीं, “मुझे उस पार जाना है… सामने से हटो।” डीसीपी और एसीपी से उनकी तीखी बहस भी हुई। माहौल गर्माता देख वह रास्ते में ही धरने पर बैठ गईं।

डॉ. पल्लवी पटेल ने कहा, “22 अप्रैल को जिस दिन पहलगाम में आतंकी हमला हुआ, उसी दिन बनारस में जातीय नफरत की गोली चली। हेमंत को स्कूल बुलाकर ज्ञानदीप इंग्लिश स्कूल परिसर में गोली मारी गई। घटना के पीछे सामाजिक वर्चस्व की भावना भी काम कर रही है। इस घटना से कुर्मी समाज में भारी आक्रोश है।”

इससे पहले सरदार सेना के बैनर तले शास्त्री घाट से पुलिस कमिश्नरेट तक मार्च निकाला गया। सरदार सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. रमाशंकर सिंह पटेल ने चेतावनी दी कि यदि प्रशासन ने ढील बरती, तो लखनऊ में मुख्यमंत्री आवास का घेराव किया जाएगा।

सभा को संबोधित करते हुए डॉ. रमाशंकर सिंह पटेल ने कहा, “यह घटना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र में हुई है। सामंतवादियों का मनोबल इतना बढ़ गया है कि वे स्कूल के छात्र को दिनदहाड़े गोली मार रहे हैं। सभी आरोपी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की जाति से हैं, इसलिए पुलिस निष्क्रिय बनी हुई है। हमारे समाज के बच्चे को स्कूल में बुलाकर मारा गया, यह कोई सामान्य मामला नहीं है। अगर जाति विशेष के आरोपियों को बचाने की कोशिश की गई, तो पूरे प्रदेश में आंदोलन होगा।”

उन्होंने चेतावनी दी, “अगर आज समाज चुप रहा तो कल किसी और के घर मातम पसरेगा। इसलिए अब निर्णायक लड़ाई लड़नी होगी।” इस मौके पर प्रयागराज से रमेश पटेल, पिंडरा (वाराणसी) से एडवोकेट जवाहर लाल वर्मा, अपना दल (एस) के अजय पटेल, मिर्जापुर से एडवोकेट रामलाल पटेल, जेडीयू नेता सुशील पटेल, साथी मिशन के संरक्षक मनोज कुमार वर्मा, ओमप्रकाश पटेल, राजेश पटेल प्रधान, एडवोकेट कन्हैया लाल सहित कई अन्य वक्ताओं ने भी सभा को संबोधित किया। सभी ने एक स्वर में कहा कि यदि मांगें पूरी नहीं हुईं तो आंदोलन प्रदेशव्यापी रूप लेगा। इस अवसर पर रंजू बाला देवी, धनंजय सिंह पटेल, प्रवेश पटेल, सुनील पटेल, चंद्रभान सिंह, अवधेश कुमार सिंह, शमशेर बहादुर वर्मा, विजय कुमार वर्मा, डॉ. नरेंद्र पटेल, गोविंद सिंह, विशाल कुमार, मुन्ना पटेल, जय प्रकाश पटेल, सुरेश वर्मा, सुनील कुमार वर्मा आदि भी मौजूद रहे।

पुलिस-प्रशासन की भूमिका पर सवाल

हेमंत की हत्या ने कुर्मी समाज को आक्रोशित कर दिया है। इस जघन्य हत्याकांड के बाद समाज में गहरा रोष स्पष्ट दिखाई दे रहा है। माना जा रहा है कि यदि पुलिस और प्रशासन ने शीघ्र एवं प्रभावी कार्रवाई नहीं की, तो स्थिति विकट हो सकती है।. वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक राजेश पटेल के अनुसार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्वाचन क्षेत्र बनारस में लगभग 18 लाख मतदाता हैं, जिनमें अकेले चार लाख से अधिक कुर्मी वोटर हैं। पूरे बनारस जिले में कुल 22 लाख मतदाता हैं, जिनमें छह लाख से अधिक कुर्मी समुदाय से आते हैं। ऐसे में इस घटना का प्रभाव आगामी विधानसभा और लोकसभा चुनावों पर भी पड़ सकता है।

मूल एफआईआर की कापी।

“हेमंत की हत्या केवल एक छात्र की मृत्यु नहीं है, यह एक चेतावनी है। जब जाति, सत्ता और राजनीति का गठजोड़ बनता है, तो न्याय की राह कठिन और धुंधली हो जाती है। आज बनारस की गलियों में एक ही सवाल गूंज रहा है कि क्या मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार में सत्ता से जुड़े लोगों को कानून का भय नहीं रह गया है? क्या अब कानून भी आरोपी का चेहरा देखकर अपनी धाराएं तय करता है? और क्या एक गरीब, मेहनती, पिछड़े वर्ग के छात्र के लिए न्याय केवल किताबों में लिखा शब्द बनकर रह गया है?”

वरिष्ठ पत्रकार राजेश पटेल ने स्पष्ट आरोप लगाते हुए कहा कि आज का बनारस वह ‘सुबहे बनारस’ वाला शहर नहीं रहा, बल्कि ‘मोदी की काशी’ बन चुका है, जहां सत्ता संरक्षित अपराधी खुलेआम घूम रहे हैं। यह अब वह काशी नहीं रही, जहां गंगा के लिए अपना जीवन अर्पित करने वाले उस्ताद बिस्मिल्ला खां बिना किसी भेदभाव के पूजे जाते थे। अब यहां कबीर को भी उनकी जाति और धर्म के चश्मे से देखा जाने लगा है। संत रैदास ने जिस कठौती में गंगा को समाहित किया था, आज शायद उसी में डूब जाने का मन कर रहा होगा।

राजेश पटेल ने एक वायरल तस्वीर का हवाला देते हुए कहा, “जो तस्वीर आप देख रहे हैं, उसमें भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ जो तीसरा व्यक्ति खड़ा है, वही ठाकुर राज विजेंद्र सिंह उर्फ रवि सिंह है, जिस पर हेमंत पटेल की हत्या का आरोप है। रवि सिंह ने अपने पिता ठाकुर रामबहादुर सिंह की लाइसेंसी पिस्टल से हेमंत की कनपटी में गोली मारी।”

उन्होंने कहा कि “बनारस अब सत्ता संरक्षित अपराधियों का गढ़ बन चुका है।” इसका उदाहरण देते हुए राजेश पटेल ने याद दिलाया कि बीएचयू परिसर में आईआईटी की छात्रा के साथ हुए सामूहिक दुष्कर्म के आरोपी भी भाजपा से जुड़े पदाधिकारी थे और उन्हें बचाने के लिए सत्ता तंत्र ने1. सत्ता तंत्र ने हरसंभव प्रयास किए। “तीनों आरोपी हिंदू थे, भाजपा के पदाधिकारी थे और उनकी गिरफ्तारी में भी देरी की गई। अब वही साजिश हेमंत पटेल हत्याकांड में भी दिखाई दे रही है।”

हेमंत पटेल की हत्या पर विस्तार से चर्चा करते हुए राजेश पटेल ने कहा, “एफआईआर के मुताबिक, 22 अप्रैल को दिनदहाड़े ज्ञानदीप स्कूल में बुलाकर रवि सिंह ने हेमंत को गोली मारी। हत्या में उनके पिता की लाइसेंसी पिस्टल का इस्तेमाल हुआ। गोली सीधे कनपटी पर मारी गई, जिससे बचने की कोई संभावना ही नहीं थी। इस हत्या ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि सामंतवादी मानसिकता आज भी जीवित है और निर्दोषों को बेरहमी से कुचल रही है।”

बदली गयी एफआईआर।

उन्होंने सवाल उठाया कि क्या योगी सरकार इस ठाकुर अपराधी के खिलाफ भी वही सख्ती दिखाएगी जो यादव, मुसलमान या अन्य पिछड़ी व दलित जातियों के अपराधियों के खिलाफ दिखाई जाती है? राजेश पटेल ने कहा, “रामबहादुर सिंह और उनके बेटे की भाजपा के शीर्ष नेताओं के साथ कई तस्वीरें सोशल मीडिया पर उपलब्ध हैं। इससे स्पष्ट होता है कि उनकी सत्ता के गलियारों में गहरी पकड़ है। यही वजह है कि न्याय दिलाने को लेकर संशय पैदा हो रहा है। यदि हेमंत पटेल के हत्यारों को सजा नहीं मिली, तो बनारस की आत्मा और भी आहत होगी।”

“यह केवल एक हत्या नहीं है, यह काशी की साझी सांस्कृतिक विरासत पर हमला है,” राजेश पटेल ने कहा। “यह घटना एक छात्र की हत्या से कहीं अधिक है। यह चेतावनी है कि जब जाति, सत्ता और राजनीति एक हो जाएं, तो न्याय का मार्ग रुक जाता है। आज बनारस की हर गली में एक ही प्रश्न गूंज रहा है, क्या मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार में भाजपा नेताओं से जुड़े आरोपियों को कानून का भय नहीं रहा? क्या इस दौर में कानून भी चेहरा देखकर धाराएं तय करता है? क्या एक गरीब, मेहनती, पिछड़ी जाति के छात्र के लिए न्याय केवल एक शब्द बनकर रह गया है?”

वरिष्ठ पत्रकार विनय मौर्य कहते हैं, “अब सवाल केवल हेमंत पटेल को न्याय दिलाने का नहीं है, बल्कि सामाजिक न्याय की बुनियादी लड़ाई का है। कुर्मी समाज ने स्पष्ट कर दिया है कि इस बार वे पीछे हटने वाले नहीं हैं। इस घटना के बाद पूरा वाराणसी हिल गया है। छात्र संगठनों में गहरा रोष है, समाज के बुद्धिजीवी स्तब्ध हैं। लेकिन पुलिस और प्रशासन की ओर से अब तक कोई स्पष्ट कार्रवाई नहीं हुई है। बड़ा सवाल यह है कि क्या सत्ता में जातीय वर्चस्व की राजनीति के आगे प्रशासन झुकेगा, या कानून निष्पक्षता से अपना कार्य करेगा? इन सवालों के जवाब आने वाले दिनों में बनारस की सड़कों पर मिलेंगे, जहां अब न्याय के लिए हुंकार भरी जा चुकी है।”

“हेमंत पटेल हत्याकांड अब काशी में जातीय संघर्ष का एक और उदाहरण बन गया है। कई लोग यह सवाल उठा रहे हैं कि क्या योगी आदित्यनाथ की सरकार में राजनीतिक प्रभाव और जातिवाद का जाल इतना गहरा हो चुका है कि अपराधी खुलेआम संरक्षण पा रहे हैं? इस घटना से जुड़ी अन्य घटनाओं को देखते हुए यह चिंता और बढ़ जाती है कि क्या सत्ता से जुड़े नेताओं के प्रभाव ने अपराधियों का मनोबल इतना बढ़ा दिया है कि वे कानून को चुनौती देने से भी नहीं डरते?”

(विजय विनीत बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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