कुछ साल पहले सत्य घटना पर आधारित एक फिल्म आई थी- ‘नो वन किल्ड जेसिका’। इसमें जेसिका का हत्यारा मर्डर के आरोप से बच निकलता है। अदालत में यह साबित नहीं किया जा सका कि उसने जेसिका की हत्या की थी। नीट 2024 का केस भी अदालत में हिचकोले खा रहा है। अब लगने लगा है कि अंत में इस केस का हश्र भी जेसिका मर्डर केस की तरह ही होने वाला है। इतने सारे तथ्य और प्रमाण सामने हैं, लेकिन यह स्थापित नहीं हो पा रहा कि नीट परीक्षा का पेपर व्यापक स्तर पर लीक हुआ।
शुचिता शब्द अपने आप में ही इतना पवित्र है कि इससे कोई छेड़छाड़ नहीं होनी चाहिए। लेकिन स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि नीट 2024 के संदर्भ में अब शुचिता शब्द के मायने भी बदल दिए गए हैं। अब तक पेपर की चेन ऑफ कस्टडी में सेंध लगने मात्र से मान लिया जाता था कि परीक्षा की शुचिता भंग हो गई है। लेकिन अब यदि केवल स्थानीय स्तर पर पेपर लीक हुआ तो उससे परीक्षा की शुचिता भंग नहीं होना माना गया है। डिजिटलाइजेशन के इस दौर में लोकल और ग्लोबल का यह अंतर हास्यास्पद दिखाई देता है।
एक अंतर्राज्यीय संगठित गिरोह ने परीक्षा से एक-दो दिन पहले कैसे पेपर लीक किया। पेपर को व्हाट्सएप के माध्यम से इधर-उधर साझा किया गया। परीक्षा के परिणाम में रैंक इनफ्लेशन के रूप में पेपर लीक का प्रभाव भी स्पष्ट दिखाई दे रहा है। पहले बिहार पुलिस ने और अब सीबीआई ने कई राज्यों में पैंतीस से अधिक गिरफ्तारियां की हैं। एनटीए ने अपने एफिडेविट में लिखा है कि यह बेहद चतुराई से किया गया आपराधिक कृत्य था। एनटीए ने यह भी कहा कि अभी जांच चल रही है।
उधर सरकार ने मद्रास आईआईटी से डेटा का विश्लेषण करवा कर यह सिद्ध करने का प्रयास किया कि नीट 2024 में सब कुछ ठीक है। पीड़ित छात्र आईआईटी द्वारा प्रस्तुत किए गए विश्लेषण में बहुत सी खामियां देख रहे हैं। छात्रों का कहना है कि जब पेपर लीक व्हाट्सएप के माध्यम से हुआ हो तो वह किसी राज्य अथवा शहर के परिणाम में दिखाई नहीं देगा। यदि पिछले तीन-चार वर्षों के डेटा की ग्राफ के माध्यम से तुलना की जाए तो इस वर्ष हुआ रैंक इनफ्लेशन स्पष्ट दिखाई देगा।
एनटीए का कहना है कि रैंक इनफ्लेशन इसलिए हुआ क्योंकि इस वर्ष सिलेबस पच्चीस प्रतिशत कम कर दिया गया था। छात्रों का कहना है कि यदि सिलेबस कम होने के कारण रैंक इनफ्लेशन हुआ तो नीचे के स्कोर्स में रैंक इनफ्लेशन क्यों नहीं है। छात्र यह भी पूछ रहे हैं कि परीक्षा में सब कुछ ठीक था तो इतनी गिरफ्तारियां क्यों हो रही हैं? एनटीए में बड़े बदलावों की घोषणा भी तो नीट परीक्षा में हुई अनियमितताओं के कारण ही हो रही है।
एनटीए का कहना यह भी है कि परीक्षा के दौरान उसके सभी प्रबंध बेहद पुख्ता थे तथा सभी स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर्स की पालना की गई। इस पर छात्रों का कहना है कि हजारीबाग में ई-रिक्शा में पेपर ट्रांसपोर्ट किया गया। क्या यह एसओपी का उल्लंघन नहीं? बहुत से परीक्षा केंद्रों पर सीसीटीवी नहीं थे। पेपर रखने के स्थानों पर भी आवश्यक सुरक्षा प्रबंध नहीं थे।
कुल मिलाकर परीक्षा में इतनी कमियां दिखाई दे रही हैं कि उन्हें पचा पाना आसान नहीं। छात्र पूरे परिणाम को सार्वजनिक किए जाने की मांग कर रहे हैं। सर्वोच्च अदालत ने भी आठ जुलाई को सुनवाई में परिणाम को सार्वजनिक किए जाने की सलाह दी थी। लेकिन आश्चर्य है कि परीक्षा में धांधली के इतने गंभीर आरोपों के बाद भी एनटीए ने न तो किसी आरटीआई का उत्तर दिया। न ही परीक्षा परिणाम को सार्वजनिक किया। एनटीए हर वर्ष टॉपर छात्रों का परिणाम उनके नाम, रोल नंबर, प्रदेश रैंक इत्यादि के साथ साझा करता है। प्रश्न है कि जब टॉपर सौ छात्रों का परिणाम साझा किया जा सकता है, तो सभी छात्रों का क्यों नहीं?
देश का युवा विचलित है। सिस्टम से उसका भरोसा उठ रहा है। क्या ऐसे में यह आवश्यक नहीं था कि एनटीए को इस परिणाम से संबंधित समस्त जानकारी सार्वजनिक करने के लिए कहा जाता? राजनीति में शुचिता की बात तो बहुत होती है, लेकिन परीक्षा जैसे संवेदनशील विषय में शुचिता के नाम पर इतना बड़ा समझौता हो और सभी मूकदर्शक बने रहें यह बड़ी विचित्र और दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है। बहुत संभव है कि आने वाले दिनों में नीट परीक्षा के इसी परिणाम को मान्यता मिल जाए और यह कह दिया जाए कि नो वन रिग्ड नीट 2024।
(डॉ. राज शेखर यादव यूनाइटेड प्राइवेट क्लिनिक्स एंड हॉस्पिटल्स एसोसिएशन ऑफ राजस्थान के स्टेट कन्वेनर हैं)
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