प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हापुड़ में वकीलों पर लाठीचार्ज के मामले में एसआईटी की रिपोर्ट आने तक किसी भी पक्ष के विरुद्ध कार्रवाई करने पर रोक लगा दी है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने राज्य को वकीलों के खिलाफ ‘पुलिस हिंसा’ की जांच करने वाली एसआईटी में सेवानिवृत्त न्यायाधीश को शामिल करने और वकीलों की शिकायतें दर्ज करने का निर्देश दिया है। लाठीचार्ज की घटना के विरोध में चल रही वकीलों की हड़ताल पर हाईकोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया है।
सोमवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश प्रीतिंकर दिवाकर और न्यायमूर्ति महेश चंद्र त्रिपाठी की कोर्ट को अपर महाधिवक्ता ने बताया कि सरकार ने पूर्व गठित एसआईटी में रिटायर्ड जिला जज हरिनाथ को शामिल कर लिया है। प्रारंभिक जांच एक सप्ताह में पूरी कर ली जाएगी। वकीलों ने दावा किया कि एसआईटी में किसी भी न्यायिक अधिकारी को शामिल न किया जाना इसे “पूरी तरह से एकतरफा” बनाता है।
मुख्य न्यायाधीश प्रीतिंकर दिवाकर और न्यायमूर्ति महेश चंद्र त्रिपाठी की खंडपीठ ने आदेश दिया कि “राज्य सरकार हरि नाथ पांडे, सेवानिवृत्त प्रधान न्यायाधीश, परिवार न्यायालय, लखनऊ को एसआईटी में एक सदस्य के रूप में शामिल करेगी, जो पहले से ही राज्य सरकार द्वारा संबंधित घटना की जांच के लिए गठित की गई है। एसआईटी इसकी जांच करें और यथाशीघ्र अपनी रिपोर्ट एक सीलबंद लिफाफे में प्रस्तुत करे। एक अंतरिम रिपोर्ट निर्धारित अगली तारीख तक न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत की जाएगी”।
अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल ने कहा कि “एसआईटी में न्यायिक अधिकारी को शामिल करने पर राज्य सरकार को कोई आपत्ति नहीं है”।
हापुड घटना के संबंध में वकीलों की एफआईआर दर्ज करने और जांच करने के लिए पुलिस अधीक्षक को आगे निर्देश जारी किया गया है। ऐसा तब हुआ जब हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष अशोक सिंह ने कोर्ट को सूचित किया कि “मामले में केवल एक तरफा एफआईआर दर्ज की गई है और वकीलों के सर्वोत्तम प्रयासों के बावजूद आज तक उनकी एफआईआर दर्ज नहीं की गई है”।
उच्च न्यायालय ने पहले हापुड घटना का स्वत: संज्ञान लिया था जिसके बाद बार काउंसिल ऑफ उत्तर प्रदेश ने 30 अगस्त और 4 सितंबर को अधिवक्ताओं द्वारा राज्यव्यापी हड़ताल की घोषणा की थी, जो 5 और 6 सितंबर को जारी रहने की बात कही गई है।
इस संबंध में कोर्ट ने कहा, कि “हड़ताल करने के बार एसोसिएशनों/काउंसिलों के कृत्य की इस न्यायालय और माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा लगातार आलोचना की गई है क्योंकि वकीलों के ऐसे कृत्य न केवल वादियों को बहुत नुकसान पहुंचाते हैं, बल्कि यह प्रशासन को भी प्रभावित करते हैं। न्याय स्वयं हमारे संवैधानिक लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण पहलू है।”
कोर्ट ने कहा कि “अधिवक्ताओं के प्रतिनिधि निकाय को अपने सदस्यों की ओर से शिकायत उठाने का अधिकार है लेकिन यह इस तरह से होना चाहिए कि न्याय का अंतिम उद्देश्य ही पराजित न हो। जिम्मेदार नागरिक और न्याय वितरण प्रणाली के सैनिकों के रूप में, हम उम्मीद करते हैं कि वकील और उनके प्रतिनिधि निकाय बड़े पैमाने पर समाज के प्रति अपने दायित्वों के प्रति जागरूक होंगे और जिम्मेदार तरीके से कार्य करेंगे”।
न्यायालय ने बार काउंसिल ऑफ उत्तर प्रदेश और राज्य भर के संबंधित बार एसोसिएशनों के साथ-साथ इस न्यायालय और लखनऊ में इसकी पीठ से काम फिर से शुरू करने का आग्रह किया ताकि उच्च न्यायालय की ओर से किसी भी अप्रिय कार्रवाई को रोका जा सके।
खंडपीठ ने कहा कि “ऊपर जो देखा गया है, उसके आलोक में, हम आशा और विश्वास करते हैं कि बार काउंसिल ऑफ उत्तर प्रदेश और राज्य भर के संबंधित बार एसोसिएशन के साथ-साथ यह न्यायालय और लखनऊ में इसकी बेंच आत्मनिरीक्षण करेगी और निर्धारित कानून का सम्मान करते हुए कार्य करेगी”।
पीठ ने कहा कि “हम यह भी स्पष्ट करते हैं कि किसी भी पीड़ित व्यक्ति के साथ कोई अन्यायपूर्ण व्यवहार किए जाने की स्थिति में इस न्यायालय के दरवाजे खुले रहेंगे।” अब इस मामले की सुनवाई 15 सितंबर को होगी
(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं।)
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