पीएमओ के बाहर किसानों का निर्वस्त्र प्रदर्शन

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जनचौक ब्यूरो

आज संसद की चौखट और सत्ता के शीर्ष दरवाजे पर वो हुआ जिसकी कोई कल्पना नहीं कर सकता है। 15 से 20 की संख्या में विजय चौक पर किसान आए और उन्होंने नग्न अवस्था में प्रदर्शन शुरू कर दिया। तमिलनाडु से आए ये किसान पिछले 28 दिनों से जंतर-मंतर पर बैठे हैं। इस दौरान उन्होंने लगातार कई तरीके से अपनी बात सत्ता तक पहुंचाने की कोशिश की लेकिन किसी के कान में जूं तक नहीं रेंगा।

आखिर में हताश निराश होकर उन्हें ऐसा कदम उठाने के लिए बाध्य होना पड़ा। खास बात ये है कि इस दौरान देश की सबसे बड़ी पंचायत भी चलती रही लेकिन उसमें भी कोई जुंबिश नहीं हुई। हालांकि विपक्ष के चंद नेताओं ने मुद्दे को उठाने की कोशिश जरूर की लेकिन सत्ता पक्ष ने उसे अनसुना कर दिया।

पूरी व्यवस्था हुई नंगी

आज किसान नहीं बल्कि पूरी व्यवस्था नंगी हुयी है। इस प्रदर्शन ने व्यवस्था के खोखलेपन को उजागर किया है। तमिलनाडु से तकरीबन 21 सौ किमी चलकर दिल्ली पहुंचे इन किसानों ने 14 मार्च से अपना प्रदर्शन शुरू किया। 253 की संख्या में आए इन किसानों के हाथ कर्ज से खुदकुशी कर चुके परिजनों की खोपड़ियां और भीख का कटोरा था। सभी स्त्री और पुरुष नंगे बदन थे।

अपनी बात पहुंचाने के लिए अपनाए कई तरीके

10 से 15 दिन बैठने के बाद भी जब इनकी कोई सुनवाई नहीं हुई तो सत्ता के दरवाजे तक अपनी आवाज को पहुंचाने के लिए उन्होंने अलग-अलग तरीके भी अपनाए। जिसमें अपने आधे सिर और आधी मूंछ दाढ़ी को छिलाने से लेकर कमर में पत्तियां लपेटकर नंगे बदन प्रदर्शन तक के तरीके शामिल थे। लेकिन फिर भी सत्ता में बैठे लोग सोते रहे। आखिर में आजिज आकर उन्होंने आज वैसा कदम उठाया है जिससे 70 सालों के इस पूरे लोकतंत्र के वजूद पर ही सवालिया निशान खड़ा हो गया है।

बहुत बड़ी नहीं है मांग

ये किसान आसमान से चांद तारे तोड़ने की मांग नहीं कर रहे हैं। न ही उन्होंने ऐसा कुछ मांगा है जिसे पूरा नहीं किया जा सके। ये लोग सिर्फ अपने कर्जे को माफ करने की मांग कर रहे हैं। केंद्र में सत्तारूढ़ बीजेपी अगर यूपी में किसानों के कर्जे माफ कर सकती है तो किसानों की कब्र बन चुके इन इलाकों के लोगों का क्यों नहीं।

अभी ज्यादा दिन नहीं बीते हैं जब देश के कारपोरेट घरानों के एक लाख 14 हजार करोड़ रुपये माफ किए गए हैं। क्या कारपोरेट जगत का कोई शख्स खुदकुशी किया है। या फिर उसके लिए उसे मजबूर होना पड़ा है। अगर उसके कर्जे माफ किए जा सकते हैं तब सामाजिक कल्याण के लिए बने संविधान में इन किसानों का तो पहला हक बनता है। लेकिन कारपोरेट की गुलामी करने वाली मोदी सरकार शायद संविधान को भूल गयी है या फिर उसे ताख पर रखने का फैसला कर लिया है।

मेहमान के सामने खुली पोल

ये घटना उस समय हुई है जब देश में एक विदेशी मेहमान आया हुआ है। आस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री मेल्कम टर्नबुल के स्वागत में मोदी समेत पूरा निजाम लगा हुआ है। लेकिन इस वाकये के बाद टर्नबुल के जेहन में देश की क्या तस्वीर बनेगी उसका अनुमान लगाना कठिन नहीं है।

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