काशीपुर। जिस मजदूरों के अंतरराष्ट्रीय त्योहार “मई दिवस” को मनाने के लिए पूरे विश्व में किसी की इजाजत की जरूरत नहीं पड़ती, उसी मई दिवस को मनाने के लिए उत्तराखंड के काशीपुर में पुलिस की इजाजत की जरूरत है। पुलिस की अनुमति तब इसलिए भी ज्यादा जरूरी हो जाती है, जब एक भाजपा पार्षद नहीं चाहता कि लोग मई दिवस मनाएं और मई दिवस के इतिहास को जानकर अपने अधिकारों के प्रति सचेत होकर उनकी रक्षा करें।
दरअसल मामला उधमसिंहनगर जिले के काशीपुर इलाके का है। जहां इंकलाबी मजदूर केंद्र ने मजदूर बहुल्य बंगाली कॉलोनी में मई दिवस के मौके पर एक कार्यक्रम आयोजित करने का निर्णय लिया। मजदूरों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने वाले इस कार्यक्रम की भनक जब इलाके के भाजपा पार्षद को लगी तो उसे अपनी राजनीति खतरे में दिखने लगी।
भाजपा पार्षद को लगा यदि लोग अपने अधिकारों के प्रति सचेत होकर अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करने लगेंगे तो चुनावों में उनका झण्डा-डंडा कौन उठाएगा। जिस कारण उसने पहले तो इंकलाबी मजदूर केंद्र के नेता को ही फोन करके कार्यक्रम न करने की हिदायत दी। लेकिन उनके न मानने पर पार्षद ने कार्यक्रम को रुकवाने के लिए पुलिसिया उत्पीड़न का सहारा लिया।
इंक़लाबी मज़दूर केंद्र के काशीपुर सचिव पंकज के मुताबिक इंक़लाबी मज़दूर केंद्र ने मई दिवस के शहीदों को याद करते हुए आम सभा का कार्यक्रम रखा था। इस सम्बन्ध में संगठन की ओर से मई दिवस के इतिहास की जानकारी के साथ कार्यक्रम की सूचना का प्रचार प्रसार करने के लिए एक पर्चे का भी वितरण किया गया था।
मई दिवस से एक दिन पहले रात को 9 बजे बंगाली कॉलोनी के वार्ड नंबर 7 के पार्षद दीपक कांडपाल ने शराब के नशे में पंकज को फोन कर कार्यक्रम न करने को कहा। चूंकि पार्षद नशे में था इसलिए पंकज ने उससे कोई बात नहीं की। इसके बाद 1 मई को जब इंकलाबी मज़दूर केंद्र और प्रगतिशील महिला एकता केंद्र के कार्यकर्ता बंगाली कॉलोनी पहुंचे तो पार्षद कांडपाल भी मौके पर पहुंच गया और कार्यकर्ताओं से बदतमीज़ी करने लगा।
भाजपा पार्षद की बदतमीजी का विरोध करते हुए कार्यकर्ताओं ने सभा का कार्यक्रम शुरू कर दिया। जिससे पार्षद को अपनी इज्जत खतरे में जाती दिखी। बाद में क्षेत्र में अपना रुतबा कायम रखने की नीयत से पार्षद कांडपाल ने मौके पर पुलिस भी बुला ली। आम लोगों की शिकायत पर उन्हें टरकाने वाली पुलिस पार्षद के एक बार के कहने पर ही मौके पर पहुंच गई। जहां कोई गैरकानूनी गतिविधि न दिखने पर पुलिस ने आयोजकों से कार्यक्रम की अनुमति न होने का बहाना बनाते हुए सभा बंद करने को कहा।

जब कार्यकर्ताओं ने पुलिस को बताया कि मई दिवस मज़दूरों के संघर्षों का दिन है और यह पूरी दुनिया और देशभर में मनाया जाता है। इसकी अनुमति लेने की कोई जरूरत नहीं होती है। पार्षद दीपक कांडपाल जबरदस्ती सभा में व्यवधान डालना चाहता है। तब भी पार्षद के भाजपा से जुड़ा होने के कारण पुलिस ने पार्षद का पक्ष लेते हुए कार्यकर्ताओं से थाने चल कर अपने सीनियर से मिलने को कहा।
सभी कार्यकर्ता आईटीआई चौकी पहुंचे। वहां चौकी प्रभारी आशुतोष ने पंकज को अकेले में बुलाया और बिना अनुमति सभा न करने का निर्णय सुना दिया। आरोप है कि उन्होंने इंक़लाबी मज़दूर केंद्र के सचिव की बात तक न सुनी। इसके बाद कार्यकर्ताओं ने आशुतोष सिंह का पुतला फूंकने का निर्णय लिया और आवास विकास पर पुतला फूंका।
इस मामले में इंकलाबी मजदूर केंद्र के पंकज का कहना है कि “इस घटना ने साबित कर दिखाया है कि भाजपा से जुड़े छोटे से छोटे कार्यकर्ता और छुटभैये नेताओं के इशारे पर पुलिस किस तरह नाच रही है। वह किसी की बात तक सुनने को तैयार नहीं है। पुलिस के ऐसे व्यवहार का विरोध बहुत जरूरी है। इंक़लाबी मज़दूर केंद्र भाजपा के पार्षद और पुलिस के ऐसे व्यवहार का विरोध करता रहेगा।”
(उत्तराखंड के काशीपुर से सलीम मलिक की रिपोर्ट)
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