Friday, March 29, 2024

गिला मोदी से नहीं ‘‘लौह पुरुष’’ सरदार पटेल से शिकायत है!

वीना

लीजिये, ख़बर है कि गुजरात के नर्मदा ज़िले में आज दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा ‘‘स्टैच्यू ऑफ़ यूनिटी’’ का पर्दा उठने से पहले विरोध करने वाले नर्मदा वासियों में से 80-90 को पर्दे के पीछे छुपा दिया गया है। यानि अदृश्य जेलों में ठूस दिया गया है। ना ये जेलें दिखाई देती हैं किसी को और न इनमें धकेले गए लोग।

सही भी है एक आदमी की मूर्ति। एक पर्दा हटाने-भाषण झाड़ने वाला। तो विरोध करने वाला भी एक ही होना चाहिये था ना। सैकड़ों की संख्या में हज़ारों करोड़ के दिखावे की किरकिरी करने का क्या मतलब?

एक तो इस देश के लोग नाशुकरे बहुत हैं। मोदी जी को अपना और देश का नाम दुनिया में चमकाने की फ़िक्र है और ये अपने पेट को रोए जाते हैं बेशर्म!

तीन हज़ार करोड़ की मूर्ति बनवाई है चीन से। 1 करोड़ 23 लाख की लाइटिंग चमकवाई है दुबई से। मज़ाक है क्या? तुम्हारे काले झंडों और भूखे पेटों की हैसियत क्या जो साहेब को सरदार की महानता कब्ज़ाने से रोक सकें!

वाह मोदी जी वाह! के भाव से साहेब कह रहे हैं – ‘‘भव्य स्मारक…ऊंचाई के कारण दुनिया को हिंदुस्तान की शख़्सियत की ओर देखने को मजबूर करेगी।’’ मूर्ख मानते ही नहीं। सवाल पे सवाल किये जाते हैं!

मूर्ति पर जो पैसे उड़ाए हैं क्या उससे हमारे खेतों के लिए सिंचाई का साधन नहीं हो सकता था?

क्या सुरक्षा के नाम पर 60 हज़ार करोड़ का राफेल घोटाला 182 मीटर ऊंची सरदार की प्रतिमा के बोझ तले दफ़्न किया जा सकता है?

हाड़-मांस के लोग अपने खाली हाथ, नंगा बदन, भूखा पेट भूल जाएंगे। बेघर सरदार की प्रतिमा की छाया में सर्दी-गर्मी-बरसात बिता लेंगे?

ये प्रतिमा आखि़र क्या साबित करने के लिए बनवाई गई है? कि गुजरात में जन्में ‘‘लौह पुरुष’’ सरदार वल्लभ भाई पटेल का दिल भी लोहे का था? 2002 के गुजराती मुख्यमंत्री की तरह ?

सुना है कि अपने सामान्य क़द में भी सरदार की दूर्दिशता सैकड़ों मील दूर बैठे लोगों के दिल-दिमाग़ का एक्सरे कर लाती थी। और इसी दूरदर्शिता के सदके ही ज़माना उन्हें ‘‘लौह पुरुष’’ के सम्मान से नवाज़ता है। 

मैं अंदाज़ा लगाने की कोशिश कर रही हूं कि साहेब की मेहरबानी से 182 मीटर ऊंची क़द-काठी के मालिक सरदार की नज़र अब क्या-क्या भेद पाती है?

जब सरदार पटेल ख़ुद-मुख़्तार रियासतों को जीतकर, समझा-बुझाकर भारत के वर्तमान नक़्शे को आकार दे रहे थे तब के अख़बारों में उनकी जो तस्वीर छपती थी उसमें वो गर्व से दुनिया से नज़र मिलाते हुए दिखाई देते हैं। सीना तना हुआ, सर उठा हुआ, आंखें लक्ष्य को भेदती मालूम होती हैं। 

पर साहेब की लौह प्रतिमा के सरदार की आखें झुकी हुई क्यों लगती हैं? माथे पर बेचैन लकीरे लिए 182 मीटर के लौह पुरुष सरदार की पूरी भाव-भंगिमा, जिस्म बेबस क्यों नज़र आ रहे हैं?

ये साहेब के रश्क़ का परिणाम है या कि सरदार ने ख़ुद देश की अभावों में जी रही भूखी-नंगी जनता से उन पर की गई फ़िजूलख़र्ची के लिए माफ़ी मांग रहे हैं। और ख़ुद ही तीन हज़ार करोड़ के लोहे में अपनी शर्मिंदगी के भाव ढाल लिए!

बात-बात पर पाकिस्तान को कोसने वाले मोदी, पटेल के इंडिया (भारत) को हिंदुस्तान बनाना चाहते हैं।

‘‘योर एक्सिलेंसी, इस बटवारे से दो-दो मुल्क़ पैदा हो रहे हैं, मेरी राय में उनके नाम…हिंदुस्तान और पाकिस्तान रखे जाने चाहिये।’’

ये डायलॉग है केतन मेहता द्वारा निदेर्शित और विजय तेदुलकर की स्क्रिप्ट पर बनी फ़िल्म में ‘‘सरदार’’ का। यहां बंटवारे के वक़्त जिन्ना दोनों देशों के लिए नाम सुझा रहे हैं। और जवाब में सरदार ने कहा -‘‘मिस्टर जिन्ना, दो मुल्क़ पैदा नहीं हो रहे बल्कि एक मुल्क़ से छोटा सा टुकड़ा अलग हो रहा है। मुस्लिम लीग अपने टुकड़े का जो नाम देना चाहे वो दे सकती है। इस देश का नाम इंडिया है और इंडिया ही रहेगा।’’

फ़िल्म में सरदार की भूमिका मोदी के सिपहसालारों में से एक परेश रावल ने निभाई है। सरदार के शब्द रटने वाले परेश रावल ने क्या कभी पटेल पर जबरन अपना ठप्पा लगाने वाले साहेब को नहीं बताया कि पटेल को अपना बनाने के लिए ‘‘इंडिया’’ को हिंदू राष्ट्र बनाने की रट त्यागनी होगी। सरदार पटेल तो देश के लिए हिंदुस्तान नाम का सुझाव तक बर्दाश्त नहीं कर पाए थे।

‘‘लौह पुरुष’’ सरदार वल्लभ भाई पटेल ! भारत की फलों की टोकरी में 562 रियासतों के फल सजाने वाले आज आप भी लौह पुरुष हैं और खड़े होकर बाबरी मस्जिद गिरवाने के आरोपी लालकृष्ण आडवानी भी ‘‘लौह पुरुष’’ कहलाते हैं। वैसे भारत के इन दोनों लौह पुरुषों की हालत एक ही व्यक्ति ने जो कर दी है उसके बाद ‘‘लौह पुरुष’’ के मायने पहले जो भी रहे हों अब ‘‘बेबस पुरुष’’ हो गए हैं।

आपकी अनुभवी नज़र गोलवलकर-सावरकर के वंशजों की करतूतों का अंदाज़ा लगाने में असमर्थ रही। संघ-नाथूराम गोडसे के कुकर्मों को आपने हल्के में लिया। अगर आप धर्मनिरपेक्ष इंडिया को ‘‘हिंदू राष्ट्र’’ का डंक मारने वाले ज़हरीले हिन्दू विचार के फन को उसी वक़्त कुचल देते जब इन्होंने गांधी को अपना शिकार बनाया था तो आज आपकी बेबसी का आलम ये न होता। अब भुगतिये।

अब आप भी नदियों को देवी-मां मानने वाले किसानों-नागरिकों की बेबस भीड़ का हिस्सा हैं। दिन रात देखिये निश्चल-श्वेत, कल-कल बहती नदियों के दामन को ठहरे हुए काले गंदे नालों में तब्दील होते हुए। अडानी-अंबानी, टाटा-बिड़ला, आदि-आदि अब रोज़ नज़र आएंगे आपको सीना तानकर नर्मदा का पानी- ज़मीन चुराते हुए। और हक़दार खेत-किसान बूंद- बूंद को तरसते हुए। घर से बेघर होते हुए।

182 मीटर ऊंचे ‘‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’’ अपने जमा किए टुकड़ों को बिखरते हुए देखते रहिये। आसमान से गौक़शी के इल्ज़ाम में, जल-जंगल-ज़मीन बचाते त्रिशूल-तलवार से कटते-पिटते मुसलमान-दलित-आदिवासी-बहुजन भरमार दिखेंगे।

देखिये, कैसे देश के धर्मनिरपेक्ष नौजवान भविष्य ‘‘लव जिहाद’’ की भेंट चढ़ाए जाते हैं। कैसे की जाती हैं फ़सलें बर्बाद और फिर फ़ांसी के फ़ंदे में झूलते किसान। 12-16 घंटे काम करने के बावजूद अशिक्षत, कुपोषित-भूखे-नंगे, मज़दूर-बच्चे, महिलाएं अब सब आपको साफ़-साफ़ दिखाई देंगे। 

देखिये उस लोकतंत्र का हाल जिसे आप अंग्रेज़ों के ग़ुलाम कानूनों के भरोसे छोड़ गए। माना ख़ुद घर के बने खादी में दिन गुज़ारे आपने। पर सोने की पाल्की से मंहगे प्राइवेट जेट, लाखों के सूट, मुल्क को हिंदू राष्ट्र बनाने की हिमाक़त का हौसला इन्हें आप ही पेश करके गए हैं। इसलिए गिला इनसे नहीं शिक़ायत आपसे है लौह पुरुष! आपसे।

वर्तमान समय में आपके और देश के साथ मनमानी करने वाले संघी हिंदू हृदय सम्राट! की तारीफ़ उनके संघी भ्राता इस प्रकार करते हैं – ‘‘मोदी शिवलिंग पर बैठे एक बिच्छू की तरह हैं। जिसे आप हाथ से नहीं हटा सकते और चप्पल से भी नहीं मार सकते। बिच्छू को हाथ से हटाएंगे तो वो बुरी तरह से डंक मार लेगा। और अगर चप्पल से मारते हैं तो सभी भक्तों की भावनाएं आहत होंगी। इसलिए आपको झुंझलाकर भी उनके साथ ही रहना होगा।’’

अगर मुसलमान जिन्ना से इंडिया को बचाने का इंतजाम आपको ज़रूरी लगा (जिसे ना करते तो आज आपकी और देश की ये हालत न होती जो है।) तो फिर हिंदू गोलवलकरों-सावरकरों, गोडसों-मोदियों-शाहों-मोहन भागवतों से बचाने की राह क्यों न बनाई? इसीलिए गिला इनसे नहीं शिक़ायत आपसे है लौह पुरुष! आपसे।

(वीना फिल्मकार, व्यंग्यकार और पत्रकार हैं।)

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