
नई दिल्ली। राफेल मामले में एक और बड़ा खुलासा हुआ है। राफेल बनाने वाली कंपनी डसाल्ट का उद्योगपति अनिल अंबानी की एक दूसरी कंपनी में भी निवेश सामने आया है। दिलचस्प बात ये है कि अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस एयरपोर्ट डेवलपर्स लिमिटेड (आरएडीएल) को इस निवेश से 284 करोड़ रुपये का फायदा हुआ है जबकि कंपनी घाटे में चल रही है। डसाल्ट के निवेश की रकम 40 मिलियन यूरो बतायी जा रही है।
दोनों कंपनियों के बीच समझौते का कारण समझ में नहीं आ रहा है। क्योंकि ये क्षेत्र डसाल्ट के कोर बिजनेस का क्षेत्र नहीं है। साथ ही अंबानी की कंपनी एक अनलिस्टेड कंपनी है यानी वो शेयर मार्केट तक में दर्ज नहीं हुई है। और ऊपर से घाटे में चल रही है।
रिलायंस समूह एडीएजी की एक कंपनी रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर की एक घोषणा के मुताबिक इसने आरएडीएल के 34.7 फीसदी शेयर 2017-18 में डसाल्ट एविएशन को बेच दिए थे। बिक्री की शर्तें नहीं पता हैं लेकिन रिलायंस ने बताया कि उसने 2483923 शेयर बेचकर 284.19 करोड़ रुपये लाभ कमाए। गौरतलब है कि एक शेयर की कीमत यहां 10 रुपये थी।
“दि वायर” के माध्यम से आयी खबर में बताया गया है कि आरएडीएल को मार्च 2017 के अंत तक 10.35 लाख का घाटा हुआ है जबकि उसने इस साल कुल 6 लाख रुपये कमाए हैं। मार्च 2016 में खत्म होने वाले साल में कंपनी ने कोई रेवेन्यू नहीं हासिल किया। ऊपर से उसे 9 लाख रुपये का नुकसान हुआ था।
इस कंपनी का समूह की दूसरी सहायक कंपनियों में भी हिस्सा है। इनमें से ज्यादातर घाटे वाली हैं। और उसमें भी एयरपोर्ट प्रोजेक्ट से जुड़ी हैं जिसे 2009 में महाराष्ट्र सरकार द्वारा 63 करोड़ रुपये में अनुबंधित किया गया था। अक्तूबर 2015 की बिजनेस स्टैंडर्ड की एक रिपोर्ट में अधिकारियों और मंत्रियों के हवाले से ये बात सामने आयी है कि इन प्रोजेक्टों को विकसित करने में कमी के चलते एयरपोर्टों को वापस लेने का फैसला किया गया था। कंपनी भी इन एयरपोर्टों से अपना हाथ खींचना चाहती थी। लेकिन जनवरी 2017 की एक खबर के मुताबिक उसने अपना फैसला बदल लिया।
विडंबना देखिए जब महाराष्ट्र एयरपोर्ट डेवलपमेट कौंसिल (एमएडीसी) प्रोजेक्टों में आरएडीएल की प्रगति से नाखुश होकर एयरपोर्टों का चार्ज वापस लेने की तैयारी कर रही थी उसी समय इसने उसी साल समहू की एक दूसरी कंपनी को 289 करोड़ रुपये की एक दूसरी जमीन आवंटित कर दी।
डसाल्ट एविएशन की 2017 की वार्षिक रिपोर्ट रिलायंस एयरपोर्ट डेवपलपर्स में 34.7 फीसदी की इक्विटी भागीदारी का जिक्र करती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि ‘ 2017 में रिलायंस एयरपोर्ट डेलवपर्स लिमिटेड में 35 फीसदी शेयर हासिल कर हमने भारत में भी अपनी उपस्थिति मजबूत कर दी है। ये कंपनी एयरपोर्ट इंफ्रास्ट्रक्चर का मैनेजमेंट देखने के साथ उसको विकसित करने का काम करती है।’
दिलचस्प बात ये है कि रिलायंस एयरपोर्ट की वार्षिक रिपोर्ट रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर की साइट पर इस बात को नोट करती है कि डसाल्ट एविएशन की उसमें 34.79 फीसदी हिस्सेदारी है। लेकिन जब शर्तें और अधिकार को परिभाषित करने की बात आयी तो साइट उस पर मौन हो गयी है।
रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर की वार्षिक रिपोर्ट में लेन-देन का परोक्ष तौर पर जिक्र आया है। अपवाद वाले आइटम की सूची में नोट 43 के मद में रिलायंस एयरपोर्ट डेवलपर्स लिमिटेड में निवेश की बिक्री के जरिये 284.19 करोड़ रुपये के लाभ की बात कही गयी है।
डसाल्ट रिपोर्ट में आरएडीएल में सिक्योरिटी की कुल कीमत 3996200 यूरो बतायी गयी है। इसके ठीक विपरीत राफेल और रिलायंस के ज्वाइंट वेंचर डीआरएएल में उसकी सिक्योरिटी केवल 96200 यूरो है जिसके बाद इसके धीरे-धीरे बढ़ने की उम्मीद जतायी गयी है।
इकोनॉमिक टाइम्स में हाल में दिए गए एक इंटरव्यू में डसाल्ट के सीईओ एरिक ट्रैपियर ने कहा है कि अनिल अंबानी समूह के साथ डसाल्ट के ज्वाइंट वेंचर वाली कंपनी डसाल्ट रिलायंस एयरोस्पेश लिमिटेड में उन्होंने 70 करोड़ रुपये के निवेश किए हैं। इस कंपनी में डसाल्ट का शेयर केवल 49 फीसदी है।
डसाल्ट एविएशन की फ्रांस में अपनी कंपनी की फाइलिंग दिखाती है कि डसाल्ट ने इक्विटी के तौर पर 22 करोड़ रुपये पंप किया है इसके अलावा उसने 4 मिलियन यूरो का अलग से लोन भी ज्वाइंट वेंचर को दिया है जिसका भारतीय रुपये के हिसाब से 32 करोड़ रुपये मूल्य होगा। अनिल अंबानी समूह के एक सूत्र ने “दि वायर” को बताया कि इस पैसे को डीआरएएल ने मिहान में अपने हैंगर के लिए दिया। इस साक्षात्कार में ट्रैपियर ने आरएडीएल में 35 फीसदी की खरीद का जिक्र नहीं किया।
नागपुर जमीन की कीमत कौन अदा किया?
पीएम मोदी ने राफेल डील की 10 अप्रैल 2015 को घोषणा की। जुलाई 2015 में रिलायंस एरोस्ट्रक्चर ने नागपुर स्थित मिहान सेज में जमीन के लिए महाराष्ट्र एयरपोर्ट डेवलपमेंट कौंसिल को अर्जी दी। उसने अगस्त 2015 में 63 करोड़ रुपये में 289 एकड़ जमीन आवंटित कर दी।
बाद में कंपनी ने कहा कि वो केवल 104 एकड़ जमीन ही लेगी। हालांकि ये आवंटन अगस्त 2015 में हुआ था लेकिन रिलायंस एरोस्ट्रक्चर ने इसका बकाया 13 जुलाई 2017 तक लौटाया। जिसमें उसने कई डेडलाइन पार किए।
मोदी के राफेल डील की घोषणा के बाद 24 अप्रैल 2015 को रिलायंस एरोस्ट्रक्चर कंपनी बनी। इसे 2016 में रक्षा मंत्रालय द्वारा लड़ाकू विमान बनाने का लाइसेंस मिला। जिसके बारे में विपक्षी दलों का कहना है कि वो सरकार की गाइडलाइन का उल्लंघन है।
2017 के लिए कंपनी के दिए गए विवरण के मुताबिक रिलायंस एरोस्ट्रक्चर को रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर से 89.45 करोड़ रुपये का एक इंटर-कारपोरेट रकम मिलती है। ये उसी साल होता है जब डसाल्ट एविएशन रिलायंस एयरपोर्ट डेवलपर्स में से रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर की 34.79 फीसदी हिस्सेदारी खरीदता है।
इस क्रम के हिसाब से ऐसा लगता है कि रिलायंस एरोस्ट्रक्चर ने रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर से मिले पैसे का इस्तेमाल एमएडीसी की ओर से आवंटित जमीन के 38 करोड़ रुपये के बकाये को चुकाने के लिए किया। ये बकाया तकरीबन एक साल तक बना रहा। रिलायंस एरोस्ट्रक्चर द्वारा दिए गए विवरण के मुताबिक कंपनी की कुल कीमत गिरती गयी। लेकिन प्रमोटर की पर्याप्त वित्तीय सहायता से हालात नियंत्रण में रहे। 2017 में रिलायंस एरोस्ट्रक्चर को 13 करोड़ रुपये का घाटा हुआ। उसके पिछले साल में उसे 27 करोड़ का नुकसान हुआ था।
हाल में सीएनबीसी को दिए इंटरव्यू में डसाल्ट के सीईओ एरिक ट्रैपियर ने दावा किया था कि उनकी कंपनी ने रिलायंस एडीएजी समूह को आफसेट पार्टनर के तौर पर इसलिए चुना क्योंकि उसके पास एयरपोर्ट के बगल में जमीन थी। हालांकि राज्य सरकार और रिलायंस के बीच जमीन के लिए समझौता उस समय हुआ जब डसाल्ट ने राफेल पर उसके साथ करार किया।
डसाल्ट की एक विज्ञप्ति के मुताबिक डसाल्ट एविएशन के साथ रिलायंस एरोस्ट्रक्चर का ज्वाइंट वेंचर डसाल्ट रिलायंस एरोस्पेश लिमिटेड (डीआरएएल) को औपचारिक रूप से भले 2017 में शामिल किया गया हो लेकिन ये हर तरीके से अप्रैल 2015 से शुरू हो गया था।
इस सिलसिले में और विवरण के लिए “दि वायर” ने रिलायंस एडीएजी समूह से संपर्क किया था। लेकिन खबर लिखे जाने तक उसके पास से कोई जवाब नहीं आया।