नई दिल्ली की जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी यानि जेएनयू की स्टूडेंट्स यूनियन यानि जेएनयूएसयू की 2015-16 में उपाध्यक्ष चुने जाने पर कश्मीर की शेहला राशिद शोरा ने कहा था कि जेएनयू में अपनी पढ़ाई और खासकर इस चुनाव परिणाम से उनका भारत की लोकतान्त्रिक संस्थाओं में विश्वास बढ़ा है। पर उन्होंने यह भी कहा था कि ज्यादातर कश्मीरी लोगों के दिमाग में भारत की छवि अच्छी नहीं रही है और वे घाटी में चुनावों का बायकॉट करते हैं।
जेएनयूएसयू के उस बार के चुनाव में अध्यक्ष पद के लिए निर्वाचित कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया से जुड़े छात्र संगठन आल इंडिया स्टूडेंट्स फ़ेडेरेशन के कन्हैया कुमार जीते थे। उस चुनाव परिणाम के कुछ ही दिनों के बाद कन्हैया कुमार को दिल्ली पुलिस ने ‘एंटी नेशनल’ होने के फर्जी आरोपों में गिरफ्तार कर तिहाड़ जेल में कैद कर दिया था। जेएनयू स्टूडेंट्स के अलग गुट के नेता उमर खालिद और अनिर्बान भट्टाचार्या को भी दिल्ली पुलिस ने फर्जी आरोपों में गिरफ्तार कर तिहाड़ जेल में कैद कर दिया था। ऐसे में जेएनयूएसयू का पूरा कामकाज शेहला ने ही संभाला था।
शेहला ने इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट की पढ़ाई छोड़ कर जेएनयू में पढ़ाई के लिए दाखिला लिया था। उनको दिल्ली पुलिस किसी भी आरोप में दबोच नहीं सकी थी। अब यूनियन टेरिटरी कश्मीर की विधान सभा के साथ ही श्रीनगर यूनियन टेरिटरी की भी विधान सभा के लिए निर्वाचन आयोग ने चुनावों के कार्यक्रम तैयार कर 6 अक्टूबर 2024 को उनके परिणामों की घोषणा कर जम्मू कश्मीर के इन दोनों डिवीजन में चुनावी बिगुल बजा दिया है। कश्मीर के सभी लोग शेहला की तरह बहुत पढ़े लिखे नहीं हैं। ऐसे में देखना है कि कश्मीर के वोटरों का विधान सभा चुनावों के जरिए भारत की लोकतान्त्रिक व्यवस्था में विश्वास कैसे और कितना बहाल होगा।
भारत की संसद से पास 2019 के ‘जम्मू कश्मीर रिऑर्गेनाइजेशन एक्ट’ के प्रावधानों के तहत जम्मू और कश्मीर डिवीजन के निर्वाचन क्षेत्रों का नए सिरे से डिलिमिटेशन किया जा चुका है। सुप्रीम कोर्ट की रिटायर जस्टिस रंजन प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में 3 सदस्यों की इस कमीशन की सिफारिशों के आधार पर 5 मई 2024 को जारी अधिसूचना के तहत कश्मीर डिवीजन में 47 और जम्मू डिवीजन में 43 निर्वाचन क्षेत्र निश्चित किए गए हैं। इस कमीशन में पदेन पदाधिकारियों के रूप में भारत के निर्वाचन आयोग के पद से रिटायर हो चुके सुशील चंद्रा और जम्मू-कश्मीर निर्वाचन आयोग के आयुक्त केके शर्मा भी थे। कमीशन में जम्मू-कश्मीर से लोकसभा के जो 5 सदस्य ‘असोसिएट’ सदस्य थे उनमें 3 पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला की अगुवाई के जम्मू-कश्मीर नेशनल कांफ्रेंस के और भारतीय जनता पार्टी के 2 सदस्य थे।
भारत के निर्वाचन आयोग के निर्देश पर जम्मू-कश्मीर निर्वाचन आयोग ने 3 वर्ष के अंतराल के बाद जम्मू और कश्मीर डिवीजन में मतदाता सूची का विशेष रिवीजन शुरू कर दिया है। रिवीजन में 1 अक्टूबर 2022 के प्रभाव से मतदाताओं की पात्रता तय है। आयोग ने रिवीजन 31 अक्टूबर तक पूरा करने को कहा है। जम्मू-कश्मीर के मुख्य निर्वाचन अधिकारी हृदेश कुमार के ऑफिस से मिली जानकारी के अनुसार विशेष रिवीजन चुनावों की सितंबर 2024 में संभावित ‘ गजट अधिसूचना’ जारी होने के पहले पूरा हो जाने की आशा है।
संविधान में जम्मू -कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने की धारा 370 और 175 ए को नरेंद्र मोदी सरकार के प्रस्ताव पर संसद से पास करा लेने के बाद निर्वाचन आयोग के आदेश पर पहली बार जम्मू-कश्मीर की वोटर्स लिस्ट का विशेष रिवीजन किया जा रहा है। भारत के संविधान से इन धाराओं को हटाने के पहले जम्मू-कश्मीर के डोमीसाइल्ड यानि स्थाई बाशिंदों को ही वोट देने के अधिकार थे। पर इस विशेष रिवीजन से विधान सभा चुनावों में ‘पाकिस्तान अकुपाइड कश्मीर’ यानि पीओके विस्थापित नागरिकों को उनकी अर्जी पर पहली बार वोट देने के अधिकार दिए जा रहे है। पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के विस्थापित नागरिकों को पहले लोकसभा चुनावों में ही वोट देने का अधिकार था।
जम्मू -कश्मीर की पूर्ववर्ती विधान सभा के कुल 87 निर्वाचन क्षेत्रों में से 46 कश्मीर डिवीजन में, 43 जम्मू डिवीजन में और 4 लद्दाख डिवीजन में थे। विपक्षी पार्टियों का आरोप है कि हिन्दू समुदाय के वोटरों के बहुल जम्मू डिवीजन में निर्वाचन क्षेत्रों में वृद्धि और कश्मीर डिवीजन में कमी भारत के संविधान के प्रावधानों के खिलाफ है जिसमें साफ कहा गया है कि सभी निर्वाचन क्षेत्रों के वोटरों के वोट का ‘वैल्यू’ एकसमान रहना चाहिए। कश्मीर डिवीजन में मतदाता श्रीनगर डिवीजन की अपेक्षा ज्यादा हैं। फिर भी डिलिमिटेशन से वहां निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या, जम्मू डिवीजन से कम तय की गई।
भारत के 2011 के सेंसस के आधार पर पूरी की गई डिलिमिटेशन प्रक्रिया के फलस्वरूप जम्मू डिवीजन में 6 और कश्मीर डिवीजन में एक निर्वाचन क्षेत्र की वृद्धि हुई है। उस बार की जनगणना के अनुसार जम्मू डिवीजन में आबादी पूरे जम्मू कश्मीर की 44 फीसद होने पर उसके निर्वाचन क्षेत्रों का 48 फीसद हिस्सा मिला है। दूसरी तरफ यह तथ्य इंगित किया गया है कि कश्मीर डिवीजन में आबादी पूरे जम्मू कश्मीर की 55 फीसद होने पर भी नए निर्वाचन क्षेत्रों में उसकी हिस्सेदारी 48 फीसद ही है। इसके पहले कश्मीर डिवीजन में निर्वाचन क्षेत्र 55.4 फीसद और जम्मू डिवीजन में निर्वाचन क्षेत्र 44.5 फीसद थे। इन दोनों डिवीजन में अनुसूचित जाति के लोगों के लिए 9 निर्वाचन क्षेत्र रिजर्व किए गए हैं।
गौरतलब है कि यूनियन टेरिटरी बना दिए गए लद्दाख डिवीजन की विधान सभा नहीं होगी। देश में लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों में लद्दाख क्षेत्रफल के हिसाब से सबसे बड़ा है। यूनियन टेरिटरी बना दिए गए कश्मीर डिवीजन की अपनी विधानसभा तो है पर उसके अधिकार बहुत कम कर दिए गए हैं। यूनियन टेरिटरी बना दिए गए हिन्दू बहुल जम्मू डिवीजन में विधानसभा के निर्वाचन क्षेत्र मुस्लिम बहुल कश्मीर डिवीजन के निर्वाचन क्षेत्रों से ज्यादा कर दिए गए हैं जबकि कश्मीर क्षेत्रफल और आबादी के भी हिसाब से जम्मू डिवीजन से ज्यादा बड़ा है।
(चंद्र प्रकाश झा स्वतंत्र पत्रकार हैं)
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