कॉर्पोरेट के दबाव में झुकी नवीन पटनायक सरकार, आदिवासियों की जमीन के खरीद-बिक्री कानून में किया संशोधन

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नई दिल्ली। आजादी के बाद किसानों और आदिवासियों को जमीन का हक देने के लिए 1950 में जमींदारी उन्मूलन कानून बनाया गया। इस कानून में किसी व्यक्ति और परिवार के पास कितनी जमीन रह सकती है, इसको भी निर्धारित किया गया। आदिवासी और अनुसूचित जाति के हितों की रक्षा के लिए यह नियम बनाया गया कि उनकी जमीन गैर आदिवासी और गैर अनुसूचित जाति का व्यक्ति खरीद नहीं सकता है। लेकिन ओडिशा की नवीन पटनायक सरकार ने इस कानून में संशोधन कर दिया है। अब कोई भी व्यक्ति उप-कलेक्टर की अनुमति से किसी आदिवासी की जमीन को खरीद सकता है। यही नहीं अब आदिवासी अपनी जमीन को गैर कृषि कार्य के लिए बंधक भी रख सकते हैं।

ओडिशा देश के पिछड़े राज्यों में गिना जाता है। यहां की अधिकांश आबादी गरीब है। और सबसे बड़ी बात यह है कि राज्य में करीब 40 प्रतिशत आदिवासी और अनुसूचित जाति के लोग रहते है।

इस कानून के बाद आदिवासियों की जमीन से बेदखली बढ़ने की संभावना है। क्योंकि देश में जहां-जहां आदिवासियों का निवास है, वहां की जमीन में खनिज संपदाओं का भंडार है। लंबे समय से कॉर्पोरेट की नजर खनिज भंडारों पर लगी है, वे खनिज के साथ ही कोयला और जंगल की लकड़ियों पर भी गिद्ध दृष्टि रखे हुए हैं। कॉर्पोरेट के दबाव में ओडिशा, झारखंड और छत्तीसगढ़ की सराकरें समय-समय पर आदिवासियों के जमीन और जंगल संबंधित कानून में संशोधन करने की कोशिश करते रहे हैं। लेकिन भारी जनदबाव के कारण उन्हें ऐसे संशोधनों को वापस लेना पड़ता रहा है।

लेकिन अब ओडिशा कैबिनेट ने इस कानून में संशोधन कर दिया है। इस तरह से ओडिशा देश का पहला ऐसा राज्य बन गया है जहां आदिवासियों की जमीन को गैर आदिवासी खरीद सकते हैं। अब अनुसूचित जनजाति (ST) के लोगों को उप-कलेक्टर की लिखित अनुमति के साथ अनुसूचित क्षेत्रों में गैर-आदिवासियों को अपनी जमीन हस्तांतरित करने की अनुमति मिल गई है। अब ओडिशा अनुसूचित क्षेत्र अचल संपत्ति हस्तांतरण (एसटी द्वारा) विनियमन, 1956 को कैबिनेट की मंजूरी मिल गई।

कैबिनेट बैठक के बाद ओडिशा के मुख्य सचिव पीके जेना ने कहा कि अब, एक एसटी व्यक्ति सार्वजनिक उद्देश्यों के लिए अपनी जमीन उपहार दे सकता है, बेच सकता है या कृषि, आवासीय घर के निर्माण, बच्चों की उच्च शिक्षा, स्व-रोज़गार, व्यवसाय या छोटा उद्योग स्थापित करने के लिए सार्वजनिक वित्तीय संस्थान में भूमि का एक टुकड़ा गिरवी रखकर ऋण प्राप्त कर सकता है। या इन उद्देश्यों के लिए इसे गैर एसटी समुदाय के किसी व्यक्ति के पक्ष में स्थानांतरित कर सकता है।”

इस अधिनियम में अंतिम संशोधन 2002 में किया गया था जिसके बाद एसटी वर्ग से संबंधित व्यक्ति अपनी अचल संपत्ति केवल एसटी समुदाय से संबंधित व्यक्ति को हस्तांतरित कर सकता था, जबकि उसे कृषि के लिए किसी भी सार्वजनिक वित्तीय संस्थान के पास अपनी जमीन गिरवी रखने की अनुमति थी।

ओडिशा सरकार के एक आधिकारिक नोट में कहा गया है कि“ऐसे प्रावधानों के कारण, एसटी समुदायों से संबंधित शिक्षित युवाओं को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा था। इस समस्या को समझते हुए और अनुसूचित जनजाति सलाहकार परिषद की सिफारिशों के आधार पर संशोधन किए गए है।”

राज्य के मुख्य सचिव ने कहा कि “हालांकि, एसटी समुदाय के एक सदस्य को अपने कब्जे वाली सभी संपत्तियों को बेचने की अनुमति नहीं दी जाएगी, क्योंकि वह व्यक्ति भूमिहीन नहीं हो सकता है। कलेक्टर और उप-कलेक्टर यह सुनिश्चित करेंगे।”

यदि उप-कलेक्टर ऐसी भूमि के हस्तांतरण, बिक्री या बंधक की अनुमति नहीं देता है, तो व्यक्ति छह महीने के भीतर संबंधित जिला कलेक्टर के पास अपील कर सकता है, जिसका निर्णय इस संबंध में अंतिम होगा।

(जनचौक की रिपोर्ट।)

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    धीरेंद्र प्रताप गोरखपुर

    ये गलत हो रहा है, यह झूठा बहाना है कि आदिवासियों को जमीनों के बदले ऋण मिलेगा और व्यवसाय का मौका मिलेगा । सरकार चाहे तो ऐसे नियम बना सकती है कि बिना जमीन गिरवी रख भी आदिवासियों को ऋण दिया जाए, यह सीधा-सीधा जमीन छीनने का कानून है

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