भीमा कोरेगांव केस एक अंतहीन सिलसिले की तरह चलता ही जा रहा है। अभी कुछ दिन पहले ही दिल्ली विश्वविद्यालय के अध्यापकों को एनआईए ने सम्मन जारी किया था और उनसे घंटों पूछताछ की थी। उसी दौरान कोलकाता में पढ़ा रहे प्रोफेसर पार्थो सारथी रे को भी पूछताछ के लिए बुलाया गया था। अब एक बार फिर वरवर राव के परिवार के दो सदस्यों को समन जारी किया गया है।
वरिष्ठ पत्रकार केवी कुरमनथ और के सत्यनारायण, जो इंगलिश एण्ड फॉरेन लैंग्वेजेज विश्वविद्यालय, हैदराबाद में अध्यापक हैं, को भीमा कोरेगांव केस में पूछताछ के लिए 9 सितंबर, 2020 को मुंबई ऑफिस में बुलाया गया है। इसके पहले दोनों के ही घरों पर महाराष्ट्र पुलिस ने रेड की थी। दोनों ही वरवर राव के दामाद हैं। ज्ञात हो कि वरवर राव को इसी केस में जेल में डाल दिया गया है। यह पूछताछ वरवर राव के परिवार को और भी तकलीफ में ले जाने का कदम है।
यह जानना जरूरी है कि वरवर राव की दो बेटियां हैं, जिनके पति को पूछताछ के लिए बुलाया गया है। वरवर राव की जीवन साथी हेमलथा की काफी उम्र हो चुकी है। उनके परिवार को इस तरह प्रताड़ित करने का अर्थ न सिर्फ उनके परिवार की आर्थिक स्थिति को तबाह करना होगा। उनको सामाजिक और मानसिक तौर पर क्षति पहुंचाने वाला कदम होगा। पुलिस की रेड, निगरानी और वरवर की गिरफ्तारी से पहले से ही यह परिवार तकलीफ से गुजर रहा है।
हाल ही में, जेल में वरवर राव का स्वास्थ्य बेहद खराब हो गया था। परिवार अभी उस दुखद स्थिति से उबरा भी नहीं था कि एक बार फिर से एनआईए ने दोनों दामादों को पूछताछ के लिए बुला लिया है। यह बेहद अमानवीय और शर्मनाक कार्रवाई है। इस पर निसंदेह सर्वोच्च न्यायालय को संज्ञान में लेकर हस्तक्षेप करना चाहिए।
भीमा कोरेगांव केस में अभी तक 12 लोग गिरफ्तार हो चुके हैं। वरवर राव, सुधा भारद्वाज, शोमा सेन, वर्नन गोंजालवेज, अरुण फरेरा, सुधीर ढ़वाले, सुरेंद्र गडलिंग, रोना विल्सन, आनंद तेलतुम्बडे, महेश राउत, गौतम नवलखा, हेनी बाबू। 8 जून 2018 में हुई गिरफ्तारियों के बाद से दो साल गुजर जाने के बाद भी यह सिलसिला खत्म नहीं हो रहा है।

महाराष्ट्र में शिवसेना की सरकार ने इस केस पर जांच बैठाने का निर्णय लिया था। यह जब तक जमीन पर उतरे केंद्र सरकार ने इसे राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी के हाथ सौंप दिया।
डॉ. कफील के मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने संज्ञान लेते हुए उन्हें तुरंत जमानत पर रिहा करने का आदेश पारित किया था। उन्हें नेशलन सेक्योरिटी एक्ट के तहत बंद किया गया था। भीमा कोरेगांव में निश्चित ही कोर्ट की ओर से हस्तक्षेप की जरूरत है। इस मसले पर रोमिला थापर और अन्य बुद्धिजीवियों ने सर्वोच्च न्यायालय में मामले को दर्ज कराया था।
बाद के समय में, गिरफ्तार लोगों की ओर से बार-बार कोर्ट में जमानत की याचिकाएं डाली गईं, लेकिन उन्हें खारिज कर दिया गया। खासकर, वरवर राव के संदर्भ में खारिज की गई याचिका ने कोर्ट के प्रति निराशा को और भी बढ़ा दिया। जबकि पूछताछ और गिरफ्तारियों के चलते ही जा रहे सिलसिले ने बौद्धिक समुदाय, पत्रकार, वकील और मानवाधिकार सामाजिक कार्यकर्ताओं में गहरे तक विक्षोभ पैदा किया है।
कोर्ट द्वारा अपनाया गया यह रवैया निश्चित ही चिंतित करने वाला है। प्रसिद्ध लेखिका और दलित चिंतक मीना कंडास्वामी ने लिखा है, ‘‘भीमाकोरेगांव केस में लेखकों, बुद्धिजीवियों और अकादमिकों पर मनमाना हमला बंद करो, सिलसिले की तरह चल रहा एकदम फालतू और विद्वेश से भरा केस जो पीस देने वाली मशीन की तरह काम कर रही है, महज असहमत लोगों को दंडित कर रही है। विपक्ष के लिए यह कब राष्ट्रीय मसला बनेगा?’’
जब प्रशांत भूषण से कोर्ट अवमानना केस में सजा के बारे में पूछा गया था तब उन्होंने कहा था कि बहुत से लोग भीमा कोरेगांव केस में जेल गए। हम भी वहां रह लेंगे। क्या भीमा कोरेगांव केस जुल्म का प्रतीक बन गया है? हां, ऐसा ही हो गया है। इस केस में देश भर में छापे डाले गए। पूछताछ की गई और फिर गिरफ्तारियां भी हुईं और अभी भी चल रही है। बौद्धिक समाज में सवाल बन गया है, अगला कौन?
यह कोविड-19 के संक्रमण जैसा है, जिसमें प्रायकिता निकालनी है कि कौन संक्रमित होगा? गिरफ्तारी और बीमारी साथ-साथ फैल रही है। स्वास्थ्य और गिरफ्तारी से बच जाना संयोग हो चुका है। यह अराजकता की वह व्यवस्था है जिसे फासिस्ट बनाते ही नहीं हैं उसी के माध्यम से खुद को मजबूत करते हैं, वही राज्य-व्यवस्था हो जाती है। उम्मीद है न्यायापालिका इस अराजक व्यवस्था को ही व्यवस्था नहीं मानेगी और अपने ही सार्वजनीन न्याय की अवधारणा नहीं बल्कि देश में बने कानूनों और मान्यताओं ही सही, अमल में उतरेगी।
(जनचौक ब्यूरो की रिपोर्ट।)
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